9/28/2016

तू है या नहीं !(कविता )

ओ  दाता तू  है क्या कहीं
तू है या , है भी नहीं !

हैं बेटियाँ जो धरती पर अभी बची
बुला ले सभी को अभी के अभी
तेरे संसार में रहती हैं डरी-डरी
जाती हैं पल -पल ,छली -छली 
ओ  दाता तू है क्या कहीं 
तू है या , है भी नहीं !

थक हार मै ही ज़हर क्यों पीती  
बचा ले आस्था अभी बची-कुची 
आस्तिक से नास्तिक बनने की 
राहें बची हैं अब मजबूरी से भरी 
ओ  दाता तू है क्या कहीं 
तू है या ,है भी नहीं !

नहीं आज़ादी मुझे अब भी पूरी 
वासना की घूमती मुझ पर है धुरी
जब तेरा आसमां तेरी है जमीं 
होता कहाँ जब अस्मत है लुटती 
ओ  दाता तू है क्या कहीं 
तू है या ,है भी नहीं !

फटती क्यों नहीं है माँ ये धरती 
तेरी आत्मा क्यों नहीं दुखती 
अपने हाँथो ही मेट दे मुझे 
रह जाये ये दुनिया थमी के थमी 
ओ  दाता तू है क्या कहीं 
तू है या , है भी नहीं !

खो कर पाने तक (कविता )

मौन हूँ प्रखर  होने  तक 
बेसब्र नहीं सब्र जाने तक 
सिखाती बहुत है ज़िन्दगी 
हमेशा खो कर पाने तक ॥

हूँ मिट्टी ढलती साँचे तक 
हूँ  छोटी रहती बाड़े  तक 
करती  नहीं  मै  ऐतबार 
हकीक़त जान पाने तक ॥

दरिया हूँ समंदर में जाने तक 
लड़की हूँ औरत बन जाने तक 
ममता  रहेगी  बसी  मुझमें 
पंचतत्व में मिल जाने तक ॥

दुख रहता सुख होने तक 
सुख रहता दुख होने तक 
जीवन का रहता यह चक्र 
आगोश में मौत के जाने तक ॥

प्यार है तेरे होने न होने तक 
डर नहीं मुझमें तुझे खोने तक 
तू  ही तो  है  सब  कुछ मेरा 
लेकिन विश्वास के होने तक ॥

©शशि पाण्डेय 
Shashiipandey.blogspot.com 

9/18/2016

मुँह की किताब और फीलिँग्स के प्रकार ( व्यंग्य लेख )

मुँह की किताब और फीलिँग्स के प्रकार 
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फीलिंग लवली.....आज एक दोस्त का फेसबुक स्टेटस देखा....इस फीलिंग  के साथ पोस्ट लगाई गई थी । यह एक उदाहरण मात्र था । अब फेसबुकीय प्राणी जाने क्या - क्या फील कर फीलिंग स्टेटस लगाते हैं । ये फेसबुक जब तक न था तब तक इतनी फिलिँग्स नहीं होती थी । तब तक इंसान फिलिँग्स के मामले में गरीब हुआ करता था....जुम्मा -जुम्मा दो या तीन ही तरह की फीलिंग्स रख पाता था। विदाउट फेसबुक.... दुखी ,खुशी, गुस्सा यही भावनाये ही व्यक्त कर पाता वह भी जब कोई उससे पूछता कि....भई दुखी से नज़र आ रहे हो या बड़े खुश...और गुस्सा तो चीज़ ऐसी की अपने आप दिख जाता ।

