4/16/2016

समीक्षा- सावधान! पुलिस मंच पर है।

पुस्तक-  सावधान!पुलिस मंच पर है।
लेखक-   सुमित प्रताप सिंह
प्रकाशक- हिन्दी साहित्य निकेतन
मूल्य-  200 रुपये
पुस्तक समीक्षा
शशि पाण्डेय
सावधान! पुलिस मंच पर है।अरे भई यह सुनकर पाठकगण डरे नहीं।यह मात्र एक पुस्तक का नाम है । जो कि एक व्यंग्य का कविता संग्रह है।इसके रचनाकार एक कवि और लेखक दोनों हैं।इस कविता संग्रह की भाषा कटाक्ष करती हुई कुछ कविताएँ खड़ी बोली हिन्दी की हैं और कुछ कविताएँ  ग्रामीण भाषा पर हैं।
        व्यंग्य कविताएँ काफी रोचक और सजीव हैं कि पढ़ते हुए मानसपटल एक छायाचित्र खींचने कामयाब होती हैं। ज्यादातर कविताएँ समाज में व्याप्त संगीन और  छोटे-छोटे अपराधों पर आधारित है। मुसीबतों पर हमारा समाज पुलिस पर आश्रित है।कवि के अनुसार पुलिस की भूमिका और कर्तव्य इस कदर बढ़ चुके हैं कि पुलिस को अब मंचो को भी सम्भालना होगा।इस संग्रह की पहली कविता लोक सभा चुनाव के दौरान लिखी गयी । व्यंग्य कवि ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से देश के अच्छे भविष्य की उम्मीद में पंक्तियां लिखी हैं।हालांकि पहली कविता से मोदी विरोधी थोड़े नाराज हो सकते हैं।
           व्यंग्य संग्रह की दूसरी कविता "कवि घंटाल" आज के लेखक समुदाय पर करारा प्रहार करती है। आज का लेखक क्या सोचता है उसकी मानसिकता कैसी है .....वह खुद में स्वयंभू है और सम्मान पाने के लिये किस तरह से सांठगांठ करता है इस पर एक नजर..." हमने लिख लई कविता चार, अब करने है इनको प्रचार....दुय-चार हमें सम्मान दिलाय देओ, किनके पांव छूने बताय देओ, मालिश करनी तो बऊ करएं, पदमश्री तक हम नहीं टरएँ,आओ एक- दूजे की पीठ खुजाएँ, मिल  जुल के आगे बढ़ जाये। यकीनन ये आज के परिप्रेक्ष्य में एक ऐसी सच्चाई है जिसको समाज जानते हुए भी नहीं मानता । इस संग्रह की यह कविता मुझे बेहद है पसंद आयी । चूंकि कवि पुलिस विभाग में कार्यरत हैं तो इनकी रचनाओं में इसका असर भी दिखता है। रचनाकार  समाज और पुलिस दोनों की भूमिकाओं को तीसरी नजर देखता और कम शब्दों में तीखे बान तानता हुआ दिखा। इनका पुलिसिया अनुभव भी इनकी कविताओं जगह बनाने में कामयाबी पाता है।जहां ये कविता के माध्यम से जेबकतरों से डरवाने साथ-साथ सतर्क भी करते हैं।
                    कवि कहीं  कटाक्ष करने हेतु कहीं देवदिस बन बैठा तो कहीं बिंदास लड़का।असहिष्णुता की आड में राजनीति करने वाले साहित्यकार रचनाकार से बच नहीं पाये ।सम्मान लौटाने की उत्कंठा इतनी कि उसके मन में विचार आता है "हम अपुरस्कृत लोग ,दुख व पीड़ा से ,उदास और बेचैन हो अक्सर छटपटाते काश ! हम भी सम्मान लौटा पाते। इन पंक्तियों को पढ़कर कवि की मानसिक छटपटाहट को महसूस कर सकता है कि वह क्या सोचता है। कविताओं के अगले क्रम में ही एक कविता शीर्षक है" विनती सुन लो भगवान" जो देश में मँहगाई की समस्या पर है ।टमाटर और प्याज के बढ़ते दामो से कवि इतना प्रभावित है कि वह अगले जनम खुद ही टमाटर और प्याज बनने की प्रार्थना भगवान से कर बैठता है।
           संग्रह की एक कविता " होली तो हो ली"समाज में व हमारे त्यौहारों पर  सोशल मीडिया किस तरह से काबिज़ है इस पर अपने व्यंग्य विचारों से नवाज़ा है।यह एक ऐसा कविता संग्रह हैं जिसमें पाठक को हर क्षेत्र व विषय पर हंसाती ,गुदगुदाती रचनाएँ मौजूद हैं। चूंकि व्यंग्य एक ऐसी विधा है जिसके माध्यम से बड़े से बड़े गम्भीर मुद्दों पर चोटिल प्रहार किया जाता है । रचनाकार सुमित ने समाज में व्याप्त छोटे-छोटे मुद्दों को भी बड़ी संजीदगी से उठाया  है और उठा कर आराम -आराम से धो-धो कर पछारा है। अलबत्ता  इस संग्रह को मैं व्यंग्य कविताओं का मिक्स वेजिटेल नाम देती हूँ जो थोड़ा मीठा-नमकीन ,थोड़ा तीखा है।जिसको पढ़ कर आपको भी उतना ही आनंद आयेगा जितना मुझे आया ।समाज में व्याप्त अनियमितताओं को इतने अच्छे ढंग से रखा गया है कि पाठकगणो का ध्यान संग्रह पढ़ने के साथ-साथ सामाजिक मुद्दों पर विचार- विमर्श के लिए बाध्य करता है।
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चाँद के पार पानी (व्यंग्य लेख)

