8/30/2016

क्योंकि हम अँग्रेजी बूकते हैं !(व्यंग्य लेख )

कहीं अँग्रेजी का इश्तेहार पढ़ा "हमारे यहाँ अँग्रेजी घोल कर पिलायी जाती है " कैसे -कैसे विज्ञापन बनते हैं या बनाये जाते हैं । लेकिन मुझे लगता है अपने देश मॆ तो पहले ही अँग्रेजी "बूकी" जाती है फ़िर घोल कर पीने -पिलाने की क्या ज़रूरत । पुराना तकियाकलाम है  अंग्रेज चले गये अंग्रेजियत छोड़ गये यह सिर्फ़ स्लोगन मात्र नहीँ  । हम जब गुलाम थे , ग़ज़लो वाले "गुलाम " नहीँ दास वाले गुलाम ,तब तो मज़बूरी थी अँग्रेजी खाने -पीने-उगलने की पर अभी जो है वह कोरा अँग्रेजी प्रेम है...वह हिन्द ए अँग्रेजी ज़रूरत से ज़्यादा अँग्रेजी ए शौक है ।

काश की बीमारियों के टीकों की तरह भाषाओं व  विषयों के ज्ञान के टीकों की बूस्टर डोज का ऑप्शनल होता । हम सब सोचते हैं हिन्दी मॆ धार  बने या नहीँ अँग्रेजी मॆ धार कैसे बने!

यहाँ तक हमारा फिल्मी जगत भी इस अंग्रेजियत नौ सौ निन्यानबे के फेर मॆ नब्बे अंश घूमा हुआ है। जहाँ फिल्मी बम्बइया ज्यादातर लोग खुद तो अँग्रेजी बूकते ही हैं ,अँग्रेजी बूकने के मजबूरी के लिये सिनेमा तक बना डाला ।

फ़िल्म इंग्लिश विंग्लिश में अँग्रेजी का यह अंध प्रेम स्थापित कर देती है की अंग्रेजी बोलने से ही आपका मोर्डेन पति और आधी बड़ी हुई बेटी आपसे प्यार करने लगेगी... ये इस फ़िल्म की कहानी का सबसे दुःखदाई क्लाइमेक्स था ।

लेकिन वही साड़ी में गुथी दो बच्चों की माँ अपनी इंग्लिश क्लास की छत पे अपने फ़ारसी दोस्त के साथ अकेली होती है, उस वक़्त भारत के झूठे राष्ट्रवाद पर जबरदस्त अँग्रेजी का तमाचा लगता है। पर क्या करे अँग्रेजी सीखती ये अभिनेत्री अँग्रेजी के लिये सब कुर्बान करने कॊ तैयार रहती है ।

जब एक देशी अप्रवासी लड़की अँग्रेजी सीखते -सीखते एक अमेरिकन लड़के से शादी कर रही होती है... जब पता चलता है कि शिक्षक गे भी हो सकता है और फिर भी सम्मानित महसूस कर सकता है क्योंकि उसको अँग्रेजी आती है । शायद उसने भी कभी अँग्रेजी घोल कर पी रही होगी । मतलब अगर अँग्रेजी ज़बान आती है तो अवगुण भी गुण !

हिन्दी उपमहादीप का झूठा और धार्मिक लबादे में सड़ता हुआ राष्ट्रवाद अँग्रेजी के प्रेम मॆ फटता ,तड़पता ,फड़फड़ाता दिखाई नज़र आता है...

महसूस कीजिये उस दर्द को जब खाने का सामान खरीदने के लिए लाइन में लगे हों और अपमानित महसूस कर रहें हों... महसूस कीजिये की आपके बेटे बेटियां या छोटे भाई बहन आपको अज्ञानी करार देते हों और फूहड़ मजाक कस्ते हों सिर्फ इसलिए की आपको अंग्रेजी नहीं आती! यकीन मानिये उस वक़्त आप महसूस करेंगे की आपको अंग्रेजी की जरुरत नहीं बल्कि अंग्रेज हुई जा रही भारतीय राष्ट्रीयता को उसकी औकात दिखाने की जरुरत है।

