"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता”
आज की नारी गतिशीलता की दौड़ में हर वो मक़ाम हांसिल कर रही है जिसके सपने कभी देख वह चुप होकर रह जाती थी।चाहे वो कोई भी क्षेत्र हो महिलाएँ हर जगह अपनी सफलता के परचम लहरा रही हैं । पर आज की स्त्री गतिशीलता के चलते अतिवादिता के हत्थे चढती जा रही है।स्वतंत्रता का मतलब आज़ादी है, पर आजादी में स्वतंत्रता तो ठीक है पर स्वछंदता घातक है चाहे वो फिर समाज किसी की भी हो ।स्वतंत्रता में संयम का होना जरूरी है,संयम न हो तो वह किसी भी इंसान को गलत रास्ते पे ला छोड़ता है । महिलाओं ने ये साबित कर दिखाया कि दुनिया का कोई काम भी काम हो महिलाएँ उसको पुरुषों की तुलना में कहीं ज्यादा अच्छे करती और संभालती हैं ।
लेकिन ये पुरुषों के समकक्ष खड़े होने की कैसी अंधी दौड़ है जो स्त्रियों को अपने काम के साथ-साथ पुरुषों के काम का बोझ भी उठाने को मजबूर बना दिया है। नारी को स्वातंत्रता अपने नारीत्व की बलि देकर मिल रही है जो कि सरासर अन्याय है।
निश्चित ही अब महिलाएं बहुशिक्षित और सशक्त हो गयी है उसे समाज में आगे बढ़ने के बहुत सारे अधिकार मिल गये हैं । लेकिन नारी स्वातंत्रता के दूसरे पहलू पर नजर डाले तो इसका खमियाजा औरतों से होते हुये, समाज में जा रहा है।आज महिलाओं के साथ आये दिन हर तरफ हो रहा यौनाचार आज़ादी के स्वछंदता की अतिशयता को बयाँ करता है फिर चाहे वह 2साल ,3साल की अबोध बच्चियां हो या 80 साल की मरणासन्न वृद्ध महिला हो ।
कितने नैतिक मूल्यों और आदर्शो को ताक पर रख दिये गये सिर्फ और सिर्फ कोरी आधुनिकता के नाम पर ।आज नारी जिस जोश के साथ मंजिलों की ऊंचाइयों को छूने के लिये एडी चोटी का जोर लगा आगे बढ रही है उन रास्तों पे जाने कितने दल -दल ,धूर्तता, कितने गढ्ढे,कितनी खाइयां और कितने ही विष से भरे लोग हैं । इन उजालों और चकाचौंध के बीच कितने अंधेरे हैं ये स्वयं स्त्री बखूबी समझती है।
नारी का अपमान
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अब बात करे आधुनिक नारी के अपमान की तो अंग प्रदर्शन करा कर उसके नारीत्व का अपमान किया जा रहा है ।नारी के अंग प्रदर्शन की बात करे तो उसके शरीर को बाजारु दुनिया ने पूरी तरह से बेआबरु कर छोड़ा है और इससे भी हैरान करनी वाली बात, महिलाएँ इस मानसिकता का शिकार हो खुद को अधनग्न बनाने वाले पोशाकों से फैशन आइकान बनने की होड़ में नैतिकता और आदर्शों को कुचल,सुसंस्कारी ,सौम्य,सभ्य कहलाये जाने के बजाय सेक्सी और हॅाट कहलाने में गौरवान्वित होती हैं।आज बाज़ार स्त्री के शरीर को बिकाऊ और वस्तु बना कर परोस रही है और महिलाएं भी अपने शरीर की बोली लगवाने में पीछे नहीं ।
पेपर,पत्रिकाओं,नेट साइट्स,पोर्न साइट्स,फैन्स क्लब या फोन पर दोस्ती के आने वाली कॉल और मैसेज में महिलाओं के प्रयोग का प्रतिशत सर्वाधिक होता है। ऐसी आधुनिकता और खुलापन का समर्थन करने वाले इन हालातों में अपनी बहन ,बेटियों का जाना पसंद करेंगे ????? अगर होंगे भी तो सरफिरे विरले ही होंगे ।
क्या छोटे शहर क्या बड़े...... आधुनिकता के नाम पर जमकर अश्लीलता का प्रचार किया जा रहा है ।पाँचसितारा होटल ,बार,रेस्तरां में शराब परोसना आज फैशनिया समाज का हिस्सा बन चुका है सेक्स वर्कर को कानूनी अनुमति देने की ओर पहल की जा रही है अगर ऐसा हुआ तो यकीनन समाज में नग्नता का खुला खेल होगा जिसमें सबसे ज्यादा दुर्गति स्त्री जाति की होगी । आधुनिक युवा महिलाएं छोटे -छोटे कपड़े पहन नशा कर डिस्को में पुरुष दोस्तों के साथ अश्लीलता और अभद्रता की हदें पार कर नारी यौवन ,नारी सौंदर्य को तार - तार कर अपमानित कर रही हैं ,और ऐसे आधुनिक समाज में इन सब के विरोध में आवाज उठाने वाला पिछड़ी मानसिकता का और दकियानूसी कहलाता है ।
यौन उत्पीड़न क्यों ??
