6/28/2016

पर्यावरण दायित्व हम सबका ।(लेख )

मौजूदा सरकार हर क्षेत्र मे काफी ध्यान दें रही है पर हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि सारा ध्यान ऊँट के मुँह मे जीरा साबित हो रहा है ।पर्यावरण  का नाम आते ही हमारे दिल दिमाग में नदी,पेड़- पौधे,पहाड़ घूमने लगते हैं। यह प्रकृति  प्रेम का संकेत है। 5 जून को मनाये जाने वाले पर्यावरण दिवस को हर वर्ष धूम- धाम और    जोर -शोर से मनाया जाता है।
           पर्यावरण रक्षा के लिये 1986 में एक अधिनियम बनाया गया। यह एक व्‍यापक विधान है इसकी रूप रेखा केन्‍द्रीय सरकार के विभिन्‍न केन्‍द्रीय और राज्‍य प्राधिकरणों के क्रियाकलापों के समन्‍वयन के लिए तैयार किया गया है जिनकी स्‍थापना पिछले कानूनों के तहत की गई है जैसाकि जल अधिनियम और वायु अधिनियम। मानव पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने एवं पेड़-पौधे और सम्‍पत्ति का छोड़कर मानव जाति को आपदा से बचाने के लिए ईपीए पारित किया गया, यह केन्‍द्र सरकार का पर्यावरणीय गुणवत्ता की रक्षा करने और सुधारने, सभी स्रोतों से प्रदूषण नियंत्रण का नियंत्रण और कम करने और पर्यावरणीय आधार पर किसी औद्योगिक सुविधा की स्‍थापना करना/संचालन करना निषेध या प्रतिबंधित करने का अधिकार देता है।

धू -धू कर जंगल जल रहे हैं । बारिश का समय पर होना ।सूखती नदियाँ व नीचे जाता साल दर साल...इंसान अब भी न चेता तो कागजों पर ही नदियाँ ,पहाड़ ,झरने देखने को मिलेगा 
   
                   पर्यावरण प्रदूषण पर लगाम नहीं लगायी तो प्रदूषण के कुछ दूरगामी दुष्प्रभाव हैं , जो अतीव घातक हैं , जैसे आणविक विस्फोटों से रेडियोधर्मिता का आनुवांशिक प्रभाव , वायुमण्डल का तापमान बढ़ना , ओजोन परत की हानि , भूक्षरण आदि ऐसे घातक दुष्प्रभाव हैं ।प्रत्यक्ष दुष्प्रभाव के रूप में जल , वायु तथा परिवेश का दूषित होना एवं वनस्पतियों का विनष्ट होना , मानव का अनेक नये रोगों से आक्रान्त होना आदि देखे जा रहे हैं । बड़े कारखानों से विषैला अपशिष्ट बाहर निकलने से तथा प्लास्टिक आदि के कचरे से प्रदूषण की मात्रा उत्तरोत्तर बढ़ रही है ।

दायित्व हम सबका या सरकार का?
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मेरा मानना है अगर सभी पर्यावरण की चिंता करने लग जाये अपने - अपने दायित्वों का निर्वाह करने लगे तो तो पर्यावरण दिवस मनाने की जरूरत नहीं पड़ती। दिवस तो हम उन चीज़ों का मनाते हैं जिनको हमें बचाने की जरूरत होती है।मतलब साफ है पर्यावरण खतरे में है और हम उसे बचा रहे हैं ।पर क्या सच में उसे बचा पा रहे हैं? यह मात्र प्रश्न चिन्ह नहीं चिन्ता का विषय है।कोई कार्य जो कि हर मनुष्य की जिन्दगी से जुड़ा है उसे बचाने के लिए हर मानव जाति को उतना ही तत्पर होना होगा जितनी की हमारी सरकारी व गैरसरकारी संस्थाएं।यह मात्र सरकारी काम नहीं ।स्वच्छ वायु ,जल और वातावरण सबे जीवन के लिए अनिवार्य कारक हैं।इनके बिना जीवन सम्भव नहीं  ।इसके लिए सिर्फ सरकारों पर निर्भर रहना सही नहीं ,बल्कि प्रत्येक नागरिक का ये अधिकार और कर्तव्य है कि पर्यावरण हिफाजत में वो अपना योगदान दें।
      
