3/04/2016

सतरंगी होली( लेख )

सा रा रा रा जोगीरा....आज न छोड़गे बस हमजोली खेलेंगे हम होली....खेलेंगे हम होली" क्यों आपका भी मन रंगों की दुनिया में डूबकर हिलोरें खाने लगा न! क्या करे ये रंगों का मनचला त्यौहार है ही एैसा हर किसी उम्र के लोगों में एक उमंग और जोश की लहर पैदा कर देता है । आयी रे आयी सतरंगी होली आयी....होली है,जैसे बोल मन में सिहरन सी मचाते देते हैं सच ये रंगों का त्यौहार बड़ा ही मनभावन होता है।राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है। राग मतलब संगीत और रंग तो इसके प्रमुख आधार हैं ही, पर इनको उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है। फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं।होली के आगमन से पहले ही मौसम बड़ा ही खुशनुमा  प्रेमावेशमय और उत्साही होता है क्या बड़ा ,क्या छोटा .....क्या चाचा-चाची,मामा-मामी क्या दादा-दादी सब रंगों की मस्ती में डूब जाते  ऐसे में युवा मन की बात ही क्या करना जिनका मन पहले ही इन्द्रधनुषी रंगो से सराबोर होता है।हंसी ठिठोली और रंगों की फुहार अहा! फिर क्या पूछना है अगर उस होली में आप जिसे चाहे उसके साथ होली के रस रंग घुल मिल जाये तो मानो श्रृंगार रस की चोटी में पहुंच कर मन हिलोरें ले रहा हो,काश मन तरंगों की बारिश हो और प्रियतमा का पल्लू रंग से सराबोर हो  तो ऐसे में अभिनेता अमिताभ बच्चन पर फिल्माया गया गाना "आज रपट जाये तो हमे न छुडाइयो" सभी होली रस में डूबे प्रेमी दिलों को खूब भायेगा।भीनी-भीनी अबीर और गुलाल की खुशबू उसमें गुझियों की मिठास लोगों के दिलो की दूरियो को मिटा कर मिलन को प्रेरित करता त्यौहार.......नीले -काले-पीले-हरे-गुलाबी चेहरों में ढूंढ कर अपनो से गले मिल खुशी बाटने को दिल आमदा हो जाता है। ढोल मंजीरो की थाप होली के उत्साह को दुगना कर देती हैं। भारत की संस्कृति मे त्योहारो के पीछे हमेशा भाइचारे का मकसद रहा है। होली को भारतीय कवियों ने भी अपनी-अपनी रचनाओं के माध्यम से मनोभावों को लोगों तक पहुंचाया है।कवियों ने जहाँ एक ओर नितान्त लौकिक नायक नायिका के बीच खेली गई स्नेह और प्रीति की होली का वर्णन किया है, वहीं राधा कृष्ण के बीच खेली गई प्रेम और छेड़छाड़ से भरी होली के माध्यम से सगुण साकार भक्तिमय प्रेम और निर्गुण निराकार भक्तिमय प्रेम का दर्शा डाला है।कहीं रंगीन टोलियाँ गुजरती हैं तो कहीं एक-दूसरे को रंगते लोग और कोइ बिना रंग हुआ दिख जाये तो( भले ही उसको न जानते हो) पर उस इंसान को रंग अपने जैसा रंग -बिरंगा बनाने के लिये मैराथन भी करनी पड़े तो लोग पीछे नहीं हटते।
उत्तर भारत में होली का विशिष्ट महत्व रहा है। विशेषतया ब्रज की होली बहुत ही प्रसिद्ध है‚ जहां फाल्गुन मास के आरम्भ के साथ ही गलियों में फाग और रसिया की मधुर लय सुनाई देने पड़ती है‚ मन्दिरों में श्री कृष्ण और राधा की मूर्तियों को रंगमय परिधानों में सजाया जाता है‚ मन्दिरों के द्वार और गर्भगृहों में गुलाल के रंगों की सजावट देखते बनती है।