"चलो दिलदार चलो चांद के पार चलो"। अब मुझे समझ आया इस गाने को रचने वाले गीतकर को वैज्ञानिकों के रिसर्च के पहले ही भान हो गया था कि धरती से दिखने वाले चमकीले चांद पर पानी है।तभी उसने ये लाइनें गढी थी शायद । वैसे  चांद का नाम आते ही मन रोमांटिक हो जाता है।मन को ठंढक सी मिलती है।मेरे मन की उपज इस ठंढक की वजह हो न हो पानी ही होगा ।चांद की चांदनी कितने ही मनो  को शीतल  करता है।  पर यहाँ चांद को  चांद की शीतलता वश याद नहीं किया। वो क्या है कि अपन के नीले ग्रह में पिछले कुछ सालों से पानी 🏄को लेकर हालात खस्ता होते जा रहे हैं इसलिए।भई गांव हो या शहर पानी की बड़ी मारा -मारी है। ऊपर से ये टीवी 📺 वाले और जीने न देते।इनकी पानी वाली खबरें सुन मेरा तो दिल 💘ही बैठ जाता है।घर में बैठे-बैठे ही लू के थपेड़े से लगने लगते हैं।जहां पानी की दिक्कत है वहाँ तो है ही ,जहां नहीं है उनको सुकुन से रहने नहीं देते।
                       पड़ोस वाली शर्मा भाभी ने बताया उन्होंने कोई खबर देखी है जिसमें बताया गया कि चांद में पानी मिलने की पुष्टि हुई है। भई गर्मी में पानी से जुड़ी खबरों पर नजर अपने आप जा पहुंचती।अब तो मैंने भी सोच लिया है कौन रोज -रोज पानी की किल्लत से दो चार होये।सुबह-शाम पानी की मोटर चला-चला चेक करते रहो.......सुबह तो नींद में आंखें 👀मलते उठना और कई बार इतनी नींद में होते हैं कि दीवारों से भी भिड जाते हैं ।ये हाल तो मध्यम वर्गीय परिवारों का है ।निम्न वर्ग को तो यह सौभाग्य हर दो या तीन दिनों में ही मिल पाता है ।हां धनी वर्ग इस सौभाग्य से वंचित रह जाते हैं क्यों....क्योंकि आपको पता ही है,क्योंकि उनके पास ऐश ओ आराम की सारी चीजें उपलब्ध हैं इसलिए।
                   खैर पानी को ढूंढते -ढूंढते पृथ्वीवासी चांद और चांद के पार मंगल तक पहुँच चुके।पृथ्वी में पानी के दिन लद गये और लोगों के भी। अन्नदाता मर रहा है और अन्न लुप्त होता जा रहा है।लोग बिन पानी प्यास से मर रहे हैं।जानवरों को अपना भोजन मतलब घास नसीब नहीं हो रही ।जानवर भी भूख और प्यास से मर रहे हैं।इसके बावजूद सरकारें मस्त और जिनको पानी नसीब वो लोग खुशनसीब।वैसे हर चुनाव में पानी की अहम भूमिका रहती है ।अब तक पानी न जाने कितनों को पानी पिला चुका है ।और जो जितने घाटों का पानी पी चुका वो उतना ही सयाना होता है।कुछ लोग जो ज्यादा भाग्यशाली होगे वो लोग धरती में पानी लुप्त होने के बाद चांद, मंगल व उन ग्रहों में जा सकने में सफल होंगे।
               क्यो पानी का धोहन लगातार किया जा रहा है कोइ समझने को नहीं तैयार आने वाले समय में किन परिस्थितियों का सामना करना होगा इस हकीकत से अनभिज्ञ हैं ।प्रकृति से छेडछाड की कीमत हम सभी को चुकानी ही पड़ेगी और जिसकी शुरूआत हो चुकी है।बेमौसम असमय बरसात ☔,ठंड का न पड़ना,सूखा पड़ना ये सब मानव जगत को चेताने का काम है पर अफसोस हम सब सो रहे हैं और सोते -सोते मर जायेंगे।पर हम अब भी हाथ में हाथ धरे हो रहे हैं।भारत सहित विश्व के कई बड़े इलाके सालों से सूखे से जूझ रहे हैं ।सुनने में आया है कुछ सालों मे सुखे और पीने के पानी की कमी से जूझने वाले लोगों की संख्या अरबों के पार होगी।
              खैर अपन को क्या!!अपन के घर तो अभी धका-धका पानी आ रहा है बॅास, जब तक अरबों वाली गिनती में मेरा नाम शामिल होने का नंबर आयेगा तब तक मैं अपना बैग लगा चुकी होऊंगी, और चांद या चांद से आगे मंगल तक जाने को।आप सब भी सोच लीजिए की आपको क्या करना है यही रहना है या चांद के पार चलना है।

