4/07/2016

रिश्ता( व्यंग्य कविता)

जिन्दा रिश्ते हो बेजान, तो चिन्ता वाजिब है ग़ालिब।
 दुश्मन भी अपने हो जाते  हैं, मुर्दा  बनने के  बाद॥

 हो रिश्तों के कर्जदार तुम, कर लो बराबर हिसाब ।             जस्ने दौर थम जातेहैं ढूढोगे हमे भीड़ छटने के बाद॥

सब ही तो हैं राहबर,हम अनोखे और तुम बेहिसाब।
संगेराह बन  जाते  हैं सब  ही आजमाने    के  बाद"॥शशि पाण्डेय 

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