11/12/2016

दर्द ए काला धन (व्यंग्य लेख )

दर्द ए काला धन !
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हे काले धन ! अब तुम्हारे दिन बीत गये तुम नश्वर निकले। इतना ही नहीँ तुम सम्वेदना हीन निकले । तुम लोगों की दिक्कतों को दरकिनार कर समाधि लीन हो गये । तुम जनता को अकेले त्राहि -त्राहि करने को मजबूर कर गये । तुम रिटायर हुये वो भी भरी जवानी मॆं । आज तुम किसी पाठ्यक्रम जैसे रातों रात बदल दिये गये  ।

टी वी पर न्यूज़ देख रहे पति ने घबड़ायी आवाज़ में जोर से पत्नी को आवाज़ लगाई अरे सुनती हो ! पत्नी जो कि किसी पार्टी मॆं जाने हेतु तैयार हो रही थी , हाँथो में लगी नेलपेंट को मुँह से फूँक मार सुखाती हुई आई बोली दो मिनट भी चैन से तैयार नहीँ होने देते ।पति ने पत्नी की बात काटते हुये बताया
प्रधानमंत्री ने पाँच सौ और हजार के नोट को गलाया अब क्या करेंगे ऐसा कहते हुये भी हकलाया। बीवी ठहरी बीवी उसने सुनते ही पति की बात को बिन सोचे समझे झूठलाया। तभी बनारस वाले फूफा जी का फॊन आया उन्होंने भी ऐसा कुछ हाल बताया ।

एहसास ए काला धन क्या होता है प्रधनमन्त्री की स्पीच के बाद आया । अब पत्नी जी को लग गया बात गम्भीर है मन में चैन न धीर है। तपना और तपाना क्या होता है यह केन्द्र के मुखिया ने बतला दिया है । काले धन की कचौँधन ने आम जनता को कल्लू मामा बना दिया है ।लम्बी लम्बी लाइने मतदान के लिए नही काले धन को सफेद करने के लिए पूरे देश में लग गई !

लाइन मॆं न लगने वालों को भी लाइन मॆं लगा दिया ।कल मै भी गई लाइन मॆं लगने । लाइन मॆं लगने के बाद देखा "दिल्ली पुलिस सदैव आपके लिये आपके साथ" हम लाइन मॆं लगे वालो को लाइन मॆं लगाने के लिये प्रयास रत थी । कुछ लाइन मैन ,वूमेन के फेस भिन्नाये - भुन्नाये ,कुछ के घबड़ाये, कुछ के गुस्से मॆं तमतमाये , कुछ अपने नम्बर पर नजरो को गडाये , कुछ पी एम पर बड़बड़ाये हुये थे । तभी एकाएक मेरे अंदर दर्शनशास्त्र की तरंग दौड़ी और लाइन मॆं लगने का सदउपयोग कर कुछ कलम चला डाली....

बैंको मॆं ख़त्म होता कैश ,
खराब हुआ ATM का फेस 
जनता की लाइनों मॆं रेस,
बेखबर PM गये विदेश

यह सर्जीकल स्ट्राइक का नया एपिसोड है नये विषय के साथ जिसमे खुशी तो है पर मायूसी के लिबास मॆं । असहमति का भी अपना मजा होता है। कॊई माने या न माने आप असहमति मॆं खुश । माना लोकतंत्र पंच -प्रपंच की निवृत्ति है लेकिन जो फ़रमान देश हित मॆं हुआ वह कितना टन्च है जनता जनार्दन चुनावों मॆं तय करेगी । सोचने वाली बात है गृहणी द्वारा जुटाया धन ,बेटी की शादी के लिये एक एक कर जुटाया धन , बच्चो के द्वारा बूढे माँ बाप को दिये गये पैसों मॆं खर्च से बचाया गया धन , गरीब इंसान के अपने खर्चे मॆं से बचाया गया धन ये न  काला था न गोरा था यह पसीने की कमाई मॆं नमकीन धन था । पसीने की कमाई के "नमकीन धन" वालों किस बात की सजा !