हिन्दी कॊ हिन्दी मॆ समझते , अँग्रेजी कॊ भी हिन्दी मॆ समझते लोग फ़िर भी अँग्रेजी के प्यार मॆ उल्टियां करते -करते भारत मॆ अँग्रेजी तोते अँग्रेजी घोट लेते हैं । वैसे घोटी तो भाँग जाती है पर मौका लगे तो लोग खाने -पीने की चीजे घोट लेते हैं । या कुछ छुपाने के लिये भी हम बातें घोट जाते हैं । और तो और परीक्षाओं के दौरान विषयों कॊ याद करने बैठे तो विषयों कॊ घोट जाते हैं । मैने भी कई बार परीक्षाओं के समय नोट्स पानी घोल पी जाने की सोचा लेकिन इस डर से नही पिया की पी लिया तो रिवीजन कैसे किया जायेगा ।

यह अँग्रेजियत का लोगों मॆ हुडकपना है । साला अँग्रेजी मॆ बोलेंगे फ़िर "यू नो" कहि के वही हिन्दी मॆ भी बूकेगे। अरे जब हिन्दी मॆ ही आँतों का अल्सर समझाना है तो काहे एलीजाबेथ के ससुर बनना है । अँग्रेजी घोल कर पिलाने कॊ हमारी भारतीय माँये भी कौनो हिसाब से पीछे नहीँ घरो मॆ चाहे ठेठ तरीक़े से बच्चो कॊ समझाती हो लेकिन बाहर आते ही अँग्रेजी पढी -लिखी माँओ की जीभ अँग्रेजी मॆ अंदर बाहर लपलपा कर....come beby..papa say...What r u doing....tips..जाने यह अँग्रेजी के प्रति कैसा प्रेम है ! ऐसा प्रेम ,ऐसी दीवानगी तो सलमान खान ने ऐश्वर्या के लिये भी न दिखायी थी।

हमारे एक दूर के चचा जी थे वो जब बहुत खुश होते तो अँग्रेजी बोलने लगते और इस कदर बोलते की चारपाई मॆ बैठे हो तो चारपाई का तीनपाई होना तय होता था। हम उनके अँग्रेजी बोलने से डरते थे । वेसे लोग पीने के बाद भी अँगरेज़ हो जाते हैं ऐसा अँग्रेजी  पुराणों मॆ वर्णित है ।

वैसे हम अंग्रेजों से ज़्यादा होशियार हैं पूछो कइसे ?वो अइसे कि उदाहरण...वो एप्पल का मतलब एप्पल ही समझ पाते हैं पर हम एप्पल मतलब सेब समझते हैं है न होशियारी । वो इसलिये की हम अँग्रेजी पढ़ते नहीँ घोट जाते हैं...घोट कर,घोल कर पी जाते हैं...फ़िर पी कर बूकते हैं...।

8/21/2016

हाँ ,रिश्ते यूँ ही नहीँ बनते !(कविता )

रिश्ते यूँ ही नहीँ बनते !
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किसी जीवन चक्र जैसे
रिश्तों का भी  होता जन्म
बस होता  नहीँ  मालुम
कब ,किससे ,कैसे ,कहाँ
क्यू बन जाते हैं रिश्ते 
हाँ ,रिश्ते यूँ ही नहीँ बनते !

रिश्तों से बनता जीवन
जीवन मॆ बनते रिश्ते
कुछ साथ चलते
साथ चल कुछ बिछड़ जाते
कभी आकस्मिक मर भी जाते रिश्ते
हाँ ,रिश्ते यूँ ही नहीँ बनते !

मरते हैं रिश्तें जैसे जीवन
कुछ सांस दे जाते रिश्ते
कुछ आस ले जाते
कभी चुनौती भी बन जाते
निभते कुछ ,निभाये जाते रिश्ते
हाँ ,रिश्ते यूँ ही नहीँ बनते !

न जीवन होता न होती मृत्यु
साथ जिनके ऐसे भी कुछ होते रिश्ते
दूर रहकर भी बन जाते खास
कभी -कभी न होता इनका आभास
कुछ जीवन बना जाते रिश्ते
हाँ ,रिश्ते यूँ ही नहीँ बनते !

