5/31/2016

एक कहानी

एक छोटे  से गाँव से गुजरना हुआ वहाँ देखा  कच्चा "बरोठ " ( बरामदा ) काफ़ी भीड़ लगी हुई थी ।मै उत्सुकता वश गाड़ी से उतर कर वहाँ जा पहुँची.....वहाँ जाकर देखते ही अपने देश के आज़ाद होने व अब तक के सरकारी तंत्र पर बेहद गर्व का अनुभव हुआ ।

वहाँ का नजारा कुछ यों था....दो तखत पड़े हुये थे अंदर एक कोने पर एक कुर्सी और मेज़ पर एक इंसान बैठा हुआ था जो की लोगों की भीड़ से घिरा हुआ था शायद वह उन गाँव वालों का डॉक्टर था ।

भीड़ इतनी कि मुझे झाँक कर देखना पड़ा कि कुर्सी पर  कौन है। कुछ लोग ज़मीन पर बैठे कराह रहे थे तो कुछ परेशान हो अपनी बारी का इंतजार तो कुछ दो तख्तो पर 10 से 12 लोग आड़ी -टेढे हो आधे धूप और आधे छाँव मॆ लटके पड़े थे। शायद उन्हे शहर वासियो की तरह सुख -सुविधा नही सिर्फ इलाज चाहिये।

यहाँ उनके शरीर मॆ पानी की कमी को डॉक्टर अपनी  कमाई के जरिये बराबर  कर  रहा था । लोग अन्धों मॆ काने राजा या यों कह लीजिये "मरता क्या न करता  " वाले हाल मॆ इलाज करा रहे  थे या कराने को मज़बूर थे...शायद ये "डाकटर साहेब" ही इनके लिये किसी बड़े चिकित्सक से नही...!!   ये मेरे अपने बुंदेलखंड के छोटे से गाँव की बड़ी सी बात !! शशि पाण्डेय ।

No comments:

Post a Comment