सोशल मीडिया का ज़माना और इस सोशल मीडिया के विस्तार के साथ -साथ ज़माने में लोगों के सोच -विचार की क्षमताओं का भी अदभुद विस्तार हुआ। ऐसा मेरा सोचना है । अब लोग भावनाओ को  भिन्न -भिन्न प्रकार से महसूस करते हैं । अच्छा ये फेसबुक की  फिलिँग्स चाइनीज फूड के नामों की तरह लगती लगती  हैं । आज मौजूदा समय में फेसबुक ने हमारे लिये 118 फीलिग्स की सुविधा मुहैया करा रखी है । यह मेरी फेसबुकीय फिलिँग्स के शोध का निचोड़ है। सो माई मौजूदा करेंट स्टेटस ....फीलिंग एनरजाइस्ट...फीलिंग  डिलाइट।

हालाँकि कुछ फिलिँग्स को जानने समझने के लिये अँग्रेजी शब्दकोष की भी शरण में भी जाना पड़ता है ।

भई ये तो कमाल हो गया हम क्या ,किस तरह का महसूस कर रहे हैं इसको समझने के लिये डिक्शनरी देखनी पड़ती है । फेस बुक पर लोगों के स्टेटस के अनुसार ही , लोगों की सम्वेदनाई प्रतिक्रिया भी मिलती है । अच्छा इन फिलिँग्स के प्रकार इतने होते हैं कि कई बार स्टेटस अपडेट करने में कन्फ्यूजन होती  है ।

मेरे दूर के भाई हैं एक उनकी  सास  समाप्त हो गई । उनका फोन आया...बोले बहना मै बहुत बड़ी दुविधा में हूँ ।मैंने पूछा हुआ क्या ?  उन्होंने कहा मुझे फेसबुक पर स्टेटस डालना है पर सिर्फ दुखी वाला नहीं क्योंकि यह सामान्य सा लगेगा, कुछ ऐसा बताओ कि फीलिंग और फिलिँग वाला फेस देखते ही कलेजा मुँह को आ जाये । क्या़ करूँ मै ...तुम तो  ऐक्टिव रहती हो फेसबुक पर तुम्हें ज़्यादा पता है...बताओ क्या डालूं ।

उनके इस प्रश्न ने मुझे भी निरुत्तर कर दिया । भई अगर सिर्फ़ दुख हो तो सैड फील शेयर  कर  देते पर मुद्दा थोड़े से ज़्यादा गम्भीर वाला था, कलेजा मुँह को लाना था ।

यह फेसबुकिया समाज का आधुनिक दुख था । हमने कहा रुको समाधान करते हैं, यू डोंट वरी.... तुमने हमें  कृष्ण की भाँति समझ , सुदामा बन फोन किया है हम  बताते हैं । आखिर हम ठहरे फेसबुक फिलिँग्स के रिसर्च स्कॉलर ।

हमें उनके दुख का रौद्र रुप दिखना था , कलेजा मुँह को लाना था । हमने कुछ कलेजा मुँह को लाने वाली  फिलिँग्स छांटी जो इस तरह थी....

सैड 
इमोशनल 
अपसेट 
पैनिक 
हार्टब्रोकेन 
फेडअप 
अम्युज्ड 
लॉस्ट 
लो 
होपलेस 
डिप्रेस्ड

अब इस संग्रह से कौन सी फीलिंग छांटे ये बड़ी मशक्कत की बात थी । हमने उनको ये लिस्ट थमाई और अपनी फिजा बनाई और कुछ लौजिकल बातें समझाई । क्योंकि हम जिम्मेदार थे । उन्होंने अपना फीलिंग "हार्टब्रोकेन" का फेस चिपका कर सास के दुनिया से चले जाने का दुखद....कलेजा मुँह को आने वाला संदेश आखिर कार सम्पन्नता पूर्वक पोस्ट कर राहत की साँस ले प्रसन्न हुये और खुश हो कर...फोन कर हमें आभार व्यक्त किया । हम भी खुश हुये कि हमारा शोध किसी के दुख में सहारा तो बना।