इस काले धन के आपात काल ने मध्यम वर्गीय चेहरों की रंगत लाल कर दी है पी एम साहिब। साहिब ने लड्डू तो दिये मगर मुसीबत के खूनी हाँथो से । गुलाबी नोट ,गुलाबी सपनों की जगह मुसीबत का सबब बनकर आये हैं ।

10/09/2016

आप दायें -बांये मुड़ सकते हैं । ( व्यंग्य लेख )

आप दायें -बांये मुड़ सकते हैं 
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जी हाँ आप बायें मुड़ सकते हैं । और इतना ही नहीँ आप दायें ,बायें अथवा यू टर्न ले सकते हैं । ऐसा अक्सर सड़कों पर बोर्ड लगा दिख जायेगा । ये तो रही  सड़कों की बात लेकिन ऐसा हम सब अपनी -अपनी जिंदगियों में तब कर सकते हैं...जब थूक कर चाटने की गुंजाइश न बची हो...लेकिन बच कर कल्टी मारना भी ज़रूरी हो ! उदाहरण शरीफस्तान ।

ये तरकीब उनके लिये काफ़ी कारगर है जो लम्बी - लम्बी डींगें हांकते हैं । कुछ दिनों पहले एक सेल्स मैन ने दरवाजे पर दस्तक दी । काँच के आइटम जिद करके दिखा रहा था । उसके  दिखाने का तरीका बड़ा अनोखा था...आपस में बर्तनो को कई बार बजा -बजा कर दिखा रहा...दावे किये जा रहा था बरतन नहीं टूटेंगे कि तभी अचानक एक बर्तन में ठोकर लगी और टूट गया फ़िर क्या था मैने उस पर पलटवार करते तनिक देर न लगायी...वो बेचारा करता क्या बाँधा सामान और बांये मुड़ चंपत हो लिया ।

यह बांये मुड़ना पडोसी मुल्क शरिफस्तान  (पाकिस्तान ) के लिये बेहद उपयुक्त क्रिया है । क्योंकि उसको अक्सर ऐसा करना पड़ता है । लेकिन इसको  ऐसा नहीं करना पड़ता क्योंकि इसके द्वारा भेजे गये आतंकी पहले तो मार दिये जाते हैं और बचते भी हैं तो बम फोड़ खुद को उड़ा बांये उड़ जाते हैं ।

बांये - दायें की बात हो और वामपंथी और दक्षिणपंथी नाम के भूत को छोड़ दे ऐसे कैसे बने बात । भारत में सिर्फ़ बायें दायें का मतलब सिर्फ़ दिशाये नहीँ होती । यहाँ बायें दायें का मतलब वो संगठन होते हैं जो सरकारों को क्रांतिकारी रुप से पटक -पटक कर सरकाते हैं ।

ये बायें दायें संगठन इतने बड़े दुश्मन कि सीरिया और इजरायल की दुश्मनी भी इनके सामने पानी भरे । फ़िर भी आम लोग दायें बायें का मतलब दिशा ही मानते हैं । अब तक मेरे लिये भी यह सिर्फ़ दिशाये थी 
लेकिन अब पता चला इसके और भी अर्थ होते हैं ।

चुनाव हो तो ये दायें बायें का करिश्मा अपने चरम पर होता है । जाने कब ,कौन ,कहाँ कालातीत हो कल्टी मार जाये कुछ कयास लगाना भी सोच से बाहर । राजनीति के तोड़ भांज में क्या से का क्या हो जाता है श्रीराम बोले तो दायें...लाल सलाम बोले तो बायें । ये राजनेता इतना इधर -उधर आते जाते की इन्हे इस्तीफा देना हो तो साला भूल जाते हैं कि थे किस पार्टी से ।

दायें बायें का और मतलब निकाले तो...देखते हैं सफेदपोशो के अपने बयानों के साथ  क्या बोल कर कब दायें -बायें होना है ये दायें -बायें वाले भी नहीँ जानते । कभी -कभी बंदर देख सोचती हूँ बंदर ने दायें - बायें से...दाये -बायें होना सीखा या बंदर से दायें -बायें बना । ये कह जाते हैं फ़िर जाते हुये उठा भी ले जाते हैं और कहे को न कह जाते हैं । कहे के ,न कह गये को मीडिया कहकहा बना अपनी शाम हसी कर लेती है । दो चार मुसरचंदो को बैठा माहौल बना किसी पार्टी की मशखरी कर लेते हैं । दायें से दस गुना और बायें से बेगार खूब सटीक होता है।