जीवन मॆ खुशियाँ भर जाते रिश्ते
कभी सब छीन ले जाते
महफिलो सी रौनक दे जाते
कभी उदासियों का आलम बनते रिश्ते
यथार्थ का विनिमय कर जाते रिश्ते
हाँ, रिश्ते यूँ ही नहीँ बनते !शशि पाण्डेय

8/20/2016

दर्द रिश्तों का (कविता )

सोच मॆ जिनकी होता गुमान 
दिल  से  नरम  होता  नहीँ

मिलता जो दर्द अपनो से 
कोई  उम्मीद करता नहीँ

काँटा बनकर वह चुभता 
मग़र, नज़र  आता  नहीँ

ज़ख्म बनकर तो  दुखता 
मग़र ,  दिखता    नहीँ

जो रिश्तों के लिये हो जीता 
लालची  वह  होता  नहीँ

देखकर चीज़े हांसिल करता  
मग़र बद्दयान्गी करता  नहीँ

कभी हो तो आजमा लेना है 
अपना हो तो खफा होता नहीँ ॥

©® शशि पाण्डेय ।
ShshiiPandey.blogspot.com 

वो कुछ इस तरह से गुज़रा  वो कुछ मेरा वक़्त सा निकला  मै उस वक़्त पर ठहरी रही  वो वक़्त सा मुझ पर गुज़रता गया ॥

व्यंग्य लिखने कॊ बेकरार विषयों की छिडी रहती रार बने कैसे अच्छा तंज़ कैसे  शब्दों का हो संग ॥

8/18/2016

सुन मोहे लागे डर (गीत )

सुन मोहे लागे डर
तू मुझसे छल न कर

तेरी बतियों  से हारी
तेरी अंखियों से हारी
दिल का सौदा कर
इस दिल से भी हारी
सुन मोहे लागे डर
तू मुझसे छल न कर

रंग नेह का दिल पर  भारी
निहारू तुझे मै बन सवाली
तेरी बातें जादू से भरी
करती मुझ कॊ मतवारी
सुन मोहे लागे डर
तू मुझसे छल न कर

महकी-महकी सी रंगत सारी
बहकी-बहकी सी रातें कारी
मन करता दिल की रखवारी
फ़िर भी सब तुझ पर वारी
सुन मोहे लागे डर
तू मुझसे छल न कर

रिवाजों की पहरेदारी
चढाते मुझ पर बेजारी
तुझसे मिलने की खुमारी
ढलते दिन पर जैसे साँझ भारी
सुन मोहे लागे डर
तू मुझसे छल न कर

दिल से ही होती धोखेदारी
छल की है ये दुनिया दारी
फूलों से होती रंग दारी
छोड़ो अब तो मतलब से होती यारी
सुन मोहे लागे डर
तू मुझसे छल न कर ॥शशि पाण्डेय ।

8/16/2016

क्योंकि ,जिन्दगी सिखाती बहुत है !(कविता )

किसी से न रखना कोई आस
रखना खुद पर पूरा विश्वास
उठाना अपना हर क़दम तू ठोस
बाकी रहे न कोई अफ़सोस
क्योंकि,ज़िन्दगी सिखाती बहुत है

कुछ  दौर  ऐसे  भी  आयेंगे
क़दम बिना चले ही लड़खड़ायेंगे
कभी अपने भी तुझे रुलायेँगे
फ़िर भी साथ ज़ज़्बे के हम टकरायेंगे
क्योंकि, ज़िन्दगी डगमगाती बहुत है

हमेशा बिना किसी के बनना ख़ास
बनाना मत किसी कॊ तुम ख़ास
बन न जाये कोई गले की फाँस
ठहरो ,सम्भलो बन जाना न परिहास
क्योंकि, ज़िन्दगी बहलाती बहुत है

जब हिलने लगे कभी अपनी बुनियाद
तब कर लेना माँ -बाप कॊ याद
करना न किसी से कोई फरियाद
अपने ज़िगर कॊ तुम देना दाद
क्योंकि , ज़िन्दगी बिखरती बहुत है

टूटने लगे जो तेरे सपने रोज़
तू जिये जा अपनी मंज़िल कॊ सोच
रास्तों कॊ अपने ढंग से खोज
कम कभी न होने देना अपना ओज
क्योंकि ,ज़िन्दगी दरकती बहुत है

