7/26/2015

चलो न बुद्धिजीवी बने !( व्यंग्य लेख)

थोड़ा विशेष सम्प्रदाय का विरोध ,थोड़ा विशेष समुदाय को सर आँखों पर नवाज़ना ,बस यूँ ही तो आधुनिक बुद्धजीवी बनते हैं । आज सही को सही,गलत को गलत कहना......वही तक सही है जहाँ से बुद्धिजीवी होने के मायने बनते और बिगड़ते हैं । अब देखिये न तीस्ता शीतडवाड को कुछ चिन्तक या कुछ समाज विचारक सही ठहराते हैं ।चले हम भी मान लेते हैं तीस्ता जी जो दर्द विदारक सच्चाईयाँ निकाल कर ,खंगाल कर बाहर लाई वह निश्चित ही बड़े जिगरा का काम था।सच ही कहा है किसी ने ......"असफल लेखक ,आलोचक बन जाता है "  ठीक कुछ ऐसे ही बहुत सी संस्थाये सरकार के पक्ष मे काम करती हैं या विपक्ष में...हमसफर न बन पाओ तो संगेराह बनने में गुरेज़ कैसा !!!!!!। शायद यही काम तीस्ता या तीस्ता जैसे लोग करते आये हैं और आने वाले समय में करते रहेंगे । जितनी शिद्धत से गुजरात नरसंहार उठाये गये हैरानी होती है ...कश्मीर नरसंहार,गोधरा कांड ,भागलपुर नरसंहार आदि के लिए कोई क्यूँ नहीं जल उठा क्या इनमें मारे गये लोग इन्सान नहीं थे ???????  बुद्धजीवियो ने वहां जाकर सच जानने की जरूरत क्यों नहीं समझी ,मैं पूछती हूँ क्या ये हादसे ,बौद्धिकता सीमाओं के दायरे से बाहर आता है । गुजरात नरसंहार के बाद ही क्यों मानवाधिकार दिखा......  जलती हुई ट्रेन की  लपटों में खुद को बचाने के लिये चीखती आवाजें और बचाने के बजाय बाहर से उन पर पत्थर और न जाने क्या -क्या .....उनके परिवारों की वेदना के लिए  मानवाधिकार का दरवाजा क्यों किसी ने नहीं खटखटाया ।गुलबर्ग सोसायटी,नरोदा पाटिया,बेस्ट बेकरी,सरदारपुरा जनसंहार के आंसू पोछने वालों ....थोड़े नैपकीन बचे हो तो कश्मीर विस्थापितो के सूख चुके आँसुओं के दाग जरुर पोछना ।गोधरा ,भागलपुर,मेरठ,मुजफ्फरपुर,बम्बई धमाके ....इनमें प्रभावित पीड़ितों की पथराई आंखें इन्साफ को तडप कर विचार शून्य हो चुकी हैं ।अगर सच में सिर्फ इन्सान हो तो इन्सानियत दिखाओ न कि प्रोपेगैन्डा ।विशेष समुदाय से विशेष प्रेम दिखाकर आधुनिक बुद्धजीवी फैशन मे शामिल हो, खुद को विशेष मत कहलाओ..सही को सही,गलत को गलत कहने आदत और हिम्मत रखो। इसपे छोटी सोच का तमगा लगता है तो लगता रहे । न्याय सभी के लिये एक सा हो फुटपाथ पर बेघर लोगों को कुचलकर मार डालने वाला शख्स बेइज्जत बरी कर दिया जाता है ,आखिर क्यूँ ??????? क्या ये सब को पता नहीं है। संजय दत्त समय-समय पर पिकनिक मनाने जेल से बाहर आ जाते हैं ।वाह रे मेरे देश का कानून ,और कानून के भक्षको ,पैसे वालों का न्याय अलग । विशेष समुदाय के समर्थन के लिये खड़ा आधुनिक फैशनिया बुद्धिजीविया समुदाय !!!!थोड़ा विशेष सम्प्रदाय का विरोध ,थोड़ा विशेष समुदाय को सर आँखों पर नवाज़ना ,बस यूँ ही तो आधुनिक बुद्धजीवी बनते हैं । आज सही को सही,गलत को गलत कहना......वही तक सही है जहाँ से बुद्धिजीवी होने के मायने बनते और बिगड़ते हैं । अब देखिये न तीस्ता शीतडवाड को कुछ चिन्तक या कुछ समाज विचारक सही ठहराते हैं ।चले हम भी मान लेते हैं तीस्ता जी जो दर्द विदारक सच्चाईयाँ निकाल कर ,खंगाल कर बाहर लाई वह निश्चित ही बड़े जिगरा का काम था।सच ही कहा है किसी ने ......"असफल लेखक ,आलोचक बन जाता है "  ठीक कुछ ऐसे ही बहुत सी संस्थाये सरकार के पक्ष मे काम करती हैं या विपक्ष में...हमसफर न बन पाओ तो संगेराह बनने में गुरेज़ कैसा !!!!!!। शायद यही काम तीस्ता या तीस्ता जैसे लोग करते आये हैं और आने वाले समय में करते रहेंगे । जितनी शिद्धत से गुजरात नरसंहार उठाये गये हैरानी होती है ...कश्मीर नरसंहार,गोधरा कांड ,भागलपुर नरसंहार आदि के लिए कोई क्यूँ नहीं जल उठा क्या इनमें मारे गये लोग इन्सान नहीं थे ???????  बुद्धजीवियो ने वहां जाकर सच जानने की जरूरत क्यों नहीं समझी ,मैं पूछती हूँ क्या ये हादसे ,बौद्धिकता सीमाओं के दायरे से बाहर आता है । गुजरात नरसंहार के बाद ही क्यों मानवाधिकार दिखा......  जलती हुई ट्रेन की  लपटों में खुद को बचाने के लिये चीखती आवाजें और बचाने के बजाय बाहर से उन पर पत्थर और न जाने क्या -क्या .....उनके परिवारों की वेदना के लिए  मानवाधिकार का दरवाजा क्यों किसी ने नहीं खटखटाया ।गुलबर्ग सोसायटी,नरोदा पाटिया,बेस्ट बेकरी,सरदारपुरा जनसंहार के आंसू पोछने वालों ....थोड़े नैपकीन बचे हो तो कश्मीर विस्थापितो के सूख चुके आँसुओं के दाग जरुर पोछना ।गोधरा ,भागलपुर,मेरठ,मुजफ्फरपुर,बम्बई धमाके ....इनमें प्रभावित पीड़ितों की पथराई आंखें इन्साफ को तडप कर विचार शून्य हो चुकी हैं ।अगर सच में सिर्फ इन्सान हो तो इन्सानियत दिखाओ न कि प्रोपेगैन्डा ।विशेष समुदाय से विशेष प्रेम दिखाकर आधुनिक बुद्धजीवी फैशन मे शामिल हो, खुद को विशेष मत कहलाओ..सही को सही,गलत को गलत कहने आदत और हिम्मत रखो। इसपे छोटी सोच का तमगा लगता है तो लगता रहे । न्याय सभी के लिये एक सा हो फुटपाथ पर बेघर लोगों को कुचलकर मार डालने वाला शख्स बेइज्जत बरी कर दिया जाता है ,आखिर क्यूँ ??????? क्या ये सब को पता नहीं है। संजय दत्त समय-समय पर पिकनिक मनाने जेल से बाहर आ जाते हैं ।वाह रे मेरे देश का कानून ,और कानून के भक्षको ,पैसे वालों का न्याय अलग । विशेष समुदाय के समर्थन के लिये खड़ा आधुनिक फैशनिया बुद्धिजीविया समुदाय !!!!