कल मारकेट जाते हुये कुछ नज़ारा ऐसा...दो ट्रैफिक पुलिस वाले चौकसी के साथ मुस्तैद थे उनमें से एक के पास दो कार वाले बहसियाते दिखे...तभी एक बाइक पर तीन सवार दिखे..बेचारे बहुत दायें - बायें करने के बाद भी पुलिस से बच ना भाई ऐसे लोगों को कभी-कभी दाएं बाएं भी नहीं बचा पाता एक खयाल ऐसा भी की "खुदी को कर इतना बुलंद दाएं बाएं दिशाये भी पूछे कि तुझे जाना किस दिशा है"

अच्छा ख्याल आया कभी-कभी होमवर्क ना कर के आने पर बच्चे भी खूब दाएं-बाएं ब करते हैं। तरह तरह के बहाने बनाते, बच्चे कब अपने ही बातों पर फंस जाते हैं और टीचर को हॉरर बना देते हैं ।क्या करें यह दाएं-बाएं का चक्कर होता ही ऐसा है। जिम्मेदार बनो या फिर  दाएं बाएं हो जाओ  । ये दाएं बाएं भी किसी भौकाली से कम नहीं लगता ।

कभी-कभी कुछ लोग तो आदतन भी दाएं-बाएं होते हैं प्राइवेट सेक्टर में लोग दाएं-बाएं करने की तड़ीपार कर जाते हैं । और तड़ीपार करने का तरीका बड़ा ही स्पष्ट सार्थक सुष्ठु होता है लेकिन तड़ीपार करने की प्रक्रिया में संभावनाएं बहुत होती है लेकिन रिस्क भी उतना होता है ।

बात निर्मल बाबा की हो तो मजाल है भगवान और भाग्य दाएं-बाएं हो जाए उनके द्वारा भाग्य को इतनी रसगुल्ले और मिठाइयां खिलाई जाती है कि भाग्य क्या नौ ग्रह भी हमारे हिसाब से चलने लगते हैं भला हो निर्मल बाबा का यह मेरे प्रश्न हमेशा उत्सुकता का विषय रहा है कि रसगुल्ला खाने से कुछ फायदा होता है क्या या सिर्फ जीभ रसस्वादन होता है खैर यह विश्लेषण का विषय है रसगुल्ले और निर्मल बाबा के बीच की बात है हम क्यों पैर और टांग घुसाए ।

निर्मल बाबा से आगे बढे तो पाएंगे गुरु घंटाल पुजारी भी कम दायें-बाएं नहीं घुमाते हैं भविष्य का डर दिखा खूब दान-दक्षिणा में दाएं-बाएं कर जाते हैं । वैसे यह गुरु घंटाल बड़े ही आत्मन्वैषि होते हैं ।मेरा तो इतना ही कहना है

तू कर दाएं- बाये की 
पूरी दुनिया है 
तेरे दाएं-बाएं॥

मैं भी मन का सघन चिंतन करती हूं और आप से अब दायें -बाये होती हूँ ।

हम अब भी न बदले (लेख )

जब भी पब्लिक प्लेस में महिलाएँ कुछ मौर्ड्न कपड़े पहने दिखती उनसे ज्यादा उन्हें निहारते लोग दिखते हैं  ।ऐसे लोग भी देखते हुये दिखते हैं  जो खुद को मौर्ड्न की श्रेणी में रखते हैं । कुछ तो मन ही मन मर्यादा और संस्कारो की दुहाई भी दे डालते हैं । यूँ तो कहने को हम आधुनिक हो चले हैं लेकिन सिर्फ़ ऊपर से । हमारी आधुनिकता मेट्रो, मॉल और सुविधाओं तक ही हो पाई है । यह आधुनिकता का कोरा लबादा है । ऐसी मानसिकता समाज के लिये अभिशाप से कम नहीँ । पुरुष प्रधान समाज में आखिर यह असुरक्षित परिवेश पता नहीँ कब तक !

लेकिन एक अच्छी बात कि महिलाएँ खुद को बदल रही हैं । एक जैसी धारणा की बेडियो को तोड़ स्वतंत्र हो आगे बढ़ रही हैं । किसी भी समाज की पहचान इस बात से होती है कि उसमें महिलाओ का स्थान क्या है। आंकड़े बताते हैं कि अपने देश में महिलाओ की स्थिति अच्छी नहीँ । ये आंकड़े भी हम न देखे तो भी अपने आस -पास  होने वाले अपराधों से सच्चाई सामने दिखती है । यह शर्मनाक है ।कितने ही कानून बना दिये जायें जब तक लोगों की सोच नहीँ बदलेगी कुछ नहीँ बदलेगा । आधुनिक रहन -सहन से नहीँ  मन -मस्तिष्क से बनना होगा ।