वैसे जो इन फिलिँग्स को नहीं जानता आज के समय में विवेकहीन प्राणी है । वह असमझ दिव्यदृष्टा है । 118 फिलिँग्स के होते हुये खुद के लिये एक फीलिंग भी न छांट पाये तो उसके लिये...."सब धान बाइस पसेरी" हैं । इससे ज़्यादा जूकरबर्ग क्या कर सकता है । शरीर नश्वर है ,मगर फिलिँग्स अमर । सो फिलिँग्स को समझिये यही वो तरीका और हुनर है जो इंसान को इंसान बनाता है ।

ये मुये और तेल कि धार (व्यंग्य लेख )

ये मुये और तेल की धार 
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तेल के वो दिन दूर हुये जब बेचारा रसोई में कढाइयो तक रहता था । अब तेल के नैसर्गिक काम का नयावतारण हो चुका है । अब यह और कामों में महत्व पूर्ण भूमिका निभाता है और वो भी  किसी की जब मसाज़ करनी हो तब या चमचा गिरी ,चाटुकारिता की चिकनी -चुपडी बातें करनी हो तो । हाँ कभी -कभी यह साजिश के तहत लोगों गिराने के काम भी आता है । लेकिन तेल की धार देखनी हो काम धैर्य के साथ लेना होगा ।

यह भाषा का चमत्कार है ।जहाँ हम धार सुनते हैं वहाँ हमें तेल धारा कम तलवार सा पैना पन समझ आता है । यह मुहावरा सांकेतिक अर्थ जिस परिप्रेक्ष्य में कहा जाता है उसका अभिप्राय किसी विशिष्ट और विशिष्ट का उद्देश्य या क्षमता को धैर्य के साथ परखने से होता है ।

वो बोले हमसे गुस्से में मुँह भी फुला लो और ठहाके लगा कर भी दिखाओ। ये दोनों बातें एक साथ हो भी सकती हैं और नहीँ भी । तेल में धार भी हो सकती है और कोमलता भी । यह तेल की मर्जी है किस ओर लुढ़के और लुढ़क कर बह चले ।

राजनीति के गलियारों में यह धार देर से समय के साथ समझ आती है । कौन सी मछली कितने गहरे गोता लगायेगी ये धैर्य के परीक्षण के साथ ही  सिद्ध होता है ।यह आधुनिक युग के आधुनिक प्रयोगवाद का युग है । जहाँ राजनीतिक खोखलेपन की सारी चेतनाओ की सौम्य कमीनीपंथी प्रयोग में लाई जाती है ।

उठा -पटक और पटक कर पतलून उतार लतियाना    फ़िर लतिया कर भरत मिलाप राजनीति में पुरा पाषाण की परम्परा है । वर्तमान में निर्गुण राजनीति में सगुण राजनीति का स्वर्णयुग  है। ये   जग ,जमीर ,ज़मीन पर गिरते हैं और नज़रो से गिरते हुये फ़िर ऊचाईयों को चूमने चल पड़ते हैं । ये ,ये न हो गये साला वाष्पीकरण की प्रक्रिया से  बड़ी वैज्ञानिक पद्धति बन गये । यह लोकतंत्र के यथार्थ का भीषण संघर्ष है सामयिक सत्ता बौरा कर रह गई हो । निराला की ये पंक्तियाँ बौराई सत्ता पर खूब फिट होती हैं...

महँगाई की बाढ़ बढ़ आई गाँव की छूटी गाढी कमाई 
भूखे -नंगे खड़े  शरमाये न आये  वीर  जवाहर लाल ॥

9/11/2016

तेलगुदेश के युवा सांसद राम नायडू का इंटरव्यू( शशि पाण्डेय ,नई दिल्ली )

प्र o - दलित के नाम पर रोहित बेमुला का जो मुद्दा उठा कर सरकार को घेरने की कोशिश की जाती है । क्या कहेंगे आप ?
उo- देखिये कुछ मुद्दे ग्राऊँड लेबल पर ऐसे हो जाते हैं उनका पार्टी से कोई लेना देना नहीँ रहता है ।यह ज़्यादा ही डिपर इश्यू है इसको राजनीतिक रूप दें तो कभी न सही होगा और न ही सुलझेगा ।इस पर सबको मिलकर काम करना चाहिये जिससे ऐसी घटनाएँ रुके ।