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क्या आज की नारी और इस सभ्य समाज ने सोचा कि आज महिला यौन उत्पीड़न के मामलों में इतनी बढोतरी क्यों हुई है ।इन सब का जिम्मेदार कौन है ???? इस परिप्रेक्ष्य में हर प्रश्नवाचक को उत् रित करना नितांत आवश्यक है ।क्या खुद महिला इन सब की जिम्मेदार है ??? तो क्या समाज जिम्मेदार है??? तो आखिर कौन है ......!! इन सबका जिम्मेदार समाज में फैली अश्लीलता और व्यभिचार है। अब देखना ये है कि अश्लीलता और अभद्रता फैलाने वाला कौन है तो वो है पुरुष वर्ग जो कि इसका उदपादक भी है और उपभोक्ता भी और इसी का कुअसर समाज में कुन्ठित मानसिकता वालों में होता जिसका ही असर है समाज में बढता यौन आपराध। लेकिन ऐसे माहौल के लिए थोड़ा बहुत दोषी खुद महिला वर्ग भी हैं ,उन्हें खुद को नुमाइश बनाने से बचना होगा ,वेश -भूषा के चुनाव में एहतियात बरतना होगा ,खुद को अमर्यादित होने से बचाना होगा ......क्योंकि जैसे अधवस्त्र बाज़ार महिलाओं के लिए बनाता है वैसे कपड़े पुरुषों के लिए क्यों नहीं बनाए जाते ,क्यों सिनेमा,टीवी,पेपर,पत्रिकाओं में महिलाओं को अधनग्न दिखाया जाता है ये निर्णय नारी को स्वयं करना होगा उसके लिए क्या सही है ,क्या गलत.....!!!
कुछ स्त्रियाँ जानते हुये भी ऐसी हरकतें , माहौल व वेश- भूषा बनाती जो पुरुषों को आकर्षित और गलत कामों के लिए उत्तेजित करता है ,साथ-साथ ये उन महिलाओं के परेशानियों का सबब बनती हैं जो समाज में सभ्य और मर्यादित रहती हैं।
महिलाएं के खिलाफ हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलन्द करनी होगी ,एक आन्दोलन खड़ा करना होगा जिसका नेतृत्व स्वयं नारी को करना होगा ।इस विषय पर ये बात सटीक बैठती है...."ग़र दिल में हो इन्तकाम की ज्वाला तो,
आंखों सेअश्रु नहीं,अंगार निकलने चाहिए"
शशि पाण्डेय
आज की नारी गतिशीलता की दौड़ में हर वो मक़ाम हांसिल कर रही है जिसके सपने कभी देख वह चुप होकर रह जाती थी।चाहे वो कोई भी क्षेत्र हो महिलाएँ हर जगह अपनी सफलता के परचम लहरा रही हैं । पर आज की स्त्री गतिशीलता के चलते अतिवादिता के हत्थे चढती जा रही है।स्वतंत्रता का मतलब आज़ादी है, पर आजादी में स्वतंत्रता तो ठीक है पर स्वछंदता घातक है चाहे वो फिर समाज किसी की भी हो ।स्वतंत्रता में संयम का होना जरूरी है,संयम न हो तो वह किसी भी इंसान को गलत रास्ते पे ला छोड़ता है । महिलाओं ने ये साबित कर दिखाया कि दुनिया का कोई काम भी काम हो महिलाएँ उसको पुरुषों की तुलना में कहीं ज्यादा अच्छे करती और संभालती हैं ।
लेकिन ये पुरुषों के समकक्ष खड़े होने की कैसी अंधी दौड़ है जो स्त्रियों को अपने काम के साथ-साथ पुरुषों के काम का बोझ भी उठाने को मजबूर बना दिया है। नारी को स्वातंत्रता अपने नारीत्व की बलि देकर मिल रही है जो कि सरासर अन्याय है।
निश्चित ही अब महिलाएं बहुशिक्षित और सशक्त हो गयी है उसे समाज में आगे बढ़ने के बहुत सारे अधिकार मिल गये हैं । लेकिन नारी स्वातंत्रता के दूसरे पहलू पर नजर डाले तो इसका खमियाजा औरतों से होते हुये, समाज में जा रहा है।आज महिलाओं के साथ आये दिन हर तरफ हो रहा यौनाचार आज़ादी के स्वछंदता की अतिशयता को बयाँ करता है फिर चाहे वह 2साल ,3साल की अबोध बच्चियां हो या 80 साल की मरणासन्न वृद्ध महिला हो ।
कितने नैतिक मूल्यों और आदर्शो को ताक पर रख दिये गये सिर्फ और सिर्फ कोरी आधुनिकता के नाम पर ।आज नारी जिस जोश के साथ मंजिलों की ऊंचाइयों को छूने के लिये एडी चोटी का जोर लगा आगे बढ रही है उन रास्तों पे जाने कितने दल -दल ,धूर्तता, कितने गढ्ढे,कितनी खाइयां और कितने ही विष से भरे लोग हैं । इन उजालों और चकाचौंध के बीच कितने अंधेरे हैं ये स्वयं स्त्री बखूबी समझती है।
