11/12/2016

दर्द ए काला धन (व्यंग्य लेख )

दर्द ए काला धन !
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हे काले धन ! अब तुम्हारे दिन बीत गये तुम नश्वर निकले। इतना ही नहीँ तुम सम्वेदना हीन निकले । तुम लोगों की दिक्कतों को दरकिनार कर समाधि लीन हो गये । तुम जनता को अकेले त्राहि -त्राहि करने को मजबूर कर गये । तुम रिटायर हुये वो भी भरी जवानी मॆं । आज तुम किसी पाठ्यक्रम जैसे रातों रात बदल दिये गये  ।

टी वी पर न्यूज़ देख रहे पति ने घबड़ायी आवाज़ में जोर से पत्नी को आवाज़ लगाई अरे सुनती हो ! पत्नी जो कि किसी पार्टी मॆं जाने हेतु तैयार हो रही थी , हाँथो में लगी नेलपेंट को मुँह से फूँक मार सुखाती हुई आई बोली दो मिनट भी चैन से तैयार नहीँ होने देते ।पति ने पत्नी की बात काटते हुये बताया
प्रधानमंत्री ने पाँच सौ और हजार के नोट को गलाया अब क्या करेंगे ऐसा कहते हुये भी हकलाया। बीवी ठहरी बीवी उसने सुनते ही पति की बात को बिन सोचे समझे झूठलाया। तभी बनारस वाले फूफा जी का फॊन आया उन्होंने भी ऐसा कुछ हाल बताया ।

एहसास ए काला धन क्या होता है प्रधनमन्त्री की स्पीच के बाद आया । अब पत्नी जी को लग गया बात गम्भीर है मन में चैन न धीर है। तपना और तपाना क्या होता है यह केन्द्र के मुखिया ने बतला दिया है । काले धन की कचौँधन ने आम जनता को कल्लू मामा बना दिया है ।लम्बी लम्बी लाइने मतदान के लिए नही काले धन को सफेद करने के लिए पूरे देश में लग गई !

लाइन मॆं न लगने वालों को भी लाइन मॆं लगा दिया ।कल मै भी गई लाइन मॆं लगने । लाइन मॆं लगने के बाद देखा "दिल्ली पुलिस सदैव आपके लिये आपके साथ" हम लाइन मॆं लगे वालो को लाइन मॆं लगाने के लिये प्रयास रत थी । कुछ लाइन मैन ,वूमेन के फेस भिन्नाये - भुन्नाये ,कुछ के घबड़ाये, कुछ के गुस्से मॆं तमतमाये , कुछ अपने नम्बर पर नजरो को गडाये , कुछ पी एम पर बड़बड़ाये हुये थे । तभी एकाएक मेरे अंदर दर्शनशास्त्र की तरंग दौड़ी और लाइन मॆं लगने का सदउपयोग कर कुछ कलम चला डाली....

बैंको मॆं ख़त्म होता कैश ,
खराब हुआ ATM का फेस 
जनता की लाइनों मॆं रेस,
बेखबर PM गये विदेश

यह सर्जीकल स्ट्राइक का नया एपिसोड है नये विषय के साथ जिसमे खुशी तो है पर मायूसी के लिबास मॆं । असहमति का भी अपना मजा होता है। कॊई माने या न माने आप असहमति मॆं खुश । माना लोकतंत्र पंच -प्रपंच की निवृत्ति है लेकिन जो फ़रमान देश हित मॆं हुआ वह कितना टन्च है जनता जनार्दन चुनावों मॆं तय करेगी । सोचने वाली बात है गृहणी द्वारा जुटाया धन ,बेटी की शादी के लिये एक एक कर जुटाया धन , बच्चो के द्वारा बूढे माँ बाप को दिये गये पैसों मॆं खर्च से बचाया गया धन , गरीब इंसान के अपने खर्चे मॆं से बचाया गया धन ये न  काला था न गोरा था यह पसीने की कमाई मॆं नमकीन धन था । पसीने की कमाई के "नमकीन धन" वालों किस बात की सजा !

इस काले धन के आपात काल ने मध्यम वर्गीय चेहरों की रंगत लाल कर दी है पी एम साहिब। साहिब ने लड्डू तो दिये मगर मुसीबत के खूनी हाँथो से । गुलाबी नोट ,गुलाबी सपनों की जगह मुसीबत का सबब बनकर आये हैं ।

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