                    नदियाँ सूख रही हैं ,पहाड़ उजड रहे हैं ,पहाड़ों का हृदय पर्यावरण की क्षति से धधक उठा है ,उत्तराखंड में विनाशकारी प्रलय जाने कितनी जिन्दगियाँ  लील गया !! देश के जाने कितने हिस्से "लातूर"बन सूखे के बेमियादी दर्द से कराह रहे हैं । गांव के गांव उजड गये ,जानवर बेमौत तड़प -तड़प मार गये और हम अभी भी चेते नहीं। हमे और हिस्सों को लातूर बनने से बचाना होगा। पर्यावरण से बेवफाई का नतीजा किसानों ने अपनी जान गवा कर चुकाना पड़ा। क्या यह दोष मात्र सरकारों का है ?हम सब को  हर बात के लिये सरकार को जिम्मेदार ठहरा कर पल्ला झाड़ उठ खड़े होते हैं । हम ये दोषारोपण का खेल करते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब सांस लेने के भी पैसे देने होंगे। हमे एक साथ उठ खड़े होना है अपने गाँव,शहर, देश,विदेश ,पृथ्वी को बचाने के लिए, इससे पहले की पर्यावरण सुर्सा बन हम सबको लील ले।

झोलम -झोल झांसा ( व्यंग्य लेख )

झांसा देना हर किसी के वश  का काम नहीं ये थोड़ी टेक्नाली होता है । तरकीबों और तेज़ दिमाग़ की बदौलत ही झोलम -झोल कर सकते हैं ।वैसे इंसानों मे भी ये गुण सबसे ज्यादा राज नेताओ के पास पाया जाता है  और नेता भारत का हो तो उसमें शक की गुंजाइश ही नहीं बचती

इंसानों को झोल मे रखना आसान नहीं ,पर स्वर्ग वासियों आई मीन टू से...भगवान मियाँ को गोला देना बेहद आसान होता है । वो क्या है की भगवन मियां थोड़े घूस खोर जो हैं । ये  शाश्वत सत्य सबके साथ -साथ हमको भी मालुम ही था ।

ऐसे ही झोल मै करती रह्ती थी बात उन दिनों की है जब मै छोटी थी  जब हम छोटे थे तो घर के आसपास पूरे  मुहल्ले के बच्चे   जुट जाते खेलने के लिये । अपने घर के सामने खेलते तब तो घर लौटना आसान होता है पर दूर खेलती तो लौटने मे थोड़ी दिक्कत होती । हम भारतीय क्रिकेट खिलाड़ियों की भाँति घर के शेर थे ।बाहर हमारी शिट्टि -पिट्टि गुम हो जाती थी ।

वो ऐसे कि जहाँ हमारे खेलने का मैदान था वही एक नीम का बडा पेड़ था। उस पेड के बारे मे धारणा ऐसी कि इसमे जिन्न रहता है । उस जिन्न का डर ऐसा कि जैसे भारत कि महँगाई । ऐसे तो खेलते हुये ख़याल न आता पर जैसे ही अँधेरा होता हालत पतली होने लगती । जैसे चुनावों के दौरान नेताओं की ।

घर जाते -जाते डर लगता कि कही पीछॆ-पीछे  कोइ डरावना चेहरा न आ रहा हो। अब शुरू हो जाता  भगवान कॊ घूस देना......भगवान आज बचा लो दो रुपये का  प्रसाद चढ़ाउँगी....जैसे नेता जनता को चुनाव समय घूस देते हैं ठीक वैसे ही । खैर सरपट भागते -भागते घर मिल जाता । जनता की भाँति बेचारी मै रोज़ कि तरह मम्मी से डाँट वाला लेक्चर सुना ,खाना खा पी  और सोने चली जाती ।

सुबह होती  नहा धो स्कूल निकल गये कहाँ का प्रसाद,कौन से भगवान....मन से मन कॊ सफाई दी वो तो बस ऐसे ही था । मेरी ऐसे हर काम मे भगवान कॊ घूस देने की आदत बन गई थी ।भगवान भी मेरी मटमवासी समझ चुके थे पर मै भी जान चुकी थी की भगवान बहुत लालची हैं और उल्लू भी!! खैर भगवान भी सयाने थे यमवा को बोल दिया था हमारा बहीखाता देखने को ।

हम बड़े हुये शादी -ब्याह ,लड़का -बच्चा  ,घर -गृहस्थी बनी पर आदत हमायी अबहू जस की तस । अबहू भगवान को झोल देते रहते । असली भारतीय हैं सुधरते कैसे !