7/23/2015

विचित्र महापुरुष ( व्यंग्य लेख ) 4

सच यह भारत है यहाँ कुछ भी हो सकता है
हाल ही में एक ऐसा महापुरुष अवतरित किया गया छोटे बच्चों के पाठ्यक्रम में जिनका नाम सुन आप सब भी आश्चर्य चकित हो उठेंगे अगर बेहोश भी हो जाये तो आपकी अपनी जिम्मेदारी।तो चलिये उस महापुरुष का नाम आप लोगो को बताते हैं श्री "मुशर्रफ" क्या हुआ चौके तो नहीं ....अजी इतना तो चलता है जहां करोड़ों की आबादी हो,जहाँ लोगों को पेट भरने के लाले हो,जहाँ राजनेता अपना घर भरने में लगा हो,जहाँ अमीर और अमीर बनने में और माध्यम वर्ग जीविका चलाने की जद्दोजहद में फसा पडा हो वहाँ ,ऐसी छोटी -छोटी गल्तियाँ माफ होती हैं।बस दिक्कत थोड़ी जे आ रही है कि आगे की पीढ़ी के महापुरुष बदल जायेंगे ।पर कोई नहीं जी कानून और व्यवस्था तो जस के तस हैं फिर दिवार पे तस्वीर किसी की टंगी हो क्या फर्क पडता है।बड़े होकर बच्चों को भ्रष्टाचार के दलदल का हिस्सा बनना ही है तो वो "गाँधी" पढ़े या "मुशर्रफ " ऐसे देश मे लुटिया डूबनी तो तय है।बाकी आप जाने आपको क्या करना है,हम तो चले महापुरुष मुशर्रफ को पढने ।

 

कहानी-बदलती राहें ।


अनु माँ जी से लिपट कर रोती हुई अपने हर उस पल को करती जब वो सपनो का संसार लिए कभी इस घर की दहलीज़ पर आई थी...कैसे जिंदगी जरुरतो के साथ बदलती है अभी -अभी तो रचित और अनु परिणय सूत्र में बंधे थे उन दोनों का प्यार देखते ही बनता था अनु ,रचित, माँ जी सभी कितने खुश थे शादी के बाद जल्दी ही अनु और रचित को मम्मी -पापा बनने का सौभाग्य भी मिला उस बच्चे बच्चे का नाम बड़े ही प्यार से अंकुर रखा है जब से अंकुर आया है मानो घर का कोना -कोना खिल सा गया हो और माँ जी उनके तो जैसे सारे अरमान पूरे हो गए हो।
अनु याद करते हुए...रचित- अनु!! मेरा लंच जल्दी लाओ मै लेट हो रहा हूँ ऑफिस के लिए अनु रसोई से हाँथ में लंच बॉक्स लाती हुई रचित, अनु को रोज़ाना की तरह छेड़ता है और लंच बॉक्स लेता है और ऑफिस निकल जाता है।
दिन यूँ ही गुज़र रहे थे कि एक दिन शाम का वक्त था रचित के ऑफिस से आने का समय हो रहा था अनु बार -बार घडी निहारती हुई चाय -नाश्ता तैयार कर रही है इस बीच फोन की घंटी बजी माँ जी ने आवाज़ लगाई बहू देखो तो ज़रा किसका फोन है मै अंकुर को सुला रही हूँ अनु भाग कर फोन उठाती  है हेलो उधर से आवाज़ आती है आप मिसेज़ रचित बोल रही हैं ...जी -जी कहिये देखिये रचित का एक्सिडेंट हो गया है आप तुरन्त सिटी हॉस्पिटल आ जाइये इतना सुनते ही मानो अनु के पैरो तले ज़मीन खिसक गयी हो वो खुद को सम्भालते हुए किसी तरीके से ये बात माँ जी को बताती है और अंकुर को गोद में उठाकर माँ जी के साथ हॉस्पिटल के लिए निकल पड़ती है.
बदहवास सी अनु हॉस्पिटल पहुचते ही रिशेप्सन में पता करती है तो पता चलता है रचित की हालत बहुत गंभीर है वह आईo सीo यूo में है अनु डॉक्टर से पूछती है रचित ठीक तो हो जायेंगे न क्या हुआ है उन्हें......  जाने कितने सवाल एक ही बार में पूँछती है डॉक्टर बड़े अफ़सोस के साथ बताते हैं रचित का नर्वस सिस्टम ख़राब हो चुका है वह सिर्फ देख सकता है और वह कुछ नहीं कर सकताI अनु सुनते हुए माँ जी को और माँ जी अनु को हिम्मत देती हैंI रचित अब खतरे से बाहर आ चुका है माँ जी और अनु उसको घर ले जाती हैं रचित अब जीती जागती हुई लाश बन कर रह गया है।
थोडा वक्त बीता अनु ने घर चलाने के लिए नौकरी कर ली है माँ जी रचित , अंकुर और घर सम्भालती हैं तो अनु बाहर के काम, अनु के ऑफ़िस सहकर्मी अनुभव जो की अनु की परिस्थिति से वाकिफ़ है अनु के सामने शादी का प्रस्ताव रखा है अनु ने अनुभव डांटकर मना कर दिया। अनुभव कुछ दिनों बाद वह अनु के घर माँ जी से मिलने गया और उनसे शादी की बात करता है ये सुनकर माँ जी परेशान हैं पर अनुभव उनको समझाता है कि क्या आप नहीं चाहती गुमसुम रहने वाली अनु के चेहरे पर भी मुस्कान हो, वह अपनी ज़िन्दगी नए सिरे से शुरू करे माँ जीI बहुत सोचने के बाद अनुभव को हाँ कहती हैं और अनु को भी शादी के लिए राज़ी करती हैंI शादी के लिए राज़ी अनु ये सोच -सोच कर परेशान कि उसके बाद रचित, माँ जी और इस घर का क्या होगाI माँ जी अनु को समझाते हुए पेंशन और किरायेदारों से जो किराया मिलता है उससे घर आराम से चल जायेगा फिर उन्हें इससे ज्यादा की जरूरत भी तो नहीं हैI
शादी का दिन निश्चित हुआ घर में ही अनु के मायके से माँ -बाबू और माँ जी की उपस्थिति में शादी के फेरे लेती अनु किसी क्षण अपने को रचित से अलग नहीं सोच पाती है वही घर के दूसरे कमरे में रचित विस्तर पर लेटा हुआ छत की तरफ निहारता मानो वह सब सुन रहा हो और महसूस भी....
अंकुर को माँ जी की गोद में लिए हुए हैं शादी हो चुकी है अनु -अनुभव अब पति-पत्नी बन गए हैंI रचित को तो जिंदगी भर विस्तर ऐसे ही रहने हैI पर पता नहीं माँ जी का यह सही निर्णय था या नहीं पर माँ जी  अनु और अंकुर के उज्जवल भविष्य लिए आंसुओ और सिसकियो को दिल में दबाकर अनु को ख़ुशी-ख़ुशी बिदा कर देती हैं।

