6/24/2015

प्यार के दो बोल (कहानी)

एक कहानी ~मेरी ज़ुबानी
              उस बुज़ुर्ग की नज़र जाने क्या मुझ में आते जाते निहारती !!बात यूँ है मेरे घर से निकलते ही कुछ ही दूरी पर मेरी सहेली का घर और हम दोनो कुछं समय पहले एक ही स्कूल में पढ़ाते थे अक्सर हमारा स्कूल आना जाना साथ होता । बातो -बातो में पता चला वो बुज़ुर्ग मेरी सहेली के जानने वाले और  पडोसी हैं ।आधुनिकता के दौर में एकल परिवार का चलन और ऊपर से मेट्रो शहर का रहन -सहन का असर था कि उस बुज़ुर्ग की जिसकी पत्नी कुछ दिनों पहले दुनिया से रुखसत हो चुकी थी ,उसकी अपनी एकलौते बहु -बेटे से नहीं बनी या बहु -बेटे की बुज़ुर्ग से नही ऐसे में क्या होना था उनको छोड़ बहू -बेटा अलग रहने लगे अब वो बुज़ुर्ग नितांत अकेले पड़ चुके थे हालाँकि आर्थिक रूप से जहा तक लगता था देखने से उनको सहायता मिल रही थी ..अब वो बुज़ुर्ग घर के बाहर अकेले बैठे आने जाने वालो लोगो को ताकते रहते थे जैसे चाहते थे कोई उनसे उनका हाल चाल पूछ ले या प्यार के दो बोल ,बोल दे । मेरा और मेरी सहेली का जब सामना होता ..सहेली उनके पैर छु उनको प्रणाम करती मै न जानते हुए भी जब वो मेरी ओर देखते तो मै हाँथ जोड़ नमस्ते कर देती फिर कई बार मेरा अकेले भी उनसे सामना हुआ एक दो बार मै उनको अनदेखा करते हुए सामने से निकल गई हालाँकि मुझे ऐसा करते बुरा लगता पर जाने क्यू शहरो में रहते -रहते हम कभी -कभी बिना वजह की बातो में भी झिझकते हैं खैर एक दिन निकलते हुए मेरे बिना नमस्ते बोले ही नज़र मिलते ही उन्होंने दूर से ही मेंरे आशीर्वाद में हाँथ हिलाया उस मुझे अपने आप पे बहुत पछतावा हुआ कि उनके लिए मेरा नमस्ते बोलना आत्मिक था ।उस दिन से वो जब मुझे मिलते हैं मै उनको नमस्ते बोलती हु वो मुझे बड़े प्यार से ढेर सारा आशीर्वाद देते हैं । मेरा सिर्फ यही कहना है बुज़ुर्गो  का सम्मान करे प्यार करे उनसे मिलने वाले आशीर्वाद में बहुत सुकून मिलता है और ताकत भी । शशि पाण्डेय