एक दिन ऐसा आया कि धरती मॆ हमाये दिन पूरे हो गये यमराज हमें लेने आये । हमने भगवान कॊ घूस दी पर वो तो बदले हुये लोकतंत्र की तरह बदले के मूड मे था । चलो कोइ नही अब जाना था तो जाना ही था। सब को बाय -टाटा कर रोता -बिलखता हम छोड़ कर चल दिये यम भइया के साथ ।

ऊपर पहुँचे तो हमारी अच्छी वाली क्लास लगी भगवान के पास सारा बहीखाता मौजूद था । एक -एक दिन का हिसाब मौजूद था । अव उस पर हमारी सुनवायी का दिन था । हम भी कोइ कम वाले वो नहीँ थे । भगवान ने पूछना शुरू किया और पूछना क्या इल्जाम लगाना शुरू किया ।

इल्जाम कि हमने भगवान को बेवक़ूफ़ बनाया और ना जाने क्या -क्या.......
हमने उत्तर दिया -भगवान !! हमने भगवान कसम से  आपको बेवक़ूफ़ नही बनाया ।गीता की सौगंध तक खाने मे देर न लगायी..... बचपन की बात छोड़ कर  वो तो बचपना था ये कहकर हमने अपना पहला पाँसा फेंक दिया लगे आगे का दर्द बताने ।

आगे का दर्द......वो यों था भगवन ! कि हम थे  जनरल कास्ट के पढाई -लिखाई के बावजूद नौकरी न मिल सकी जो पैसा आता पाई -पाई करके घर -गृहस्थी चला लेते । मुसीबत मे आपको याद कर लेते थे अब क्या आपको याद करना भी धरती मे गुनाह है का । और जब कभी-कभी ज्यादा डर लगता तुमको मनौती देकर अपने को मुसीबत से बचाने का टिकट पक्का कर लेते ।भगवान इसमे गलती कहाँ भई है भला ? और जउन  ड्रामा कर सकती थी.... किया खुद को बचाने के लिये । क्योंकि वहाँ हम ही मुजरिम , हम ही खुद के वकील थे । कौनो मीडिया न था हमारी तरफ़ दारी के लिये ।

भगवन अब आप ही बताये कि हमारी गलती कहाँ है । भगवान थोड़ी देर तो विपक्षियो की तरह हम पर कटाक्ष करते रहे पर हमारी नाटकीयता और  बातों से भाउक हो उठे और हमे  माफ़ कर दिया । और हम  नेताओं के मानिंद (जैसे जनता को उल्लू बनाना ) भगवान  को उल्लू  बना....एक बार फ़िर गॉड को झोल दे कर धरती पर आ गये ।

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6/25/2016

भाजपा राष्ट्रीय महामंत्री - अरुन सिंह ( साक्षात्कार )

