आह !अमेरिका वाह !अमेरिका जैसा की किताब के शीर्षक से ही पता लग जाता है की यह पूरी किताब अमेरिका के ऊपर लिखि गयी है । मेरा मानना है आह जैसा भाव मन मॆ तब निकलता है जब मन मॆ किसी बात की कमी अखरती है या अभाव लगता है । लेखक के मन मॆ भी शायद अमेरिका को देख पहला शब्द "आह "निकला होगा इसके बाद अमेरिका के प्रभाव से प्रभावित हो...वाह निकला होगा ! क्योंकि कोई वस्तु ,इंसान ,स्थान जब आपको बहुत अच्छा लगे तो बिना वाह बोले नही हम नहीँ रहा पाते ।
लेखक रविशंकर पाण्डेय का यह यात्रा संसमरण इतना सजीव चित्रण और संजीदा है कि पाठक संस्मरण पढ़ते - पढ़ते पूरी तरह अमेरिका की पृष्ठ भूमि मे साक्षात जा पहुँचता है ।
लेखक रविशंकर उत्तर - प्रदेश सरकार कार्यरत हैं और अमेरिका सरकारी प्रक्षिशण के तहत जाना हुआ । लेखक छात्र जीवन मॆ ही किसी अपरिचित व सूदूर स्थानों यात्रा की ललक बनी ही रहती थी जो की इस यात्रा के जरिये कहीँ न कहीँ पूरी हुई ।
लेखक कॊ पासपोर्ट और वीजा तक थोड़ा दिक्कतों का सामना पड़ा ।खैर पाठक कॊ ये भी पता लग गया की बीजा और पासपोर्ट के लिये किन -किन दिक्कतों से दो - चार होना पड़ता है ।
लेखक ने एयरपोर्ट मॆ जाने से लेकर फ्लाइट व फ्लाइट मॆ हर एक छोटी -छोटी बातों को बखूबी चित्रित किया है ।
लेखक रविशंकर ने अमेरिका यात्रा का हर महीन से महीन कोना दिखाने का प्रयास किया है...
"अमेरिका मॆ : दि 0 02.08.2010
मेरी आँख सुबह पाँच बजे रोज़ की तरह खूली तो लगा कि हल्की बूंदा - बांदी हो रही थी । फ्रेश होकर मैं पैन्ट टीशर्ट पहनकर बाहर निकला ,तो देखा बूंदा - बांदी बंद हो चुकी थी लेकिन पूरा माहौल ऊदा -ऊदा सा है ।
पाठक को अमेरिका के बारे इतनी विस्तार से और रोचक जानकारी शायद अमेरिका के एटलस मॆ भी न मिले । पाठक के मानस पटल पर स्वभाविक सहज चित्र अंकित करता है। एक दृश्य देखे....
विलमिंगटन की सैर
विलमिंगटन शहर नार्थ कैरोलीन प्रांत का एक समुद्र तटीय पुराना शहर है तथा वर्ष 1739 से नगर निगम के रूप मॆ मान्यता प्राप्त है । शहर का क्षेत्रफल 41.5 वर्ग मील है तथा जनसँख्या का घनत्व 2069 व्यक्ति प्रति वर्ग मील है ।
इस प्रकार से बताते लेखक ने पूरा का शहर घुमा दिया । पढ़ते -पढ़ते मन सच मॆ वही जा घूमने लगता है ।
इतना ही नही लेखक का मन वॉशिंग्टन की सड़को मॆ घूमते हुये अपने अविकसित और अति पिछ्डे क्षेत्र बुंदेलखंड मॆ स्थित गाँव को भी याद करता है और अपने आप को भाग्यशाली भी मानता है की इतने अविकसित गाँव का इंसान इतने विकसित व शक्तिशाली राष्ट्र की राजधानी मॆ विचरण कर रहा है ।
इतना ही नहीँ लेखक का सम्वेदनशील मन अमेरिका वापसी पर थोडा भाउक भी होता है । जिस होटल मॆ रुके उसको पलट कर निहारना व जहाज की खिड़की से छोड़ते हुये अमेरिका को बार -बार देखना... यह सब लेखक के सहृदय पक्ष को दर्शाता है और हो क्यों न क्योंकि लेखक रविशंकर लेखक होने के साथ -साथ एक सफल कवि व गीतकार भी हैं ।
यात्रा संस्मरण की भाषा बेहद ही सरल ,सजग और किताब को रोचक बनाती है। पाठक होने के नाते एक बार किताब शुरू करने के बाद विराम लेने का मन नहीँ होता ।
लेखक को इस सफल यात्रा के साथ -साथ ,सफल यात्रा संस्मरण के लिये बधाई व शुभकामनाएँ उम्मीद है आगे भी ऐसे ही अच्छी रचनायें पाठको को पढ़ने को मिलेगा ।
पुस्तक - आह ! अमेरिका, वाह ! अमेरिका
लेखक- डॉ0 रविशंकर पाण्डेय
प्रकाशक- अनामिका प्रकाशन
52 तुलारामबाग ,इलाहाबाद -211006
मूल्य - 350 रुपए
समीक्षक - शशि पाण्डेय, नई दिल्ली।
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