8/20/2016

दर्द रिश्तों का (कविता )

सोच मॆ जिनकी होता गुमान 
दिल  से  नरम  होता  नहीँ

मिलता जो दर्द अपनो से 
कोई  उम्मीद करता नहीँ

काँटा बनकर वह चुभता 
मग़र, नज़र  आता  नहीँ

ज़ख्म बनकर तो  दुखता 
मग़र ,  दिखता    नहीँ

जो रिश्तों के लिये हो जीता 
लालची  वह  होता  नहीँ

देखकर चीज़े हांसिल करता  
मग़र बद्दयान्गी करता  नहीँ

कभी हो तो आजमा लेना है 
अपना हो तो खफा होता नहीँ ॥

©® शशि पाण्डेय ।
ShshiiPandey.blogspot.com 

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