12/12/2015

सीवान सांसद ओम प्रकाश यादव

प्र०-कांग्रेस जो मुख्य विपक्षी पार्टी है संसद की कार्यवाही को बाधित कर रही है निजी कोर्ट के मामले को लेकर व अन्य मुद्दों को लेकर भी ,आपकी क्या प्रतिक्रिया है
उ०-लोकतंत्र के मंदिर संसद को न चलने देना  का दुर्भाग्यपूर्ण है कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी है वर्षों-वर्षों तक देश में शासन किया है आज उनका चरित्र देश की जनता के आगे स्पष्ट है और ये पार्टी व्यक्ति विशेष के लिए देश को नुकसान पहुंचाने मे पीछे नही है ।यह कोर्ट  का मामला है सोनिया व राहुल जी को कोर्ट ने बुलाया है उस पर भी स्पीकर महोदया ने बार -बार कहा अगर कोई बात करनी है आप नोटिस दो हम बहस करा लेते हैं माननीय राजीव प्रताप रूढी जी ने भी कहा पर विपक्षी बिना वजह ही हंगामा कर सदन नहीं चलने दे रहे हैं जिससे देश का नुकसान हो रहा है।एक तरफ नरेन्द्र भाई मोदी दिन रात कर देश का मान सम्मान बढ़ाने व आर्थिक स्थिति मजबूत करने में लगे हैं ।दूसरे तरफ ये लोग अडंगा डाल रहे हैं विधेयक न पास हो पाये GST आप आप देख लें उस पर विचार चल रहा है ।ये विधेयक कांग्रेस का लाया था और हम  चाहते हैं कि उसको पास किया जाये जिससे देश की आर्थिक ग्रोथ बढ़ जाये  उसको भी ये बाधित कर रहे हैं पर देश की जनता सब देख रही है।
प्र०-सत्र के पहले कांग्रेस को साथ लेकर चलने की कोशिश की गई जिससे लगा था सत्र चलेगा और काम भी होगे पर ऐसा दिख नहीं रहा
उ०-बिलकुल सब अच्छा चल रहा था जिस दिन से कोर्ट का मामला आया उस दिन से कांग्रेस ने हंगामा करना शुरू कर दिया जिससे सरकार का कोई लेना देना नहीं है अगर फिर कहीं दिक्कत है तो बहस करा लें ,बात को समझते हैं फिर भी सदन  नहीं चलने दे रहे हैं  जो कि ठीक नहीं।
प्र०-असहिष्णुता को जिस तरह विपक्ष मुद्दा बनाकर  बिहार चुनाव से पहले राजनीति की क्या कहेंगे
उ०-जी बिहार चुनाव के पहले जो जोर शोर से माहौल बनाया गया हमारे कुछ बुद्धजीवी वर्ग,कुछ फिल्मी दुनिया से जुड़े लोग भी पुरष्कार लौटाने की दिशा में चल पड़े लेकिन ये वही लोग हैं जो पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित है व जुड़े हैं हालांकि यह सब किसी के द्वारा प्रयोजित था इन्हीं सब के चलते सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस को कहना पड़ा कि ऐसा कोई माहौल नहीं है देश में ।हम कहते हैं अगर इतनी ही संवेदनशीलता और सहिष्णुता थी तो तब क्या किया जब कश्मीरी पंडित को अपने ही देश में अपने घर से बेदखल कर दिया गया ,चौरासी के दंगे,मेरठ दंगा,भागलपुर दंगा इन सब में इन की संवेदनाये कहा चली गयीं थी जब की आज ऐसा कोई मसला ही नहीं है तब बवाल क्यों किया जा रहा है सबको पता है।
प्र०-संसद में सहिष्णुता पर जो बहस हुई उसकको जनता ने किस प्रकार लिया
उ०-देखिए देश की जनता ने देखा संसद में पूरे दो दिन तक असहिष्णुता पर चर्चा हुई और जब हमारे माननीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह जी ने जब जवाब देना शुरू किया और कहा कि देश में अगर कोई बहुत तिरष्कृत गया तो वो थे बाबा साहब अम्बेडकर ,उस समय हमारे यहाँ भारत में छुआछूत बहुत था और उन्होंने बहुत तरह की सामाजिक संकीर्णता को झेलकर के भारत के संविधान को रचा और यही रहे भारत छोड़कर जाने की बात कभी नहीं की ,इतना कहना ही था के विपक्ष ने हंगामा करना शुरू कर दिया इसके बाद वो वाकआउट कर गए ।उन्होंने जवाब ही नहीं सुना ....जब आप बहस करा रहे हो ,प्रश्न उठा रहे हैं तो जवाब भी तो सुनना पड़ेगा ।अभी गम्भीर मुद्दा किसानों का उसपे आधे दिन चर्चा हुई पर कांग्रेस ने उस चर्चा को महत्व ही नहीं दिया।बहस को बाधित कर दिया पर यह सब देश देख रहा है ।हजारों दर्शक संसद की कार्यवाही देख रहे थे वो सब कांग्रेस को कोसते हुये बाहर निकले हमने लोगों से पूछा तो लोगों का कहना था विपक्ष देश के साथ धोखा कर रहा है।
प्र०-आपकी राय में विपक्ष को एक्सपोज करने के लिए क्या रणनीति बनानी चाहिए क्या राज्यसभा व लोकसभा का संयुक्त सत्र बुलाना चाहिए
उ०-अभी राज्यसभा व लोकसभा का साथ में सत्र बुलाने की स्थिति परिस्थिति नहीं फनी है अभी काम चल रहा है और हमे उम्मीद है कि विपक्ष अपनी भूल सुधारेगा और रचनात्मक सहयोग करने के लिए आगे आयेगा ।