प्र०-सरकार की प्रमुख उपलब्धियाँ हैं और उनको जनता तक कैसे लेकर जायेंगे क्या मानना है आपका ?
उ०-सरकार की उपलब्धियों की बात करें तो हर क्षेत्र में सरकार ने ठोस कदम उठाये हैं ।जैसे लोगों को वित्तीय व्यवस्था से जोड़ना ,आज 21 करोड़ ल का बैंक खाता खुल चुका है ।आज़ादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी गरीब  लोगों का बैंक खाता न होना ही अपने आप में शर्म की बात है।इससे भ्रष्टाचार में कमी आयेगी और गरीब वर्ग फाइनेंसली इम्प्रूवमेंट का भी लाभ मिलेगा।दूसरा शोसल सिक्योरिटी भी मिलेगी ।अलग -अलग तरह के जीवन बीमा 12रु, 300रु में हम बीमा के स्कीमे लेकर हम आये है।फिर लोगो को एमप्लायमेंट देना है और एमप्लायमेंट मे सेल्फ एमप्लायमेंट भी होना चाहिए जैसे छोटे -छोटे बिजनेस -धंधे वाले लोग हैं रिक्शा चालक,सब्जी बेचने वाले,नाइ,चाय वाले आदि ऐसे लोगों को 25-30हजार की जरूरत होती थी तो उनके लिए अरेन्ज करना मुश्किल होता था तो सरकार ने ऐसे 2 करोड़ लोगों को मुद्रा बैंक के माध्यम से लाभ पहुंचाया है अब ऐसे लोगों को कम ब्याज पर ही धन उपलब्ध है जिससे सेल्फ एमप्लायमेंट शुरू कर सकते हैं।भारत जैसे देश विश्व जनसंख्या पर दूसरे नंबर पर है ऐसे में रोजगार के साथ-साथ सेल्फ एमप्लायमेंट पर भी ध्यान देना पड़ेगा ये तो रहा सामाजिक उत्थान का मामला ।अब बात करते हैं देश के आर्थिक हालात की तो हालात बहुत खराब थे।जिस सरकार ने अब तक काम किया उससे निराशा का वातावरण था ।इस निराशा के माहौल में मंहगाइ व भ्रष्टाचार भी था ।हमारा रिजर्ब भी कम था और चारों ओर भारत की ऐसी स्थिति बना दी थी कि भारत को गिरवी रखने की नौबत आ गयी थी ।लोगों का विश्वास उठ गया था।सरकार बनने के बाद सबसे पहले मोदी जी ने देश विदेश में भारत की जो साख गिरी थी उसको सुधारने का काम किया ।लोगों को विश्वास में लिया ।विश्वसनीयता के कारण ही फ्रांस के ओ एस डी ने तारीफ किया ,स्टैंडर एन्ड पुअल एजेंसी ने ,वर्ल्ड बैंक ने तारीफ किया और विश्व के जितने भी आर्थिक संगठन हैं उन्होंने सब ने तारीफ किया है ।ट्रांपरेंसी इंजेक्ट में हमारी स्थिति धीरे-धीरे अच्छी होती जा रही है।अब एक और क्षेत्र है कि सरकार के कार्य में विश्वासनीयता के साथ-साथ पारदर्शिता कैसे आये।इसके लिए मोदी जी ने डिजिटल इंडिया का नारा दिया और उन्होंने1•25 लाख करोड़ रुपये  भी इस कार्यक्रम के लिये दिये और इस पर काम चल रहा है।यह जब पूरी तरह सक्सेज होगा तो 2•50 लाख गांवों तक इन्टरनेट पहुंच जायेगा और ब्राडबैंड बढेगा इसके माध्यम से दूरदराज इलाकों में रहने वाले लोगों को हर वह सहायता व सुविधा मिलेगी जो शहरी लोगों को मिलती हैं।फिर ईलाकर सिस्टम से लोगों को अपने डाक्यूमेन्टस डिजिटल लाकर में रख सकेंगे और नेशनल पोर्टल के माध्यम से सारे विद्यार्थियों को लाभ देने का सिस्टम है तो डिजिटल इंडिया के फुली एमप्लीमेंट होने के बाद देश में क्रांति आ जायेगी यह क्रांति पारदर्शिता के रुप में भी देखी जायेगी और लोगों का समय भी बहुत बचेगा और काम भी तेज होगा ,करप्शन भी खत्म होगा और एकाउंटबिल्टी भी बढ़ेगी ।दूसरा उन्होंने मेकइन इंडिया का नारा दिया इसमें सि्कल इंडिया के माध्यम से लोगों को रोजगार के लिए तैयार करना।जो ज्यादा जनसंख्या भारत के लिए अभिशाप बन चुकी थी उसी को मोदी जी ने अपनी ताकत बना ली।आइ टी क्षेत्र में भारत के युवा वर्ग जो नाम विश्व भर में है उसमें प्रतिशत  बढा है और बढ़ेगा।हमारे देश में इतनी आबादी है यहाँ परम्परागत रूप से काम करने वाले लोग हैं जिनकी विश्व भर जरूरत पड़ती है तो ऐसे में उनकी थोड़ी ट्रेनिंग कर दी जाये और दूसरी भाषाओं का ग्यान भी दे दिया जाये तो विदेशों में जाकर काम कर सकेंगे।प्रोफेशनली कैसे काम किया जाता है यह सब सिखाया जाये तो बहुत अच्छा रहेगा।यह सब सि्कल डेवलबमेन्ट के माध्यम से 5 करोड लोगों को हम ट्रेन्ड करेंगे जो यहाँ भी नौकरी करे और विश्व भर में जाकर नौकरी करे जिससे भारत के लोग विश्व भर में छा जायेंगे ,इसके लिए स्किल डेवलवमेन्ट मिनिस्ट्री भी बनायी गई है।स्किल डेवलवमेन्ट व डिजिटल इंडिया दोनों मिलकर भारत का भाग्य बदलने वाले हैं।इसके अलावा किसानों के लिए हर फील्ड में बहुत काम किया जा रहा है,प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना इससे किसानों को काफी सहायता मिलेगी।

प्र०-लैन्ड बुल को लेकर कांग्रेस नकारात्मक राजनीति कर रही है क्या कहेंगे?
उ०- देखिए कांग्रेस शुरू से यही कर रही है पर हम काम करेंगे तो ये कितनी भी राजनीति कर ले कुछ नहीं होने वाला।

प्र०-इतनी अच्छी स्कीमों या अच्छे कार्यों के बावजूद जब बात राजनीति की आती है तो सब फेल नजर आता है,बिहार में बिना सिद्धांतों के गठबंधन हुआ और BJP को मुह की खानी पड़ी क्या कहेंगे?

