तुम कुछ यूँ लगते हो
तुम मुझे कुछ
यूँ लगते हो जैसे
सर्दियों की
खिली -खिली सी धूप
तुम मुझे कुछ
यूँ लगते हो जैसे
बारिश की
पहली-पहली बू्ँद
तुम मुझे कुछ
यूँ लगते हो जैसे
छोटे बच्चे की
खिल-खिलाती हँसी
तुम मुझे कुछ
यूँ लगते हो जैसे
मिट्टी की
सौंधी-सौंधी खुशबू
तुम मुझे कुछ
यूँ लगते हो जैसे
आम की
खट्टी-मीठी मिठास
तुम मुझे कुछ
यूँ लगते हो जैसे
होली के
गुलाल की सुगंध
और क्या-क्या
कहूं,तुम कैसे
लगते हो .....
मैं तुम और तुम
मैं लगते हो जैसे ।।
तुम मुझे कुछ
यूँ लगते हो जैसे
सर्दियों की
खिली -खिली सी धूप
तुम मुझे कुछ
यूँ लगते हो जैसे
बारिश की
पहली-पहली बू्ँद
तुम मुझे कुछ
यूँ लगते हो जैसे
छोटे बच्चे की
खिल-खिलाती हँसी
तुम मुझे कुछ
यूँ लगते हो जैसे
मिट्टी की
सौंधी-सौंधी खुशबू
तुम मुझे कुछ
यूँ लगते हो जैसे
आम की
खट्टी-मीठी मिठास
तुम मुझे कुछ
यूँ लगते हो जैसे
होली के
गुलाल की सुगंध
और क्या-क्या
कहूं,तुम कैसे
लगते हो .....
मैं तुम और तुम
मैं लगते हो जैसे ।।
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