सारे आंदोलन रैलियां ठंडी पड़ी,सभी क़दमताल कर रहे हैं , घोषणापत्र वायदे...ठंडे बस्ते मे काले धन की वापसी गयी तेल लाने ....घोटालों के मामले भी पी०एम० शाम ढले ही विदेश से लौटते है,दिन भर विदेश मंझा कर क्योंकि वे पी एम हैं ....ए एम नहीं । उधर विहार के सफेद पोश "ठुल्ले" रैली का झोल कर रहे हैं ,तो कोई कृष्ण कन्हैया बन कालिया नाग को कुचलने की बात कर रहा है ,तो कजरी दिल्ली को कालिख लगाते-लगाते जाने किस स्तर पर छोड़गे । और भारत की सुरक्षा व्यवस्था लीलने को मुह बाये खड़ा चारो तरफ से आंतकवाद उसने भी मदमस्त जनता फ्री-फ्री पाने के लिये हाय तौबा मचाते सीना पीटते अब क्या करें ???? और घोटालों की तो बात ही क्या करना शायद ही कोई दल और सफेद पोश इससे अछूता हो । आखिर जनता अधिकार के साथ सत्ता सौपती है तो सत्ता के वित्त को चित्त करना नेता गिरी के व्यवसाय का परम धर्म है । पता नहीं संकट सियासत का है या देश का,सब भेड़ चाल में मस्त हैं । सदन नहीं चलने देने का ठीकरा एक -दूसरे के सिर फोडते दल यूँ लगता है जैसे दोनों की साठगाँठ पहले से ही हुई होती है। खैर ये तो इनका जन्मसिद्ध अधिकार है तमाशाबाज़ी कर -कर के तो संसद तक ये सपेरे पहुंचे हैं ,नागिन नाच तो बनता है।
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