उ०-हमारा एजेंडा गुड गवर्नमेंट का है हम देश का विकास चाहते हैं दूसरी पार्टियाँ खत्म हो चुकी हैं वह सब एक जुट होकर सिर्फ खुद को जीवित रखने का काम कर रही हैं तो ऐसे गठबंधन क्षणिक लाभ तो ले सकते हैं पर समय तक इनका अस्तित्व नहीं रहेगा।

प्र०- उ०-प्र० का चुनाव निकट है तो ऐसे में पार्टी क्या रणनीति बना रही है। दूसरा उ०-प्र० सरकार का प्रबंधन कैसे देखते हैं आप?
उ०- देखिए उ०-प्र० चुनाव में BJP की सरकार का बनना तय है क्योंकि जिस प्रकार प्रदेश में सारी व्यवस्थाये ध्वस्त पड़ी हैं उसके बाद उनका दुबारा लौटना मुश्किल ही नहीं नमुमकिन है। वर्तमान सरकार भ्रष्टाचार में भी अव्वल है गुंडागर्दी भी चरम पर है तो लोग तंग आ चुके हैं इसके उलट BJPका फीडबैक सुशासन का है रही बात बसपा का वो तो पहले ही दौड हे बाहर हो चुकी पार्टी है।किसी पार्टी में इतना भ्रष्टाचार नहीं हुआ जितना बसपा के कार्यकाल में हुआ ।हम डेवलपमेंट का एजेन्डा लेकर जायेंगे और हमारी ही सरकार बनेगी ऐसा मेरा मानना है ।बिहार समीकरण अलग थे यहाँ हम जीतेंगे ।

प्र०-आदर्श ग्राम योजना जो चल रही है ,73 सांसद उ०-प्र० से हैं, किस प्रकार मूल्यांकन करते हैं ?

उ०- देखिए इसका मूल्यांकन सरकार को देखना है,  हम मूल्यांकन नहीं कर सकते हैं। उ०-प्र० मे सब कुछ बहुत अच्छा होता अगर पिछली सरकारो का अच्छा सुशासन होता।

प्र०- म०-प्र०  सरकार को किसानों के लिए किये कार्यों के लिए कई अवार्ड मिल चुके हैं उन्होंने देश को एक माडल दिया क्या कहेंगे?

उ०-बिलकुल हमें यह देखना होगा कि किसानों की फसल कैसे बढे कम लागत परऔर उसको बिक्री पर अधिक से अधिक पैसा 💵कैसे मिले,इन तीनों चीज़ों को देखना है और तीनों चीज़ों पर काम हो रहा है।कास्ट कैसे कम लगे और पैदावार अच्छी हो मान्यवर प्रधानमंत्री जी ने कदम उठाये है और जब ये तीनो चीजे सही होगी तो किसानो की दशा सुधरेगी ।

प्र०-नया बजट आने वाला है तो  किसानों के लिए  क्या फोकस किया जायेगा?
उ०-बिलकुल होना चाहिए देखिए किसान,गरीब,नौजवान ये तीनों प्रधानमंत्री जी के एजेंडे म हैं और जो भी नीतिया बनती हैं इन तीनों को नजर में रख कर सरकार नीतियाँ बनाती है। जो अभी तक हुआ है सरकार उससे और अधिक करने की तैयारी मे है।

प्र०- दूसरी पार्टियाँ या कांग्रेस कुछ न कुछ सेंसटिव मुद्दे उठाकर राजनीति कर सरकार को बदनाम करने की कोशिश करती हैं ,यहाँ तक की संसद को भी नही चलने देते क्या कहेगे?

उ०-देखिए रह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है ।ऐसी घटनाएं चुनाव पूर्व उठायी जाती हैं और चुनाव के बाद न जाने कहाँ चली जाती हैं पता भी नहीं चलता।कम्युनिस्ट पार्टी वालों का एक वर्ग है जो ऐसी चीजें ही उठाते हैं ।अब चुनाव पूर्व  देखिए मालदा को ही ले लीजिए उसको लेकर कोई हंगामा नहीं किसी ने कोई आवाज नहीं उठायी ,पूरी की पूरी एक टीम और मीडिया वर्ग में भी कुछ लोग हैं जो मोदी सरकार को बदनाम करने का बराबर प्रयास कर रहे हैं ।ऐसे लोगों का पर्दाफाश होना चाहिए।

प्र०-लालू जी विहार चुनाव जीतने के बाद सुना है लालटेन लेकर अब बनारस जाने की तैयारी में है और वहाँ कई पार्टियाँ उनके समर्थन में भी हैं क्या कहेंगे?

