4/07/2016

सोशल मीडिया विद त्यौहार( व्यंग्य लेख)

कल मैने बहुत पटाखे फोडे पर बिना किसी प्रदूषण के,बहुत सारी मिठाइयाँ खायी पर वजन बिलकुल नहीं बढाया।वैसे प्रदूषण मुक्ति व मोटापे से मुक्ति के लिए ये अच्छा विकल्प है। क्या आपको मालुम है कैसे????इसका श्रेय जाता है सोशल मीडिया को। कल कौन सा त्यौहार है अब यह जानने के लिए कलेन्डर देखना या किसी मन्दिर जा कर पंडित जी से पता लगाना यह बीते दिनों की बातें हो चुकी है। आपको त्यौहारो के पूर्व संध्या पर पता चल जाएगा कि कल कौन सा त्यौहार मनाया जाने वाला है।  सोशल मीडिया का जमाना है समाज  बदल रहा है और हम सब भी।आज अस्सी प्रतिशत युवा सोशल नेटवर्क पर हैं, शोध तो यह भी बताते हैं कि दिन में इन माध्यमों के अभ्यासी 111 (एक सौ ग्यारह) बार मोबाइल चेक करते हैं। हालांकि इसकी महान कार्यों मे गिनती नही की जाती। आज देश के लगभग 22 करोड़ लोग इंटरनेट पर हैं। सच इतनी सक्रियता तो हमने घर में मिठाई चुरा कर खाने में भी नहीं दिखाई जितनी सोशल साइड्स में दिखाते हैं। मैं पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ थी सो बाहर निकलना नहीं हो पाया और कुछ पता भी नहीं चल रहा था बाहर क्या हो रहा है वो तो भला हो फोन देवता का मै सोशल साइट्स पर जान पायी की कल होली है ,खैर मैं मारकेट नहीं गयी तो क्या मैंने होली की तैयारी बहुत अच्छी तरह कर ली है। होली के बहुत अच्छे- अच्छे वालपेपर्स डाउनलोड कर लिये हैं।  मिठाइयों और रंगों के साथ में होली के गाने भी डाउनलोड कर लिये अब तो बस इन्तजार है किसी के विश करने का बदले में तपाक से वालपेपर दे मारूँगी सच कितना अच्छा है न सब ......न पैसो की बरबादी न पानी की ।वैसे पानी बचाओ का भी श्लोगन सेव कर लिया है उसको भी पोस्ट करूँगी ताकि लगे मैं जागरूक नागरिक हूँ। वास्तविकता तो यह है कि समाज में  त्यौहारों का उद्देश्य और गरिमा बची ही नहीं ।वास्तविकताओं से दूर लोगों को आभासी दुनिया अच्छी लगने लगी है।त्यौहारों के आते ही सोशल नेटवर्किंग साइड्स संदेशों और उनसे जुड़ी सूचनाओं से पाट दिये जाते हैं।और हमारी संवेदनाये बदलती तारीख के जैसे पल भर में त्यौहारों की सजीवता को भंग कर ,रौंदकर आगे निकल जाती हैं।हमारे त्यौहारो में हमारे समाज की एकता और अखंडता की जड़ें समाहित हैं।इनका सिर्फ बाजारवाद करना दुर्भाग्यपूर्ण है।वर्तमान समय त्यौहारों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है एक तो समय के कमी की और दूसरी सोशल बाज़ार की।समय की समास्या के चलते लोग मिल नहीं पाते और कुछ निश्चितंता सोशल मीडिया के माध्यम से नजदीक होने का आभास।खैर आप सब कहीं ये तो नहीं समझ रहे कि मैं सोशल मीडिया में त्यौहार मनाये जाने   के विरुद्ध हूँ।तो आप बिल्कुल सही सोच रहे हैं मैं एक हद तक ही इसके समर्थन में हूँ।हमें सोशल मीडिया में त्यौहार मनाने के साथ-साथ जमीनी स्तर पर एक जुट होकर त्यौहारों की खुशी मनानी चाहिए।तो चलिये इसी के साथ के अपनी लेखनी को विराम देती हूँ अरे भई पता चला है कल रामनवमी है सब को बधाई देनी है और पूजा सामग्री कीव पूजन करते हुए फोटो ले फोटो भी पोस्ट करनी है ।फिर मिलते हैं......राम-राम।        

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