कहीं अँग्रेजी का इश्तेहार पढ़ा "हमारे यहाँ अँग्रेजी घोल कर पिलायी जाती है " कैसे -कैसे विज्ञापन बनते हैं या बनाये जाते हैं । लेकिन मुझे लगता है अपने देश मॆ तो पहले ही अँग्रेजी "बूकी" जाती है फ़िर घोल कर पीने -पिलाने की क्या ज़रूरत । पुराना तकियाकलाम है अंग्रेज चले गये अंग्रेजियत छोड़ गये यह सिर्फ़ स्लोगन मात्र नहीँ । हम जब गुलाम थे , ग़ज़लो वाले "गुलाम " नहीँ दास वाले गुलाम ,तब तो मज़बूरी थी अँग्रेजी खाने -पीने-उगलने की पर अभी जो है वह कोरा अँग्रेजी प्रेम है...वह हिन्द ए अँग्रेजी ज़रूरत से ज़्यादा अँग्रेजी ए शौक है ।
काश की बीमारियों के टीकों की तरह भाषाओं व विषयों के ज्ञान के टीकों की बूस्टर डोज का ऑप्शनल होता । हम सब सोचते हैं हिन्दी मॆ धार बने या नहीँ अँग्रेजी मॆ धार कैसे बने!
यहाँ तक हमारा फिल्मी जगत भी इस अंग्रेजियत नौ सौ निन्यानबे के फेर मॆ नब्बे अंश घूमा हुआ है। जहाँ फिल्मी बम्बइया ज्यादातर लोग खुद तो अँग्रेजी बूकते ही हैं ,अँग्रेजी बूकने के मजबूरी के लिये सिनेमा तक बना डाला ।
फ़िल्म इंग्लिश विंग्लिश में अँग्रेजी का यह अंध प्रेम स्थापित कर देती है की अंग्रेजी बोलने से ही आपका मोर्डेन पति और आधी बड़ी हुई बेटी आपसे प्यार करने लगेगी... ये इस फ़िल्म की कहानी का सबसे दुःखदाई क्लाइमेक्स था ।
लेकिन वही साड़ी में गुथी दो बच्चों की माँ अपनी इंग्लिश क्लास की छत पे अपने फ़ारसी दोस्त के साथ अकेली होती है, उस वक़्त भारत के झूठे राष्ट्रवाद पर जबरदस्त अँग्रेजी का तमाचा लगता है। पर क्या करे अँग्रेजी सीखती ये अभिनेत्री अँग्रेजी के लिये सब कुर्बान करने कॊ तैयार रहती है ।
जब एक देशी अप्रवासी लड़की अँग्रेजी सीखते -सीखते एक अमेरिकन लड़के से शादी कर रही होती है... जब पता चलता है कि शिक्षक गे भी हो सकता है और फिर भी सम्मानित महसूस कर सकता है क्योंकि उसको अँग्रेजी आती है । शायद उसने भी कभी अँग्रेजी घोल कर पी रही होगी । मतलब अगर अँग्रेजी ज़बान आती है तो अवगुण भी गुण !
हिन्दी उपमहादीप का झूठा और धार्मिक लबादे में सड़ता हुआ राष्ट्रवाद अँग्रेजी के प्रेम मॆ फटता ,तड़पता ,फड़फड़ाता दिखाई नज़र आता है...
महसूस कीजिये उस दर्द को जब खाने का सामान खरीदने के लिए लाइन में लगे हों और अपमानित महसूस कर रहें हों... महसूस कीजिये की आपके बेटे बेटियां या छोटे भाई बहन आपको अज्ञानी करार देते हों और फूहड़ मजाक कस्ते हों सिर्फ इसलिए की आपको अंग्रेजी नहीं आती! यकीन मानिये उस वक़्त आप महसूस करेंगे की आपको अंग्रेजी की जरुरत नहीं बल्कि अंग्रेज हुई जा रही भारतीय राष्ट्रीयता को उसकी औकात दिखाने की जरुरत है।
हिन्दी कॊ हिन्दी मॆ समझते , अँग्रेजी कॊ भी हिन्दी मॆ समझते लोग फ़िर भी अँग्रेजी के प्यार मॆ उल्टियां करते -करते भारत मॆ अँग्रेजी तोते अँग्रेजी घोट लेते हैं । वैसे घोटी तो भाँग जाती है पर मौका लगे तो लोग खाने -पीने की चीजे घोट लेते हैं । या कुछ छुपाने के लिये भी हम बातें घोट जाते हैं । और तो और परीक्षाओं के दौरान विषयों कॊ याद करने बैठे तो विषयों कॊ घोट जाते हैं । मैने भी कई बार परीक्षाओं के समय नोट्स पानी घोल पी जाने की सोचा लेकिन इस डर से नही पिया की पी लिया तो रिवीजन कैसे किया जायेगा ।
यह अँग्रेजियत का लोगों मॆ हुडकपना है । साला अँग्रेजी मॆ बोलेंगे फ़िर "यू नो" कहि के वही हिन्दी मॆ भी बूकेगे। अरे जब हिन्दी मॆ ही आँतों का अल्सर समझाना है तो काहे एलीजाबेथ के ससुर बनना है । अँग्रेजी घोल कर पिलाने कॊ हमारी भारतीय माँये भी कौनो हिसाब से पीछे नहीँ घरो मॆ चाहे ठेठ तरीक़े से बच्चो कॊ समझाती हो लेकिन बाहर आते ही अँग्रेजी पढी -लिखी माँओ की जीभ अँग्रेजी मॆ अंदर बाहर लपलपा कर....come beby..papa say...What r u doing....tips..जाने यह अँग्रेजी के प्रति कैसा प्रेम है ! ऐसा प्रेम ,ऐसी दीवानगी तो सलमान खान ने ऐश्वर्या के लिये भी न दिखायी थी।
हमारे एक दूर के चचा जी थे वो जब बहुत खुश होते तो अँग्रेजी बोलने लगते और इस कदर बोलते की चारपाई मॆ बैठे हो तो चारपाई का तीनपाई होना तय होता था। हम उनके अँग्रेजी बोलने से डरते थे । वेसे लोग पीने के बाद भी अँगरेज़ हो जाते हैं ऐसा अँग्रेजी पुराणों मॆ वर्णित है ।
वैसे हम अंग्रेजों से ज़्यादा होशियार हैं पूछो कइसे ?वो अइसे कि उदाहरण...वो एप्पल का मतलब एप्पल ही समझ पाते हैं पर हम एप्पल मतलब सेब समझते हैं है न होशियारी । वो इसलिये की हम अँग्रेजी पढ़ते नहीँ घोट जाते हैं...घोट कर,घोल कर पी जाते हैं...फ़िर पी कर बूकते हैं...।
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