ख्यालों पर प्रतिबंध,रास विलास पर प्रतिबंध,आवाजाही पर प्रतिबंध,राजनीति में क्या आ गए कदम कदम पर ताकाझांकी,यह भी कोई बात हुई। बात मेरे बैडरूम के सैतारी और बेगारी के पलों की थी राजभवन तक पहुंचा दी बिना ख्याल किये राजीनीति में भी निजता होती है ।
मुन्ना राजनीति मॆ क्या आये "आम"आदमी से खरबूजा बना दिया । हट्ट साला जिन्दगी झंडू बाम बना दी ।अरे आटा अलग रखो पानी अलग यह क्या न जगह देखी न समय और सब सान बराबर कर दिया । मुंह फाड़ दिया ऊपर से ससुरी मीडिया बकैतियाने पर तुल गई जैसे इनकी भैंस छोड़ ली हो मुन्ने ने ।
अरे यूँ भी कोई सरेआम.."आम आदमी" कॊ बदनाम करता है क्या भला ! शराफत का ज़माना ही न ही रहा । अरे शराफ़त तो बीसवीं सदी मॆ हुआ करती थी । ये मुँह बाये मुये कैमरे जब न थे । कोई कही आये -जाये कुछौ करे कौनो कुछ चाह कर भी इतनी हद तक ताक -झाक नही लगा सकता था । यह सी सी टी वी के दोगलेपन का मार्मिक चित्रण है । कभी -कभी राजनेता फोकट में मिलने वाली शाही विडम्बनाओं से उपजी सँत्रास से ऐसी निरुउदेश्य रसनित्पत्तियाँ हो जाती हैं ।
अब दिल का दुखडा का कहता ,किससे कहता बेचारा ! पार्टी के पापा खुदै कॊ शांति देने के लिये विपश्यना मॆ समय गुजार रहे हैं । मुन्ना इश्क दिमाग की नहीं दिल की चीज होता है पगले । मुन्ना के पास दिमाग होता तो नेतागिरी करता भला ? कोई और ढंग का काम न कर लेता लेकिन एक बात साबित हो गई क़ि राजनीति भी बद दिमाग हो गयी है और राजभवनो के पास दिल है ही नही। बेचारे नेता जी भी इसी के शिकार हुए। जब दिल और दिमाग दोनों चाहत के तराजू पर होते हैं तो पड़ला दिल की ओर झुक जाता है । मुन्ने ने भी अगर यही किया तो कौन सा गुनाह किया ।
खैर जो भी हुआ वह सुखपत्ति थी । इसमें कुछ गलत नहिं । प्रभु की रास लीला से सबको इतनी हिम्मत तो मिलती है कि एक से अधिक प्रेम सम्बन्ध स्थापित कर सके । अफ़सोस है तो केवल इतना कि मालूम होता उनको , कि यह अप्रायोजित चलचित्र अभागी जनता कॊ देखने कॊ मिलेगा तो ,थोड़ा कायदे से सब होता । अरे मुन्ना आखिर वी वी आई पी था । प्रभू के पास राधा ही नही सैकड़ों गोपियाँ थी। रुक्मणी के अलावा सोलह हजार पटरानियां थी । बस गनीमत थी कि तब राजभवन इतना निर्दयी नही था और बेवक़ूफ़ मीडिया भी नही था।
और तो और शुकर है यह वक्तव्य नही आया कि "बरबस ही मोहि लपटायो " लोगों कॊ राजनीति मॆ अक्सर ज़बान फिसल जाती है । मुन्ना "महिला बाल विकास" मंत्री के ओहदे पर था क्या करे मनचली नियत के चलते पाँव फिसल गया और पाँव फिसल कर पव भारी हो गयो तो इतना बवेला क्यों भई । बवेला तो अंग्रेजों के ज़माने में होता था ।
वैसे "आज़ की नारी सब पर भारी " एक नारी भारी तो दो -दो तो स्क्वायर हो गया द्वितीय श्रेणी गुणनफल तो आना तय है । यह तो कुकरमुत्ते की छत्रछाया है कहाँ तक और किस तक ! दिल्ली की जनता के लिये इससे अच्छी लाइनें नही...
काफी दिन काट लिये , उम्र के अचम्भे मॆ
मरे हुये कौवे से , बिजली के खम्भे मॆ ॥
यह सब राजनीति के मोह बोध का आधुनिक यथार्थ है । हर्ष -आनँद के लिये बिग बॉस के दरबार मॆ सब माफ़ है । किसी ने ठीक ही लिखा है...
सिर्फ़ आंकड़े अख़बारों में ,छपे तबाही के
सत्य यहाँ पीछे चलता है ,सदा गवाही के ॥
क्या करियेगा जनता जनार्दन, आपको हुक्मबाजी की इजाजत संविधान पाँच सालो में एक बार देता है और मुन्ना रूपी आत्माओ कॊ पाँच सालो में पाँच जन्म जितने । वैसाखी बन चुकी हे जनता ! तुम काहे न लंगड़ा कर चलोगी । और अगर नही चलना चाहते हैं तो चीड़ -फाड़ कर शल्य क्रिया कर ही डालिये....ताकि कोई भी मुन्ना गलती से भी न कह सके की "मईया मोरी मै नहिं स्टिंग करायो "
© शशि पाण्डेय ।
Shashiipandy.blogspot.com
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