6/19/2015

हक़ का दायरा ( व्यंग्य लेख )2

कभी कोई बच्चा रोता हुआ आज भी दिखता है ज़हन में तुरंत जाने कितने सवालो की गांठे खुलने लगती हैं । बचपन में मेरे पड़ोस में रहने वाली बच्ची रश्मि  कभी -कभी रोते हुए हमारे घर आती और थोडा सा प्यार से पूछने पर घर में हुए संघर्स की कहानी को डरी और सहमी हुई  बड़ी मासूमियत से  खोल कर रख देती ..पारिवारिक कलह । जो कि वो जानती भी न थी ये क्या है ,क्यू है । बचपन बीत गया अब तो रश्मि को भी घरेलू हिंसा की समझ हो गयी है । सच तो असल में सिर्फ इतना है ये घरेलू हिंसा किसके लिए है जवाब ढूंढो तो उत्तर मिलता है "महिलाये" । पारिवारिक कलह है  तो आखिर शिकार महिलाये ही क्यू हैं । पुरुष अगर  शिकार होते भी होंगे  तो  भी प्रतिशत बहुत कम होगा । स्वतंत्रता के बाद देश की इतनी प्रगति के बाद भी महिलाओ की स्थिति में न के बराबर सुधार है । जहां तक मै समझती हूँ समाज में जो भी कमजोर है वही हिंसा और गलत व्यवहार का शिकार है । मेरी माँ जो कि शादी के बाद मुझे यही सिखाती आ रही हैं कभी घर में झगडे ही तो शांत रहना या जो भी हो सहन कर लेना । जहाँ हम भाई बहनो की परिवरिश एक सी हुई है तो फिर शादी के बाद ऐसी सीख सिर्फ मुझे क्यू सिर्फ इसलिए की मै औरत थी !!! शायद किसी अंदेशे से बचने और बचाने के लिए । क्या महिलाओ के लिए सहन शीलता के आलावा कोई और विकल्प नहीं ?? हमें कितने कानून और बनाने होंगे समाज में पुरुष की सोच बदलने के लिए । घरो के अंदर औरतो के आत्मविश्वास ..आत्मसम्मान को कैसे बचाया जाये  कोई कानून हो तो उसको भी लागू कर दिया जाये । वैसे हाँथ उठाने या महिलाओ के ऊपर बल प्रयोग की हिम्मत आती कहा से है इसके लिए कोई ट्रेनिंग तो दी नहीं जाती फिर पुरुष इतना हिंसात्मक प्राणी कैसे बन जाता है क्या उनके शरीर में दिल की जगह सिर्फ दिमाग बचता है और ऐसा दिमाग जो उनसे ये सब करवाता है । दलीलें कितनी भी दे पर किरण बेदी सिर्फ दिल्ली तक ही हैं । हकीकत तहे तो आये दिन पेपरों अखबारो खबरों में खुलती रहती हैं । औरतो को समझना होगा उनका अपना हक़ और हक़ का दायरा जितना स्वतंत्र प्राणी समाज में पुरुष है उतनी स्त्री और बात जितना सबको समझना चाहिए उस से कही ज्यादा स्त्री को समझना चाहिए । हम सब जानते हैं गुज़रे ज़माने से लेकर अब तक हमारा समाज सामंती था ऐसे में उन्ही लोगो को दबाया जाता रहा जो किसी न किसी तरह से कमजोर थे । पर कही न कही अफ़सोस ये भी है कि महिलाये भी महिलाओ को दबाने में पीछे नहीं है । समाज में बदलाव निश्चित रूप से बड़ी तेजी से हो रहा है  पर सिर्फ दिखावा है आर्टिफिशियल है असल बदलाव तब होगा जब समाज में हर इंसान को समान अधिकार होगा वो भी संविधान की किताबो में काले अक्षरो में ही नहीं बल्कि लोगो के दिल और दिमाग में भी । समाजिक तौर पर महिलाओ को त्याग , सहनशीलता एवम् शर्मीलेपन का प्रतिरूप माना जाता है । इसके भार से दबी महिलाये चाहते हुए भी अपने ऊपर होने वाले हिंसा का विरोध नही कर पाती है । कुछ मानसिक प्रताड़नाए भी हिंसा के दायरे में आती हैं ।पढ़ी लिखी महिलाये तो अपने हक़ के लिए आवाज़ उठा लेती हो मगर आंचलिक परिवेश में अनपढ़ ,कम पढ़ी लिखी और दबी कुचली महिलाओ के लिए आवाज़ उठाना सोच से भी परे है।
      देश में महिलाओ के अधिकारो के हनन की जाने कितनी तस्वीरे देखने को मिलती हैं ऐसे -ऐसे मामले जहा महिलाये गरिममय पद पर होते हुए हिंसा को रोक न पायी तो आम घरेलू महिलाओ का क्या होता होगा समझ आता है। परिवार की इज़्ज़त की दुहाई देकर यातनाओ को चुपचाप सहने वाली महिलाओ को समझना चाहिए कि डोमेस्टिक वायलेंस वायरस न सिर्फ उन की ज़िन्दगी को वरन् बच्चों की ज़िन्दगी को तबाह कर रहा है । इसलिए सबसे जरुरी यही है कि महिलाये खुद अपने अधिकारो के प्रति जागरूक हो । और अपने साथ हो रहे अत्याचारो के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएं कानून की जानकारी हासिल करे और उसका वाज़िफ इस्तेमाल करे ।

6/12/2015

खौफ़ का दौर ( व्यंग्य लेख)