उ०- देखिए लालू जी लालटेन लेकर विहार में रहे और वही जाये क्योंकि वहाँ आये दिन घटनाएँ घट रही हैं उनको रोकने का काम करे।जहाँ-जहाँ अपहरण,डकैतियाँ हो रही हैं उसको रोके तो लालटेन लेकर उनको रोके उसकी ज्यादा जरूरत है।लगातार इतनी घटनाएँ हो रही हैं उससे लालू जी का घमंड चूर-चूर हो रहा है ।लालू खुद एक क्रिमिनल हैं और साथ-साथ झूठे भी हैं तो जनता उनसे बहुत परेशान है।

प्र०-आप धरातल पर काम करते हुए BJP के राष्ट्रीय महासचिव के पद तक पहुँचे हैं आप का नजरिया उ०-प्र० चुनाव में क्या है ,कार्यकर्ताओं को कैसे प्रेरित करेंगे?

उ०- देखिए मैं मिर्ज़ापुर के एक गाँव का रहने वाला व्यक्ति हूँ और गांव में ही पला-बढ़ा हूँ ।जनसंख्या के मामले में उ०-प्र० बहुत बढ़ा है और अगर उ०-प्र० विकसित नहीं होगा तो देश का विकास नहीं हो पायेगा तो हमारी सरकार बनेगी और हम विकास करने का पूरा प्रयास करेंगे और सफल भी होंगे।

6/24/2016

क्या लिख दूँ !!(कविता )

सब ही तो लिख रहे
मै ऐसा क्या लिख दूँ

कुछ बन रहे शरद
तौ कुछ बनन लगे परसाई

कुछ भये पछ लग्गू
तो कुछ कर रहे घिसाई

बाँध रहे शब्दों की सीमा
न समझे मन की पीड़ा

सब ही है नाम की माया
को कित्ता  विज्ञापन पाया

गाली लिख कुछ हुये महान
लाँघू क्या मै भी ये सोपान

छापू मै भी कोइ किताब
हँथिया लू कोइ पुरस्कार

व्यंग्य -व्यंग्य कर हँस रहे
पकडे सिर्फ व्यंग्य के कान

और अभी है लिखने को
इत्ता पढिये अभी दै कर ध्यान ॥शशि पाण्डेय ।

6/20/2016

कहावत

बांभन ठाकुर कुत्ता नाई
जात  देख  गुर्राई ॥

पानी बेरहम (व्यंग्य कविता )

पानी बना  बेरहम , वो सुनो प्यास के मारो
खुद ही थोड़ी शर्म निचोड़ खुद की प्यास बुझालो

पानी है कम बचा, मिल सब बचा लो प्यारो
नही बचा है नही बचेगा बिन पेंदे के प्यालों से

कागज पत्रों मे बह रहा पानी, गाँव डूब गया बाढ़ो से
चुनिया मुनिया बाट जोहती पानी की दूर कगारो  से

रस्सा - कस्सी खूब मची  धरती  की  ईन्द्रो से
तय करते वो ही किस द्वारे जाये पानी ट्रालो से

6/19/2016

घर मे गाँव

शहर पे आ बसी  हूँ
गांव को  छोड़कर
घर की हर दीवार पे
तस्वीर सज़ा रखा  है
गांव की,बस  यूँ  ही
घरमें गांव बसा रखा है

6/17/2016

मन के मौर

शब्दों  के  हैं  खेल
भाव मिले बे  मोल
चाहे  जिस ठौर पर
राखिये मन के मौर

मीठी छुरी ( व्यंग्य कविता )