4/07/2016

रिश्ता( व्यंग्य कविता)

जिन्दा रिश्ते हो बेजान, तो चिन्ता वाजिब है ग़ालिब।
 दुश्मन भी अपने हो जाते  हैं, मुर्दा  बनने के  बाद॥

 हो रिश्तों के कर्जदार तुम, कर लो बराबर हिसाब ।             जस्ने दौर थम जातेहैं ढूढोगे हमे भीड़ छटने के बाद॥

सब ही तो हैं राहबर,हम अनोखे और तुम बेहिसाब।
संगेराह बन  जाते  हैं सब  ही आजमाने    के  बाद"॥शशि पाण्डेय 

इंसान हूँ मैं( व्यंग्य कविता)

राम ना सही पर मैं रावण भी नहीं हूँ,
जीत ना सकूं मैं वो कायर भी नहीं हूँ,
हर राग में हो सिर्फ अपना ही फ़साना,
ऐसी महफ़िल का मैं शायर भी नहीं हूँ.
बारिश की बूंदों से सिंचती है ये धरती,
बादल ही सही, जो मैं पूरा सावन नहीं हूँ,
जीवन छोटा तो है पर दिल बेचारा नहीं हूँ,
दरिया सिमटा तो है जो बहती धारा नहीं हूँ.
ऐसा सागर ही क्या जिसका किनारा न हो,
ऐसा सूरज भी क्या जिससे उजाला न हो,
फैला दुखड़ों का सारा यहाँ सैलाब सा है,
ऐसी आहट भी क्या जिससे इशारा न हो.
इतना बिखरा पड़ा अपना संसार क्यों है,
दाम देने को बेताब यह बाज़ार क्यों है,
अपने सपनों को ढहने से पहले बचालो,
मजबूती से उठने की हिम्मत जुटालो,
दुनिया हकीकत की ऐसी बयानी भी होगी,
जहां राम भी होंगे रावण की कहानी भी होगी.

सुन मेरे पूरे( व्यंग्य कविता)

सुन मेरे पूरे, मैं तेरी
आधी "अर्धांगिनी"
तू कहलाता नर
मैं  कहलाती "नारी"
तू मुझसे बालिश्त
मैं तुझमें ही समाती
मेरी तुझसे होड़ नहीं
खुद को तुझ में ही ढालती
मुझसे ही तू बनता
और दुनिया मुझे बनाती
 तू है मेरा अवशेष
 मुझमें मेरा बचा न शेष
इठलाती-ठिठलाती
फिर तुझसे टकराती
दुनिया तेरी और मेरी
फिर तेरी मंशा मुझे डराती
ताक-ताक तुझको
टूक-टूक मैं जीती
तेरे ही सब खेल
नजरें तेरी मुझे लुभाती
तू सागर मैं नदिया
जाऊँ तुझ में बहती।।

सोशल मीडिया विद त्यौहार( व्यंग्य लेख)