7/22/2015

साक्षात्कार डॉ गीता शर्मा

केन्द्रीय हिंदी संस्थान ,मानव संसाधन विकास मंत्रालय,भारत सरकार का एक अंग है जो हिन्दी के सतत विकास के लिये तत्पर है। प्रस्तुत है दिल्ली केन्द्र की क्षेत्रीय निदेशिका प्रो० डॅा० गीता शर्मा से बात चीत के कुछ अंश। ••••

प्र०- आप वर्तमान समय में हिन्दी भाषा को कितना महत्व देती हैं ?
उ०- मेरा मानना है हिन्दी भाषा के महत्व की बात नही है मातृभाषा और अपनी भाषा के महत्व की बात है । क्योंकि भारत ऐसा देश है जहाँ बहुत सारी भाषाएँ बोली जाती हैं। यहाँ हम सहज और स्वाभाविक रुप से हिन्दी की बात करते हैं।अगर हम भारत मे हिन्दी के महत्व की बात करें तो ही होगा जैसे हमारे लिए रोटी,पानी,हवा । भाषा के बिना इन्सान का विकास नहीं हो सकता इसलिए भाषा के महत्व को हम अस्वीकार नहीं कर सकते।

प्र०- अंग्रेजी से हिंदी को कितनी क्षति पहुंच रही है?

उ०-देखिए नुकसान तो दोनों भाषाओं को हो रहा है ।क्योंकि हमें न तो अच्छे से अंग्रेजी आती है और न अच्छे से हिन्दी ।हां मैं मानती हूं हिन्दी का नुकसान हो रहा है जिससे हमारा जो सम्बन्ध हिन्दी भाषा से होना चाहिए नहीं हो पा रहा है । जैसे कोई बच्चा अंग्रेजी वर्ड रट तो लेता है मगर अर्थ अपनी भाषा मे ही समझ पाता है। तो भाषा का जो सम्बन्ध संस्कृति से है वो बेहद ही सम्वेदन शील है ।हमे अपने स्तर पर भाषा की समस्या का समाधान करना होगा पर अपनी ही भाषा मे । दुनिया मे मात्र भारत ही ऐसा देश जहाँ इतनी सारी भाषाएँ और बोलियाँ हैं । दूसरी बात हम हिन्दी को अंग्रेजी की तरह बोलने लगे हैं जबकि हर भाषा का अपना स्वभाव होता है और मूल भावना तभी निकल पाती है जब हम भाषा को उसके स्वभाव के अनुसार उच्चरित करते हैं।

प्र०-संस्थान में किन-किन देशों के छात्र पढ़ते हैं उनके बारे में बताइये•••
उ०-केन्द्रीय हिन्दी संस्थान मे लगभग 20देशो के छात्र पढ़ते हैं ।इसमें से चीन, कोरिया,जापान के बच्चों की संख्या ज्यादा है । मैंने भारतीय और विदेशी छात्रों दोनों को पढाया पर जो भाषा के प्रति प्यार विदेशी छात्रों का दिखता है भारतीय छात्रों मे नही दिखता । हमारे यहां भाषायी संस्कार लगभग खत्म हो चुका है । विदेशी छात्र किसी भाषा को छोटा बड़ा नहीं मानते उनके लिए भाषा की उपयोगिता है । भारत मे हिन्दी के प्रति क्या नजरिया है उन्हें नहीं पता ।

प्र०- हमारे प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी का प्रयोग करते हैं ।विश्व परिदृश्य में इसका क्या प्रभाव होगा?

उ०-यह हमारे लिए गर्व की बात है । यह देश की भाषा का भी गर्व है कि हिन्दी का प्रयोग अन्तराष्ट्रीय स्तर पर किया जा रहा है । इसके पहले वाजपेयी जी ऐसा कर चुके हैं और उन्होंने कहा था कि यूनाइटेड नेशन में हिन्दी मे बोलना आसान है पर भारत मे नही क्योंकि वहाँ लोग इसका राजनीति करण करते हैं ।जबकि विदेश में भाषा को लेकर राजनीति नहीं की जाती है।

प्र०-हिन्दी की तुलना मे लोग अंग्रेजी को ज्यादा महत्व दे रहे हैं,क्या कहेंगी ?

उ०-देखिए आज भाषा व्यवसाय का उद्देश्य भी है ,आज अनपढ़ व्यक्ति भी यह जानता है कि किस भाषा से उसको फायदा होगा ।इसलिए भाषा को व्यवसाय से जोड़ना पडेगा,क्योंकि अभी हिन्दी को वो स्तर नहीं मिल पाया जो मिलना चाहिए ।भारत सरकार के दफ्तरों,अदालतों मे या सभी जगह हिन्दी का कितना प्रयोग किया जा रहा है।

प्र०- क्या अंग्रेजी एक ग्लोबल माध्यम बन चुकी है ?

उ०- देखिए हर विदेशी को इंग्लिश नहीं आती है ,पर हाँ एक बड़े स्तर पर प्रयोग की जा रही है।

प्र०-क्या हिन्दी भाषा को संरक्षण की जरूरत है ?

उ०-मैं नहीं मानती की संरक्षण की जरूरत है क्योंकि संरक्षण तो हर तरह से है ही । देखिये भाषा एक आदत होती है अगर हमारी शिक्षा नीति और भाषा नीति सही है तो संरक्षण अपने आप मिल रहा है।

प्र०-हमारी संस्कृति को पश्चिमी करण से नुकसान है या होगा ?