प्र०-मोदी सरकार के 18महीने के कार्यकाल में उनकी मुख्य उपलब्धियों में जन-धन योजना दूसरी दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर योजना शुरू करायी है जिससे गांवो तक बिजली पहुंचाने का काम किया जा रहा है ।मोदी जी ने कहा 63 KBS से कम पावर के ट्रांसफार्मर नहीं लगेंगे ।16 व 25 KBS के ट्रांसफार्मर लगेंगे ही नहीं ।पहले राजीव गांधी विद्युत करण योजना नाम था इसको बदल कर सारी योजनाओं को एक करके दीन दयाल उपाध्याय विद्युत करण योजना का नाम दिया और हमने राज्यो को पैसा दे दिया है अब राज्य अपने स्तर पर काम करे जो कि विकास के लिए उचित भी है और जरुरी भी है ।दूसरा गरीब लोग बैंको से दूर थे उनको सीधे रूप से जोड़कर बीमा योजना के तहत भी उनको बैंको से सीधे रूप से जोडकर बीमा योजना के तहत भी उनको लाभ पहुंचाया गया ।दूसरा बेटी पढाओ,बेटी बचाओ योजना चलायी और बेटियों के विवाह के लिए एक योजना शुरू की 14वर्ष तक 1000हजार जमा करने पर 14 वर्ष में ये राशि 1लाख हो जायेगी पर योजना के तहत ये राशि 6लाख दी जायेगी  ये योजनाएं ग्राउन्ड लेवल में कार्यरत हैं एक और योजना अटल पेन्सन योजना जिसमें 240 से300रू०50 साल की उम्र तक प्रीमियम जमा करने पर 60साल में हर महीने 5000 रू० पेन्सन मिलने लगेगी।तो ये मुख्य उपलब्धियाँ  हैं हमारी सरकार की।
प्र०-बिहार चुनाव में काला धन के जुमले को मुद्दा बनाया गया इसमें आप क्या कहेंगे
उ०-देखिए काला धन मुद्दा पर  , मोदी जी ने शपथ लेने के बाद पहला हस्ताक्षर SIT कमेटी के गठन पर किये जबकि सुप्रीमकोर्ट के बार -बार कह रहा था कि SIT कमेटी का गठन किया जाए लेकिन विपक्षी पार्टियों ने इस पर ध्यान नहीं दिया वो मोदी जी ने किया चूंकि यह देश के बाहर का मामला है तो वहां के लोगों को साथ लेकर काम करना है तो उसमें प्रयत्नशील हैं कुछ नाम आ चुके हैं कुछ नाम और  आयेगे भी लेकिन जहाँ आप बिहार की बात कर रहे हैं तो वहां जातिवाद की जीत हुई है।
प्र०-अपने 18 महीने में सांसद निधि से अब तक क्या काम किया है
उ०-मात्र हम नौ सांसद हैं जिन्होंने अपनी निधि को शत प्रतिशत खर्च किया है इसमें हमने सड़कों,नालियो का निर्माण कार्य ,मास लाइट,फुन लाइट फाॅगिंग मशीने इत्यादि दिया मच्छरों से होने वाली बीमारियों से बचाव हो इसके लिए हर पंचायत में फाॅगिंग मशीने दे दी गयी हैं ,अस्पतालों में जिन सुविधाओं की कमी थी उनको पूरा कराने में प्रयास रत हैं ।गरीब बच्चों को मुफ्त किताबें बटवायी गयी तो राशि हमारे पास आइ थी वह अपने क्षेत्र में हम लगा चुके हैं।
प्र०- आदर्श गांव जो लिया उसमें क्या -क्या किया आपने
उ०-वहाँ हमने 30-40 परिवारो को मास लाइट दिया ,6,8,8 लाख की सड़कों का निर्माण करवाया ।माननीय आर के सिन्हा जी से सांसद विकास मद  से एक करोड़ रुपये का आश्वासन लिया है राष्ट्रीय लाइब्रेरी बनाने के लिए ,20-25 लाख रुपए देकर हमने वहाँ इसका भूमि पूजन कर दिया है ।व राजेंद्र बाबू की मूर्ति उनके पैतृक गांव में लगवायी जिसको लोग काफी समय से मांग रहे थे ,आपके माध्यम से हम अपने रेल मंत्री जी को धन्यवाद देना चाहते हैं।
प्र०- कोई केन्द्रीय योजना जिसको आप अपने यहाँ चाहते हों
उ०- मैंने अपने क्षेत्र में कइ ऐसी जगह हैं जहां रेलवे ट्रैक की मांग की थी जिसको ममता जी के कार्यकाल में पास कर सर्वे के लिए दिया गया था ,वो क्षेत्र ऐसा है जहां ट्रेन में बैठना तो दूर लोगों ने ट्रेन देखा ही नहीं है तो मैं आपके माध्यम से माननीय रेल मंत्री जी आग्रह करना चाहता हूँ कि वहाँ चलकर रेलवे ट्रैक के सर्वे का काम पूरा होने की अनुमति दे कर कार्य का शिलान्यास करें ।मेरा इलाका बहुत पिछड़ा है ट्रेन चलने से आवागमन होगा तो विकास भी अपने आप होने लगेगा।
प्र०- LPG विभाग के आप सदस्य हैं उसमें क्या किया
उ०-मैंने अपने क्षेत्र में कई गैस एजेंसी खुलवाइ हैं,हमारे हर ब्लाक में लगभग ये हो गया है।
प्र०- एक आरोप लगता है कि कार्यकर्ताओं का कि उनकी बात ऊपर तक, केन्द्र तक नहीं पहुँचती है इस बारे में क्या कहेंगे
उ०- ऐसा नहीं है जो भी उचित बातें या मांगें होती हैं उनको मंत्री सुनते हैं और अमल में लाने की कोशिश भी की जाती है ,तो ये बेबुनियाद बात है।
प्र०- सरकार को कुछ खास ओर ध्यान देने की जरूरत है ,क्या कहेंगे
उ०- हां बिलकुल किसानों के ऊपर ध्यान दिये जाने की जरूरत है ,मनरेगा जो पैसा अब तक रुका है वो जल्दी भेजा जाए ,रोजगार का सृजन किया जाए और किसानों की जो भी समास्याए हो उन पर उचित कार्यवाही की जाये ।खाद ,बीज की उचित दामों में व्यवस्था करायी जाये ।सिचाई व्यवस्था स्थापित करायी जाये और सम्भव हो सके तो किसानों का लोन माप कराया जाए क्योंकि आत्महत्या की मुख्य वजह यही है किसान कर्ज के चलते खुदकुशी कर रहे हैं । बीच में रोकते हुये मैंने पूछा ....."यह एक सांसद के रूप में बोल रहे हैं या किसान के ".......उनका कहना है हम खुद एक किसान हैं ,पिछली बार जब हम जीत कर आये थे तो हमने मांग रखी थी किसान के लोन भुगतान न करने की दिशा पर कई किसानों को जब  जेल होती है तब भी उनके किस्तों का हिसाब रखा जाता है जबकि एक अन्य अपराधी जेल जाता है तो उसको सरकार मुफ्त में खिलाती है,हमने मांग रखी थी ये अंग्रेजी कानून बदला जाये और समय व सि्थति को ध्यान रखते हुए सही मूल्यांकन कर किसानों को सही मुवावजा दिया जाए ।
 

