7/18/2015

लेखन मे व्यंग्य जरुरी क्यों !!(लेख )


व्यंग्य ऐसी विधा है जिसमे हल्के -फुल्के मनोरंजन के साथ सामाज़ से रुबरू कराया जाता है| व्यंग्य रचनाये हमारे मन मे गुद्गुदी पैदा करने के साथ -साथ वस्तविक्ताओ से दो चार भी कराती है| इस विधा से हर व्यक्ति आसानी से जुड जाता है और रोमंचित व आनंदित हो समस्याओ के प्रति कही न कही सज़ग होता है | चरमराती समाज़िक व राज़नैतिक व्यवस्था और बीच मे पिसता देश का सामान्य जन मानस इस विधा के माध्यम से अपने आंतरिक  विचार व भावनाओ को शब्दो के जरिये उकेर पाता है | व्यंग्य लेखन का एक ऐसा माध्यम है जिसके कंधे पर बंदूक तान पाखंड,सामाज़िक रूढी वादिता पर बिना ठेस पहुंचाये कटाक्ष किया जाता है | चलते -फिरते हर मोड पर कही न कही जीवंतता बनाये रखने के लिये व्यंग्य , कटाक्ष की कोइ न कोइ पुट या शब्द हमे खिलखिलाने के लिये मज़बूर कर देती है| ये कही सीधे तो कही घुमाकर शब्दो कि ताबडतोड बरसात है जो विविधता से ज़ादुइ असर छोडता है,इसमे लेखक या पाठक या अन्य किसी को इंकार नही होता | एक आम का पेड ,दूसरा करेले का पौधा जिस प्रकार इन दोनो का स्वभाव अलग -अलग होता है ...एक स्वास्थ्य के लिये उपयोगी दूसरा स्वाद के लिये जाना जाता है .....उसी प्रकार व्यंग्य है बल्कि साहित्य कि हर एक विधा मे ऐसा ही है | व्यंग्य की  मामूली बातें भी ज़ादुइ असर से लबरेज़  होती  हैं । देखा जाये तो एक व्यंग्यकार एक समाज सुधारक भी होता है। व्यंग्य, पाठक या श्रोता को एक चेतना के मुहाने पर ला छोडता है,जहाँ से वह धारा प्रवाह चिन्तन मे बह चलता है। इस तरह से व्यंग्य समाज प्रहरी  भी है और  विकसित दृष्टि  के आधार पर समाज  को नए मानदंड प्रदान करने मे सहायक होता है।

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