सुना है पाकिस्तान के प्रधानमंत्री सोते -सोते अचानक से उठ कर बैठ जाते हैं , उनकी रातो की नींद और दिन का चैन गायब हो गया है । कही ये इश्क़ तो नहीं छोडो जी पता लगा इश्क़ नहीं ये भारतीय सेना का खौफ है जिसने शरीफ का चैन उड़ा कर रख दिया । हमारे किसी  भारतीय न्यूज़ चैनल के जैसे पाकिस्तान में सुरक्षा दृष्टि से सतर्क करने वाले रिपोर्टर जरूर होंगे और वहाँ कुछ यूँ बोलते होंगे "अमा मियां चैन से सोना है तो पहले जाग जाओ " पर पाकिस्तान में कितना जागे आखिर कभी यहाँ बम तो कभी वहाँ बम उनके यहाँ तो वेसे ही चहल -पहल लगी ही रहती है । पर अभी जो हालात शरीफ़ जी के हैं जग जाहिर है और हो भी क्यू न भारत की सैन्य बल ने जो कर दिखाया उससे पडोसी देशो की नींद उड़ना लाज़मी है उसपे भी ऐसे पडोसी जिनकी नइया ही दूसरों को डुबा कर पार होती हो । यहाँ तक की अमेरिका के पूर्व राजदूत ने भी पाकिस्तान को आगाह किया है कि जो रवैया पाकिस्तान करता आ रहा है उसे छोड़ दे वरना जवाबी कारवाही की जायेगी  ।अब मालूम नहीं अमेरिका छोड़ने के लिए बोल रहा है या नए तरीके आज़माने की सलाह दे रहा है । पाक चचा कहे कुछ भी पर डरे तो हैं । और इधर (भारत) में तमाम सरकार बिरोधी दल के लोग पानी पी -पी कर कोस रहे हैं ...आपस में भले एक दूसरे को कोसो पर चचा लोगो , कम से कम सेना का मनोबल तो बढ़ाओ वो बेचारे अपना सब छोड़ कर हमारी आपकी सेवा और सुरक्षा  में लगे रहते हैं ,आये दिन मौत से मुकबला करते हैं तो कभी जंग में  मौत से हार भी जाते हैँ । म्यांमार में उग्रवादियो के खिलाफ कार्रवाई की खबरे आई तो तो इस अप्रत्याशित अभियान से जुडी कई घटनाये सामने आई । इस खुलासे में पता लगा की सेना को दो टूक आदेश दिया गया कि उग्रवादियो के कैंपो को सीधा निशाना बनाया जाये और उन्हें नष्ट किया किया जाये । हालाँकि सेना और सरकार दोनों को ही पता था ये काम मुश्किल भरा और म्यांमार की सीमा से लगा हुआ था पर सेना को तो साहब बस जरुरत होती है तो एक आदेश की फिर उसकी सफलता उसके हौसले बताती है । हालाँकि ऐसे अभियान पहले भी होते रहे हैं पर क़सम पाकिस्तान की चचा "56 इंच के सीने वाला गर्व "  अभी ही हुआ देश को शायद ये मोदी का असर है । खैर बधाई के पात्र सरकार और सरकार से ज्यादा सेना है । चलो कम से कम उगरवादियो एक सन्देश तो गया ही कि सुरक्षा बल या आम जनता को अगर निशाना बनाया गया और उनको किसी भी तरह का नुकसान पहुचाया गया तो उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी । वेसे हमारे दुश्मनो के लिए ये बहुत अच्छा सन्देश है कि अगर कुछ किया तो जवाबी कारवाही की जायेगी और करारा जवाब दिया जायेगा । इन्ही सब हालातो से घबराये हुआ पाकिस्तान ने अपने यहाँ सीनेट में बैठक तक बुला डाली और तो और भारत की कड़े शब्दों में निंदा तक कर डाली जो की हमारे यहाँ भी राजनेता अब तक समय -समय पर करते रहते हैं । तो वही हमारे कांग्रेसी आकाओ का कहना है ये शेखी बघारना है भई ये क्या बात हुई तू -तू ,मै -मै करना ठीक है पर बात देश की सुरक्षा की हो तो ये ठीक नहीं । धर्मिक कट्टरता तो ठीक नहीं पर , देशिक कट्टरता जरुरी है । सोचने वाली बात है कि एक अभियान ने हमारे देश को दुनिया के किस पायदान पे लाकर खड़ा कर दिया...देश विदेश सोचने को मज़बूर हो चले हैं लोग चर्चा करने और बयान देने को मज़बूर हो चुके हैं । अब इसको डींगे मारने का असर कहे या शेखी बघारना । पाकिस्तान का रुख और बयानबाज़ी को देख कर तो साहब यही लगता है जी चोर की दाड़ी में तिनका । अब देखना होगा कि नापाक पाक अपने बदमाश ,बदनाम इरादों से बाज़ आएगा या दहशत गर्दी के नए आयाम ढूंढेगा । अमां शरीफ़ मियां ये सारी खाज़ खुज़ली छोडो और अमन चैन की पैरवी करो और दुसरो के घर में ताक झांक से बाज़ आओ और "वसुधैब कुटुंबकम" की भावना लाओ । शशि पाण्डेय ।