लगे जो थमने लगा है सफ़र  
तू खुद के ठौर और ठिकाने बदल
ऐबों की बीच शराफ़त बन कर निकल
ख़ुशी कॊ दे पता और दे दे अपनी ख़बर
क्योंकि , ज़िन्दगी बदलती बहुत है ॥

8/13/2016

चढ़ा व्यंग्य का रंग (गीत )


गीत : मोहे चढ़ा व्यंग्य का रंग
होना न तुम बिलकुल दंग
न रह पाओगे तुम मेरे संग।

तुम हो श्रृंगार को चाहनेवाले
मैं ठहरी व्यंग्य की दीवानी
हर बात ढूँढो तुम मधुर-मधुर
और मैं ढूँढूँ कड़वी-मिर्चानी
तुम पर प्रेम के बदरा बरसें
मोहे चढ़ा है व्यंग्य का रंग
होना न तुम बिलकुल दंग
न रह पाओगे तुम मेरे संग।

तुम कहते रात सुहानी है
मैं बोलूँ रात भयानक है
तुम कहते रुत मस्तानी है
मैं कहती चोरों की आहट है
दिल हो जाता चौकन्ना सा
जब भी मचता कोई हुड़दंग
होना न तुम बिलकुल दंग
न रह पाओगे तुम मेरे संग।

तुम कहते ये प्यार की बारिश है
मैं बोलूँ मानसून की साजिश है
तुम कहो तन-मन ये मचलता है
मैं बोलूँ ये मौसमी खारिश है
सावन में उठती है अब तो
दिल में व्यंग्य की ही तरंग
होना न तुम बिलकुल दंग
न रह पाओगे तुम मेरे संग।

तुम कहते बाँहों में आ जाओ
मैं बोलूँ पहले यह देश बचाओ
तुम चाहो प्रीति के पल्लू में रहना
मैं चाहूँ तुम जा कुरीति को मिटाओ
बने समाज फिर नयी तरह का
और बदलें भारत के रंग-ढंग
होना न तुम बिलकुल दंग
न रह पाओगे तुम मेरे संग।

8/10/2016

काला बाजारी (व्यंग्य कविता )

चलो न बंधू  एक
साझेदारी करते हैं

झूठे बयानों की
कालाबाज़ारी करते हैं

तुम मुझे कोस
मै तुम्हें कोस
राजनीति के गलियारों मॆ
सफ़ल कहानी करते हैं

उम्र गुज़ारी है
जो दलों मॆ,खुल कर
अब नमकहरामी करते हैं

चीर हरण होते
बेटियों  के
हम मौज़ो की गुलामी करते हैं

तेरा दलित ,मेरा कर बस
वोटों की खींचातानी करते हैं

चलो ख़त्म कर दें
जो इन्सानियत़ का  दम भरते हैं

कायम रहे बैर भाव
हर दम शपथ ग्रहण करते हैं

8/05/2016

हवा बाजी मे ज़माना (व्यंग्य लेख )

कुछ दिन पहले कहीं ख़बर पढी और सुनी एक प्रेमी युगल ने हवा मे तारो के सहारे लटक कर शादी की । क्या करें आज का ज़माना ही है ऐसा कि कुछ अनोखा करें । जिसपे सबकी नज़र हो । 

क्या नेता, क्या अभिनेता बाकी बची आम जनता भी ऐसे ही हथ कण्डे प्रयोग मे ला रही है । पर जिन्दगी की असल परीक्षा तो हवा बाजी के बाद होती है । वेसे जिन्दगी मॆ कुछ असल अभिनेता भी होते हैं जो सचमुच की हवा बाजी करते हैं ।उनमे से एक ऐसे जांबाज़ थे जिन्होने 25000 फीट की ऊँचाई पर  सही -सही मॆ हवा बाजी कर विश्व रिकॉर्ड मॆ अपना नाम दर्ज करा लिया  ,उनको इस  हवा बाजी के लिये  हमारी ओर बधाई ।

खैर आगे अपनी लफ्फाजी वाली हवा बाजी की बात करते हैं ।लगभग -लगभग सभी जानते हैं ये सिर्फ़ शरीर के ऊपर वाले माले (मस्तिष्क ) का काम है ,पर सब हवा बाजी के आदी हो चुके हैं ।

दिल्ली के निजाम हवाई मार -मार दिल्ली सल्तनत कॊ कब्जिया बैठे । ये वो (कब्ज )वाला कब्जिया नहीँ  ,कब्ज़ा वाला कब्जिया है । लोगां तब भी जानते थे ये हवाई गुब्बारे थे । पर लोगां करें क्या...
                 
