8/10/2016

काला बाजारी (व्यंग्य कविता )

चलो न बंधू  एक
साझेदारी करते हैं

झूठे बयानों की
कालाबाज़ारी करते हैं

तुम मुझे कोस
मै तुम्हें कोस
राजनीति के गलियारों मॆ
सफ़ल कहानी करते हैं

उम्र गुज़ारी है
जो दलों मॆ,खुल कर
अब नमकहरामी करते हैं

चीर हरण होते
बेटियों  के
हम मौज़ो की गुलामी करते हैं

तेरा दलित ,मेरा कर बस
वोटों की खींचातानी करते हैं

चलो ख़त्म कर दें
जो इन्सानियत़ का  दम भरते हैं

कायम रहे बैर भाव
हर दम शपथ ग्रहण करते हैं

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