उ०-हमारी भारतीय संस्कृति को किसी से खतरा नहीं क्योंकि हमारी संस्कृति कभी सीमाओं से नही बंधी रही उसने लिया भी और दिया भी, हाँ शिक्षा के विकास की जरूरत है क्योंकि शिक्षा के विकास से ही हमारा मानसिक विकास होता है और मानसिक विकास सही होगा तो हम निर्धारित कर पायेगे कि क्या गलत है और क्या सही है। हमारी भारतीय संस्कृति पुरातन काल से जीवित है उसका यही कारण है कि वह बंधी नहीं रही ।आज ये जरूरी है कि समाज ,विश्व जिस तरह से आगे बढ़ रहे हैं अगर हम उनके साथ तारतम्य न बना पाये तो पीछे रह जायेंगे।

प्र०-टीवी,रेडियो ,समाचार पत्रों में जो भाषा प्रयोग की जा रही है ,इसको कितना सही मानती हैं?

उ०-यह निर्भर करता है कन्टेन्ट क्या है ।अगर दूर दर्शन की बात करें तो उसकी भाषा हमेशा से मानक स्तर की रही है ।हाँ जो प्राइवेट चैनल हैं उनकी भाषा स्तरीय नहीं रही मानती हूं ।मैं सही गलत तो नहीं कहु्ँगी पर कहीं न कहीं आज वो परोसा जा रहा है जो लोग चाहते हैं।अगर सही शिक्षा होगी तो लोग अपने आप चुनाव कर सकेंगे क्या गलत क्या सही है।

प्र०-संस्थान के माध्यम से और क्या सुधार करना चाहती हैं?

उ०-ज्यादा तो नहीं बस मेरा सतत प्रयास है कि भाषा का स्तर सुधार पाउं ,और विदेशी छात्रों के साथ हिन्दी भाषा को ज्यादा से ज्यादा विकसित करने में प्रयासरत हूँ ।

प्र०-संस्थान की नई योजनाएँ ?

उ०-योजनाएँ तो सब प्रशासनिक होती हैं ,पर हाँ अभी बहुत कुछ करना बाकी है ,जो किया जा रहा है ।हिन्दी भाषा को कम्प्यूटर के साथ पूरी तरह विकसित किया जा रहा है।

प्र०-आप एक महिला हैं,महिलाओं के लिये क्या संदेश देना चाहेंगी ?

उ०-मेरा आज की माँओ को संदेश कि छोटे बच्चों को हिन्दी भाषा व मातृभाषा सिखाने पर जोर दे नाकि अंग्रेजी क्योंकि माँ बच्चे की पहली पाठशाला होती है ।माँ बच्चे में भाषायी संस्कार डाल सकती है। इसलिए मेरा यही कहना है अपने बच्चों में हिन्दी भाषा के प्रति प्रेम पैदा कराये ।