प्रo- पार्लियामेंट मे बीते दो साल मे आपने जो मुख्य रूप से जो मुद्दे उठाये वह कौन से हैं ?
उo- सबसे बड़ा मुद्दा वह है और लोगों को भी उससे खुशी मिलती है वह है जब मै आंध्र के लिये कुछ माँगता हूँ ।एक पैकेज के लिये प्रयासरत में है देखिये वैकेया जी और मोदी जी क्या करते हैं। हमारी कोशिश है आर्बनाइजेशन हो क्योंकि उससे ही विकास होता है ।चंद्रा बाबू जी हैदराबाद को डेवलप किया क्योंकि वह जानते थे इससे ही आँध्रा का विकास होगा ।और उन्होंने पूरी लगन के साथ काम किया ।विल्क्लिन्टन आये तो हैदराबाद आये ,बिलगेट्स आये तो आंध्र आये...तो क्यों आये क्योंकि आर्बनाइजेशन की पब्लिसिटी चल रही थी । विरोधियों ने इसके विरोध में नारे में लगाना शुरू कर दिया कि सिर्फ़ शहरी क्षेत्रों का ही विकास व विस्तार किया जा रहा है । उन सालो में बारिश कम हुई जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में दिक्कत आयी । तो परफेक्शन डेवलप हो गया था ।उन सब मुद्दों को लेकर हम चल रहे हैं । हमारी सरकार फ़िर से आयी है । हम फ़िर से डिस्पर्लाइजेश्न कर रहे हैं ।बाकी सभी जिलों से एक -एक शहर उठा कर काम कर रहे हैं ।

प्रo- नार्थ इंडिया में आदर्श ग्राम योजना पर इतना काम नहीँ हो पा रहा है इसकी वज़ह अपोजीशन है ।इस योजना में आप कितना क्या कर चुके हैं और इस बारे में क्या कहेंगे 
उo- वैसे मै बता दूँ हर जगह केन्द्र और राज्य सरकारें मिल कर कर सकते हैं या कर रहे हैं । कोई भी स्कीम हो ऐसा हो सकता राजनीतिक कारण रोड़ा आ रहा है पर ऐसा नहीँ होना चाहिये । मेरे पास 4000 हजार गाँव हैं एक चुन चुका हूँ "संतबाली" उस पर 5000करोड़ तक खर्च हुये हैं । आगे सोच समझ कर एक और गाँव शामिल किया जायेगा ।जो गाँव लिया उसमें हर कम्यूनिटी के लोग रहते हैं और अच्छा काम हो रहा है। जो बड़ी -बड़ी कम्पनियाँ हैं हम उनको भी गाँव में उपयोगी प्रोजेक्ट शुरू करने पर बात हुयी है ।

प्रo- युवा सांसद होने के नाते युवाओं को आप क्या संदेश देना चाहेंगे 
उo -युवाओं को मै यही संदेश देना चाहूंगी कि सबकी नज़र युवाओं पर ।ये जिम्मेदारी  हमें उठानी पड़ेगी जो कि नहीँ उठायी जा रही हैं ।शॉर्टकट  नहीँ हार्ड वर्कर बने । और सबसे बड़ी बात जॉब गिवर बन कर कुछ कर दिखाये जिससे देश को विकास की ओर ले कर चले ।