11/19/2015

भइ चारे का चारा ( व्यंग्य लेख)

ओये चुनिया ,मुनिया,धनिया हमरे बुडबक भाइया फेर जीत गवा रे....बड़ा भारी सिटवा आवा रे कउनो  टिकै न पावा सब यादव भाई एक जुट हुई गवा ,त कउनो पार न पावा.....अब ई चायवाले (मोदी) भइया को कउन समझावे दूध से जरैं के बाद भी (दिल्ली हार) न समझै । बिहार महागठबंधन विजय 🏆अब खूब फलफूल रहा है ,आगे समय में जाने और कितने गुल और  क्या रंग लायेगी पर कुछ राजनीतिक जानकारों का मानना है कि फिर बिहार में एक बार जंगल राज की वापस हो आ गया है ये कयास .....कयास ही न ही रहे  , बल्कि लोगों  के दिलो कि ख्वाहिश पूरी भी हो गयी  । 

 उधर बिहारी दादू,दबंग भाइयों के मन मनो लड्डू फूट चुके हैं, आखिर हो भी क्यों न एक बार फिर दबंगइ का जादू बिखेरने को जो मिलने वाला है ,जाने बिहार में भ्रष्टाचार होगा या भ्रष्टाचार में बिहार मे बहरहाल  बयार आना तय है । 

तो उधर बीजेपी घराने के नेता यूँ लगा जैसे अपने ही कुनबे की पराजय की बाट जोह रहे थे ताकि वो पार्टी के अन्दरूनी विरोध झेल रहे सदस्यों के खिलाफ सीना पीट -पीट रूदाली बन सके, लगा जैसे एक ग्रुप मोदी के खिलाफ लामबद्ध हो चुके हो ,तो मोदी और शाह की शहंशाही घटते ही कुछ बुजुर्ग सरदारों ने भी तीर 🎯कमान साधते देर न लगाते ।

