8/16/2016

क्योंकि ,जिन्दगी सिखाती बहुत है !(कविता )

किसी से न रखना कोई आस
रखना खुद पर पूरा विश्वास
उठाना अपना हर क़दम तू ठोस
बाकी रहे न कोई अफ़सोस
क्योंकि,ज़िन्दगी सिखाती बहुत है

कुछ  दौर  ऐसे  भी  आयेंगे
क़दम बिना चले ही लड़खड़ायेंगे
कभी अपने भी तुझे रुलायेँगे
फ़िर भी साथ ज़ज़्बे के हम टकरायेंगे
क्योंकि, ज़िन्दगी डगमगाती बहुत है

हमेशा बिना किसी के बनना ख़ास
बनाना मत किसी कॊ तुम ख़ास
बन न जाये कोई गले की फाँस
ठहरो ,सम्भलो बन जाना न परिहास
क्योंकि, ज़िन्दगी बहलाती बहुत है

जब हिलने लगे कभी अपनी बुनियाद
तब कर लेना माँ -बाप कॊ याद
करना न किसी से कोई फरियाद
अपने ज़िगर कॊ तुम देना दाद
क्योंकि , ज़िन्दगी बिखरती बहुत है

टूटने लगे जो तेरे सपने रोज़
तू जिये जा अपनी मंज़िल कॊ सोच
रास्तों कॊ अपने ढंग से खोज
कम कभी न होने देना अपना ओज
क्योंकि ,ज़िन्दगी दरकती बहुत है

लगे जो थमने लगा है सफ़र  
तू खुद के ठौर और ठिकाने बदल
ऐबों की बीच शराफ़त बन कर निकल
ख़ुशी कॊ दे पता और दे दे अपनी ख़बर
क्योंकि , ज़िन्दगी बदलती बहुत है ॥

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