2/10/2016

कवितायें

1 ] बसा लो मुझको
पुष्प वृक्ष  में  ज्यौं  नव पुंज  खिला  हो,
पुलकित हो उठे त्यौं मेरे तन के उर में।
रखो सदा मुझको तुम भी अपने तन के उर में,
इस तरह ज्यौं  मोती  घिरा  हुआ हो सीप  में।
समेट  मुझको अपनी  बाहों  में  भर लो  तुम,
ज्यौं  चांदनी को  समेटे चंदा  अपनी बाहों में।
अपने मधुरस से तुम इस तन-मन को संवार दो,
ज्यौं महीने को मस्त बना देता वसंत मधुमास में
हर अभिलाषा  को मेरी  तुम  पूरी  मेरी कर दो,
सबको अभिलाषा पूरी होती है ज्यौं कल्पतरु से।
बरसा  कर  प्यार  तृप्त  मुझे  तुम  कर  दो,
धरा को तृप्त करता है ज्यौं सावन अपनी बूदों से।
बस यही कामना है तुमसे पल-पल रहो पास मेरे
धडकन  रहती है ज्यौं सांसो के संग इस दिल में।।
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                           [ 2 ]
 जब-जब  देखूँ  आइना अपना,
                तुम ही तुम दिखते हो बनकर सपना।
सोचू्ँ मैं ये आ जाते हो कहाँ से तुम खयालो में,
        बस पूँछती रहती हूँ तुमको ही इन सवालों में,
पर सच में है ये हकीकत तुम ही तुम हो,
                मेरे  शाम ओ सहर  के नजारों  में।।
        
                     [ 3 ]
कभी थमने लगे जज्बात,
               तो कह देना।
कभी रुकने लगे अहसास,
                तो कह देना।
वैसे  हम   खुद  में   ही,
                 मशगूल हैं।
कभी हम  पे  प्यार आये,
              तो कह देना।।
                   [ 4 ]
अहिस्ता -अहिस्ता तुम्हें चाहने लगी हूँ,
तुम्हारी हर नज़र को समझने लगी हूँ,
सौदा किया जो हमने वो दिल का था,
इस दिल के हालात समझने लगी हूँ,
अब न शिकवा  न  शिकायत  तुमसे,
तुम्हें अपनी  आदत  मानने  लगी  हूँ,
माना वक्त लगा  प्यार के गलियारों में,
अब तेरे प्यार में डूबकर इतराने लगी हूँ।।
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