7/21/2015

बीजू जनता दल के मिनिस्टर "डॉ प्रसन्न कुमार पाठसनी" के साथ साक्षात्कार


BJD बीजू जनता दल के मिनिस्टर "डॉ प्रसन्न कुमार पाठसनी" के साथ साक्षात्कार
...
प्रश्न-ये जो बजट पेश किया गया है लोगो का आरोप है माध्यम वर्गीय वर्ग के लिये
कुछ  खास नही है ,जबकि मोदी सरकर का कहना है की ये पांच साल इण्डिया के विज़न
को ध्यान में रखकर बनाया गया है इसमें आपकी राय..
डॉ प्रसन्न-अब बजट को लेकर इण्डिया का विज़न क्या होगा मोदी जी का विजन वो
करेंगे ,करके दिखाएंगे भी लेकिन ये बज़ट मुझे पसन्द नहीं है क्योकि ये बजट
कारपोरेट हॉउस के लिए बढ़िया है ।टैक्स फ्री कर दिया ,गरीब लोगो के क्या टैक्स
है ग़रीब के लिए तो गरीबी ही टैक्स है ।(हँसते हुए) वी आर टैक्सिंग ग़रीब बनाने
के लिए । ये जो क्लास एक्सप्लॉइट कर रहे हैं । शासित और शोषक ..शासक -शाषित और
शोसित, शासिक  जब शोषित करता है तो बुरा होता है । इस बजट में ऐसे ही हालात
हैं । शोषण करना पाप है ।ये धनी लोगो बजट है ।देश में बहुत धनी लोग हैं मेरा
इससे कोई लेना देना नहीं लेकिन गरीब लोगो का क्या होगा ? हम लो मिडिल क्लास की
बात करे तो उनके हालात ख़राब होते हैं ।सबने मिलकर मोदी जी को समर्थन किया न !!
हमारे स्टेट में अच्छा हुआ सबने मिलकर नवीन जी को समर्थन दिया । गांव में गरीब
लोगो को चावल दिया गया वो अभी भी उनके लिए ही काम करते हैं ।गरीबो को साईकिल
दी , गरीब और आदिवासियो को होस्टल दिया ,गांव -गांव में रोड दिया तो कुछ सीखना
पड़ेगा न !! क्यू मोदी जी की इतनी हवा थी लेकिन नवीन जी क्यों जीत गए ? मैंने
कहा भारत वर्ष से मोदी जी जीत गए सही बात है लेकिन उड़ीसा से हार गए वही नवीन
पटनायक क्यों जीत गए..उन्होंने माँ ममता योजना को जन्म से लेकर मरने तक की
योजना कर दिया भविष्य योजना कर दिया ।यंग लोगो के लिए ,छात्रो के लिए गांव
-गांव में आदिवासी और अनुसूचित जाति के लिए बहुत काम किया उन्होंने और उनके
पिता जी ने । नवीन पटनायक जी इतने पॉपुलर क्यों हुए अभी उन्हें यूनेस्को ने
अवार्ड से सम्मानित किया डिजास्टर मैनेजमेंट ( आपदा प्रबंधन ) के लिए ।
बाजपेयी जी ने "जय जवान जय किसान जय विज्ञानं " का नारा दिया था  विजु पटनायक
जी ने उससे पहले यह सन्देश विश्व को दिया था इसके लिए उनको बहुत से पुरस्कार
भी मिले । इसी लिए मेरा कहना है कि मोदी जी को ग़रीबो का ख्याल रखना होगा लोगों
ने मोदी जी को जिताया है अभी केजरीवाल जीते क्यों जीते क्योकि लोग मोदी से
गुस्सा थे वो वोट सारे केजरीवाल को दिए ठीक वेसे जो लोग कॉंग्रेस से गुस्सा थे
उन्होंने मोदी को वोट दिया ।इसलिए मोदी जी को सोचना पड़ेगा कि धनी लोगो को ही
सिर्फ प्रोत्साहन देनेसे देश वैसे का वैसा ही रह जायेगा । इसलिए  आगे बढ़ने के
लिए अच्छा प्रोजेक्ट बनाये जो सबको साथ लेकर चले सबका विकास करे ।मोदी सरकार
ने बनारस के लिए 100 करोड़ से ज्यादा दिया मै सराहता हूँ क्योकि मै भी
ज्योतिर्लिंग को पूजता हूँ मानता हूँ हाँथ  जोड़ता हूँ लोगो की आस्था है उसमे
लेकिन सारे विश्व के लोग जगन्नाथ पुरी आते हैं "दैट इज़ लॉर्ड ऑफ यूनिवर्स दैट
इज़ जगन्नाथ " मोदी ने वही जगपति नाथ से बीजेपी की लॉबी शुरू की थी। ये 18 वर्ष
के बाद नव कड़े वर्ष आते हैं और नव कड़े वर्ष है अतः इसमें हज़ार कोट देने ही
चाहिए इसके लिए पैसो की जरूरत तो होगी न उड़ीसा सरकार  इस कार्यक्रम की तैयारी
शुरू कर चुकी है ।मोदी जी हिंदुत्व के प्रचारक हैँ फिर हिन्दुओ के आराध्य
देवता को कैसे भूलेंगे इसका ख्याल तो रखना होगा ।मै राजनीति में  धर्म को सही
नहीं मानता इसलिए सबसे पहले है मानव धर्म जिसको कहा जाता है मानवता इंग्लिश
में कहते हैं " ह्यूमनटी" इस मानवता को अपने बजट में कुछ करके दिखाए मोदी ।
कहने का कोई फायदा नहीं ।
प्रश्न - मोदी जन-धन योजना का बहुत  ढिढोरा पीटते है क्या कहेंगे..
डॉ प्रसन्न- जन -धन योजना ग़रीब के लिए बनाया है ये सब कुछ नहीं जब तक कुछ करके
न दिखाए इसमें किसी स्टेट या कंट्री का पैसा नहीं जाता ये सब हमारा ही पैसा है
। लोग इसी लिए गुस्सा होते हैं अरे करके दिखाए ।मरने के बाद पैसे देने से क्या
होगा अरे ज़िंदा आत्माओ के लिए काम करेंगे तभी इतिहास में नाम होगा तभी देश का
कल्याण होगा तभी अमर होंगे ।
प्रश्न - डीजल पेट्रोल की सब्सिडी के लिए योजना बना रहे हैं जैसे सोनिया गांधी
ने सोचा था डायरेक्ट खाते में डालेंगे इस बारे में क्या कहेंगे ....
डॉ प्रसन्न - चुनाव पहले सभी पार्टियां ऐसा बोलती हैं और चुनाव बाद सब भूल
जाते हैं । बर्ल्ड  मार्केट भारत में कब्ज़ा कर रही है उसको सम्भाल कर दिखाए घर
-घर में चाइनीज़ आइटम्स छाया है उसको सम्भालो पहले फिर बात करना ।अपना आइटम
उतारिये ।
प्रश्न - मोदी जी ने "मेक इन इण्डिया" योजना बनाया है और FDI के लिए बाजार को
खोल दिया जायेगा ।लैंड एक्यूशन विल को ला रहे हैं आप क्या कहेंगे ?
डॉ प्रसन्न- लैंड एक्यूशन विल लाने की क्या जरूरत है ये लैंड किसकी है लैंड है
इनसानों की इसमें अधिकार भी उसी का है जिसकी ज़मीने हैं ।गरीब किसान का अधिकार
है जो हमे खाना देते हैं ।उसके परिवार के लिए क्या किया अब ये लैंड विल लाये
हैं लैंड विल बना कर क्या करेंगे पूंजीपतियो की लैंड देंगे !! ज़मीदार प्रथा जो
पहले थी क्या फिर से वही प्रथा शुरु करेंगे !! लोगो ने क्या इसी लिए इनको वोट
दिया है ।ज़मीन जिसकी है उसको ही हो किसी और को क्यू देना जो सही में मालिक है
उसको दो।
प्रश्न - मोदी के डिफेन्स प्रोजेक्ट के बारे में क्या कहेंगे ...
डॉ प्रसन्न- डिफेन्स प्रोजेक्ट के लिए समुद्र के किनारे अकूत ज़मीन है उसको
कब्ज़ा करे धनी लोगो को वहा लगाये ।जो हमको खाना दे उसकी ज़मीन हम क्यों ले । जो
अन्नदाता कहलाता है खून पसीना एक कर खाना देता है उसके भले के लिए क़दम उठाये
जाये ।पूँजी पतियो के लिए ही सारे प्रोजेक्ट क्यों बनाये जाये ।
प्रश्न- राहुल गांधी ने सबसे पहले आकर उड़ीसा में न्ययागिरि प्रॉजेक्ट रोका था
उसके बारे नवीन जी की क्या राय है कोई स्टैन्ड लिया क्या..
डॉ प्रसन्न- न्यायगिरि का मामला तो वैसे अभी कोर्ट के विचार में है ।
प्रश्न- पूना में किसानो की ज़मीन लेकर कुछ सोसाइटी बनाई गयी हैं और किसानो को
उसमे भागीदार बना दिया है ऐसे प्रोजेक्ट हो तो आपका क्या कहना है ...
डॉ प्रसन्न- ऐसा करने में गलत नहीं है किसान को अगर 50% का मालिक बना कर कोई
प्रोजेक्ट करते हैं तो (हंस कर) किसान को मदद हो तो कोई गलत नही अभी हमारे
यहाँ कुछ सोसाइटी बनाई गई हैं ज़मीन किसानो से ली और बदले में पक्के घर दिए ।
जो कहा वो करके दिखाया ।न कोई गरीब रहेगा न कोई भूख रहेगा ।
प्रश्न-मोदी जी को जो समय मिला है वो 2019 तक का मिला है पर वो 2022 की बाते
करने लगे हैं क्या कहेंगे..
डॉ प्रसन्न- ये दुःख की बात है । मेरे आज में क्या है ये मुझे पता है कल क्या
होगा किसे पता है। इतने सालो में क्या होगा कोई क्या कह सकता है ।कल को भूकंप
आ जाये तो सारे मकान गिर जाये तो ,सुनामी जेसे हालात हो जाये तो क्या होगा
।अमेरिका में ओबामा के होते हुए भी इतना शक्तिशाली देश आतंकवाद को नहीं रोक पा
रहे । इंसान को इंसान बनना चाहिये न की धनपशु  ,अर्थ का जो पीछा करेगा डूब
जायेगा धन नश्वर है (हँसते हुए)
प्रश्न-मोदी ने आदर्श ग्राम योजना की स्कीम बनायीं है उसके बारे में आपके
विचार..
डॉ प्रसन्न-मै इस बात की सराहना करता हूँ मुझे ये प्रोजेक्ट बहुत पसन्द आया
क्योकि हमारे यहाँ देश विदेश लोग आते हैं वो गंदगी को नापसन्द करते हैं तो
सफाई तो होनी ही चाहिए ।पर सफाई के बाद हालात जस के तस हो जाते हैं बस करके
दिखाए । लोगो को और जागरूक करने की जरूरत है ।लोग सफाई को मेंटेन नहीं रखते ये
रहेगा तभी सुधार होगा ।
प्रश्न - आपने हाल में कोई सामाजिक कार्य किया हो इस लोकसभा में कोई प्रोजेक्ट
उसके बारे में बताइये..
डॉ प्रसन्न- नहीं !मैने सेंट्रल गवर्मेट को क्षेत्र के लिए बोला था की राजधानी
सबके लिए है आई आई टी ,एम्स ,फ्लाईओवर  सब हुआ उसके लिए मै अपने मुख्य मंत्री
नवीन पटनायक का शुक्रगुज़ार हूँ ।उन्होंने कर दिखाया इसलिए मोदी की हवा के
बावज़ूद जीते अपने क्षेत्र में ये महत्वपूर्ण है ।
प्रश्न- अभी और क्या करना चाहते हैं ?
डॉ प्रसन्न- अभी मेट्रो चाहते हैं लगे हुए हैं उसमे भविष्य में मै संकल्प बद्ध
हूँ कि जल्दी से जल्दी करे मैंने खुद मंत्री को जा कर बोला है ।भुवनेश्वर ,
खुर्दा से कोर्णाक के लिए सोचा है ।पर्यटको को अच्छा लगेगा पूरा एक सर्किट बना
देंगे जिससे हमारे राज्य के पर्यटन के लिए अच्छा होगा