कुछ लोगों को कहते हुये सुनती हूँ क्या महिलाओ को आज़ादी कपड़ों की चाहिये...क्या समानता और बराबरी कम कपड़े पहनने से आती है । जिस सामाजिक प्राणी को कहीं जाने -आने , अपने कपङे क्या पहने क्या नहीँ का और तो और अपने मन की सोचने तक अधिकार नहीँ उसके लिये समाज में समानता जैसी बातें बेमानी हैं । समाज में मर्यादायें सबके लिये एक जैसी हों । मर्यादा सिर्फ़ महिलाओ के लिखा गया ऋग्वेद नहीँ । सभी जानते हैं रात में पुरुष बड़े आराम से मन से घूमता है या आ जा सकता है लेकिन क्या महिलाएँ रात को निकल सकती हैं ,और निकल कर सुरक्षित वापस आ घर वापसी कितने प्रतिशत होने की सम्भावना होती है ये कॊई नहीँ बता सकता ।

एक बार एक लड़के -लड़कियों का ग्रुप पिकनिक पर गया । मौज - मस्ती  हों रही थी । तभी उन्हें तालाब दिखा जितने लड़के थे कपड़े उतारे और तालाब में छलाँग लगा स्वीमिंग के मजे लेने लगे वही साथ में गयी लड़कियाँ ऐसा नहीँ कर सकी क्योंकि वो लड़कियाँ थी उनके सामने उनके कपड़े, उनका शरीर और उनके लिये सिर्फ़ उनके लिये ही पुरुषों  या पुरुष प्रधान समाज द्वारा बनायी गई मर्यादा और संस्कार  आडे आ रहे थे । सबसे अपील है सोच बदलो देश बदलेगा ।

समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़ी स्त्री का अकेला संघर्ष और उस संघर्ष में समाज द्वारा अपनाए विरोधात्मक तेवरों का अंकन करता यह मात्र  बड़बोलापन नहीं है । सामाजिक संरचनाओं में भीतर तक पैठी पितृसत्ता के खिलाफ खडी हो गई औरतों का इंकलाब इस समाज  में यथार्थ रूप में है । कोरी आदर्शात्मक नाटकीय लगता है ।यह जरूरी है कि स्त्री अपना यह स्वतंत्र व्यक्तित्व कायम रखे और इसी ढंग से अपने रिश्ते, अपने रास्ते, अपने कपड़े तय करे और अपना मक़ाम बनाये । लेकिन इससे इतर महिलाओं को सतर्क रहना होगा कि आधुनिकता के नाम पर वो खुद दरक कर न रह जायें ।

नारी को असुरक्षा ख़त्म कर बराबरी के लिये पहली लड़ाई घर में लड़नी होगी । घर का वातावरण ऐसा मर्यादित बनाएँ कि पुरुष को हर समय अदब से रहने को मजबूर होना पड़े। महिलाओ को हर वह सम्भव प्रयास करने होंगे जिससे वह आधुनिकता के सही मायनों को जीवन में सर्गर्भित कर पाये ।

जब से बाजारवाद आया तो उसने स्त्री को एक वस्तु बना कर पेश किया. देह की मुक्ति का नारा लगाया। इस आकस्मिक बदलाव को भारतीय पुरुष पचा नही पा रहा और स्त्री की इस खुलेपन पर उसे एक खीज और कुंठा पैदा हो रही है ।अपनी इस चिढ़ को उसने स्त्री पर घिनौने अपराध कर निकाल रहा है ।क्योंकि पुरुष की मानसिकता बदलने की कोई पूर्व तैयारी हमारे समाज में नही की गयी है और न तो उसकी परवरिश के माध्यम से महिलाओ के लिये सोच बदलने जैसा कुछ नहीँ सिखाया जा रहा और न ही उसकी शिक्षा-दीक्षा में लेकिन सामाजिक कलेवर बदल रहा है । आज भी ये दोनो विपरीत परिस्थितियाँ एक-दूसरे के साथ सामंजस्य नही बिठा पा रही हैं ।

यह समाज में महिलाओं के वर्चस्व की लड़ाई है खुद महिलाओ को समझना होगा वह किस तरह इस पथ पर आगे बढे लेकिन अपने अस्तित्व कि तिलांजलि देकर नहीँ । आधुनिक महिला आधुनिकता का बाजारवाद बनने से बचना होगा । महिलायें नकारात्मक प्रभाव और पुरुषों के दुर्गणों और कमियों से बचकर अपना आसमान अख्तियार कर ही लेंगी ।यह धारणा नारीत्व के लिये मील का पत्थर साबित होगा । शशि पाण्डेय ।