 आज के आधुनिक समय में होली ने अपना महत्व तो नहीं खोया किन्तु इसका स्वरूप कहीं न कहीं नुकसान हुआ है या बिगड़ा अवश्य है। समय का अभाव और आधुनिकता की दौड़ में इस त्यौहार के मूल उद्देश्य कहीं पीछे छूट गये हैं‚ और रह गया है रासायनिक रंगों का मनचाहे उपयोग और रेडीमेड मिठाइयों के सामने …टेसू के फूलों के बने प्राकृतिक रंग…और गुझिया का स्वाद लोग भूलने लगे हैं। होली पर अपने दिलों से वैमनस्य दूर करने की जगह लोग इसे बदला लेने का माध्यम बनाने लगे हैं। किन्तु होली हमारे लोकजीवन के मूल में है‚ हमारी संस्कृति‚ भारतीयता का अभिन्न हिस्सा है। इसका महत्व कम नहीं हो सकता। हमारी भारतीय फिल्मों पर भी होली का खूब असर दिखायी देता है और हम इन फिल्मी गानों का। कुछ गानों जैसे"रंग बरसे भीगे चुनर वाली"के बगैर तो  हमारी होली अधूरी ही रह जाती है.....सच हमारे त्यौहार,हमारी परम्पराये ही हमारे स्वास्थ मानसिकता व स्वास्थ जीवन का आधार हैं।
     होली क्यो मनाते हैं
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भारत के हर राज्य अलग-अलग ढंग होली मनायी जाती है जिसका एक ही उद्देश्य होता है सारे गिले-शिकवे दूर कर प्रेम का वातावरण तैयार करना।होली मनाये जाने के पीछे काफी कहानियाँ पर जो मुख्य रूप से जानी जाती है वह ऐसी है किहोली से सम्बन्धित कई दंत कथाए प्रचलित है। होली की पूर्व संध्या को होली जलाई जाती है। इससे सम्बन्धित एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार कहा जाता है कि प्रह्लाद के पिता राजा हिरण्य कश्यप स्वयं को भगवान मानते थे व विष्णु के परम विरोधी थे परंतु प्रह्लाद विष्णु के उपासक थे। उन्होंने प्रह्लाद को विष्णु की पूजा करने से रोका जब वह नही माने तो उन्होंने उसे मारने के अनेकों प्रयास किये लेकिन सभी प्रयास असफल सिद्ध हुए। अपने प्रयासों में असफल होने के बाद उन्होंने अपनी बहन होलिका से सहायता मांगी। होलिका अपने भाई की सहायता करने के लिए तैयार हो गई।  होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था इसलिए होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई परन्तु विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जल कर भस्म हो गई। इस प्रकार यह कथा इस बात की तरफ संकेत करती है कि बुराई पर अच्छाई की विजय अवश्य होती है। आज भी पूर्णिमा को होली जलाते है और अगले दिन सब लोग एक दूसरे पर गुलाल और कई प्रकार के रंग डालते है। यह त्यौहार रंगों का त्यौहार है। इस दिन प्रातः काल उठकर लोग रंगों को लेकर अपने रिश्तेदारों, दोस्तों, सगे सम्बन्धियों के घर जाते है और जमकर होली खेलते है। ब्रज की होली पूरे भारत में लोकप्रिय है। ब्रज के लोग राधा के गांव जाकर होली खेलते है। मन्दिर कृष्ण भक्तों से भरे रहते है। 
               
               वर्तमान परिदृश्य में होली
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                  आज आधुनिक परिवेश में लाोग त्यौहारों का उद्देश्य भूल चुके हैं या कहें कि सिर्फ एक कार्य समझ कर त्यौहारो को निपटाया जाता है तो गलत नहीं होगा।सभी जगह आर्टिफीशियल का प्रभाव बढ़ता जा रहा है भले वह गुझियों की मिठास हो या रंगों की रंगीनियत हो व हमारे दिलो में भरे वैमनस्य हो ! क्यों न हम फिर से अपनी पुरानी वास्तविकता पर लौट आये सब कुछ देशी हो गुझियों की मिठास भी, रंगों में फूलों रंगत व हमारे दिलो में सारे द्वेषो को मिटा कर सिर्फ प्यार ही प्यार बहता रहे....बहता रहे....बहता जाये

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