साक्षात्कार- डॅा० प्रसन्न कुमार पाटशाणी ( लोकसभा सांसद, भुवनेश्वर )

Buildindia.patrika
प्रo-  मोदी जी ने हिंदी से प्रेम दिखाते हैं , जैसे कभी हिंदी में भाषण दिया
 था वेसे ही मोदी भी हिंदी में भाषण देते हैं , पर भारत में राजनीति के चलते
 इसका विरोध किया जाता है ।आपका क्या कहना है ?
उत्तर- हिंदी हमारी प्रियतम राजभाषा है । यह हिंदुस्तान के मूल से आयी
 देवनागरी की भाषा राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है । हिंदी सबसे सरल भाषा है जैसे
 बोली जाती है वेसे ही लिखी जाती है । स्वतंत्रता संग्राम के समय से जिन लोगो
 ने संघर्ष का नारा दिया था वो इसी भाषा में दिया था । सुभाषचंद्र बोस बंगाली
 होते हुए भी उन्होने अपने सन्देश हिंदी में दिया । महात्मा गांधी ने भी इस
 भाषा के माध्यम से राष्ट्रिय एकता के संदेश दिया था । रबिन्द्र नाथ टैगोर ,
बंकिमचंद्र इन बड़े -बड़े विद्वानों ने हिंदी का समर्थन किया । भारत में जितने
 मनीषी जन हैँ हिंदी के लिए संग्राम किया । इतना सब होते हुए हिंदी को जो स्थान
 मिलना चाहिए वह नहीं मिला है । जब तक आंचलिक भाषा का उत्थान नहीं मिलेगा तब तक
 हिंदी को खतरा रहेगा । चाइना में चीनी एक ही भाषा  ,जापान में एक ही राष्ट्र
 भाषा है लेकिन हिंदी तो मॉरीशस में सेंकेंड लैंग्वेज़ है ।भाषा समृद्धि के लिए
 तो वहॉ जाने कितने सेंटर है वहां जाकर देखिये हिंदी के विकास के लिए कितना काम
 हो रहा है । बंगला देश में हिंदी सेकेण्ड लैंग्वेज़ है । पाकिस्तान में भी
 उर्दू के आलावा दूसरी बोली जाने वाली भाषा हिंदी है । अफगानिस्तान ,
इंडोनेशियस में भी हिंदी बोली व् समझी जाती है ,फ़िजी में में बोली जाती है
..अरब कंट्रीज़ खूब प्रयोग की जाती है ,नेपाल  काठमांडू में तो ऑफिशियली
 लैंग्वेज़ है हिंदी । मै तो कहता हूँ इसको विश्व भाषा होना चाहिए । अंग्रेज़ लोग
 दस हज़ार शब्दों को लेकर भाषा बनाया ये शब्द भी उनके अपनी भाषा के नही थे ग्रीक
 और लैटिन के शब्द ज्यादा हैं । अब देखने वाली बात है दस हज़ार शब्द लेकर
 अंग्रेज़ हम पर शासन कर रहे हैं और मानसिक स्तर पर भी हम पर राज़ कर रहे हैं ।
 ये अंग्रेजी तो हमारे गावो में मशरूम की ग्रोथ की तरह हो गयी है । लोग बच्चो
 से माँ को मम्मी कहलाते जो कि मिस्र में मरे लोगो को बोला जाता है ,पिता डैडी
 कहलाते हैं ..ये सब हमारी परम्परा और संस्कृति नही । अरे अपनी संस्कृति से
 जुड़े उसको समझे जाने वो अच्छा है । लार्ड मैकाले ने को उसकी माँ ने उसको पत्र
 लिखा जब यहाँ उनका विरोध हो रहा था भारत छोड़ कर आने को इसके जवाब में मैकाले
 ने पत्र लिखा वो आज भीसंग्रहालय में मौजूद है .जवाब लिखा था कि "आना तो मै भी
 चाहता हूँ पर यहाँ के लोगो का स्वभाव ज्वार - भांटा की तरह है जाते - जाते मै
 ऐसा करके जाऊंगा कि भारत के लोग हमेंशा -हमेशा के लिए गुलाम बन कर रह जायेंगे
 ।" और आज हमारे यहाँ है भी ऐसा लोगो का खाने ,पीने ,पहनावा -वोढावा में
 अंग्रेज़ो की नक़ल कर रहे हैं । लोग हिंदी की जगह इंग्लिश में बात करने को गौरव
 समझते हैं । कनाडा में तो पंजाबी सेकेण्ड लैंग्वेज़ है ।
               चाइना , जापान ,लन्दन , अमेरिका  वहां का जो साहित्य है हमारे
 शहरो में आराम से खरीद सकते हैं । और हमारे यहां तो हम एक दूसरे राज्यो के
 साहित्य से वाकिफ नहीं है ।इसलिए सभी राज्यो के साहित्य का अनुवाद हिंदी में
 जरूर होना चाहिए और उसको विश्व में लोगो के सामने रखना चाहिए । सारे विश्व में
139 लगभग देश हैं लेकिन पांच देशो में ही अंग्रेज़ी राष्ट्र भाषा है इसके आलावा
 अब की अलग अपनी आंचलिक भाषा है । इन सब में भारत सबसे बड़ा राष्ट्र है । जहाँ
 की भाषा हिंदी है और इसके साथ -साथ अन्य देशो में इसका विस्तार क्षेत्र है मै
 तो कहता हूँ इसको विश्व भाषा का स्थान मिलना चाहिए । मैंने तो कई जगह विदेशो
 में हिंदी में भाषण दिया ,मैंने यू एन में भाषण हिंदी में दिया ।मैंने वहां
 पूछा कि कितनी भाषा को यूनेस्को सपोर्ट करता है पता चला 6 देशो को पर ये 6
देशो की तुलना भारत से करो तो भारत हर तरीके से बड़ा है फिर भी भारत को उसमे
 शामिल नहीं किया गया । फिर वही किसी ने कहा कि जब भारत में ही हिंदी की
 उपेक्षा की जाती है तो बाहर उसको कैसे मान्यता दिलायेंगे, इसलिए सबको मिल कर
 इसके प्रयास करने चाहिये ।
 प्रश्न - हिंदी को विश्व भाषा बनाने के लिए क्या करना चाहिए । मोदी को क्या
 करना चाहिये इसके लिए ?
उत्तर- मुझे विश्वास है मोदी जी काम करेंगे इस क्षेत्र में । बाजपेयी जी ने
 हिंदी के उत्थान के लिए बहुत काम किये ,मेरे काफी अच्छे सम्बन्ध थे उनसे ।
 हिंदी भाषा के लिए मोदी जी समर्पित हैं । सब लोग हिंदी में भाषण दे जिसको न
 पता हो सीखे । मुझे देख लो हिंदी भाषी नहीं हूँ फिर भी प्रयास रहता है हिंदी
 में बात करने का । ये मेरी दिल से भावना है कि मै देश और राष्ट्र भाषा के लिए
 अच्छा कुछ करूँ । मेरा ये उद्देश्य है कि हिंदी विश्व भाषा बने । सभी राज्यो
 में हिंदी को बढ़ावा दिया जाये । विज्ञापन भी हिंदी में दिए जाये । इंग्लिश को
 हटाने के लिए आंदोलन होने चाहिए । देश तब महान होगा , जब राष्ट्र भाषा को महान
 और समृद्ध बनाएंगे । इसको विश्व भाषा बनाने का इरादा है पर इसके लिए सार्थक और
 ठोस प्रयास करने होंगे । शशि पा