प्रo - आपकी दो साल की प्रमुख उपलब्धियां सांसद के तौर पर 
उo - काम तो देखिये चल ही रहा है। अभी तो हम वी जे पी के साथ मित्र पक्ष में हैं । फ़िर भी हमें पार्लियामेंट के अंदर स्लोगन शॉर्ट आउट करने पडे । क्योंकि मुद्दे बहुत स्ट्रॉंग हैं तो चाहे हम सफल हो या न हो प्रयास करते रहेंगे ।आंध्रप्रदेश में हमने ग्रामीण विकास के ऊपर सबसे ज़्यादा कंसंट्रेड किया है । और हमने उसमें विकास भी किया है ।जो फंड हमारे पास आया उसमें सबसे ज़्यादा हमने ग्रामीण क्षेत्र में खर्च किया ।एक साल के अंदर हमने 1000 को पेंशन कर दी ,राइट टू फूड एक्ट का एम्प्लीमेंट किया और चंद्रा साहब आई टी में ज़्यादा रुचि रखते हैं तो जैसा हैदराबाद को जैसा डेवलप किया ठीक सभी जगह ऐसा काम कर रहे हैं । इससे  हम 200 करोड़ की सेविंग कर पायेंगे ।

प्रo -मोदी सरकार की जो स्कीमें हैं आपके राज्य में क्या असर है उनका ??
उo-ग्राऊँड लेबल पर इसका बहुत अच्छा प्रभाव है हमें लगा कि ये स्कीमें बेकार साबित होंगी पर ऐसा नही था ।गाँव- गाँव में बैंक अकाउंट लोगों के खुल गये ,फसल बीमा योजना का भी लोगों को खूब लाभ मिल रहा है । जैसे मुद्रा लोन के लिये भी हमारे पास काफ़ी आवेदन आये हैं । ये  स्कीमें  में ग्रमीणो को ध्यान में रख कर बनाई गयी हैं और ये काफ़ी कारगर हैं ।

प्रo - जो यूथ है वह पढ़ - लिख कर भी जॉब सीकर बन रहा है ।इसके लिये जो स्किल डेवलपमेंट की स्कीम लाई गई हैं कितनी कारगर हैं ?
उo -देखिये देश में जॉब्स की सच में बहुत मारा मारी है मुझे लगा मेरे राज्य में ही समस्या है पर यह समूचे देश का हाल है । इसका हल जॉब गिवर बन कर ही निकाला जा सकता है । पर यह लोगों को भी सोचना होगा इस ओर सिर्फ़ सरकार के सोचने से कुछ नहीँ होगा ।नौजवानो को जॉब के अलावा कुछ अलग कर दिखाना होगा । सिर्फ़ जॉब के सहारे ही न रहे ।अपना काम कैसे शुरू करे ये सोचना होगा। लोग सोचने लगे हैं देखिये अच्छा ही होगा ।

प्रo -आप पार्लियामेंट के सेकेंड यंगस्ट सांसद हैं दो सालो में आपका अनुभव ?
उo - युवा सांसद हैं इसलिये जिम्मेदारी ज़्यादा है। अनुभव के हिसाब से देखे तो बहुत ही कम है ।इतने सारे अनुभवी लोग हैं उनके सहयोग से हम आगे बढ़ रहे हैं ।अनुभव कम है तो डर लगता है क्योंकि बड़ी जिम्मेदारी है इसका निर्वाह करना है बाकी अच्छे रहे दो साल ।

प्रo -आपके पिता जी एक कद्दावर नेता थे ।आपकी छवि में उनकी विरासत है । उस नाते से आपके ऊपर ज़्यादा जिम्मेदारी बनती है क्या कहेंगे ?
उo - देखा जाय तो वाकई इस बात से मेरे ऊपर और जिम्मेदारी बढ़ जाती है ।उनके बाद मै लोगों के पास जाता था तो लोग मुझे उनकी नज़र से देखते थे इनीशियली जीतने से पहले मैने दो साल उनके बीच गुजारे हैं । इस रास्ते में मैने उनसे काम करना सीखा ।जीतने के बाद जब  मै   दिल्ली आया तो मुझे इसका एड्वांटेज मिला ।वे एक नेशनल लेबल के आदमी थे जिसका फायदा मुझे निश्चित रूप से मिला ।