नारी का अपमान
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अब बात करे आधुनिक नारी के अपमान की तो अंग प्रदर्शन करा कर उसके नारीत्व का अपमान किया जा रहा है ।नारी के अंग प्रदर्शन की बात करे तो उसके शरीर को बाजारु दुनिया ने पूरी तरह से बेआबरु कर छोड़ा है और इससे भी हैरान करनी वाली बात, महिलाएँ इस मानसिकता का शिकार हो खुद को अधनग्न बनाने वाले पोशाकों से फैशन आइकान बनने की होड़ में नैतिकता और आदर्शों को कुचल,सुसंस्कारी ,सौम्य,सभ्य कहलाये जाने के बजाय सेक्सी और हॅाट कहलाने में गौरवान्वित होती हैं।आज बाज़ार स्त्री के शरीर को बिकाऊ और वस्तु बना कर परोस रही है और महिलाएं भी अपने शरीर की बोली लगवाने में पीछे नहीं ।
पेपर,पत्रिकाओं,नेट साइट्स,पोर्न साइट्स,फैन्स क्लब या फोन पर दोस्ती के आने वाली कॉल और मैसेज में महिलाओं के प्रयोग का प्रतिशत सर्वाधिक होता है। ऐसी आधुनिकता और खुलापन का समर्थन करने वाले इन हालातों में अपनी बहन ,बेटियों का जाना पसंद करेंगे ????? अगर होंगे भी तो सरफिरे विरले ही होंगे ।
क्या छोटे शहर क्या बड़े...... आधुनिकता के नाम पर जमकर अश्लीलता का प्रचार किया जा रहा है ।पाँचसितारा होटल ,बार,रेस्तरां में शराब परोसना आज फैशनिया समाज का हिस्सा बन चुका है सेक्स वर्कर को कानूनी अनुमति देने की ओर पहल की जा रही है अगर ऐसा हुआ तो यकीनन समाज में नग्नता का खुला खेल होगा जिसमें सबसे ज्यादा दुर्गति स्त्री जाति की होगी । आधुनिक युवा महिलाएं छोटे -छोटे कपड़े पहन नशा कर डिस्को में पुरुष दोस्तों के साथ अश्लीलता और अभद्रता की हदें पार कर नारी यौवन ,नारी सौंदर्य को तार - तार कर अपमानित कर रही हैं ,और ऐसे आधुनिक समाज में इन सब के विरोध में आवाज उठाने वाला पिछड़ी मानसिकता का और दकियानूसी कहलाता है ।
यौन उत्पीड़न क्यों ??
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क्या आज की नारी और इस सभ्य समाज ने सोचा कि आज महिला यौन उत्पीड़न के मामलों में इतनी बढोतरी क्यों हुई है ।इन सब का जिम्मेदार कौन है ???? इस परिप्रेक्ष्य में हर प्रश्नवाचक को उत् रित करना नितांत आवश्यक है ।क्या खुद महिला इन सब की जिम्मेदार है ??? तो क्या समाज जिम्मेदार है??? तो आखिर कौन है ......!! इन सबका जिम्मेदार समाज में फैली अश्लीलता और व्यभिचार है। अब देखना ये है कि अश्लीलता और अभद्रता फैलाने वाला कौन है तो वो है पुरुष वर्ग जो कि इसका उदपादक भी है और उपभोक्ता भी और इसी का कुअसर समाज में कुन्ठित मानसिकता वालों में होता जिसका ही असर है समाज में बढता यौन आपराध। लेकिन ऐसे माहौल के लिए थोड़ा बहुत दोषी खुद महिला वर्ग भी हैं ,उन्हें खुद को नुमाइश बनाने से बचना होगा ,वेश -भूषा के चुनाव में एहतियात बरतना होगा ,खुद को अमर्यादित होने से बचाना होगा ......क्योंकि जैसे अधवस्त्र बाज़ार महिलाओं के लिए बनाता है वैसे कपड़े पुरुषों के लिए क्यों नहीं बनाए जाते ,क्यों सिनेमा,टीवी,पेपर,पत्रिकाओं में महिलाओं को अधनग्न दिखाया जाता है ये निर्णय नारी को स्वयं करना होगा उसके लिए क्या सही है ,क्या गलत.....!!!
कुछ स्त्रियाँ जानते हुये भी ऐसी हरकतें , माहौल व वेश- भूषा बनाती जो पुरुषों को आकर्षित और गलत कामों के लिए उत्तेजित करता है ,साथ-साथ ये उन महिलाओं के परेशानियों का सबब बनती हैं जो समाज में सभ्य और मर्यादित रहती हैं।
महिलाएं के खिलाफ हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलन्द करनी होगी ,एक आन्दोलन खड़ा करना होगा जिसका नेतृत्व स्वयं नारी को करना होगा ।इस विषय पर ये बात सटीक बैठती है...."ग़र दिल में हो इन्तकाम की ज्वाला तो,
आंखों सेअश्रु नहीं,अंगार निकलने चाहिए"
शशि पाण्डेय