7/18/2015

लेखन मे व्यंग्य जरुरी क्यों !!(लेख )


व्यंग्य ऐसी विधा है जिसमे हल्के -फुल्के मनोरंजन के साथ सामाज़ से रुबरू कराया जाता है| व्यंग्य रचनाये हमारे मन मे गुद्गुदी पैदा करने के साथ -साथ वस्तविक्ताओ से दो चार भी कराती है| इस विधा से हर व्यक्ति आसानी से जुड जाता है और रोमंचित व आनंदित हो समस्याओ के प्रति कही न कही सज़ग होता है | चरमराती समाज़िक व राज़नैतिक व्यवस्था और बीच मे पिसता देश का सामान्य जन मानस इस विधा के माध्यम से अपने आंतरिक  विचार व भावनाओ को शब्दो के जरिये उकेर पाता है | व्यंग्य लेखन का एक ऐसा माध्यम है जिसके कंधे पर बंदूक तान पाखंड,सामाज़िक रूढी वादिता पर बिना ठेस पहुंचाये कटाक्ष किया जाता है | चलते -फिरते हर मोड पर कही न कही जीवंतता बनाये रखने के लिये व्यंग्य , कटाक्ष की कोइ न कोइ पुट या शब्द हमे खिलखिलाने के लिये मज़बूर कर देती है| ये कही सीधे तो कही घुमाकर शब्दो कि ताबडतोड बरसात है जो विविधता से ज़ादुइ असर छोडता है,इसमे लेखक या पाठक या अन्य किसी को इंकार नही होता | एक आम का पेड ,दूसरा करेले का पौधा जिस प्रकार इन दोनो का स्वभाव अलग -अलग होता है ...एक स्वास्थ्य के लिये उपयोगी दूसरा स्वाद के लिये जाना जाता है .....उसी प्रकार व्यंग्य है बल्कि साहित्य कि हर एक विधा मे ऐसा ही है | व्यंग्य की  मामूली बातें भी ज़ादुइ असर से लबरेज़  होती  हैं । देखा जाये तो एक व्यंग्यकार एक समाज सुधारक भी होता है। व्यंग्य, पाठक या श्रोता को एक चेतना के मुहाने पर ला छोडता है,जहाँ से वह धारा प्रवाह चिन्तन मे बह चलता है। इस तरह से व्यंग्य समाज प्रहरी  भी है और  विकसित दृष्टि  के आधार पर समाज  को नए मानदंड प्रदान करने मे सहायक होता है।

7/05/2015

राजनीति में आम और लीची ( व्यंग्य लेख)

विहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी और नीतीश कुमार के बीच जिस तरह की राजनीति का माहौल बना हुआ है वो किसी से छुपा नहीं । बड़ी ही हास्यपद और छोटी सोच कि नीतीश कुमार ने जीतन राम के आवास में लगे आम और लीची पर पहरेदारी लगवा दी इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है आज राजनीति का स्तर क्या हो चला है ।
                 असल में ये खेल "राजनीति बनाम आम -लीची "का है । जिसकी आड़ में राजनीति की जा रही है या कही न कही अपने विरोधी को नीचा दिखाने की कोशिश की गयी । लोक सभा चुनावो में जे डी यू के खराब प्रदर्शन के बाद 17 मई को नीतीश के इस्तीफा दे देने के बाद उनकी जगह लेने के लिए जीतनराम को बुलाया गया हालाँकि यह नीतीश कुमार की बड़ी ही राजनीतिक भूल कही जायेगी नीतीश कुमार को इसका एहसास देर से हुआ और जब होश में आये तो मांझी का रुख देख नीतीश कुमार के पैरो तले ज़मीन खिसक गई ।नीतीश अपनी चाले चलने लगे तो वही मांझी अपने पांसे विछाने लगे । मांझी बागी हो दलित राजनीती खेल ,खेलने लगे । मुख्यमंत्री के पद पर रहते मांझी ने कुछ ऐसे फैसले किये जो दलितों के समर्थन में थे जिससे वे भी विहार के दलितों के नेता बन गए ।
           अब मांझी अपनी अलग पार्टी के तौर पर विहार की राजनीति में खुद को आज़माने के लिए ज़मीन तैयार कर ली थी । परन्तु  उन्होंने साफ कर दिया है कि वो चुनाव बाद जरूरत पड़ने पर भाजपा के साथ समझौते या समर्थन के राज़ी हैं । अब ये मांझी नाम की मुसीबत सिर्फ नीतीश के लिए नहीं भाजापा के लिए भी बन गई ।
                   नीतीश के महादलित और मांझी के महादलित अलग -अलग श्रेणी में बट चुके हैं ।देखना दिलचस्प होगा विहारी महादलित किसको अपना नेता बनाते हैं । विहार में सत्ता का सुरूर जोरो पर है तो वही जनता माई -बाप बनने को । भाजापा भी मांझी के बहाने अलग तरीके की राजनीति करने की तयारी में है ।
               जितनी नीतीश और मांझी की कुश्ती का खेल खेलेंगे भाजपा को उतना ही फायदा पहुँचेगा । ये भाजपा नेता बखूबी जानते हैं ।भाजपा का पूरा प्रयास रहेगा कि आम और लीची के बंटवारे में वो बाज़ी मार ले ।
              यह राजनीतिक प्रतिस्पर्धा आम लीची के बंटवारे तक सिमट कर नही रह गई बल्कि इसमें सत्ता पर काबिज़ नीतीश की बेज़ा अभिमान की पराकाष्ठा व् मांझी का अड़ियल रुख सम्मिलित है जिसमे आम और लीची की महक गायब है, इसमें पिछड़ा वर्ग व् दलित वोटों पर अपने कब्ज़े की भीनी -भीनी दुर्गन्ध है । जो राजनीति की समाज़वादी विचारधारा में ये हमारे वोट है की ओर बंटवारे पर अपने कब्ज़े का स्पष्ट इशारा करती है कि आम हमारा लीची तुम्हारा । इसे आम लीची की राजनीति कहे तो क्या यह व्यंग्य है , नही ये राजनीति का निचला पायदान जरूर है जो गिरने के स्तर को दर्शाती है ।
                     देखना है कि अब ये आसन्न चुनावो में कहाँ तक लुढक कर जायेगी और बदले स्वरूप् में मांझी कितनी आम के मिठास का रसास्वादन भाजपा को पहुचाएंगे ।
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                    शशि पाण्डेय

उदासीनता का शिकार -चित्रकूट ।

"नदी पुनीत पुरान बखानी
                अत्रिप्रिया निज तप बल आनी
सुरसरि धार नाऊ मन्दाकिनी
                 जो सब पात कपोतक डाकिनी"

उत्तर -प्रदेश का चित्रकूट जिला जो आस्था का उद्गम है , जहाँ मर्यादा पुरषोत्तम राम ने लगभग 11 वर्ष का समय बिताया जहाँ हर पग पे ज़मीन स्वर्ग सी पबित्र है । देश -विदेश में धार्मिक स्थलों की श्रेणी में शुमार होने वाला "चित्रकूट" आज बदहाली के बीच आस्था को समेटे हुए है । सरकारो की उदासीनता के चलते सदियाँ गुज़र जाने के बाद  चित्रकूट पर्यटन आज भी दयनीय अवस्था में है । विंध्य पर्वत की शृंखला के नीचे बसे इस कस्बे में कल -कल ,छल-छल बहती पावक मन्दाकिनी अब प्रदूषित हो अपने अस्तित्व को बचाने को बचाने की गुहार लगाती हुई दिखती है ।
          चित्रकूट का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है 'कामदगिरि मंदिर"जो भगवान जगनन्नाथ का रूप माना जाता है ।इस मंदिर की परिक्रमा 5 किo मीo का पहाड़ है जिसको श्रध्दालु अपनी आस्थानुसार पूरी करते हैं । पर यहाँ भी भरपूर अव्यवस्था देखने को मिलती है अब तक कई बड़े हादसे परिक्रमा के दौरान हो चुके हैं पर सरकारे मुवावजा दे पीठ थपथपा कर बैठ जाती हैँ । चित्रकूट  की रमणीयता देखते ही बनती है । यह भारत के प्राचीन तीर्थस्थलों में से एक है परन्तु प्राथमिक सुविधाओ से वंचित है । समाज सेवी स्वo "नाना जी देश मुख " ने यहाँ प्रगति के लिए काफी कुछ कार्य किया पर वो भी ऊंट के मुँह में जीरा साबित हुआ ।
          चित्रकूट की महत्ता का वर्णन पुराणों के प्रणेता वेदव्यास, आदिकवि कालिदास ,संत तुलसीदास तथा कविवर रहीम ने अपनी कृतियों में अलग -अलग ढंगों से किया है । ये ऐसी जगह है जो देश -विदेश से आने वाले पर्यटको और श्रद्दालुओ अपनी और आकर्षित करती रही है ।
          चित्रकूट में हवाई पट्टी का प्रस्ताव पास हो आधा बनाया भी जा चुका है पर गतिमान नहीं किया जा सका । इतना विशिष्ट स्थान होते हुए भी यहां पर्यटको के ठहरने के लिए उत्तम होटलो का आभाव है । और आवागमन भी डग्गामार वाहनों की बजह से दुरूह है जिसको दुरुस्त किया जाना बहुत ही जरुरी है ।
      चित्रकूट के पर्यटन का हिस्सा "गणेश बाग" जो चित्रकूट से लगभग 3 किo मीo दूर दक्षिण की ओर स्थित है । यह स्थान "श्री बाजीराव पेशवा के शासन काल में निर्मित हुआ था , यहाँ स्थापत्य कला को देखकर मालूम पड़ता है पेशवा काल में स्थापत्य कला अपने चरम सीमा में जा चुकी थी

    चित्रकूट अतुलनीय है ,यहाँ पर्यटन को बढ़ावा देने व पर्यटको की संख्या में बढ़ोत्तरी के लिए मुलभूत सुविधाओ का होना जरुरी जिससे पर्यटक चित्रकूट की तरफ खिंचा चला आये । चित्रकूट के बारे में सच ही प्रसिद्ध पंक्तियाँ हैं..
      "जेहि विपदा परत है, सो आवत ऐहि देस
        चित्रकूट में रमि रहे रहिमन अवध नरेस"
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                   शशि पाण्डेय