10/06/2016

डॉo अम्बेडकर

बाबा अम्बेडकर का संविधान एवम उसकी विशेषताये 
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डॉ. भीमराव रामजी आम्बेडकर जन्म: 14 अप्रैल, 1891 - मृत्यु: 6 दिसंबर, 1956

बाबा अम्बेडकर एक मात्र संविधान रचयिता नहीँ थे  वह एक महान विचारक  थे एक विश्व स्तर के विधिवेत्ता थे होने के साथ -साथ महान समाज सुधारक भी जिन्होने दलित समाज के उत्थान के लिये जीवनपर्यन्त प्रयासरत रहे । इसके साथ -साथ बाबा एक महान दूरदर्शी थे ।अपनी महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों तथा देश की अमूल्य सेवा के फलस्वरूप डॉ. आम्बेडकर को 'आधुनिक युग का मनु' कहकर सम्मानित किया गया। बाबा साहब डॉ. भीमराव आम्बेडकर : एक जीवन दर्शन

हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए ।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना उनका मकसद नहीं, उनकी चाह थी कि यह सूरत बदलनी चाहिए ।

      
11 दिसम्बर 1946 को डा राजेन्द्र प्रसाद संविधान  सभा के स्थायी अध्यक्ष निर्वाचित हुये !13 दिसम्बर से 19दिसम्बर 1946 तक संविधान निर्माण के  विभिन्न मसलो पर चर्चा होती रही ।विभिन्न पहलुओं के सम्बँद्ग मे 5 प्रमुख समितियों का गठन मेरठ के अधिवेसन मे पास किया गया ।29 agust 1947 को संविधान सभा ने डॉoभीमराव अम्बेडकर  को प्रारूप समिति का  अध्यक्ष का चुना ।समिति मे कन्हैंयालाल ,मौ सदुल्ला बी एस मीत्तर अल्लदी कृष्णा स्वामी अयंगर और डी पी खेतान अन्य सदस्य के रूप  मे थे ।बाद मे दो सदस्यों के स्थान पर एन माधव राव और टी क्रिष्नामचरि की नियुक्ति की गयी।30 अगस्त  1947 को प्रारूप समिति की पहली बैठक से लेकर 141 दिन तक बैठकों का दौर चलता रहा ।डा अम्बेडकर के नेतृत्व मे फरवरी 1948 को  प्रारूप संविधान  तैयार करके  संविधान सभा के समक्ष रखा गया ।इस पर तमाम लोगों के सुझाव और आलोचनाये प्राप्त हुयी ।

संविधान बनने से पूर्व एक सभा बनायी गयी जिसका नाम था संविधान -सभा । यह एक सामान्य प्रतिनिधित्व संस्था थी जिसने आरम्भ से ही अत्यंत उदात्त धरातल पर कार्य करना प्रारम्भ किया था । इसके कई कारण थे ।संविधान -सभा के सदस्य ने युग की चुनौती को समझा और उसका उत्तर देने का प्रयत्न किया । संविधान -सभा के सामने जो प्रश्न थे वे अपने आप में युगाँतरकारी थे । जिसके सही समाधान पर देश का समूचा भविष्य निर्भर था ।

सभा के गठन के अतिरिक्त यह बात ध्यान देने की है कि भारत के राष्ट्रीय नेता स्वयं ही सभी वर्गों और खासकर अल्पसंख्यक वर्गों के हितों की रक्षा करने के लिये अत्यंत उत्सुक थे । अल्प संख्यक वर्गों की आशंकाए दूर करने के लिये इससे अच्छा और क्या नमूना पेश किया जा सकता था? वस्तुतः डॉo अंबेडकर जिन्हें अध्यक्ष चुना गया  वह जीवन भर कॉंग्रेस के कटु आलोचकों में रहे थे और यह सम्मान और उत्तरदायित्व सौंपे जाने पर उन्हें भारी आश्चर्य हुआ था । उन्होंने कहा था....

