7/05/2016

काश तुम न जाते !

तुम्हारा फेसबुक अकाउंट देख लगता है जैसे तुम हो...यही कही कही हो...जानती हूँ तुम अब इस दुनियाँ के नही रहे ।
अनहोनी ,विपत्ति जैसे शब्दों को तुमने चरितार्थ कर दिया..इधर कई दिनों से किसी भी काम मे मन नही लग रहा था । इस बीच मै तुम्हे याद कर रही थी जब से घर से आई हूँ तुम मुझे मिलने नही आये हो ।तुम्हे फोन ही करने वाली थी की घर आ जाओ ..दो दिन स्कूल खुलने के बाद संडे आया घर के काम निपटाये और सुबह खाने का मन नही था सो दिनभर मे शाम को खाना लेकर खाने बैठी थी दाल -चावल खा रही थी।

तुम्हे मन ही मन याद कर रही थी । तभी मेरे फोन की घंटी बजी तुम्हारे बड़े भाई का फोन था ...मेरे हाँथ खाने मे थे बिटिया को फोन उठाने को कहा....तुम्हारे बड़े भाई ने बिटिया से कहा पापा से बात कराओ अरजेंट है ।

फोन मे हैलो हुआ उधर आवाज़ आई तुम्हे करेंट लग गया और तुम्हे होलि फेमली हॉस्पिटल लेकर आये डॉ कह रहे हैं अब इसमें कुछ नही है....

तुम्हारे छोटे भइया यानि मेरे पति ये ख़बर सुनते ही फोन मे चिल्ला पड़े थे उनके हाँथ से फोन छूट गया था वो कांपने से लगे थे...कुछ बता नही पा रहे थे ।

मैने फोन उठाया वापस तुम्हारे भाई को फोन लगाया जो बताया गया मुझे वह सुनकर मै सर से पांव तक जड़ हो गयी मेरे मुँह से चीख निकल गई ।

हम दोनो ने जल्दी - जल्दी जरूरी सामान लिया और हॉस्पिटल पहुँचे वहाँ तुम्हारे मेरे रिश्तेदार सब लगभग आगये थे तुम्हारे भाई से सामना हुआ तो दोनो ही फूट -फूट कर रो पड़े...जैसे -तैसे हिम्मत कर अंदर गई तुम इमरजेंसी मे पड़े थे जैसे सो रहे हो...तुम्हारी  और भी कोइ थी जो तुमसे लिपट हुई पागलों जैसी हरकतें कर रो रही थी..उसकी जिद थी तुम्हे किसी और हॉस्पिटल ले चले...

तुम्हे ऐसा देख यूँ हो रहा था जैसे मेरी भी साँस रुक जायेगी ।तुम्हारे हाँथ को अपने हाँथ मे लिया ,एक हाँथ  तुम्हारे सीने मे रखा अंदर से लगा जैसे तुम अभी साँस लोगे और शरीर मे कोइ हरकत होगी...पर अफसोस ऐसा नही हुआ तुम दगाबाज निकले ।तुम्हारे शरीर मे चोटों और जलने के निशान मौजूद थे जिसकी वजह से तुम्हारी जान गयी ।मैने तुम्हे सर से पांव तक छू कर देखा....जहाँ चोटें आयी थी वहाँ नही छुआ सोचकर छूने मे तुम्हे दर्द न हो....ये मेरा मन था अब तुम्हे दर्द कैसा तुम तो जा चुके थे दर्द और पीडा के संसार से दूर ।

अब तैयारी हो रही थी तुम्हे  माँ -बाप के घर ले जाने की पर तुम्हारे शरीर पर कानूनी कार्यवाही होनी थी..पोस्टमार्टम के लिये तुम्हे एम्स ले जाया गया ।तुम्हे उन रास्तों पर ले जाया गया जहाँ कभी तुम अपनी गाड़ी से दौड़ते थे । तुम्हारे शरीर को तुम्हारे भाई और निकट जन मोचरी मे जमा कर घर आ गये ।मै रात मे सोचती रही काश कोइ चमत्कार हो जाये और तुम जिंदा हो जाओ..पर ऐसा कहाँ होता है...सोचती रही हम सब घर है और वहाँ तुम अकेले पड़े हो...

