6/28/2016

झोलम -झोल झांसा ( व्यंग्य लेख )

झांसा देना हर किसी के वश  का काम नहीं ये थोड़ी टेक्नाली होता है । तरकीबों और तेज़ दिमाग़ की बदौलत ही झोलम -झोल कर सकते हैं ।वैसे इंसानों मे भी ये गुण सबसे ज्यादा राज नेताओ के पास पाया जाता है  और नेता भारत का हो तो उसमें शक की गुंजाइश ही नहीं बचती

इंसानों को झोल मे रखना आसान नहीं ,पर स्वर्ग वासियों आई मीन टू से...भगवान मियाँ को गोला देना बेहद आसान होता है । वो क्या है की भगवन मियां थोड़े घूस खोर जो हैं । ये  शाश्वत सत्य सबके साथ -साथ हमको भी मालुम ही था ।

ऐसे ही झोल मै करती रह्ती थी बात उन दिनों की है जब मै छोटी थी  जब हम छोटे थे तो घर के आसपास पूरे  मुहल्ले के बच्चे   जुट जाते खेलने के लिये । अपने घर के सामने खेलते तब तो घर लौटना आसान होता है पर दूर खेलती तो लौटने मे थोड़ी दिक्कत होती । हम भारतीय क्रिकेट खिलाड़ियों की भाँति घर के शेर थे ।बाहर हमारी शिट्टि -पिट्टि गुम हो जाती थी ।

वो ऐसे कि जहाँ हमारे खेलने का मैदान था वही एक नीम का बडा पेड़ था। उस पेड के बारे मे धारणा ऐसी कि इसमे जिन्न रहता है । उस जिन्न का डर ऐसा कि जैसे भारत कि महँगाई । ऐसे तो खेलते हुये ख़याल न आता पर जैसे ही अँधेरा होता हालत पतली होने लगती । जैसे चुनावों के दौरान नेताओं की ।

घर जाते -जाते डर लगता कि कही पीछॆ-पीछे  कोइ डरावना चेहरा न आ रहा हो। अब शुरू हो जाता  भगवान कॊ घूस देना......भगवान आज बचा लो दो रुपये का  प्रसाद चढ़ाउँगी....जैसे नेता जनता को चुनाव समय घूस देते हैं ठीक वैसे ही । खैर सरपट भागते -भागते घर मिल जाता । जनता की भाँति बेचारी मै रोज़ कि तरह मम्मी से डाँट वाला लेक्चर सुना ,खाना खा पी  और सोने चली जाती ।

सुबह होती  नहा धो स्कूल निकल गये कहाँ का प्रसाद,कौन से भगवान....मन से मन कॊ सफाई दी वो तो बस ऐसे ही था । मेरी ऐसे हर काम मे भगवान कॊ घूस देने की आदत बन गई थी ।भगवान भी मेरी मटमवासी समझ चुके थे पर मै भी जान चुकी थी की भगवान बहुत लालची हैं और उल्लू भी!! खैर भगवान भी सयाने थे यमवा को बोल दिया था हमारा बहीखाता देखने को ।

हम बड़े हुये शादी -ब्याह ,लड़का -बच्चा  ,घर -गृहस्थी बनी पर आदत हमायी अबहू जस की तस । अबहू भगवान को झोल देते रहते । असली भारतीय हैं सुधरते कैसे !

एक दिन ऐसा आया कि धरती मॆ हमाये दिन पूरे हो गये यमराज हमें लेने आये । हमने भगवान कॊ घूस दी पर वो तो बदले हुये लोकतंत्र की तरह बदले के मूड मे था । चलो कोइ नही अब जाना था तो जाना ही था। सब को बाय -टाटा कर रोता -बिलखता हम छोड़ कर चल दिये यम भइया के साथ ।

ऊपर पहुँचे तो हमारी अच्छी वाली क्लास लगी भगवान के पास सारा बहीखाता मौजूद था । एक -एक दिन का हिसाब मौजूद था । अव उस पर हमारी सुनवायी का दिन था । हम भी कोइ कम वाले वो नहीँ थे । भगवान ने पूछना शुरू किया और पूछना क्या इल्जाम लगाना शुरू किया ।

इल्जाम कि हमने भगवान को बेवक़ूफ़ बनाया और ना जाने क्या -क्या.......
हमने उत्तर दिया -भगवान !! हमने भगवान कसम से  आपको बेवक़ूफ़ नही बनाया ।गीता की सौगंध तक खाने मे देर न लगायी..... बचपन की बात छोड़ कर  वो तो बचपना था ये कहकर हमने अपना पहला पाँसा फेंक दिया लगे आगे का दर्द बताने ।

आगे का दर्द......वो यों था भगवन ! कि हम थे  जनरल कास्ट के पढाई -लिखाई के बावजूद नौकरी न मिल सकी जो पैसा आता पाई -पाई करके घर -गृहस्थी चला लेते । मुसीबत मे आपको याद कर लेते थे अब क्या आपको याद करना भी धरती मे गुनाह है का । और जब कभी-कभी ज्यादा डर लगता तुमको मनौती देकर अपने को मुसीबत से बचाने का टिकट पक्का कर लेते ।भगवान इसमे गलती कहाँ भई है भला ? और जउन  ड्रामा कर सकती थी.... किया खुद को बचाने के लिये । क्योंकि वहाँ हम ही मुजरिम , हम ही खुद के वकील थे । कौनो मीडिया न था हमारी तरफ़ दारी के लिये ।

भगवन अब आप ही बताये कि हमारी गलती कहाँ है । भगवान थोड़ी देर तो विपक्षियो की तरह हम पर कटाक्ष करते रहे पर हमारी नाटकीयता और  बातों से भाउक हो उठे और हमे  माफ़ कर दिया । और हम  नेताओं के मानिंद (जैसे जनता को उल्लू बनाना ) भगवान  को उल्लू  बना....एक बार फ़िर गॉड को झोल दे कर धरती पर आ गये ।

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