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9/10/2016

मेरा मन मैगी (व्यंग्य लेख )

मेरा मन कभी भी बिन सच्चाई बतंगड़ नहीं बनाता हालांकि बतंगड़ हमेशा बिन सिर-पैर की बातों का होता है अब मेरा मन मेरे जल्दबाज़ रवैये पर अटका है और हो भी क्यों न!! सच  कभी-कभी मेरा मन दो मिनट में बनने वाली मैगी की तरह ही हर काम के लिए फटाफट खडा हो जाता है या यूँ कहूं कि आज के दौर में सभी मनो के विचारों का यही हाल है। मष्तिष्क की शिराओ से बहता हुआ विचार बस क्षण भर मे परिपक्व हो जाता है।भले अपने गंतव्य तक गतिशील  न हो पाये। यह विचार शीलता की गति नही और न ही किसी मनुष्य के होनहार होने की निशानी। 
          हमारे तैयार मनो का निष्कर्ष व आधुनिक बाजारवाद के उन्माद का असर ही है बिना जरूरत और उपयोग विहीन वस्तुओ का जमावड़ा।
        क्षणभंगुरता हमारे समाज ,हमारे व्यक्तित्व पर जम  कर हावी है ।हर काम का शार्टकट बना दिया गया है और नहीं बना तो बनाया जा रहा है। यह फंडा हमारे मन मष्तिष्क को लंगडा और लूला बना चुका है ।सोचने वाली बात है हमें किस बात की जल्दी है ?? इस जल्दी की बीमारी ने हमारे खान पान की चीज़ों में भी जल्दी मचा रखी है ......दो मिनट में पाने वाली मैगी की जगह 30 मिनट लगा कर रोटियां या कोई भारतीय व्यंजन क्यों नहीं बना सकते जो सेहत के लिये सही है पर जल्दबाजी के चलते हम ऐसा नहीं करते।  

                  सभी को कहते सुना जाता है बड़ी भागम-भाग है ,बड़ी भागम -भाग है । यह भागम-भाग किसकी बनायी हुई है ?   ट्रेनों में भागते लोग उफ्फ्फ!!....मेट्रो में भागकर चढ़ते लोग यूँ दर्शाते हैं जैसे यह जीवन की आखिरी मेट्रो है चढ लो वरना जीवन भर प्लेट फार्म में गुजारना होगा। दूसरा देखे कान को मोबाइल से चिपका या हेलमेट में घुसा दोपहिया वाहन चलाते लोग ,शायद इस प्रकिया के तहत अपना समय बचा रहे होते हैं ।कभी-कभी मैं खुद भी ऐसा करती हूँ और फिर खुद से सवाल भी कि ऐसा मैं क्यों करती हूँ ? और निरूत्तर सवाल सहित पुनः वैसा ही करने लगती हूँ ।शायद इन सब के पीछे बाज़ारवाद का गहराता जाल है । हर काम को शार्ट करने के शार्टकट तरीके उपलब्ध हैं।

