7/26/2015

चलो न बुद्धिजीवी बने !( व्यंग्य लेख)

थोड़ा विशेष सम्प्रदाय का विरोध ,थोड़ा विशेष समुदाय को सर आँखों पर नवाज़ना ,बस यूँ ही तो आधुनिक बुद्धजीवी बनते हैं । आज सही को सही,गलत को गलत कहना......वही तक सही है जहाँ से बुद्धिजीवी होने के मायने बनते और बिगड़ते हैं । अब देखिये न तीस्ता शीतडवाड को कुछ चिन्तक या कुछ समाज विचारक सही ठहराते हैं ।चले हम भी मान लेते हैं तीस्ता जी जो दर्द विदारक सच्चाईयाँ निकाल कर ,खंगाल कर बाहर लाई वह निश्चित ही बड़े जिगरा का काम था।सच ही कहा है किसी ने ......"असफल लेखक ,आलोचक बन जाता है "  ठीक कुछ ऐसे ही बहुत सी संस्थाये सरकार के पक्ष मे काम करती हैं या विपक्ष में...हमसफर न बन पाओ तो संगेराह बनने में गुरेज़ कैसा !!!!!!। शायद यही काम तीस्ता या तीस्ता जैसे लोग करते आये हैं और आने वाले समय में करते रहेंगे । जितनी शिद्धत से गुजरात नरसंहार उठाये गये हैरानी होती है ...कश्मीर नरसंहार,गोधरा कांड ,भागलपुर नरसंहार आदि के लिए कोई क्यूँ नहीं जल उठा क्या इनमें मारे गये लोग इन्सान नहीं थे ???????  बुद्धजीवियो ने वहां जाकर सच जानने की जरूरत क्यों नहीं समझी ,मैं पूछती हूँ क्या ये हादसे ,बौद्धिकता सीमाओं के दायरे से बाहर आता है । गुजरात नरसंहार के बाद ही क्यों मानवाधिकार दिखा......  जलती हुई ट्रेन की  लपटों में खुद को बचाने के लिये चीखती आवाजें और बचाने के बजाय बाहर से उन पर पत्थर और न जाने क्या -क्या .....उनके परिवारों की वेदना के लिए  मानवाधिकार का दरवाजा क्यों किसी ने नहीं खटखटाया ।गुलबर्ग सोसायटी,नरोदा पाटिया,बेस्ट बेकरी,सरदारपुरा जनसंहार के आंसू पोछने वालों ....थोड़े नैपकीन बचे हो तो कश्मीर विस्थापितो के सूख चुके आँसुओं के दाग जरुर पोछना ।गोधरा ,भागलपुर,मेरठ,मुजफ्फरपुर,बम्बई धमाके ....इनमें प्रभावित पीड़ितों की पथराई आंखें इन्साफ को तडप कर विचार शून्य हो चुकी हैं ।अगर सच में सिर्फ इन्सान हो तो इन्सानियत दिखाओ न कि प्रोपेगैन्डा ।विशेष समुदाय से विशेष प्रेम दिखाकर आधुनिक बुद्धजीवी फैशन मे शामिल हो, खुद को विशेष मत कहलाओ..सही को सही,गलत को गलत कहने आदत और हिम्मत रखो। इसपे छोटी सोच का तमगा लगता है तो लगता रहे । न्याय सभी के लिये एक सा हो फुटपाथ पर बेघर लोगों को कुचलकर मार डालने वाला शख्स बेइज्जत बरी कर दिया जाता है ,आखिर क्यूँ ??????? क्या ये सब को पता नहीं है। संजय दत्त समय-समय पर पिकनिक मनाने जेल से बाहर आ जाते हैं ।वाह रे मेरे देश का कानून ,और कानून के भक्षको ,पैसे वालों का न्याय अलग । विशेष समुदाय के समर्थन के लिये खड़ा आधुनिक फैशनिया बुद्धिजीविया समुदाय !!!!