लेखनी हूँ मैं
किसी शहंशाह
किसी ज़माने को
सलाम नहीं करती,
करे जो मानवता को
चाक -चाक काम वो
किया नहीं करती,
जा आग लगा
जिग़रो में
ऐ बाज़ारु मीडिया
मैं यूँ घर की बातें
सरेआम नहीं करती,
मत करो ज़ाया
यूँ मेरा नाम,
मैं यूँ किसी की ज़ागीर
हुआ नहीं करती,
बाँधती हूँ मैं
अक्षरों को तराश-तराश
क्या ग़ैर , क्या ख़ास
शब्दों से कर दूँ
नि:शब्द
लेखनी हूँ मैं !!
किसी शहंशाह
किसी ज़माने को
सलाम नहीं करती,
करे जो मानवता को
चाक -चाक काम वो
किया नहीं करती,
जा आग लगा
जिग़रो में
ऐ बाज़ारु मीडिया
मैं यूँ घर की बातें
सरेआम नहीं करती,
मत करो ज़ाया
यूँ मेरा नाम,
मैं यूँ किसी की ज़ागीर
हुआ नहीं करती,
बाँधती हूँ मैं
अक्षरों को तराश-तराश
क्या ग़ैर , क्या ख़ास
शब्दों से कर दूँ
नि:शब्द
लेखनी हूँ मैं !!
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