हर किसी के लगभग फेमली डॉ होते थे आज भी होते हैं पर आज मेडिकल इंसोरेंस ज्यादा चलन मे और किफायती समझा जा रहा है। लोग भी क्या करें महँगाई के दौर मे हर एक बात पर ध्यान देना ज़रूरी हो चला है ।
आज लोग कॉलगेट के साथ -साथ नीम दातून पर भी हाँथ नही दाँत आजमा रहे हैं । साथ मे पिज्जा और बर्गर का साथ देने को रामदेव दलिया भी पीछे नही ।
जितने लोग उतने ही योग आसन और उतने ही डॉ और उससे कहीँ ज्यादा बीमारियाँ व बीमार लोग....बात बिमारियों की करें तो शारीरिक बीमारियों के अलावा मानसिक बीमारियों के भी शिकार कम नही। ये मानसिक बिमारिया कई कई रूपों मे है इसका राजनीतिज्ञों पर ज्यादा असर दिखता है। और इनके अनुयायियों पर भी ।
बात डॉ डे की है...हमारे फैमली डॉ जरूरत पड़ने पर तो आते ही थे जब जरूरत नही होती तो कभी -कभार वो खुद भी टहलते घूमते शाम को मिलने आते । डॉ थे पर शौक नेताओं वाले (मक्कारी छोड़) ...खुली जीप...सफेद और रंग बिरंगे ट्नाटन कुर्ता -धोती....बगल मे पिस्टल..साथ मे एक आध असलहे वाले जी हुजुरी करते लोग ...मतबल पूरे लाव-लश्कर के साथ । हाँ उनकी रजामुराद टाइप की बालो वाली गरम टोपी से मुझे डर लगता था ।
उनके अस्पताल जब भी पापा के साथ जाना होता...अस्पताल के आँगन मे बीचोबीच मालती का पेड़ उसके चारो ओर पत्थर के बेंच लगे होते...शाम को दादा जी (मै उनको बुलाती हूँ ) कई बार उसी आँगन मे मरीज़ देखते....अस्पताल होते हुये भी एक अलग सी रौनक रह्ती थी...उसकी वजह वह खुद थे ।
उनमे वाकई डॉ वाले गुण थे....गरीब बीमार...बिमारी मे गरीब लोगों की खुले दिल से मदद करते...वो आजीवन कुंवारे रहे..."राहुल गाँधी जैसे नही" घर परिवार को समर्पित जो अगली पीढी मतलब हमारी पीढी वाले लोगों मे शायद ही दिख पाये।
इस बार घर गई तो पता चला वो डॉ खुद बिमार हो चला है...फॉलिस का जबरदस्त अटैक....कुछ दिनों तक वो हिल -डुल तक नही पाये...अब शायद इशारों मे बात समझ लेते हैं..ये ट्नाटन कुर्ता -धोती वाला डॉ आज एक मैले से बिस्तर मे मैले से अंडरबियर ,बनयान मे पड़ा रहता है..बताया गया कोइ ज्यादा ध्यान देने वाला नही है.....क्योंकि आज वो डॉ नही...एक बिमार है...सिर्फ एक बिमार ! शशि पाण्डेय
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