"मुझे ज़रा भी ख़याल नहीँ था कि मुझे अधिक उत्तरदायित्व पूर्ण काम सौंपे जायेंगे । अतः मुझे भारी आश्चर्य हुआ जब संविधान -सभा ने मुझे प्रारूप समिति का समिति का सदस्य निर्वाचित किया ।मेरे आश्चर्य की सीमा न रही जब प्रारूप -समिति ने मुझे अध्यक्ष चुना ।"

संविधान सभा ने दो वर्ष ,ग्यारह महीने और सत्रह दिन में अर्थात तीन वर्ष से भी कम समय में भारतीय संविधान के निर्माण का महान अनुष्ठान पूरा कर लिया । इस बीच कुल मिलाकर संविधान सभा के ग्यारह सत्र हुये और 165 बैठकें । प्रारूप - समिति की 141 दिन बैठकें संविधान के प्रारूप पर विचार करने में लगी । सँवारा गया ।

संविधान -सभा ने यह सब काम किस प्रकार पूरा किया वह स्वयंमेव एक शिक्षा प्रद, प्रेणनादायक और प्रभावशाली कहानी है । यह कॊई मामूली बात नहीं थी कि देश के विस्तृत क्षेत्र और वैविध्यपूर्ण तथा विशाल जनसँख्या के बाबजूद संविधान - सभा एक ऐसे संविधान का निर्माण करने में सफल हुई जो देश के एक छोर तक लागू हो ,तथा देश की कितनी ही प्राकृतिक ,आर्थिक ,संस्कृतिक और राजनीतिक विविधताओं के बीच एकता का स्वर्ण सूत्र ढूँढ निकालने और पुष्ट करने में सफल हो ।

डॉo अम्बेडकर ने 4 नवम्बर 1948 को प्रारूप संविधान सभा के विचार के लिये प्रस्तुत किया , इस अवसर पर डॉ अम्बेडकर ने प्रारूप संविधान की सामान्य आलोचनाओ का ,विशेष कर इस आलोचना का संविधान मौलिक नहीं था , उत्तरी दिया । उन्होंने कहा....

"प्रश्न यह है कि क्या संसार के इतिहास में इस समय निर्मित किसी संविधान में कॊई नवीनता हो भी सकती है ? संसार के पहले लिखित संविधान की रचना को डेढ़ सौ साल से अधिक का समय हो चुका है ।अनेक देशों में अपने संविधानो को लिखित रुप देने में इसका अनुकरण किया है । संविधान का क्षेत्र क्या होना चाहिये ,यह बात बहुत पहले तय हो चुकी है ।

इसी प्रकार , यह बात भी सारे संसार में मान ली गयी है कि संविधान के मूल तत्व क्या होते हैं ? आज बनाये गये किसी संविधान में यदि कॊई नयी चीज़ हो सकती है तो यही कि उसमें पुरानी संविधान की गलतियों को दूर कर दिया जाये और उसे देश की आवश्यकताओं के अनुरूप ढाला जायें ।

यह आरोप कि हमारा संविधान दूसरे देशों के संविधानो का अंधानुकरण है संविधान के अपर्याप्त अध्ययन पर आधारित है । मुझे  इस आरोप के बारे में कॊई क्षमा याचना नहीं करनी कि प्रारूप संविधान में भारतीय शासन अधिनियम सन 1935 के अधिकाँश उपबंधो को ज्यों का त्यों ले लिया गया है । उधार लेने में किसी तरह की साहित्यिक छोरी नहीं है ।संविधान के मूल सिद्धांतों के बारे में किसी का कॊई एकाधिकार नहीं होता"

               *  संविधान की विशेषताएँ *
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प्रत्येक सजीव और सबल संविधान कर पीछे एक दर्शन होता है , एक आत्मा होती है ,कुछ आस्थाएं ,आधारभूत मूल्य अथवा सिद्दांत होते हैं ।इन सबकी नींव पर ही राजनीतिक -समाजिक व्यवस्था का प्रासाद खड़ा किया जाता है और राज्य के विभिन्न अंशों का शरीर - गठन किया जाता है

भारत का संविधान समाजवाद ,पूंजीवाद या साम्यवाद जैसे किसी विशिष्ट सामाजिक ,आर्थिक अथवा राजनीतिक दर्शन का अनुयायी नहीं हैं ।

भारत संसार का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक गणराज्य है । इसका एक लिखित संविधान है । संविधान में 22 भाग, 395 अनुच्छेद और नौ अनूसूचियां थी । संशोधन की कठिन या सरल प्रक्रिया के आधार पर संविधानो को अनम्य अथवा नम्य कहा जा सकता है ।