 ये मोदी की घटती लहर है या नीतीश का भाजपा में व्यक्तिवादी विद्रोह की अटूट और असाधारण प्रभाव निकला ।बिहार हार की असर का तासीर राजनीतिक दलों में बिलकुल अलग -अलग रही।मोदी को बिहार की हार से थोडी  सीख तो अवश्य मिलीं होगी  कि वंचित वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग में अपनी साख फिर से वापस लौटाए और मध्य वर्ग के पुराने आधार को भी मजबूत करे ।  तो जानकारों का अंदाज़ा है नीकू का ( नीतीश कुमार ) वही हाल होगा  जो कभी माझी का हुआ ,नीकू कहीं लालू के इक्के बन कर रह गये हैं ।

 बिहार की बेचारी जनता का क्या होगा । बिहार के पाणिग्रहण राजनीति ने एक बार दूसरे शाह के मैनेजमेंट व चुनावी रणनीति पर सोचने पर मज़बूर कर दिया । गुजराती शाह के आगे बिहारी शाह (लालू ) का चुनावी जुमला  काफी कारगर रहा " जब तक  रहेगा समोसे में आलू 🍠,तब तक बिहार में रहेगा लालू " बिहार की जनता ने लालू के परिवारवाद की परम्परा को बढ़ाकर लालू को तीस मार खां की कहावत से नवाज़ दिया ।

अब लालू के मदारी खेल में नीकू कौन -कौन से गानों में गुलहटी मार-मार कर करतब दिखायेगे और मनभावन व मनोरंजक होगा आने वाले पांच साल बतायेगें । बिहार पाणिग्रहण  भइ चारे के चारे का स्वाद बिहार की जनता को स्वादिष्ट लगे या फीका पर नीकू को मजबूरन ये चारा स्वादिष्ट 😋बनाना ही होगा ।

10/25/2015

आधुनिक नारी और स्वतंत्रता(लेख )