थोड़ा विशेष सम्प्रदाय का विरोध ,थोड़ा विशेष समुदाय को सर आँखों पर नवाज़ना ,बस यूँ ही तो आधुनिक बुद्धजीवी बनते हैं । आज सही को सही,गलत को गलत कहना......वही तक सही है जहाँ से बुद्धिजीवी होने के मायने बनते और बिगड़ते हैं । अब देखिये न तीस्ता शीतडवाड को कुछ चिन्तक या कुछ समाज विचारक सही ठहराते हैं ।चले हम भी मान लेते हैं तीस्ता जी जो दर्द विदारक सच्चाईयाँ निकाल कर ,खंगाल कर बाहर लाई वह निश्चित ही बड़े जिगरा का काम था।सच ही कहा है किसी ने ......"असफल लेखक ,आलोचक बन जाता है "  ठीक कुछ ऐसे ही बहुत सी संस्थाये सरकार के पक्ष मे काम करती हैं या विपक्ष में...हमसफर न बन पाओ तो संगेराह बनने में गुरेज़ कैसा !!!!!!। शायद यही काम तीस्ता या तीस्ता जैसे लोग करते आये हैं और आने वाले समय में करते रहेंगे । जितनी शिद्धत से गुजरात नरसंहार उठाये गये हैरानी होती है ...कश्मीर नरसंहार,गोधरा कांड ,भागलपुर नरसंहार आदि के लिए कोई क्यूँ नहीं जल उठा क्या इनमें मारे गये लोग इन्सान नहीं थे ???????  बुद्धजीवियो ने वहां जाकर सच जानने की जरूरत क्यों नहीं समझी ,मैं पूछती हूँ क्या ये हादसे ,बौद्धिकता सीमाओं के दायरे से बाहर आता है । गुजरात नरसंहार के बाद ही क्यों मानवाधिकार दिखा......  जलती हुई ट्रेन की  लपटों में खुद को बचाने के लिये चीखती आवाजें और बचाने के बजाय बाहर से उन पर पत्थर और न जाने क्या -क्या .....उनके परिवारों की वेदना के लिए  मानवाधिकार का दरवाजा क्यों किसी ने नहीं खटखटाया ।गुलबर्ग सोसायटी,नरोदा पाटिया,बेस्ट बेकरी,सरदारपुरा जनसंहार के आंसू पोछने वालों ....थोड़े नैपकीन बचे हो तो कश्मीर विस्थापितो के सूख चुके आँसुओं के दाग जरुर पोछना ।गोधरा ,भागलपुर,मेरठ,मुजफ्फरपुर,बम्बई धमाके ....इनमें प्रभावित पीड़ितों की पथराई आंखें इन्साफ को तडप कर विचार शून्य हो चुकी हैं ।अगर सच में सिर्फ इन्सान हो तो इन्सानियत दिखाओ न कि प्रोपेगैन्डा ।विशेष समुदाय से विशेष प्रेम दिखाकर आधुनिक बुद्धजीवी फैशन मे शामिल हो, खुद को विशेष मत कहलाओ..सही को सही,गलत को गलत कहने आदत और हिम्मत रखो। इसपे छोटी सोच का तमगा लगता है तो लगता रहे । न्याय सभी के लिये एक सा हो फुटपाथ पर बेघर लोगों को कुचलकर मार डालने वाला शख्स बेइज्जत बरी कर दिया जाता है ,आखिर क्यूँ ??????? क्या ये सब को पता नहीं है। संजय दत्त समय-समय पर पिकनिक मनाने जेल से बाहर आ जाते हैं ।वाह रे मेरे देश का कानून ,और कानून के भक्षको ,पैसे वालों का न्याय अलग । विशेष समुदाय के समर्थन के लिये खड़ा आधुनिक फैशनिया बुद्धिजीविया समुदाय !!!!

1 comment:

  1. अद्भुत , बहुत अच्छा लिखा है शशि जी

    ReplyDelete