सब ही तो लिख रहे
मै ऐसा क्या लिख दूँ
कुछ बन रहे शरद
तौ कुछ बनन लगे परसाई
कुछ भये पछ लग्गू
तो कुछ कर रहे घिसाई
बाँध रहे शब्दों की सीमा
न समझे मन की पीड़ा
सब ही है नाम की माया
को कित्ता विज्ञापन पाया
गाली लिख कुछ हुये महान
लाँघू क्या मै भी ये सोपान
छापू मै भी कोइ किताब
हँथिया लू कोइ पुरस्कार
व्यंग्य -व्यंग्य कर हँस रहे
पकडे सिर्फ व्यंग्य के कान
और अभी है लिखने को
इत्ता पढिये अभी दै कर ध्यान ॥शशि पाण्डेय ।
मै ऐसा क्या लिख दूँ
कुछ बन रहे शरद
तौ कुछ बनन लगे परसाई
कुछ भये पछ लग्गू
तो कुछ कर रहे घिसाई
बाँध रहे शब्दों की सीमा
न समझे मन की पीड़ा
सब ही है नाम की माया
को कित्ता विज्ञापन पाया
गाली लिख कुछ हुये महान
लाँघू क्या मै भी ये सोपान
छापू मै भी कोइ किताब
हँथिया लू कोइ पुरस्कार
व्यंग्य -व्यंग्य कर हँस रहे
पकडे सिर्फ व्यंग्य के कान
और अभी है लिखने को
इत्ता पढिये अभी दै कर ध्यान ॥शशि पाण्डेय ।
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