6/09/2015

बदलाव ( कहानी)

पड़ोस की रह वाली सपना की शादी बड़ी धूम -धाम  ई थी आखिर होती भी यू न घर की बड़ी टी जो थी पर शायद माँ-बाप को छोड़ कर सबको पता था वो कसी  साथ प्रेम सबध  थी खैर शादी ई ..मधुर दापय की शुआत भी हो गई कुछ ही दन  सपना की गोद भरी और यारी सी टी की उन आँगन  कलकारयाँ गूंजी सभी बत खुश  । पर इस बाद  जिंदगी  जो करवट ली उसका अंदाज़ा कसी को न था , सपना का पूव यार फर उस साम आ खड़ा आ और वो न चाह ए अपनी प्रेम कहानी फर शु कर दी दन बी यार की प बढ़ी और एक दन सपना  पत को इसकी भनक लगी उस बाद जो बा आप मन  आ रही  जी हाँ बलकुल वही नह आ सपना  पत  सपना को बच की तरह समझाया उसकी नया वो  जो वतमान  !! शायद वो समझ कर भी समझना नह चाहती थी या उस दल पर उसका जोर नह पर इस उलट सपना इस बात  अनिभ थी की उसका यार ...यार नह एक पुष का छलावा था काश क वो इस हकीकत को समझ पाती । आखिर त्रीका मन सदनाओं ..सभावनाओ..और भावनामक प  हद सदनशील होता  इस नतीजतन वो धोखा खा जाती  ।बात आ बढ़ी सपना उन दन बारा माँ बन वाली थी और पत  खुद आग लगा कर सोसाइड कर की कोशिश की और ज़िदगी की लड़ाई लड़ -लड़ हार गया और गहरी नद हशा  लिए सो गया इस बाद सपना की अली ज़िदगी और सपना  प्रेमी  अपनी नया बसा ली यू की समाज  रह सपना की सरी शादी वो भी पूव प्रेमी  ता जमीन पर ला जैसा था । अब बात क तो समाज  यार और यार कर वालो को आखिर समाज  वीकृत यू नह  ऐ रीत रवाज़ कस काम  जिस जिंदगयाँ ख़म हो जा  खोख दखा मा  या समाज की वसंगतय समात हो जागी ।भारत  तरकी  नाम जगमगा मॉल और ब मंजिला इमारत  आलावा कुछ भी तो नह बदला ...लोग मॉडन ह ल  'लुकंग कूल डूड' कहला ल  पर या इन कूल डूडो की मानसकता बदली   भी एक लड़की या महला को ठीक  ही घूर  जै एक र वाला हाँ पहनावा ओढ़ावा जर मॉडन हो गया । कोई घटना घटती  लोग कुछ दन चच कर  प्राइम टाइम  बहस ...कडल माच और हालात फर वही जस  तस । कुछ समुदाय वष तो इन प्रेम संग  रत  नपट लिए हर सीमा को लाँघ जा  । इन घटनाओ  ऊपर फ भी बनी और इन फमो को लोगो  दल खोल कर सराहा भी पर बात जब कसी बदलाव को अपना की हो तो लोग समाज  आ बढ़  बज़ाय आदकाल  पहुँच जा  ..आखिर बदलाव  बयार  लोग कब बहकर पी न जा  लिए आ आएं ।