8/21/2016

हाँ ,रिश्ते यूँ ही नहीँ बनते !(कविता )

रिश्ते यूँ ही नहीँ बनते !
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किसी जीवन चक्र जैसे
रिश्तों का भी  होता जन्म
बस होता  नहीँ  मालुम
कब ,किससे ,कैसे ,कहाँ
क्यू बन जाते हैं रिश्ते 
हाँ ,रिश्ते यूँ ही नहीँ बनते !

रिश्तों से बनता जीवन
जीवन मॆ बनते रिश्ते
कुछ साथ चलते
साथ चल कुछ बिछड़ जाते
कभी आकस्मिक मर भी जाते रिश्ते
हाँ ,रिश्ते यूँ ही नहीँ बनते !

मरते हैं रिश्तें जैसे जीवन
कुछ सांस दे जाते रिश्ते
कुछ आस ले जाते
कभी चुनौती भी बन जाते
निभते कुछ ,निभाये जाते रिश्ते
हाँ ,रिश्ते यूँ ही नहीँ बनते !

न जीवन होता न होती मृत्यु
साथ जिनके ऐसे भी कुछ होते रिश्ते
दूर रहकर भी बन जाते खास
कभी -कभी न होता इनका आभास
कुछ जीवन बना जाते रिश्ते
हाँ ,रिश्ते यूँ ही नहीँ बनते !

जीवन मॆ खुशियाँ भर जाते रिश्ते
कभी सब छीन ले जाते
महफिलो सी रौनक दे जाते
कभी उदासियों का आलम बनते रिश्ते
यथार्थ का विनिमय कर जाते रिश्ते
हाँ, रिश्ते यूँ ही नहीँ बनते !शशि पाण्डेय

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