फरीदाबाद की घटना निश्चित ही बेहद शरमनाक और निन्दनीय है ।ऐसी घटनाएं अब हमारे समाज का हिस्सा बनती जा रही हैं ।हर दिन ही ऐसी घटनाओं से समाचार पत्र पटे रहते हैं। अहिंसा के पुजारी बापू के देश में इंसानियत और मानवता दम तोडती जा रही है। पर उससे ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि बिकाऊ मीडिया व गन्दी राजनीति कुछ ठीक करने के बजाय वो प्रचार करते हैं जिससे उनकी पार्टी और चैनल की टी आर पी बढ़े और फायदा हो ।अब फरीदाबाद की ही घटना को ले तो आपसी रंजिश की घटना को बिकाऊ मीडिया ने दंबग बनाम दलित बनाते देर न लगायी आखिर फायदे का मसला जो ठहरा,समाज में नफरत आग लगती है तो लगती रहे उनकी बला से .......ऐसा ही कुछ राजनीतिक दल भी कर रहे हैं, हर कोई अपना उल्लू सीधा करने की दौड़ में लगा है । अब बात करे साहित्यकारों के सम्मान लौटाने की तो ....बहुत अच्छी बात है कि हमारे बुद्धजीवी समाज में हो रही घटनाओं के प्रति संवेदनशील तो हैं पर ये संवेदनशीलता और जगह भी दिखती तो समझ आता इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो हमारे काश्मीरी विस्थापित हैं पर हैरत की बात है कुछ मामलों में इन बुद्धजीवियो की गैरत जागती ही नहीं ।अगर ऐसे ही हालात आने वाले दिनों में स्थिति और बद से बद्तर होगी।
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