रंग बिरंगी सी है दुनिया
कभी रंगो से मिल कर देखो न
चुप रह कर भी कभी
यूँ भी करो बात
हो नज़रों का सवाल
दो नज़रों में जवाब
भाषा कभी नज़रों की पढ़ लो न
रंग बिरंगी सी है दुनिया
कभी रंगो से मिल कर देखो न
खामोशी का लुफ़्त कभी
खामोशियों से लो
हो कर बे जुबां
लफ्जों को साध दो
सरगम सा कभी मुझे साज दो न
रंग बिरंगी सी है दुनिया
कभी रंगो से मिल कर देखो न
अँधेरों में भी कभी
रोशनी की चमक ढूंढो
साथ जो हैं जुगनू बनकर
हुआ है जगमग जहां देखो
संग चलकर कभी उनके देख लो न
रंग बिरंगी सी है दुनिया
कभी रंगो से मिल कर देखो न
पीछे कर सुईयो को कभी
बाँध दो वक़्त को
भागते से पलों कॊ
लम्बा विराम दे दो
वक़्त को यूँ भी कभी कैद कर लो न
रंग बिरंगी सी है दुनिया
कभी रंगो से मिल कर देखो न
कर लेंगे हांसिल मंजिल
चाही है जो हमने
बिना किसी शर्तो के
चलो साथ पूरा करे
चलकर साथ कभी, साथ दे दो न
रंग बिरंगी सी है दुनिया
कभी रंगो से मिल कर देखो न
©® शशि पाण्डेय
Shashiipandey.bolgspot.com
No comments:
Post a Comment