कल मैने बहुत पटाखे फोडे पर बिना किसी प्रदूषण के,बहुत सारी मिठाइयाँ खायी पर वजन बिलकुल नहीं बढाया।वैसे प्रदूषण मुक्ति व मोटापे से मुक्ति के लिए ये अच्छा विकल्प है। क्या आपको मालुम है कैसे????इसका श्रेय जाता है सोशल मीडिया को। कल कौन सा त्यौहार है अब यह जानने के लिए कलेन्डर देखना या किसी मन्दिर जा कर पंडित जी से पता लगाना यह बीते दिनों की बातें हो चुकी है। आपको त्यौहारो के पूर्व संध्या पर पता चल जाएगा कि कल कौन सा त्यौहार मनाया जाने वाला है।  सोशल मीडिया का जमाना है समाज  बदल रहा है और हम सब भी।आज अस्सी प्रतिशत युवा सोशल नेटवर्क पर हैं, शोध तो यह भी बताते हैं कि दिन में इन माध्यमों के अभ्यासी 111 (एक सौ ग्यारह) बार मोबाइल चेक करते हैं। हालांकि इसकी महान कार्यों मे गिनती नही की जाती। आज देश के लगभग 22 करोड़ लोग इंटरनेट पर हैं। सच इतनी सक्रियता तो हमने घर में मिठाई चुरा कर खाने में भी नहीं दिखाई जितनी सोशल साइड्स में दिखाते हैं। मैं पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ थी सो बाहर निकलना नहीं हो पाया और कुछ पता भी नहीं चल रहा था बाहर क्या हो रहा है वो तो भला हो फोन देवता का मै सोशल साइट्स पर जान पायी की कल होली है ,खैर मैं मारकेट नहीं गयी तो क्या मैंने होली की तैयारी बहुत अच्छी तरह कर ली है। होली के बहुत अच्छे- अच्छे वालपेपर्स डाउनलोड कर लिये हैं।  मिठाइयों और रंगों के साथ में होली के गाने भी डाउनलोड कर लिये अब तो बस इन्तजार है किसी के विश करने का बदले में तपाक से वालपेपर दे मारूँगी सच कितना अच्छा है न सब ......न पैसो की बरबादी न पानी की ।वैसे पानी बचाओ का भी श्लोगन सेव कर लिया है उसको भी पोस्ट करूँगी ताकि लगे मैं जागरूक नागरिक हूँ। वास्तविकता तो यह है कि समाज में  त्यौहारों का उद्देश्य और गरिमा बची ही नहीं ।वास्तविकताओं से दूर लोगों को आभासी दुनिया अच्छी लगने लगी है।त्यौहारों के आते ही सोशल नेटवर्किंग साइड्स संदेशों और उनसे जुड़ी सूचनाओं से पाट दिये जाते हैं।और हमारी संवेदनाये बदलती तारीख के जैसे पल भर में त्यौहारों की सजीवता को भंग कर ,रौंदकर आगे निकल जाती हैं।हमारे त्यौहारो में हमारे समाज की एकता और अखंडता की जड़ें समाहित हैं।इनका सिर्फ बाजारवाद करना दुर्भाग्यपूर्ण है।वर्तमान समय त्यौहारों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है एक तो समय के कमी की और दूसरी सोशल बाज़ार की।समय की समास्या के चलते लोग मिल नहीं पाते और कुछ निश्चितंता सोशल मीडिया के माध्यम से नजदीक होने का आभास।खैर आप सब कहीं ये तो नहीं समझ रहे कि मैं सोशल मीडिया में त्यौहार मनाये जाने   के विरुद्ध हूँ।तो आप बिल्कुल सही सोच रहे हैं मैं एक हद तक ही इसके समर्थन में हूँ।हमें सोशल मीडिया में त्यौहार मनाने के साथ-साथ जमीनी स्तर पर एक जुट होकर त्यौहारों की खुशी मनानी चाहिए।तो चलिये इसी के साथ के अपनी लेखनी को विराम देती हूँ अरे भई पता चला है कल रामनवमी है सब को बधाई देनी है और पूजा सामग्री कीव पूजन करते हुए फोटो ले फोटो भी पोस्ट करनी है ।फिर मिलते हैं......राम-राम।        

मोटापाभक्ति( व्यंग्य लेख)

गर्व से कहो हम मोटे हैं
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क्रिकेट के बाद मोटापा ही एक ऐसी चीज़ हैं जिस पर कोई भी आम भारतीय विशेषज्ञ की तरह राय दे सकता हैं। दरअसल मोटापा वो तत्व हैं जिसे देखते ही सामने वाले के भीतर बैठा डॉक्टर जाग उठता हैं और तत्काल वो गिरीश चंद्र से रायचंद्र बन जाता हैं। खुद को भले ही चकुंदर और शलगम का  अंतर तक ना पता हो लेकिन आपको खाने पीने की ऐसी ऐसी सलाहें परोसता हैं मानो भाई साब झूलेलाल किराना स्टोर के मालिक नहीं कोई जिम ट्रेनर हो। 