              आनलाइन खरीदी जिससे थोक व खुदरा व्यापारियों के दिन का चैन और रातों की नीद गायब कर रखी है। टी वी ,रेडियो ,समाचार पत्रों आदि पर आने वाले विज्ञापनों के आफर व स्कीमें इतनी लोक लुभावनी होती हैं कि देखने वाला उत्साही होकर यकायक दो मिनट में बनने वाली मैगी की तरह तैयार हो जाता है ।सच आज का युग शार्टकट का जमाना है । सवाल उठता है क्या मनुष्य चित्त में ये जल्दबाजी नैसर्गिक है ?क्यों हर चीज़ को तुरंत पा लेना चाहता है ।मशीनीकरण के युग में इन्सान पूरी तरह मशीन बन चुका है।बनाने वाले ने क्या खूब विज्ञापन बनाया है मिन्टोस खाते ही बुद्धि जल उठती है ।भई हो भी क्यों न मैगी के जमाने में मिन्टोस से ही बुद्धि आ सकती है बादाम से नहीं।पहले के समय में खतो के जरिए महीनों में मिलने वाले हाल चाल से संतुष्ट हो जाने वाले लोग अब फोन काल के न लगने पर या एक बार काल करने पर फोन के न उठने पर  सेकेंडो में मन में व्याकुलता पैदा करता है।
        मैगी वाली पीढ़ी अब कम मेहनत ही सब पा लेना चाहती है ।कई विद्वानों के द्वारा कहा गया है " धैर्य से सब कुछ हासिल किया जा सकता है "पर अब तो फंडा बिलकुल ही अलग है जो जितनी जल्दी में उसको उतनी जल्दी सब कुछ हासिल है और यदि नहीं हासिल है तो हासिल करने की जल्दी है।पर कुछ इंटरनेट के जमाने में मेट्रो के बजाय बैलगाड़ी से चलना कहा की बुद्धिमत्ता है ।मुझे तो यह भी  सोचने में हैरानी नहीं होती कि आने वाले समय में इंसानों के नौ माह में जन्मने वाले बच्चे दो माह में ही अवतरित हो जायेंगे क्योंकि जल्दी का जमाना है वो क्यों देर करें। टीवी पर आने वाले प्रचार आज के जल्दबाज इंसानी जज्बात से प्रेरित हैं या इंसानों को जल्दबाजी के लिये प्रेरित करते हैं। आज हमारे हर वाक्य में जल्दवाद विचारधारा काम कर रही है और शायद "जल्दबाजी "का काम शैतान का काम " के श्लोगन को बदल कर रख दिया ।कुछ नहीं ये तो वक्त के फेर का असर है।इसी जल्दवाद का असर कि हम आजकल अक्सर धोखा खाते हैं खैर इसका थोडा साकारात्मक असर यह भी कि अब इंसानी जज्बात  किसी बात या मुद्दे को लेकर बहुत देर तक व्यथित नहीं रहता है क्योंकि उसको अपने व्यथित जज्बातो को पीछे छोड़ आगे बढने की जल्दी रहती है ।अगर कोई गम्भीर मुद्दा न हो जिससे मेरा या हम इंसानों को निजी नुकसान न हो तो हम हर सुबह जागने के बाद  पिछले दिन की घटी घटनाओं को भूल कर उठ जाते हैं ऐसा हम जानबूझकर कर नहीं करते ये हमारे मन मैगी का ही असर  होता है।अब हम लोगों का मन दूर की कौड़ी नहीं खेलता, सांप -सीढ़ी जैसे गेम खेलता है जाने कब चढ जाये और पता नहीं अगली ही चाल में डस दिये जाने पर सर्र से नीचे सरसरा कर धडाम हो जाये।इन सब का असर सोचती ये मन मैगी कहीं रोबोट से भी आगे न निकल जाये !!

चाँद के पार पानी (व्यंग्य लेख )

चांद के पार पानी

"चलो दिलदार चलो चांद के पार चलो"। अब मुझे समझ आया इस गाने को रचने वाले गीतकर को वैज्ञानिकों के रिसर्च के पहले ही भान हो गया था कि धरती से दिखने वाले चमकीले चांद पर पानी है।तभी उसने ये लाइनें गढी थी शायद । वैसे  चांद का नाम आते ही मन रोमांटिक हो जाता है।मन को ठंढक सी मिलती है।मेरे मन की उपज इस ठंढक की वजह हो न हो पानी ही होगा ।चांद की चांदनी कितने ही मनो  को शीतल  करता है।  पर यहाँ चांद को  चांद की शीतलता वश याद नहीं किया। वो क्या है कि अपन के नीले ग्रह में पिछले कुछ सालों से पानी 🏄को लेकर हालात खस्ता होते जा रहे हैं इसलिए।भई गांव हो या शहर पानी की बड़ी मारा -मारी है। ऊपर से ये टीवी 📺 वाले और जीने न देते।इनकी पानी वाली खबरें सुन मेरा तो दिल 💘ही बैठ जाता है।घर में बैठे-बैठे ही लू के थपेड़े से लगने लगते हैं।जहां पानी की दिक्कत है वहाँ तो है ही ,जहां नहीं है उनको सुकुन से रहने नहीं देते।