रात भर फोनों के दौर चल रहे थे तुम्हारे सारे भाई तुम्हारे फ्लैट पर थे मै यहा बच्चो के साथ ,बच्चे सो गये और मै रात भर बैठी तुम्हारे भइया को पूछती रही क्या...कैसे !वो तुम्हारे फ्लैट से रात को दो बजे भीँगते हुये घर आये ।रात पहाड़ सी बड़ी हो रही थी... बैठे, रोते याद करते सुबह के पाँच गये बैठे -बैठे एक बार मेरी और तुम्हारे भइया की आँख गई। आँख खुली तो 6.20 हो रहे थे उठे धीरे -धीरे कुछ फैला सामान समेटा नहा धो तैयार हो ..तुम्हारे भइया ने मुझे तुम्हारे फ्लैट पर छोड़ा ...और तुम्हारे दोनो भाईयो को ले एम्स चले गये ।

तुम्हारी भाभी ने मुझे  देखा और फफक कर रो पड़ी...दीदी सब ख़त्म हो गया । दोपहर मे फोन आया पता चला पोस्टमार्टम हो गया अब तुम अपने घर माँ -बाप और एक लाडली बहन के पास ले जाये जा रहे हो ।

बहन जिसकी शादी तुमने तय की थी...कहते थे भाभी ,बहन की शादी मे दबा कर पैसा खर्च करूँगा सब फिट कर लिया है । तुम जब भी घर आते कभी ये नही पूछते थे मै कहाँ हूँ बस बोलते थे दूध है न ?चाय पीने आ रहा हूँ..और मै तो जैसे तुम्हारा इंतजार ही करती रहती थी...तुम्हारे जेसा चाहने वाला..खुशदिल केयरिंग देवर कौन नही चाहेगा ।

तुम्हारे फ्लैट मे बचे लोग ट्रेन से जा रहे हैं और तुम एम्बुलेंस से ।तुम्हारे माँ -बाप को अभी भी झांसे मे रखा गया है नही बताया गया कि तुम अब नही रहे दूसरी दुनिया मे जा चुके हो । तुम्हारी बाइक मेरे यहा खड़ी की है...तुम्हारे गाड़ी की  चाभी का गुच्छा जो तुम मेरे यहा लेकर आते थे....तुम्हारे बगैर मेरे वो पास रखा मै उसको भी देख रोती रही..

तुम्हारा शरीर घर पहुँचा पूरा गाँव उमड़ पड़ा है तुमसे मिलने को..यहा तक की वो लोग भी आये हैं जिनका तुम्हारे खानदान से बोलचाल नही था । तुम्हारी माँ रोने के बजाय तुम्हे देख गाने गा रही है वो कह रही है मेरा हीरो आया है आवाज़ लगा तुम्हारी बहन से पेडे लाने बोल रही है...पेडे ले कर आ भइया आया है...तुम्हारा भाई...बिलख -बिलख कह रहा है हमने भाई नही बाप खो दिया । तुम्हारे  छोटे  भाई ने घर मे लगे मंदिर को तोड़ -ताड़ कर बाहर फेंक दिया..

तुमने छोटी सी उम्र मे भाई ,घर ,परिवार सब कुछ इतना अच्छे से सम्भाल लिया था कि कोइ बड़ा भी न सम्भाल पाता । तुम्हारी माँ ने जिंदगी मे  बहुत कष्ट झेले थे....तुमने सब कुछ सम्भाल उसको दुनिया भर के सपने दिखा दिया था...और फ़िर सब धराशायी कर गये ।

हर किसी को टोकना ,आदर -सम्मान देना तुम्हारे अच्छे होने की बुनियाद थी । छोटे -छोटे बच्चे तुम्हारे दीवाने थे...चाचू -चाचू कहते न थकते थे ।

मै भगवान मे किन्हीं वजहों से विश्वास नहीँ करती...रही सही आस्था तुम्हारे जाने के बाद वो भी नहीँ रही 

जानती हूँ तुम सब देख रहे हो ,समझ रहे हो । तुम यही हो हम सबके साथ तुम भी उतने ही परेशान ,बेचैन हो जितने हम सब । काश कोइ तरकीब होती तुम्हे वापस ला सकते..तुम कभी नहीँ भूलोगे...कभी भी नहीँ..तुम्हारी भाभी

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