राष्ट्रपतीय या संसदीय 
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भारतीय संविधान सभा में इस प्रकार विस्तृत विचार विनिमय हुआ था कि भारतीय लोक तंत्र में किस प्रकार की शासन प्रणाली अपनाई जाये -राष्ट्रपतीय शासन प्रणाली या संसदीय शासन -प्रणाली । सर्वा भौम प्रभुता केवल जनता में निहित है -संसद के अधिकार संविधान निर्दिष्ट मात्र हैं । व्यवहारिक रुप से राष्ट्र पति हमारी शासन व्यवस्था में नाम मात्र प्रधान हैं । वास्तविक शक्ति मंत्रीमंडल व मंत्री परिषद में निहित है ।

संघीय अथवा एकात्मक 
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संविधानो को संघीय तथा एकात्मक में भी विभाजित किया जाता है । अमरीकी संविधान पहली श्रेणी का और ब्रिटेन का संविधान दूसरी श्रेणी का एक उत्तम उदाहरण है ।एकात्मक संविधान में सभी शक्तियां केन्द्रीय सरकार में निहित होती हैं और इकाइयों के प्राधिकारी उसके अधीन होते हैं तथा केन्द्रीय सरकार के एजेंटों के रूप में कार्य करते हैं और केन्द्र द्वारा प्रयोजित प्राधिकार का प्रयोग करते हैं ।वास्तव में ,उत्तम श्रेणी के संघ में संघीय सरकार को केवल वही शक्तियां प्राप्त हैं जो उसे इकाइयों द्वारा समझौते में दी जाती हैं ।

सँसदीय प्रभुत्व बनाम न्यायिक सर्वोच्चता 
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ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में संसद सर्वोच्च तथा प्रभुत्व संपन्न है । इसकी शक्तियों पर कम से कम सिद्दांत रुप में कॊई रोक नहीं है ,क्योंकि वहाँ पर कॊई लिखित संविधान नहीं है और न्यायपालिका को विधान का न्यायिक पुनरीक्षण करने का कॊई अधिकार नहीं है ।
भारत में संविधान ने मध्य मार्ग अपनाया है । चूँकि हमारा संविधान लिखित है तथा प्रत्येक अंग की शक्तियां तथा उसके कार्यों की संविधान द्वारा परिभाषा की गई है ।

वयस्क मताधिकार 
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डॉ अम्बेडकर ने संविधान सभा में कहा था कि संसदीय प्रणाली से हमारा आभिप्राय एक व्यक्ति ,एक वोट से है ।सभी वयस्कों को बिना भेद भाव यह अधिकार दिया गया ।

मूल अधिकार 
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मोटे तौर पर संविधान के भाग -3में जो मूल अधिकार शामिल किये गये हैं ,वे राज्य के विरूद्द व्यक्ति के ऐसे अधिकार हैं ,जिनका अतिक्रमण नहीं हो सकता । मूल अधिकारों के प्रवर्तन का तंत्र तथा उसकी क्रिया विधि भी संविधान में निहित है ।

निदेशक तत्व 
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हमारे संविधान की एक अनूठी विशेषता है...जो आयरलैंड के दृष्टांत से प्रेरित होकर निदेशक तत्व तैयार किये गये । हालाँकि कहा जाता है कि इन्हे न्यायालय लागू नहीं किया जा सकता है ,फ़िर भी इन सिद्धंतो से देश के शासन के लिये मार्गदर्शन की आशा की जाती है ।

मूल कर्तव्य 
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संविधान के 42 वें संशोधन के द्वारा अन्य बातो के साथ - साथ "मूल कर्तव्य" शीर्षक के अन्तर्गत संविधान में एक नया भाग जोड़ा गया। इसमे भारत के   सभी नागरिकों के लिये दस कर्तव्यों की एक संहिता निर्धारित की गई है । कॊई भी अधिकार तदनुरूप कर्तव्यों के बिना नहीं हो सकता तथा राज्य के प्रति नागरिकों के राजनीतिक दायित्वों के प्रति सम्मान के बिना नागरिकों के अधिकारों का कॊई अर्थ नहीं है ।इसलिये ,यह दुर्भाग्य की बात है कि नागरिकों के मूल कर्तव्यों की संहिता को हमने अभी तक वह महत्व नहीं दिया है जो इसे मिलना चाहिये ।