"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता”
आज की नारी गतिशीलता की दौड़ में हर वो मक़ाम हांसिल कर रही है जिसके सपने कभी देख वह चुप होकर रह जाती थी।चाहे वो कोई भी क्षेत्र हो महिलाएँ हर जगह अपनी सफलता के परचम लहरा रही हैं । पर आज की स्त्री गतिशीलता के चलते अतिवादिता के हत्थे चढती जा रही है।स्वतंत्रता का मतलब आज़ादी है, पर आजादी में स्वतंत्रता तो ठीक है पर स्वछंदता घातक है चाहे वो फिर समाज किसी की भी हो ।स्वतंत्रता में संयम का होना जरूरी है,संयम न हो तो वह किसी भी इंसान को गलत रास्ते पे ला छोड़ता है । महिलाओं ने ये साबित कर दिखाया कि दुनिया का कोई काम भी काम हो महिलाएँ उसको पुरुषों की तुलना में कहीं ज्यादा अच्छे करती और संभालती हैं ।
                   लेकिन ये पुरुषों के समकक्ष खड़े होने की कैसी अंधी दौड़ है जो स्त्रियों को अपने काम के साथ-साथ पुरुषों के काम का बोझ भी उठाने को मजबूर बना दिया है। नारी को स्वातंत्रता अपने नारीत्व की बलि देकर मिल रही है जो कि सरासर अन्याय है।
                निश्चित ही अब महिलाएं बहुशिक्षित और सशक्त हो गयी है उसे समाज में आगे बढ़ने के बहुत सारे अधिकार मिल गये हैं । लेकिन नारी स्वातंत्रता के दूसरे पहलू पर नजर डाले तो इसका खमियाजा औरतों से होते हुये, समाज में जा रहा है।आज महिलाओं के साथ आये दिन हर तरफ हो रहा यौनाचार आज़ादी के स्वछंदता की अतिशयता को बयाँ करता है फिर चाहे वह 2साल ,3साल की अबोध बच्चियां हो या 80 साल की मरणासन्न वृद्ध महिला हो ।
             कितने नैतिक मूल्यों और आदर्शो को ताक पर रख दिये गये सिर्फ और सिर्फ कोरी आधुनिकता के नाम पर ।आज नारी जिस जोश के साथ मंजिलों की ऊंचाइयों को छूने के लिये एडी चोटी का जोर लगा आगे बढ रही है उन रास्तों पे जाने कितने दल -दल ,धूर्तता, कितने गढ्ढे,कितनी खाइयां और कितने ही विष से भरे लोग हैं । इन उजालों और चकाचौंध के बीच कितने अंधेरे हैं ये स्वयं स्त्री बखूबी समझती है।
नारी का अपमान
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अब बात करे आधुनिक नारी के अपमान की तो अंग प्रदर्शन करा कर उसके नारीत्व का अपमान किया जा रहा है ।नारी के अंग प्रदर्शन की बात करे तो उसके शरीर को बाजारु दुनिया ने पूरी तरह से बेआबरु कर छोड़ा है और इससे भी हैरान करनी वाली बात, महिलाएँ  इस मानसिकता का शिकार हो खुद को अधनग्न बनाने वाले पोशाकों से फैशन आइकान बनने की होड़ में नैतिकता और आदर्शों को कुचल,सुसंस्कारी ,सौम्य,सभ्य कहलाये जाने के बजाय सेक्सी और हॅाट कहलाने में गौरवान्वित होती हैं।आज बाज़ार  स्त्री के शरीर को बिकाऊ और वस्तु बना कर परोस रही है और महिलाएं भी अपने शरीर की बोली लगवाने में पीछे नहीं ।
              पेपर,पत्रिकाओं,नेट साइट्स,पोर्न साइट्स,फैन्स क्लब या फोन पर दोस्ती के आने वाली कॉल और मैसेज में महिलाओं के प्रयोग का प्रतिशत सर्वाधिक होता है। ऐसी आधुनिकता और खुलापन का समर्थन करने वाले  इन हालातों में अपनी बहन ,बेटियों का जाना पसंद करेंगे ????? अगर होंगे भी तो सरफिरे विरले ही होंगे ।
      क्या छोटे शहर क्या बड़े...... आधुनिकता के नाम पर जमकर अश्लीलता का प्रचार किया जा रहा है ।पाँचसितारा होटल ,बार,रेस्तरां में शराब परोसना आज फैशनिया समाज का हिस्सा बन चुका है सेक्स वर्कर को कानूनी अनुमति देने की ओर पहल की जा रही है अगर ऐसा हुआ तो यकीनन समाज में नग्नता का खुला खेल होगा जिसमें सबसे ज्यादा दुर्गति स्त्री जाति की होगी । आधुनिक युवा महिलाएं छोटे -छोटे कपड़े पहन नशा कर डिस्को में पुरुष दोस्तों के साथ अश्लीलता और अभद्रता की हदें पार कर नारी यौवन ,नारी सौंदर्य को तार - तार कर अपमानित कर रही हैं ,और ऐसे आधुनिक समाज में इन सब के विरोध में आवाज उठाने वाला पिछड़ी मानसिकता का और दकियानूसी कहलाता है ।
              यौन उत्पीड़न क्यों ??
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क्या आज की नारी और इस सभ्य समाज ने सोचा कि आज महिला  यौन उत्पीड़न के मामलों में इतनी बढोतरी क्यों हुई है ।इन सब का जिम्मेदार कौन है ???? इस परिप्रेक्ष्य में हर प्रश्नवाचक को उत् रित करना नितांत आवश्यक है ।क्या खुद महिला इन सब की जिम्मेदार है ??? तो क्या समाज जिम्मेदार है??? तो आखिर कौन है ......!! इन सबका जिम्मेदार समाज में फैली अश्लीलता और व्यभिचार है। अब देखना ये है कि अश्लीलता और अभद्रता फैलाने वाला कौन है तो वो है पुरुष वर्ग जो कि इसका उदपादक भी है और उपभोक्ता भी और इसी का कुअसर समाज में कुन्ठित मानसिकता वालों में होता जिसका ही असर है समाज में बढता यौन आपराध। लेकिन ऐसे माहौल के लिए थोड़ा बहुत दोषी खुद महिला वर्ग भी हैं ,उन्हें खुद को नुमाइश बनाने से बचना होगा ,वेश -भूषा के चुनाव में  एहतियात बरतना होगा ,खुद को अमर्यादित होने से बचाना होगा ......क्योंकि जैसे अधवस्त्र बाज़ार महिलाओं के लिए बनाता है वैसे कपड़े पुरुषों के लिए क्यों नहीं बनाए जाते ,क्यों सिनेमा,टीवी,पेपर,पत्रिकाओं में महिलाओं को अधनग्न दिखाया जाता है ये निर्णय नारी को स्वयं करना होगा उसके लिए क्या सही है ,क्या गलत.....!!!
              कुछ स्त्रियाँ जानते हुये भी ऐसी हरकतें , माहौल व वेश- भूषा बनाती जो पुरुषों को आकर्षित और गलत कामों के लिए उत्तेजित करता है ,साथ-साथ ये उन महिलाओं के परेशानियों का सबब बनती हैं जो समाज में सभ्य और मर्यादित रहती हैं।
                महिलाएं के खिलाफ हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलन्द करनी होगी ,एक आन्दोलन खड़ा करना होगा जिसका नेतृत्व स्वयं नारी को करना होगा ।इस विषय पर ये बात सटीक बैठती है...."ग़र दिल में हो इन्तकाम की ज्वाला तो,
   आंखों सेअश्रु नहीं,अंगार निकलने चाहिए"
                  शशि पाण्डेय

10/22/2015

मैं लेखनी हूँ ( व्यंग्य कविता)

लेखनी हूँ मैं
किसी शहंशाह
किसी ज़माने को
सलाम नहीं करती,

करे जो मानवता को
चाक -चाक काम वो
किया नहीं करती,

जा आग लगा
जिग़रो में
ऐ बाज़ारु मीडिया
मैं यूँ घर की बातें
सरेआम नहीं करती,

मत करो ज़ाया
यूँ मेरा नाम,
मैं यूँ किसी की ज़ागीर
हुआ नहीं करती,

बाँधती हूँ मैं
अक्षरों को तराश-तराश
क्या ग़ैर , क्या ख़ास
शब्दों से कर दूँ
नि:शब्द
लेखनी हूँ मैं !!

