10/22/2015

मैं लेखनी हूँ ( व्यंग्य कविता)

लेखनी हूँ मैं
किसी शहंशाह
किसी ज़माने को
सलाम नहीं करती,

करे जो मानवता को
चाक -चाक काम वो
किया नहीं करती,

जा आग लगा
जिग़रो में
ऐ बाज़ारु मीडिया
मैं यूँ घर की बातें
सरेआम नहीं करती,

मत करो ज़ाया
यूँ मेरा नाम,
मैं यूँ किसी की ज़ागीर
हुआ नहीं करती,

बाँधती हूँ मैं
अक्षरों को तराश-तराश
क्या ग़ैर , क्या ख़ास
शब्दों से कर दूँ
नि:शब्द
लेखनी हूँ मैं !!

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