एक कहानी ~मेरी ज़ुबानी
उस बुज़ुर्ग की नज़र जाने क्या मुझ में आते जाते निहारती !!बात यूँ है मेरे घर से निकलते ही कुछ ही दूरी पर मेरी सहेली का घर और हम दोनो कुछं समय पहले एक ही स्कूल में पढ़ाते थे अक्सर हमारा स्कूल आना जाना साथ होता । बातो -बातो में पता चला वो बुज़ुर्ग मेरी सहेली के जानने वाले और पडोसी हैं ।आधुनिकता के दौर में एकल परिवार का चलन और ऊपर से मेट्रो शहर का रहन -सहन का असर था कि उस बुज़ुर्ग की जिसकी पत्नी कुछ दिनों पहले दुनिया से रुखसत हो चुकी थी ,उसकी अपनी एकलौते बहु -बेटे से नहीं बनी या बहु -बेटे की बुज़ुर्ग से नही ऐसे में क्या होना था उनको छोड़ बहू -बेटा अलग रहने लगे अब वो बुज़ुर्ग नितांत अकेले पड़ चुके थे हालाँकि आर्थिक रूप से जहा तक लगता था देखने से उनको सहायता मिल रही थी ..अब वो बुज़ुर्ग घर के बाहर अकेले बैठे आने जाने वालो लोगो को ताकते रहते थे जैसे चाहते थे कोई उनसे उनका हाल चाल पूछ ले या प्यार के दो बोल ,बोल दे । मेरा और मेरी सहेली का जब सामना होता ..सहेली उनके पैर छु उनको प्रणाम करती मै न जानते हुए भी जब वो मेरी ओर देखते तो मै हाँथ जोड़ नमस्ते कर देती फिर कई बार मेरा अकेले भी उनसे सामना हुआ एक दो बार मै उनको अनदेखा करते हुए सामने से निकल गई हालाँकि मुझे ऐसा करते बुरा लगता पर जाने क्यू शहरो में रहते -रहते हम कभी -कभी बिना वजह की बातो में भी झिझकते हैं खैर एक दिन निकलते हुए मेरे बिना नमस्ते बोले ही नज़र मिलते ही उन्होंने दूर से ही मेंरे आशीर्वाद में हाँथ हिलाया उस मुझे अपने आप पे बहुत पछतावा हुआ कि उनके लिए मेरा नमस्ते बोलना आत्मिक था ।उस दिन से वो जब मुझे मिलते हैं मै उनको नमस्ते बोलती हु वो मुझे बड़े प्यार से ढेर सारा आशीर्वाद देते हैं । मेरा सिर्फ यही कहना है बुज़ुर्गो का सम्मान करे प्यार करे उनसे मिलने वाले आशीर्वाद में बहुत सुकून मिलता है और ताकत भी । शशि पाण्डेय
उस बुज़ुर्ग की नज़र जाने क्या मुझ में आते जाते निहारती !!बात यूँ है मेरे घर से निकलते ही कुछ ही दूरी पर मेरी सहेली का घर और हम दोनो कुछं समय पहले एक ही स्कूल में पढ़ाते थे अक्सर हमारा स्कूल आना जाना साथ होता । बातो -बातो में पता चला वो बुज़ुर्ग मेरी सहेली के जानने वाले और पडोसी हैं ।आधुनिकता के दौर में एकल परिवार का चलन और ऊपर से मेट्रो शहर का रहन -सहन का असर था कि उस बुज़ुर्ग की जिसकी पत्नी कुछ दिनों पहले दुनिया से रुखसत हो चुकी थी ,उसकी अपनी एकलौते बहु -बेटे से नहीं बनी या बहु -बेटे की बुज़ुर्ग से नही ऐसे में क्या होना था उनको छोड़ बहू -बेटा अलग रहने लगे अब वो बुज़ुर्ग नितांत अकेले पड़ चुके थे हालाँकि आर्थिक रूप से जहा तक लगता था देखने से उनको सहायता मिल रही थी ..अब वो बुज़ुर्ग घर के बाहर अकेले बैठे आने जाने वालो लोगो को ताकते रहते थे जैसे चाहते थे कोई उनसे उनका हाल चाल पूछ ले या प्यार के दो बोल ,बोल दे । मेरा और मेरी सहेली का जब सामना होता ..सहेली उनके पैर छु उनको प्रणाम करती मै न जानते हुए भी जब वो मेरी ओर देखते तो मै हाँथ जोड़ नमस्ते कर देती फिर कई बार मेरा अकेले भी उनसे सामना हुआ एक दो बार मै उनको अनदेखा करते हुए सामने से निकल गई हालाँकि मुझे ऐसा करते बुरा लगता पर जाने क्यू शहरो में रहते -रहते हम कभी -कभी बिना वजह की बातो में भी झिझकते हैं खैर एक दिन निकलते हुए मेरे बिना नमस्ते बोले ही नज़र मिलते ही उन्होंने दूर से ही मेंरे आशीर्वाद में हाँथ हिलाया उस मुझे अपने आप पे बहुत पछतावा हुआ कि उनके लिए मेरा नमस्ते बोलना आत्मिक था ।उस दिन से वो जब मुझे मिलते हैं मै उनको नमस्ते बोलती हु वो मुझे बड़े प्यार से ढेर सारा आशीर्वाद देते हैं । मेरा सिर्फ यही कहना है बुज़ुर्गो का सम्मान करे प्यार करे उनसे मिलने वाले आशीर्वाद में बहुत सुकून मिलता है और ताकत भी । शशि पाण्डेय
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