कभी -कभी लोग योगा के योग -जोग सिखाने पर भी उतारू हो जाते हैं ।क्या करें भला ऐसे राम देवों का ? अरे मोटापा ही तो ही तो है कौनो मैगी तो नही जो नकसान जावे पै बड़े भइया लोगन को कौन समझावै।

कभी कभी लगता है बाल गंगाधर तिलक गलत थे जो 'स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है' जैसा नारा दे गए...नारा होना चाहिए था 'दुसरो के फट्टे में टांग डालना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है'. माँ द्वारा घी में चुपोड़ी गयी बेहिसाब रोटियां, छगन हलवाई के नियमित रूप से समोसे व कचौरी, बाज़ार में मिलने वाले एक से एक स्वादिष्ट जंक फ़ूड, रोज़ाना 14 घंटे की प्यारी नींद और ना जाने कितने बेहिसाब परिश्रम के बाद इतनी प्यारी तोंद मिलती है उसका सुख वो लोग क्या जाने जो आज भी 28 कमर वाली जीन्स में ही अटके हुए है। 

तोंद हमें मिलती है अपने परिश्रम व लगन के बलबूते पर...पर इसे देख सामने वाला ऐसे जल उठता है मानो आपने उसके हिस्से का छीन कर खाया हो। तोंद अईसनै नहीं बनती उसके खातिर बैठ -बैठ कर तरह -तरह की चीजन को सूडना पड़ता है । स्वाद ले ले कर खाना पड़ता है । तब जाकर मोटापा आता है ।

चर्बी बढ़ने के साथ जो ग्लो आपके शरीर मे दिखता है वो सुखड्डे लोगों मे कहाँ...मोटापा सुंदर त्वचा का पर्याय है । 

भिया, मोटापे के भी अनेक फायदे है। आप अपनी बीवी के साथ निकलो किसी की मज़ाल नहीं कि बीवी को छेड़ सके। आप पति कम बॉडीगार्ड ज्यादा नज़र आते है। बीवी मोटी हो तो डर नहीं सताता कि उसका कही अफेयर होगा। आप मोटे हो तो आपको ये बताने की जरुरत नहीं कि आपकी सैलेरी अच्छी है और आप खाते पीते घर से हो। बेफिक्र होकर आप रक्तदान कर सकते साथ ही आपके शरीर में इतना खून होता है कि आप मच्छरों को भी भोजन करा सकते जो पतले लोगो के बस का नहीं, वो तो 4 मच्छर को खून पिलाये तो उन्हें 2 बोतल खून चढ़ाना पड़ जाएगा।

पतले लोग मोटे लोगो पर तंज तो यूँ कसते है मानो धरती की आधी समस्यायों के लिए हम ही जिम्मेदार है। भाई मेरे, तुमने पतले होकर क्या तीर मार लिया...कौन सा ओबामा तुम्हारे साथ बैठ कर तीन पत्ती खेलता है। आप ही बताइये किस क्षेत्र में मोटे लोग नहीं है...क्या हनी सिंह नुसरत फ़तेह अली खान से अच्छा गायक है, क्या शिखर धवन सनथ जयसूर्या से अच्छे बल्लेबाज़ है, क्या अनिल अम्बानी मुकेश अम्बानी व विजय माल्या से ज्यादा अमीर है और क्या मिथुन दा गणेश आचार्य से अच्छे डांसर है...बोलिये ?

अपने मोटापे पर शर्म नहीं गर्व कीजिये...हमारे कारण ही बाबा रामदेव ने नाम कमाया है...लोग मोटे ना होते तो वो योग किसे सिखाते...राजपाल यादव को या अमिताभ बच्चन को । हम जैसे मोटे लोगों के कारण ही कितने डॉक्टर व जिम वालों की रोज़ी रोटी चल रही है। माना हम तेज़ दौड़ नहीं सकते पर तेज़ दौड़ के हमें कौन सा काला धन लाना है। हम हर काम आराम और सुविधा अनुसार ही करते हैं ।

मोटापा आपको अच्छी व गहरी नींद देता है...बढ़ता मोटापा आपको हर महीने नए कपडे खरीदने का मौक़ा देता हैं।अत: मोटापा श्राप नहीं वरदान
है, तोंद और मोटापा शर्म नहीं ईश्वर का प्रसाद है। शर्माइये मत...गर्व से कहिये हम मोटे हैं। जय हो ।
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