7/21/2016

जाहिल ए तारीफ़ ( व्यंग्य लेख )

अंजाम ए कुछ भी हो यार 
देखना अब तो प्यार है 
होता है तो हो जाये 
अब तो बस आर या पार ॥

चुनाव के दिनों मे नेता लोग दूसरों की पुंगी बजाने के बजाय खुद के साथ -साथ पार्टी की भी बैण्ड बजा रखते हैं । हर पार्टी मे ऐसे नायाब सरफिरे पाये जाते हैं।

ये पार्टी के नायाब सरफिरे नेताओं का प्यार भी गजबै होता है । कुच्छौ कर गुज़रने पर आमदा । ये जिस कला से  पार्टी की लुटिया डुबाते हैं ये देखते ही बनता है । मानौ ये कहते हो.....

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल मे है 
देखना है जोर कितना कातिल ए बाजू मे है ॥

हाल ही  मे कुछ नेताओ ने महिला नेताओं को लेकर टिप्पणी की वह बेहद ही जाहिल ए तारीफ है ।
ये पुण्य काम करने के बाद इस्तीफा ,इस्तीफा न होकर यूँ लगता है पिंड दान हो या कोइ क्रांति हो! इससे पार्टी तर जायेगी या कोइ बदलाव हो जायेगा ।

महिला विरोधी वक्तव्य देने के बाद उससे बड़ी  लतीफगिरि इनके इस्तीफे के बाद ऐसा लगता है जैसे इसके बाद देश मे महिलाओ की दशा मे तेजी से सुधार होगा। ऐसे इस्तीफे पार्टी की छवि सुधार के लिये बूस्टर इस्तीफा साबित होते होगे । माँ -बहन की गालियों का दुरपयोग नही होने लगेगा सिर्फ वक़्त -वक़्त ,मतलब वक़्त पड़ने पर ही दी जायेगी ।

इसके साथ ही वेश्यावृत्ति पर भी रोक लग जायेगी । औरतो की तरफ़ उठने वाली हर नज़र पाकीजा होने लग जायेगी  । अगर किसी ने गंदी नज़र से घूरा भी तो वह इस्तीफेबाज नेताओं के नाम मात्र लेने से सर्र से सर से ले कर पांव तक पानी -पानी हो जायेगा और भय से थर थर्रा उठेगा।

ऐसे पूछ जिनकी कोइ पूँछ पार्टी मे नही होती अपनी पूँछ बनाने के लिये ही ऐसी पूछ हिलाते हैं और पूछ  हिला कर पार्टी को भी हिलाकर हिनहिनाते हुये बाहर का रास्ता नपा दिये जाते हैं ।

तो कुछ पार्टी के मेरुदंड बन वही निर्लज्जता से अडिग  खीसे निपोर -निपोर कैमरे मे फेस चमकाते रहते हैं। पक्ष -विपक्ष के बहाने ये कुंठित प्राणी अपनी कुंठायें निकालते रहते हैं।

ये कुंठित तो अपना काम कर बैठते हैं और इधर पक्ष -विपक्ष प्रेमी जनता आपस मे जूझ मरती  है। कभी मामला ज्यादा उलझा तो पार्टी प्रेस कांफ्रेंस कर वैतरणी भी पार कर लेती है।

तो ऐसे मामलो मे मीडिया ऋषि नारद को कभी नही भूलती है वह आग लगाने की सारी सामग्री प्राईम टाईम के नाम चार लोगों को बैठा खूब आग लगवाते हैं । मीडिया बेचारा तो इस ताक मे रहता है कि कोइ  घटना घटे और मेरी दुकान चले । एक शेर जो हाल ही मे पढ़ा वो यहाँ सटीक बैठता है कुछ इस तरह...

कुछ दिनों से है बहुत खामोश मेरा दिल जिगर ,
कोइ दुर्घटना घटे तब गीत मै पूरा करूँ ।"सुशील सिद्धार्थ

मै यहाँ "गीत" को समाचार या ख़बर फिट मानती हूँ ।  हर पार्टी ,ऑफिस , गली -मुहल्ला सभी जगह नीचता रस से लबरेज़ कुछ तुच्छ लोग मिल जाते हैं जो औरतो के नाम पर स्वयं गाली लगते हैं। ऐसे लोग अपने साथ -साथ समाज मे हर किसी का नुकसान करते हैं ।

ऐसे लोगों के इस्तीफे सिर्फ घड़ियाली आँसू साबित होते हैं । इनको और तगड़ा सबक सिखाने की ज़रूरत है । वरना पार्टी प्रेम के नाम पर  न जाने क्या -क्या कर बैठेंगे।

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