10/06/2016

गर्त दर गर्त (व्यंग्य लेख )

गर्त दर गर्त 
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हास्य नाटक चले मुसद्दी ऑफिस -ऑफिस के नायक को हमारे सिस्टम से हैरान परेशान देख मेरे व्यथित मन में कभी -कभी हास्य ,आनँद संचारी भावो  की जगह करुण रस का निश्पंदन होने लगता है । यह कई  सभ्यताओ को पार कर चुके इंसानों द्वारा अपने ही तरह के इंसान को  परेशान कर उसकी लाचारगी और बेचारगी की  भावनाओ को विषैले डंक से डसने की पराकाष्ठा है । जहाँ पर धर्म ,ज्ञान ,विज्ञान ,सुख ,संतोष ,वैराग्य और विवेक धरे के धरे रह जाते हैं जीता है तो स्वार्थी ,स्वार्थ ।

समाज बहते मवाद फ़ोडे की भाँति धीरे -धीरे रिस रहा है । भ्रष्टाचार , स्वार्थ , दुराचार ,अपराधों का  इन्फेक्शन पाँव पसार चुका है । छेडो नहीं, छुओ नहीं वरना इन्फेक्शिया जाओगे । और न छेड़ा, न छुआ तो फ़ोडे में समा जाओगे । मतलब रास्ता दोनों ही तरफ़ नहीं ।

यम लोक राज्य के मौत के हिटलर यमराज की भी अब समाज को ज़रूरत नहीं....इसके लिये अब इंसान ही काफ़ी हैं । सड़क पर ज़रा सी बहस पर ली जाने वाली जान , पैसों की लिये हत्यायें ,अजन्मी -जन्मी बेटियों की हत्यायें...कितनी तरक्की कर ली इंसान ने । धरती पर रहते - रहते यमलोक के भी काम कर माननीय यम जी का काम आसान कर रहे हैं ।

ऐसी ही एक बेहद वाहियात एक ख़बर आई । एक टीचर की चाकुओं से गोदकर , उसकी ही कक्षा के दो बच्चे ने कर दी...साहब मुद्दा बेहद गम्भीर और सम्वेदनशील था । मै सोचती हूँ ऐसी घटनाओं को रोकने के लिये क्या किया जाय...उचित क़दम उठाये जाने चाहिये । बच्चो की तलाशी ले स्कूलों में आने दिया जाये या फिर ऑप्शन फलस्वरू टीचर्स को मिलिट्री ट्रेनिंग दिलायी जाये...या फिर हेलमेट और बुलेट फ़्रूफ़ जैकेट हर छः महीने दी जाये जिससे उनकी सुरक्षा की जा सके। यह क़दम सुरक्षा का एक छोटा और कारगर साधन साबित होगा।

वैसे इसके दो फायदे होंगे टीचर्स का बार्डर पर और दंगो पर सहयोग लिया जा सकेगा । दूसरा जिन कम्पनियों को इसका कंट्रेक्ट मिलेगा उनको और कंट्रेक्ट दिलाने वाले दलालो को भी लाभ मिल जायेगा ।

किसी मुल्क की शिक्षा व्यवस्था उसके मजबूत ढाँचे का मूल अंग होता है । देश के भावी भविष्य को तैयार करने वाले कर्णधार की इस तरह से निर्मम हत्या की यह  घटना शिक्षा व्यवस्था के साथ -साथ समाज के अस्वस्थ होने का रोना रोती है । यह मेरे व्यंग्य का विषय बन गया लेकिन देश क्या !समाज का क्या !

दिव्याँग बन चुके समाज को पोलियो डोज देना ज़रूरी है...क्यों न अमिताभ साहब को इसका ब्रैंड एम्बेसडर बना दिया जाये जो... दो बातें समाज को दुरस्त करने के लिये ज़रूरी हैं बताये और समाज को सही आईना दिखाये। खैर यह अगर -मगर ,किंतु -परंतु वाली एक लम्बी प्रक्रिया है जाने कब पोलियो मुक्त होगा समाज ।

हमारे देश में वैसे थोक भाव गैर सरकारी संगठन सदियों से कार्य कर रहे हैं लेकिन रावणो के चलते रामराज्य अब तक न आया। कुछ सामजिक मुद्दो पर कभी -कभी मेरी बेचारी आत्मा विलाप करने लगती है ।

एक बात बबीता की मामा -मामी के द्वारा रोज ज़रा सी गलती पर भयंकर प्रताडित किया जाता । हालाँकि यह दम्पति खुद शादी के दस साल बाद भी एक अदद बच्चे के लिये तरस रहे थे....जितने कर्म कांड कर सकते करते रहते थे...अनाथ बच्चो को खाना- पीना ,दान आदि लेकिन अपनी भांजी के लिये किसी कंस से कम नहीं थे । जब भी मिलते बड़ी ही अच्छी -अच्छी बातें करते...एक दिन अपनी भांजी को मार कर से बाहर निकाल दिया।और मन्दिर चले गये वहाँ भीख माँगने बैठे बच्चो को भीख दी उसके बाद अनाथालय पहुँचे वहाँ बच्चो को देख उनके मुँह से निकल गया कैसे निर्दयी लोग हैं दुनिया में जो बच्चो को ऐसे बेसहारा छोड़ देते हैं । कैसा यह समाज है। हाय यह दोगला रूप...हे ऊपर वाले और नहीं तो बस इतनी दुआ तो माँगूगी...गर्त दर गर्त गिरते समाज को बचा ले ऊपर वाले ।

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