                       पड़ोस वाली शर्मा भाभी ने बताया उन्होंने कोई खबर देखी है जिसमें बताया गया कि चांद में पानी मिलने की पुष्टि हुई है। भई गर्मी में पानी से जुड़ी खबरों पर नजर अपने आप जा पहुंचती।अब तो मैंने भी सोच लिया है कौन रोज -रोज पानी की किल्लत से दो चार होये।सुबह-शाम पानी की मोटर चला-चला चेक करते रहो.......सुबह तो नींद में आंखें 👀मलते उठना और कई बार इतनी नींद में होते हैं कि दीवारों से भी भिड जाते हैं ।ये हाल तो मध्यम वर्गीय परिवारों का है ।निम्न वर्ग को तो यह सौभाग्य हर दो या तीन दिनों में ही मिल पाता है ।हां धनी वर्ग इस सौभाग्य से वंचित रह जाते हैं क्यों....क्योंकि आपको पता ही है,क्योंकि उनके पास ऐश ओ आराम की सारी चीजें उपलब्ध हैं इसलिए।

                   खैर पानी को ढूंढते -ढूंढते पृथ्वीवासी चांद और चांद के पार मंगल तक पहुँच चुके।पृथ्वी में पानी के दिन लद गये और लोगों के भी। अन्नदाता मर रहा है और अन्न लुप्त होता जा रहा है।लोग बिन पानी प्यास से मर रहे हैं।जानवरों को अपना भोजन मतलब घास नसीब नहीं हो रही ।जानवर भी भूख और प्यास से मर रहे हैं।इसके बावजूद सरकारें मस्त और जिनको पानी नसीब वो लोग खुशनसीब।वैसे हर चुनाव में पानी की अहम भूमिका रहती है ।अब तक पानी न जाने कितनों को पानी पिला चुका है ।और जो जितने घाटों का पानी पी चुका वो उतना ही सयाना होता है।कुछ लोग जो ज्यादा भाग्यशाली होगे वो लोग धरती में पानी लुप्त होने के बाद चांद, मंगल व उन ग्रहों में जा सकने में सफल होंगे।

               क्यो पानी का धोहन लगातार किया जा रहा है कोइ समझने को नहीं तैयार आने वाले समय में किन परिस्थितियों का सामना करना होगा इस हकीकत से अनभिज्ञ हैं ।प्रकृति से छेडछाड की कीमत हम सभी को चुकानी ही पड़ेगी और जिसकी शुरूआत हो चुकी है।बेमौसम असमय बरसात ☔,ठंड का न पड़ना,सूखा पड़ना ये सब मानव जगत को चेताने का काम है पर अफसोस हम सब सो रहे हैं और सोते -सोते मर जायेंगे।पर हम अब भी हाथ में हाथ धरे हो रहे हैं।भारत सहित विश्व के कई बड़े इलाके सालों से सूखे से जूझ रहे हैं ।सुनने में आया है कुछ सालों मे सुखे और पीने के पानी की कमी से जूझने वाले लोगों की संख्या अरबों के पार होगी।

              खैर अपन को क्या!!अपन के घर तो अभी धका-धका पानी आ रहा है बॅास, जब तक अरबों वाली गिनती में मेरा नाम शामिल होने का नंबर आयेगा तब तक मैं अपना बैग लगा चुकी होऊंगी, और चांद या चांद से आगे मंगल तक जाने को।आप सब भी सोच लीजिए की आपको क्या करना है यही रहना है या चांद के पार चलना है।