10/06/2016

रंग बिरंगी दुनिया (कविता )

रंग बिरंगी सी है दुनिया 
कभी रंगो से मिल कर देखो न

चुप रह कर भी कभी
यूँ भी करो बात 
हो नज़रों का सवाल 
दो नज़रों में जवाब 
भाषा कभी नज़रों की पढ़ लो न 
रंग बिरंगी सी है दुनिया 
कभी रंगो से मिल कर देखो न

खामोशी का लुफ़्त कभी 
खामोशियों  से  लो 
हो  कर  बे  जुबां 
लफ्जों को साध दो 
सरगम सा कभी मुझे साज दो न 
रंग बिरंगी सी है दुनिया 
कभी रंगो से मिल कर देखो  न

अँधेरों में भी कभी 
रोशनी की चमक ढूंढो 
साथ जो हैं जुगनू बनकर 
हुआ है जगमग जहां देखो 
संग चलकर कभी उनके देख लो न
रंग बिरंगी सी है दुनिया 
कभी रंगो से मिल कर देखो न

पीछे कर सुईयो को कभी 
बाँध  दो  वक़्त को 
भागते से पलों कॊ 
लम्बा विराम दे दो 
वक़्त को यूँ भी कभी कैद कर लो न
रंग बिरंगी सी है दुनिया 
कभी रंगो से मिल कर देखो  न

कर लेंगे हांसिल मंजिल 
चाही है जो हमने 
बिना किसी शर्तो के 
चलो  साथ पूरा करे 
चलकर साथ कभी, साथ दे  दो न 
रंग बिरंगी सी है दुनिया 
कभी रंगो से मिल कर देखो न

©® शशि पाण्डेय 
Shashiipandey.bolgspot.com 

No comments:

Post a Comment