6/03/2016

एक माँ "रोमा"की कहानी

एक गर्भवती स्त्री दिन - रात अपने आने वाले बच्चे के ही सपने देखती रह्ती है । ऐसी ही एक  कहानी है रोमा कि..रोमा दिन -रात अपने  आने वाले बच्चे के हिसाब से खुद का ध्यान और ख़याल  रखती। पर नियति को कुछ और ही मंजूर था । रोमा को बेटा हुआ है घर मॆ सब बहुत खुश हैं । पर डॉक्टर की बात ने सब की खुशी पर पानी फेर दिया । डॉक्टर का कहना है रोमा का बच्चा विकलांग है। रोमा के साथ -साथ घर वालों पर जैसे कहर टूट पडा हो । लेकिन रोमा के साथ जो हुआ उससे वह और टूट कर बिखर  गयी थी । रोमा की ससुराल वालों ने रोमा को घर निकाल दिया । मायके वालों ने भी कुछ ही दिन ही साथ दिया। पर रोमा ने हिम्मत नही हारी वह अपने बेटे को गोद मॆ ले कर स्कूल ले जाती और खुद वही पास मॆ मज़दूरी करती ये सिलसिला तब तक चला जब तक बेटे को पढाई पूरी नही करा दी इस दौरान उसे पहाड़ जैसी मुसीबतों क सामना करना पड़ा। आज रोमा के बेटे का IAS के लिये साक्षात्कार है । रोमा आज भी उसे लेकर गयी है लोग उस पर हँस रहे हैं । कुछ समय बाद.. साक्षात्कार का परिणाम आया है रोमा का बेटा आज बड़ा आफिसर बन गया है  जो लोग उस पर हँसते थे ,आज सब उसके आगे -पीछे हो रहे थे । रोमा ने अपने दम पर अपने विकलांग बेटे को एक सफल इंसान बना दिया है । धन्य है ऐसी माँ.....एक माँ ही होती है जो अपने बच्चो के लिये खुद को न्योछावर कर देती है ।

"" हे माँ तू मेरी जननी
    तू  ही  मेरी करनी  
    तू मेरे चारो धाम 
    तू  मेरी   रक्षक 
    तू ही मेरी भरनी ॥"" शशि पाण्डेय

No comments:

Post a Comment