6/17/2016

मीठी छुरी ( व्यंग्य कविता )

किस से  किसकी हुई  रार
सब बेजा ही हुये शिकार

राजनीति की माया हय
मीठी छुरी और कड़वी है तकरार

हम तुम लड़ ,करते हैं वार
तुम क्या जानो बच्चू
सफेदो का आपस मे रहता है प्यार

हमने तुमने यूँ ही ढोया
सपनों का सतरंगी संसार

ढायी जब शनि की ढइया
वो था बदकिस्मती का इतवार

कर दो इनकार बन जाओ होशियार
यूँ ही न तुम बनो शिकार ॥॥शशि पाण्डेय

No comments:

Post a Comment