संघ और राज्य क्षेत्र 
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संविधान के अनुच्छेद में निर्धारित किया गया है कि भारत अर्थात ,इंडिया राज्यों का संघ होगा ।राज्यों तथा संघ राज्य क्षेत्रों के नाम तथा प्रत्येक के अन्तर्गत आने वाले राज्यक्षेत्रों का वर्णन प्रथम अनुसूची में किया गया है । उस समय अनुसूची में 25 अब 29 राज्य तथा सात संघ राज्यक्षेत्र सम्मिलित हैं ।

नागरिकता
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संविधान निर्माताओं ने एक एकीकृत भरतीय बंधुत्व तथा एक अखंड राष्ट्र का निर्माण करने के अपने लक्ष्य को ध्यान में रखते हुये ,संघीय संरचना होने के बावजूद केवल इकहरी नागरिकता का प्रावधान रखा । सभी नागरिकों के ,चाहे उनका जन्म किसी भी राज्य में हुआ हो बिना किसी भेदभाव के देश में एक से अधिकार तथा कर्तव्य हैं । भारत में अमरीका के विपरीत ,संघ तथा राज्य के लिये कॊई पृथक नागरिकता नहीं रखी ।

केन्द्रीय कार्यपालिका 
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संघ की कार्यपालिका का प्रमुख राष्ट्र पति होता है ।वह एक विशेष नीर्वाचक गण द्वारा परोक्ष निर्वाचन की रीति से एकल संक्रमणीय मत द्वारा सानुपात प्रतिनिधित्व की पद्धति के अनुसार पाँच वर्ष के लिये चुना जाता है ।उसके नीर्वाचक गण में एक संसद में दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य और दूसरे राज्यों की की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य होते हैं । भारत सरकार की समूची कार्यपालिका कार्य वाही  उसके नाम से की जाती है । रक्षाबलो की सर्वोच्च कमान उसमें निहित होती है और उसका प्रयोग कानून द्वारा विनियमित होता है ।

केंद्रीय विधानपालिका व राज्य विधानपालिका
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संघ का विधान मंडल संसद कहलाता है इसके दो सदन होते हैं...राज्य सभा और लोक सभा इन दोनों सदनों और राष्ट्र पति से मिलकर संसद बनती है ।राज्य सभा संसद का उच्च सदन होता है ।राज्य का निम्न सदन विधान सभा है जिसके सदस्य सार्वभौम वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचित होते हैं । दोनों सदनों के अध्यक्ष  सदनों में शांति तथा अनुशासन बनाये रखता है और सभा के सदस्यों के विशेषाधिकार की रक्षा करता है ।

राज्य कार्यपालिका व न्याय पालिका 
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भारत संघ के राज्यों का औपराचिक प्रधान राज्यपाल है ।वह राष्ट्रपति द्वारा पाँच वर्षों के लिये नियुक्त किया जाता है और उसके प्रसाद पर्यन्त अपने पद पर स्थिर रहता है ।सामान्य स्थितियों में राज्यपाल से अपेक्षा की जाती है कि वह राज्य की मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार आचरण करेगा लेकिन सांविधानिक गतिरोध के समय राज्यपाल की भूमिका निर्णायक हो सकती है और कुछ मामलो में उसका स्वविवेक से कार्य करना तथा राष्ट्रपति को सीधे भेजना महत्वपूर्ण हो सकता है ।

भारतीय संविधान में कार्याँग तथा विधनाँग की तरह संघ और राज्यों के लिये दुहरी न्यायपालिका की व्यवस्था नहीँ है । एक ही न्यायालय श्रंखला संघ तथा राज्यों के कानूनों का प्रशासन करती है । भारतीय न्याय व्यवस्था के शिखर पर उच्चतम न्यायलय है जो भारत के मुख्य न्यायधीश तथा कुछ अन्य न्यायधीशो से मिलकर बनता है । जन मन साधारण के मन में सांविधानिक अधिकारों तथा स्वाधीनता के प्रहरी के रुप में उसके प्रति अटूट श्रद्धा और सम्मान है ।

डॉo अम्बेडकर के संविधान की मुख्य विषेशता विदेशी संविधान का अनुकरण मात्र न होकर अपने में एक अनुपम और नव प्रयोग की गुंजाइश है । इसमे अद्भुत शक्ति  है । भारतीय सांविधानिक व्यवस्था एक समझौते और सामंजस्य की व्यवस्था है । शशि पाण्डेय ।