                   "सईयां तोरे वश मा
                    इंटा मार चाहे पथरा "

हवा मे शादी करता प्रेमी युगल जानता ही रहा  होगा  कि  यह हवा बाजी है । हकीकत जीवन का सतही स्तर  कुछ और होता है ।

चुनाव दौरान बड़े -बड़े वादे..हवा मे लसिया -लसिया  तीर छोड़ने वाले वादों की कब्र तो हवा मे ही खोद दफन कर दी जाती है ।

देश के राजनीतिक धुरंधर जाने कितनी दफे पाकिस्तान कॊ हवा मे सबक सिखा चुके हैं और तो और हवा मे कड़े से कड़े शब्दों मे निंदा बोल ,बोल कर हमारे निजाम ए हिन्द हवाई मिसाइल दाग़ जाने कितनी बार हवा मे गुलाटिया मार चुके ।

हवा बाजी का दूसरा प्रचलित भाई कबूतर बाजी है । वो तो सटीक हवा बाजी करते हैं । इस जमीं से उस जमीं ,आई मीन टू से चोरी से लोगां लोग कॊ देश पार कराने का उन लोगों का  जबरदस्त तरीका होता है ।

वैसे हवा बाज भी बड़े दूर दृष्टा होते हैं । कौन सी हवा कब छॊडी जाय इसका ज्ञान उनको अपने पूर्व जन्म सतयुग मे ही प्राप्त हो हुआ होता है । वाणी मे इनकी राजा हरिश्चंद्र के बातो सी शुद्धता पायी  जा सकती है । बाकी होता कुछ और ही है ।"कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना "

चूँकि हवा से ही जीवन होता है । सभी जानते हैं । यह हमारे वातावरण मे विद्यमान है । इसी का कुछ नतीजा यह भी कि हवा बाजी हर जगह , हर क्षेत्र मे होती है अथवा पायी जाती है । प्रापर्टी डीलर , वकील , पत्रकार , दान दक्षिणा वाले पंडित जी , पुलिसिया विभाग आदि -आदि ।

बात करते - करते ख़याल आया मोबाइल नेटवर्क कम्पनियों का  माई गॉड इनकी हवा बाजी तो कमाल की होती है ।इनकॊ  हवाई तीर मारना बहुत ही आसान होता है । इनमे से  एक कम्पनी अपने हवाई  गुब्बारा हेतु एक कन्या कॊ कहाँ -कहाँ नहीँ  हवा बाजी करते दिखाते हैं ..भई नेटवर्क जाये भाड़ मे लोगां तो लड़कियाँ और खूबसूरत नज़ारे देख खुश हो जाते हैं । 

तो उधर हमारी भारतीय शादियों मे ये फूफा और मामा लोग भई  खूब झूठ की खेती लहलहवाते हैं । इधर की उधर खूबै हवा बाजी करते हैं । बीच -बीच मे फूटे हुये गुब्बारे की तरह फुसफुसा भी जाते हैं ।

यही नही देखा जाये तो भारत के दोनो सदनों मे भी खूब हवा बाजी दिखायी जाती है । ये हवाबाज हवा बाजी के अलावा कई बार सोते हुये  , एक दूसरे पर कुर्सियां पटकते हुये  , पोर्न वीडियो देखते हुये पाये जाते हैं ।

और तो और खाने -पीने की चीज़े भी इससे अछूती नही रही ।चिप्स ,कुरकुरे ,नमकीन जैसे पैकटों आदि पर भी काफ़ी हवा की  बाजी होती  है । बहरहाल हो चाहे जो... लोग सच्ची मे हवा बाज हो चले हैं...लोगों कॊ लोगों के द्वारा हवा बाजी दिल से पसन्द की जा रही है ।