10/21/2015

कुप्रचार

फरीदाबाद की घटना निश्चित ही बेहद शरमनाक और निन्दनीय है ।ऐसी घटनाएं अब हमारे समाज का हिस्सा बनती जा रही हैं ।हर दिन ही ऐसी घटनाओं से समाचार पत्र पटे रहते हैं। अहिंसा के पुजारी बापू के देश में इंसानियत और मानवता दम तोडती जा रही है। पर उससे ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि बिकाऊ मीडिया व गन्दी राजनीति  कुछ ठीक करने के बजाय वो प्रचार करते हैं जिससे उनकी पार्टी और चैनल की टी आर पी बढ़े और फायदा हो ।अब फरीदाबाद की ही घटना को ले तो आपसी रंजिश की घटना को बिकाऊ मीडिया ने दंबग बनाम दलित बनाते देर न लगायी आखिर फायदे का मसला जो ठहरा,समाज में नफरत आग लगती है तो लगती रहे उनकी बला से .......ऐसा ही कुछ राजनीतिक दल भी कर रहे हैं, हर कोई अपना उल्लू सीधा करने की दौड़ में लगा है । अब बात करे साहित्यकारों के सम्मान लौटाने की तो ....बहुत अच्छी बात है कि हमारे बुद्धजीवी  समाज में हो रही घटनाओं के प्रति संवेदनशील तो हैं पर ये संवेदनशीलता और जगह भी दिखती तो समझ आता इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो हमारे काश्मीरी विस्थापित हैं पर हैरत की बात है कुछ मामलों में इन बुद्धजीवियो की गैरत जागती ही नहीं ।अगर ऐसे ही हालात आने वाले दिनों में स्थिति और बद से बद्तर होगी।

9/27/2015

"आप" की धूमिल छवि

"आप" की लगातार धूमिल होती छवि ......केजरी सरकार के कानून मंत्रियों से पार्टी को काफी नुकसान पहुंचा है ,पहले सोमनाथ भारती और अब  जितेन्द्र तोमर  दोनो ही नेताओं के व्यक्तिगत मामलों से पार्टी की किरकरी हुइ है ,तो वही पार्टी सुप्रीमो शुरुआत में जहाँ अपने नेताओं का समर्थन करते दिखे , तो वहीं मामला तूल पकडते ही पल्ला झाडते नजर आये, आखिर हो भी क्यों न मुख्यमंत्री जी को मीडिया में अपनी छवि को भी तो साफ-सुथरी रखनी  है। रही सही कसर मच्छरों ने पूरी कर दी ,मच्छर अपना काम करते रहे और सरकार सोती रही । सरकार  असंवेदनशीलता की देहरी लांघ नेतागिरी करती रही और लोग काल के गाल में समाते गये।जब सरकार जागी तब तक काफी पीड़ितों ने अपनो को खो दिया और पार्टी भी अपनी साख को गिरने से न बचा पायी इतना ही नहीं फुलका के इस्तीफे से और पंजाब के असंतोष से भी पार्टी को खामियाजा हुआ है । केजरीवाल सरकार इन दिनों मीडिया में छायी रही जैसा की केजरीवाल चाहते हैं, पर उसकी वजह केजरीवाल नहीं बल्कि मीडिया थी और मीडिया में वजह थी पार्टी की

9/13/2015

नारी( कविता)

