मेरा मन कभी भी बिन सच्चाई बतंगड़ नहीं बनाता हालांकि बतंगड़ हमेशा बिन सिर-पैर की बातों का होता है अब मेरा मन मेरे जल्दबाज़ रवैये पर अटका है और हो भी क्यों न!! सच कभी-कभी मेरा मन दो मिनट में बनने वाली मैगी की तरह ही हर काम के लिए फटाफट खडा हो जाता है या यूँ कहूं कि आज के दौर में सभी मनो के विचारों का यही हाल है। मष्तिष्क की शिराओ से कहता हुआ विचार बस क्षण भर मे परिपक्व हो जाता है वह अपने गंतव्य तक गतिशील भले ही न हो पाये यह विचार शीलता की गति नही और न ही किसी मनुष्य के होनहार होने की निशानी आधुनिक बाजारवाद के उन्माद का असर ही बिना जरूरत और उपयोग विहीन वस्तुओ का जमावड़ा हमारे तैयार मनो का निष्कर्ष है ।क्षणभंगुरता ने हमारे समाज ,हमारे व्यक्तित्व पर जम कर हावी है ।हर काम का शार्टकट बना दिया गया है और नहीं बना तो बनाया जा रहा है। यह फंडा हमारे मन मष्तिष्क को लंगडा और लूला बना चुका है ।सोचने वाली बात है हमें किस बात की जल्दी है । इस जल्दी की बीमारी ने हमारे खान पान की चीज़ों में भी जल्दी ......दो मिनट में पाने वाली मैगी की जगह 30 मिनट लगा कर रोटियां या कोई भारतीय व्यंजन क्यों नहीं बना सकते जो सेहत के लिये सही है ।सभी को कहते सुना जाता है बड़ी भागम-भाग है ।यह भागम-भाग किसकी बनायी हुई है ? मेट्रो ट्रेनों में....मेट्रो में भागकर चढ़ते लोग यूँ दर्शाते हैं जैसे यह जीवन की आखिरी मेट्रो है चढ लो वरना जीवन भर प्लेट फार्म में गुजारना होगा। दूसरा देखे कान को मोबाइल से चिपका या हेलमेट में घुसा दोपहिया वाहन चलाते लोग शायद इस प्रकिया के तहत अपना समय बचा रहे होते हैं ।कभी-कभी मैं खुद भी ऐसा करती हूँ और फिर खुद सवाल भी कि ऐसा मैं क्यों करती हूँ ? और निरूत्तर सवाल सहित पुनः वैसा ही करने लगती हूँ ।शायद इन सब के पीछे बाज़ारवाद का गहराता जाल है । हर काम को शार्ट करने के शार्टकट तरीके उपलब्ध हैं ।आनलाइन खरीदी जिससे थोक व खुदरा व्यापारियों के दिन का चैन और रातों की नीद गायब कर रखी है। टी वी ,रेडियो ,समाचार पत्रों आदि परआने वाले विज्ञापनों के आफर व स्कीमें इतनी लोक लुभावनी होती हैं कि देखने वाला उत्साही होकर यकायक दो मिनट में बनने वाली मैगी की तरह तैयार हो जाता है ।सच आज का युग शार्टकट का जमाना है ,सवाल उठता है क्या मनुष्य चित्त में ये जल्दबाजी नैसर्गिक है ?क्यों हर चीज़ को तुरंत पा लेना चाहता है ।मशीनीकरण के युग में इन्सान पूरी तरह मशीन बन चुका है।बनाने वाले ने क्या खूब विग्यापन बनाया मिन्टोस खाते ही बुद्धि जल उठती है भई हो भी क्यों न मैगी के जमाने में मिन्टोस से ही बुद्धि आ सकती है बादाम से नहीं।पहले के समय में खतो के जरिए महीनों में मिलने वाले हाल चाल से संतुष्ट हो जाने वाले लोग अब फोन काल के न लगने पर या एक बार काल करने पर फोन का न उठना में सेकेंडो में मन व्याकुलता पैदा करता है।मैगी वाली पीढ़ी अब कम मेहनत ही सब पा लेना चाहती है ।कई विद्वानों के द्वारा कहा गया है " धैर्य से सब कुछ हासिल किया जा सकता है "पर अब तो फंडा बिलकुल ही अलग है जो जितनी जल्दी में उसको उतनी जल्दी सब कुछ हासिल है और यदि नहीं हासिल है तो हासिल करने की जल्दी है।इंटरनेट के जमाने में मेट्रो के बजाय बैलगाड़ी से चलना कहा की बुद्धिमत्ता है ।मुझे तो यह भी सोचने में हैरानी नहीं होती कि आने वाले समय में इंसानों के नौ माह में जन्मने वाले बच्चे दो माह में ही अवतरित हो जायेंगे क्योंकि जल्दी का जमाना है वो क्यों देर करें। टीवी पर आने वाले प्रचार आज के जल्दबाज इंसानी जज्बात से प्रेरित हैं या इंसानों को जल्दबाजी के लिये प्रेरित करते हैं। आज हमारे हर वाक्य में जल्दवाद विचारधारा काम कर रही है और शायद "जल्दबाजी "का काम शैतान का काम " के श्लोगन को बदल कर रख दिया ।कुछ नहीं ये तो वक्त के फेर का असर है।इसी जल्दवाद का असर कि हम आजकल अक्सर धोखा खाते हैं खैर इसका थोडा साकारात्मक असर यह भी कि अब इंसानी जज्बात किसी बात या मुद्दे को लेकर बहुत देर तक व्यथित नहीं रहता है क्योंकि उसको अपने व्यथित जज्बातो को पीछे छोड़ आगे बढने की जल्दी रहती है ।अगर कोई गम्भीर मुद्दा न हो जिससे मेरा या हम इंसानों को निजी नुकसान न हो तो हम हर सुबह जागने के बाद पिछले दिन की घटी घटनाओं को भूल कर उठ जाते हैं ऐसा हम जानबूझकर कर नहीं करते ये हमारे मन मैगी का ही असर होता है।अब हम लोगों का मन दूर की कौड़ी नहीं खेलता, सांप -सीढ़ी जैसे गेम खेलता है जाने कब चढ जाये और पता नहीं अगली ही चाल में डस दिये जाने पर सर्र से नीचे सरसरा कर धडाम हो जाये।इन सब का असर सोचती ये मन मैगी कहीं रोबोट से भी आगे न निकल जाये !!
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