1/12/2016

तुम कुछ यूँ लगे(कविता)

तुम कुछ यूँ लगते हो

तुम मुझे कुछ
यूँ लगते हो जैसे
सर्दियों  की 
खिली -खिली सी धूप

तुम मुझे कुछ
यूँ  लगते हो जैसे
बारिश  की
पहली-पहली बू्ँद

तुम मुझे कुछ
यूँ लगते हो जैसे
छोटे बच्चे की
खिल-खिलाती हँसी

तुम मुझे कुछ
यूँ लगते हो जैसे
मिट्टी  की
सौंधी-सौंधी खुशबू

तुम मुझे कुछ
यूँ लगते हो जैसे
आम की
खट्टी-मीठी मिठास

तुम मुझे कुछ
यूँ लगते हो जैसे
होली  के
गुलाल की सुगंध

और क्या-क्या
कहूं,तुम कैसे
लगते हो .....
मैं तुम और तुम
मैं लगते हो जैसे ।।

No comments:

Post a Comment