नारीत्व  को  बचाये   रखिये
स्त्रीत्व   को   जगाये  रखिये

हो   सत्ता   पिता   की ,  घर
मां का  नेतृत्व  बनाये  रखिये

बेटा है  शरीर  तो  बेटी  जान
इस अमरत्व को संजोए रखिये

मां जानती है सारे भेद मन के
मां के ममत्व को संभाल रखिये

नि:स्वार्थ प्यार बहनों का,धरती
पर इस सत्यता को बनाये रखिये

कोरा हिन्दी दिवस( व्यंग्य लेख) 7

मां भारती की बिन्दी ,हिन्दी ...... सच एक समय था जब हिन्दी को मां भारती के माथे माना बिन्दी माना जाता था पर आज हिन्दी को अपने ही घर में पराया बना कर रख दिया गया है ।ये कैसा हिन्दी दिवस जो एक सिर्फ नाम के लिए है ।हिन्दी दिवस कम 20-20 क्रिकेट मैच लगने लगा है ।हिन्दी दिवस मनाओ और निकल लो ।कब तक हम यूँ ही खानापूर्ति करते रहेंगे अपने ही वतन मे लोग हिन्दी बोलने वालों को हेय दृष्टि से देखते नज़र आते हैं ।आज हर मां-बाप की उम्मीद रहती है कि उनके बच्चे फर्राटेदार अंग्रेजी बोले ,व हर किसी का सपना बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में नौकरी करें जो कि अंग्रेजी के सहारे ही सम्भव है।आजादी के इतने साल बिताने के बाद हम इतना भी नहीं कर पाये कि अपनी हिन्दी भाषा को रोजगार का माध्यम बना सकें। सच तो ये है पहले हम अंग्रेजों के गुलाम थे और अब अंग्रेजी के .........हमारी आने पीढ़ी अंग्रेजी और हिंग्लिश पढते -बोलते, हिन्दी से धीरे-धीरे दूर होती जा रही है और हम हिन्दी दिवस मना पीठ थपथपा रहे हैं। अंग्रेजों को तो हमने एकजुट हो उखाड़ फेका,अब देखना होगा अंग्रेजी की जंजीरों से हिन्दी को कब आजाद करा पायेंगे...!! 

8/31/2015

वाह रे मेरे देश!! ( व्यंग्य कविता)

वाह रे मेरे देश ।
कैसे -कैसे लोग और
कैसे-कैसे भेष॥
जगह -जगह पर
बैठे ढोंगी ।
रहते हैं ठाठ से
और कहलाते  योगी॥
कैसा फादर और
कहाँ का पीर।
मर गया इनकी
आंखों का नीर॥
पग-पग पर
झूठ का फेरा ।
मक्कारों ने आकर घेरा॥
"आप" के कजरी ।
"कॅाग्रेस" के पप्पू
इनके बीच,सोती
जनता है पहेली॥
कहते बाबा निर्मल।
यह मन है छल॥
खाओ रसगुल्ले 
और पहनो वस्त्र।
कृपा बरसेगी कल॥
हाये ये सोती जनता ।
मरता क्या न करता॥
खुली लूट की
मची है रेस।
वाह रे मेरे देश
वाह रे मेरे देश !!

8/04/2015

साक्षात्कार-बस्ती सांसद "हरीश द्विवेदी"

साक्षात्कार-बस्ती सांसद"हरीश द्विवेदी"
8/4/2015
6:02 PM
प्रश्न-मोदी सरकार को एक साल हो गए है उनकी मुख्य उपलब्धियों को जनता के बीच कैसे लेकर जायेंगे?
उत्तर- आदरणीय मोदी जी और भारतीय जनता पार्टी की सबसे बड़ी उपलब्धि है देश में जहाँ हर तरफ कुशासन और भ्रष्टाचार फैला था उसमें हमने लगाम लगायी ,साथ-साथ ब्यूरोक्रेसी के सिस्टम को ठीक किया ।डेमोक्रेसी मे काम के सिस्टम को ठीक किया ।मोदी जी ने सरकार में आने के पहले जो भी वादे किये गरीबों और कमजोर वर्ग के उत्थान के लिए वो कर दिखाया है ।देश के इतिहास में पहली बार एक साथ 14 करोड़ खाते खुलवाये गए और खाते ही नहीं इसी में 12रुपये के प्रीमियम में दुर्घटना बीमा की व्यवस्था बनायी गयी व 5000 ओवर ड्राफ्ट की भी योजना बनाई गयी । जहाँ कुछ गरीब व किसानों के खाते आज तक नहीं  खुले थे उन सब के खाते खोले गये जिससे सरकार से सहायता में मिलने वाला पैसा अब सीधे उनके खातों में पहुंचता है । और 220 रुपये पे "अटल चल योजना" हमारी सरकार की तरफ से चलायी गयी ,तो इस तरह से हमारी सरकार ने गरीबों के लिए काफी काम किया ।ऐसे ही मज़दूरो का जो कम्पनियों में काम करते थे उनका लगभग 20 हजार करोड़ रुपया पी०एस०के तौर पे बकाया था वो दिलाया ।इसी तरह गन्ना किसानों का 6000 करोड़ रूपये बकाया था जो कि हमारी सरकार ने वापस कराया ।हम हर तरह से किसानों,नौजवानों  सभी के लिए कर रहे हैं ,इसके लिए अलग से मंत्रालय बनाया गया है । प्रधानमंत्री जी का सपना है कि हर नौजवान हुनरमंद हो खुद ही वो उद्योग धंधे कर सके ।रेलवे के क्षेत्र में बहुत सार्थक प्रयास किये जा रहे हैं ।मोदीजी का सपना है कि हर घर में   लाइट पहुंचे इसके लिए मोदी जी ने 76000 हजार करोड़ का फंड दिया है ।देश को किस तरह से ताकतवर बनाया जाए यह मोदी जी का उद्देश्य है और वे इसी उद्देश्य के साथ देश-विदेश में भारत की साख को मज़बूत करने के लिये प्रयासरत हैं ।और आज पूरी दुनिया में भारत का स्थान ऊँचा हुआ है। अभी हमसब ने देखा ही है अन्तराष्ट्रीय योग दिवस मना कर भारत को नयी पहचान बनाई ये भारत की विजय है क्योंकि योग भारतीय संस्कृति का हिस्सा है ।इस तरह से हमारी सरकार जिन सपनों को लेकर आई हम सब उनको पूरा करने में जी जान से लगे हैं ।
प्रश्न- जन-धन योजना और दुर्घटना बीमा योजना इसमें जनता की प्रतिक्रिया  कैसी है?
उत्तर-बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली जनता से और जो भी योजनाएं बने उसमें सांसद व कार्यकर्ताओं को बढ़-चढ कर हिस्सा ले और अधिक से अधिक योगदान दे कर लोगों को सहयोग करें।
प्रश्न- काले धन पर विपक्षी दल हमेशा सवाल उठाता है,क्या कहेंगे !
उ०- देखिए विपक्षी दल को मौका चाहिए सवाल दागने के लिए ,काले धन पर सरकार कानून बना रही है 600 लोगों के नाम कोर्ट को दिए गये हैं सरकार बराबर इस मुद्दे पर काम कर रही है ।अब देखिए कोल इंडिया का 2 लाख करोड़ वो भी  हमने काला धन ही तो बचाया है ,सरकार के खाते में जमा कराये गये ।इस पैसे को भ्रष्टाचारियों से बचाया गया ये देश और देशवासियों के ही तो काम आयेगा । इस तरह से हमारी सरकार हर दिशा में काम कर रही है ।कांग्रेस ने 60...65 सालों में देश का सिर्फ़ पतन किया है।
प्रश्न-उत्तर प्रदेश के बारे में क्या कहेंगे ..खासकर कानून व्यवस्था के बारे में ?
उत्तर-जब-जब समाजवादी पार्टी की सरकार आयी है ऐसा ही हुआ है ऐसा लगता है गुंडो की सरकार है ये कोई नई बात नहीं है ये गुंडों की ही पार्टी है। और निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है हर तरफ अराजकता का महौल है । पत्रकार ,आम जनता को जिन्दा जलाया जा रहा है और सबका नतीजा है कि उत्तर प्रदेश की जनता आने वाले चुनावो में समाजवादी पार्टी को कुर्सी से बेदखल करने का मन बना चुकी है।
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            शशि पाण्डेय