किस से  किसकी हुई  रार
सब बेजा ही हुये शिकार

राजनीति की माया हय
मीठी छुरी और कड़वी है तकरार

हम तुम लड़ ,करते हैं वार
तुम क्या जानो बच्चू
सफेदो का आपस मे रहता है प्यार

हमने तुमने यूँ ही ढोया
सपनों का सतरंगी संसार

ढायी जब शनि की ढइया
वो था बदकिस्मती का इतवार

कर दो इनकार बन जाओ होशियार
यूँ ही न तुम बनो शिकार ॥॥शशि पाण्डेय

6/03/2016

एक माँ "रोमा"की कहानी

एक गर्भवती स्त्री दिन - रात अपने आने वाले बच्चे के ही सपने देखती रह्ती है । ऐसी ही एक  कहानी है रोमा कि..रोमा दिन -रात अपने  आने वाले बच्चे के हिसाब से खुद का ध्यान और ख़याल  रखती। पर नियति को कुछ और ही मंजूर था । रोमा को बेटा हुआ है घर मॆ सब बहुत खुश हैं । पर डॉक्टर की बात ने सब की खुशी पर पानी फेर दिया । डॉक्टर का कहना है रोमा का बच्चा विकलांग है। रोमा के साथ -साथ घर वालों पर जैसे कहर टूट पडा हो । लेकिन रोमा के साथ जो हुआ उससे वह और टूट कर बिखर  गयी थी । रोमा की ससुराल वालों ने रोमा को घर निकाल दिया । मायके वालों ने भी कुछ ही दिन ही साथ दिया। पर रोमा ने हिम्मत नही हारी वह अपने बेटे को गोद मॆ ले कर स्कूल ले जाती और खुद वही पास मॆ मज़दूरी करती ये सिलसिला तब तक चला जब तक बेटे को पढाई पूरी नही करा दी इस दौरान उसे पहाड़ जैसी मुसीबतों क सामना करना पड़ा। आज रोमा के बेटे का IAS के लिये साक्षात्कार है । रोमा आज भी उसे लेकर गयी है लोग उस पर हँस रहे हैं । कुछ समय बाद.. साक्षात्कार का परिणाम आया है रोमा का बेटा आज बड़ा आफिसर बन गया है  जो लोग उस पर हँसते थे ,आज सब उसके आगे -पीछे हो रहे थे । रोमा ने अपने दम पर अपने विकलांग बेटे को एक सफल इंसान बना दिया है । धन्य है ऐसी माँ.....एक माँ ही होती है जो अपने बच्चो के लिये खुद को न्योछावर कर देती है ।

"" हे माँ तू मेरी जननी
    तू  ही  मेरी करनी  
    तू मेरे चारो धाम 
    तू  मेरी   रक्षक 
    तू ही मेरी भरनी ॥"" शशि पाण्डेय

पडोसी घर लाईट (kahani )

पडोसी घर लाईट

कभी -कभी चुटकुले भी चरितार्थ होते दिख जाते हैं।चुटकुला कुछ यूँ  था -" "यू -पी वाले घर की लाईट जाने पर सबसे पहले पडोसियो की लाईट का  पता करते हैं "" (हमारे उत्तर - प्रदेश के कुछ एक स्थानों को छोड़ दे तो बाकी जगहों पर बिजली की समास्या हमेशा बनी ही रही है )

गर्मियों मे लाईट का न रहना श्राप है और उस पर भी आधी रात को जाये तो उससे बड़ा श्राप तो हो ही नहीँ सकता।

पर छोटे -शहर कस्बों मे रहने वाले लोग भी खूबै ढीठ और फुरसतिया होते हैं । जितने देर भी लाईट जाये अगर घंटा निकल जाये तो सीधा पावर हाउस मे खड़े होते हैं ।

आज रात लाइट का ऐसा ही टाईम टेबल बना आँख -मिचौली करती रही दिक्कत तो हो ही रही थी ।दिक्कत तो तब भी हुई जब रोड लाईट आ रही थी। पर और उससे से भी असहायनीय  दिक्कत और परेशानी तब बढ़ गयी जब पड़ोस के घर मे लाइट आ रही थी ,पर हमारे यहाँ नही।

थोड़ी बहुत मस्सकत की गयी पर सफलता हासिल न हुई फ़िर दूसरे पडोसी ने बताया कि उनके यहाँ जनरेटर चल रहा है ।

सच मे यह जानकर कि पडोसियो के यहाँ भी लाईट नही है वैसा ही सुकून मिला जैसे मानो लाइट आने पर...फ़िर क्या पंखा झल्ते हुये सोने की कोशिश मे जाने कब आँख लग गई ।शशि पाण्डेय ।

समीक्षा -आह अमेरिका वाह अमेरिका

आह !अमेरिका वाह !अमेरिका जैसा की किताब के शीर्षक से ही पता लग जाता है की यह पूरी किताब अमेरिका के ऊपर लिखि गयी है । मेरा मानना है  आह जैसा भाव मन मॆ तब निकलता है जब मन मॆ किसी बात की कमी अखरती है या अभाव लगता है । लेखक के मन मॆ भी शायद अमेरिका को देख पहला शब्द "आह "निकला होगा इसके बाद अमेरिका के प्रभाव से प्रभावित हो...वाह निकला होगा ! क्योंकि कोई वस्तु ,इंसान ,स्थान जब आपको बहुत अच्छा लगे तो बिना वाह  बोले नही हम नहीँ रहा पाते ।

लेखक रविशंकर पाण्डेय का यह यात्रा संसमरण इतना सजीव चित्रण और संजीदा है कि पाठक संस्मरण पढ़ते - पढ़ते पूरी तरह अमेरिका की पृष्ठ भूमि मे साक्षात जा पहुँचता है ।

लेखक रविशंकर उत्तर - प्रदेश सरकार कार्यरत हैं और अमेरिका सरकारी प्रक्षिशण के तहत जाना हुआ । लेखक छात्र जीवन मॆ ही किसी अपरिचित व सूदूर स्थानों यात्रा की ललक बनी ही रहती थी जो की इस यात्रा के जरिये कहीँ न कहीँ पूरी हुई ।

लेखक कॊ पासपोर्ट और वीजा तक थोड़ा दिक्कतों का सामना पड़ा ।खैर पाठक कॊ ये भी पता लग गया की बीजा और पासपोर्ट के लिये किन -किन दिक्कतों से दो - चार होना पड़ता है ।

लेखक ने एयरपोर्ट मॆ जाने से लेकर फ्लाइट व फ्लाइट मॆ हर एक छोटी -छोटी बातों को बखूबी चित्रित किया है ।

लेखक रविशंकर ने अमेरिका यात्रा का हर महीन से महीन कोना दिखाने का प्रयास किया है...

"अमेरिका मॆ : दि 0 02.08.2010
मेरी आँख सुबह पाँच बजे रोज़ की तरह खूली तो लगा कि हल्की बूंदा - बांदी हो रही थी । फ्रेश होकर मैं पैन्ट टीशर्ट पहनकर बाहर निकला ,तो देखा  बूंदा - बांदी बंद हो चुकी थी लेकिन पूरा माहौल ऊदा -ऊदा सा है ।

पाठक को अमेरिका के बारे इतनी विस्तार से और रोचक जानकारी शायद अमेरिका के एटलस मॆ भी न मिले । पाठक के मानस पटल पर स्वभाविक सहज चित्र अंकित करता है। एक दृश्य देखे....

विलमिंगटन की सैर
विलमिंगटन शहर नार्थ कैरोलीन प्रांत का एक समुद्र तटीय पुराना शहर है तथा वर्ष 1739 से नगर निगम के रूप मॆ मान्यता प्राप्त है । शहर का क्षेत्रफल 41.5 वर्ग मील है तथा जनसँख्या का घनत्व 2069 व्यक्ति प्रति वर्ग मील है ।

इस प्रकार से बताते लेखक ने पूरा का शहर घुमा दिया । पढ़ते -पढ़ते मन सच मॆ वही जा घूमने लगता है ।

इतना ही नही लेखक का मन  वॉशिंग्टन की सड़को मॆ घूमते हुये अपने अविकसित और अति पिछ्डे क्षेत्र बुंदेलखंड मॆ स्थित गाँव को भी याद करता है और अपने आप को भाग्यशाली भी मानता है की इतने अविकसित गाँव का इंसान इतने विकसित व शक्तिशाली राष्ट्र की राजधानी मॆ विचरण कर रहा है ।

इतना ही नहीँ लेखक का सम्वेदनशील मन अमेरिका वापसी पर थोडा भाउक भी होता है । जिस होटल मॆ रुके उसको पलट कर निहारना व जहाज की खिड़की से छोड़ते हुये अमेरिका को बार -बार देखना... यह सब लेखक के सहृदय पक्ष को दर्शाता है और हो क्यों न क्योंकि लेखक रविशंकर लेखक होने के साथ -साथ एक सफल कवि व गीतकार भी हैं ।

यात्रा संस्मरण की भाषा बेहद ही सरल ,सजग और किताब को रोचक बनाती है। पाठक होने के नाते एक बार किताब शुरू करने के बाद विराम लेने का मन नहीँ होता ।

लेखक को इस सफल यात्रा के साथ -साथ ,सफल यात्रा संस्मरण के लिये बधाई व शुभकामनाएँ उम्मीद है आगे भी ऐसे ही अच्छी रचनायें पाठको को पढ़ने को मिलेगा ।
पुस्तक -   आह ! अमेरिका, वाह ! अमेरिका
लेखक-     डॉ0 रविशंकर पाण्डेय
प्रकाशक-  अनामिका प्रकाशन
              52 तुलारामबाग ,इलाहाबाद -211006

मूल्य -       350 रुपए
समीक्षक - शशि पाण्डेय, नई दिल्ली।