कोरी राज़नीति ( व्यंग्य लेख ) 6

सारे आंदोलन रैलियां ठंडी पड़ी,सभी क़दमताल कर रहे हैं , घोषणापत्र वायदे...ठंडे बस्ते मे काले धन की वापसी गयी तेल लाने ....घोटालों के मामले भी पी०एम० शाम ढले ही विदेश से लौटते है,दिन भर विदेश मंझा कर क्योंकि वे पी एम हैं ....ए एम नहीं । उधर विहार के सफेद पोश "ठुल्ले" रैली का झोल कर रहे हैं ,तो कोई कृष्ण कन्हैया बन कालिया नाग को कुचलने की बात कर रहा है ,तो कजरी दिल्ली को कालिख लगाते-लगाते जाने किस स्तर पर छोड़गे । और भारत की सुरक्षा व्यवस्था लीलने को मुह बाये खड़ा चारो तरफ से आंतकवाद उसने भी मदमस्त जनता फ्री-फ्री पाने के लिये हाय तौबा मचाते सीना पीटते अब क्या करें ???? और घोटालों की तो बात ही क्या करना शायद ही कोई दल और सफेद पोश इससे अछूता हो । आखिर जनता अधिकार के साथ सत्ता सौपती है तो सत्ता के वित्त को चित्त करना नेता गिरी के व्यवसाय का परम धर्म  है । पता नहीं संकट सियासत का है या देश का,सब भेड़ चाल में मस्त हैं । सदन नहीं चलने देने का ठीकरा एक -दूसरे के सिर फोडते दल यूँ लगता है जैसे दोनों की साठगाँठ पहले से ही  हुई होती है। खैर ये तो इनका जन्मसिद्ध अधिकार है तमाशाबाज़ी कर -कर के तो संसद तक ये सपेरे  पहुंचे हैं ,नागिन नाच तो बनता है।

8/01/2015

मीडिया का दायित्व

इलेक्ट्रानिक मीडिया ब्रेकिंग न्यूज़ के चक्कर में कुछ इस तरह जूझी रहती है कि कइ बार सच्चाई की तह तक जाने की भी ज़हमत नहीं उठाते ।आखिर इतनी भी क्या जल्दबाजी दिखाना, मीडिया का ये गैर जिम्मेदाराना रवैया इसमें लगाम लगना ज़रुरी है ।यही नहीं न्यूज़ का विषय ऐसा -ऐसा ढूंढ कर लाते हैं कि दर्शक और श्रोता के मन में आग लगाने में कामयाब होता है ।चाहे उवैसी का भाषण हो या साक्षी महराज के वक्तव्य हो.....ऐसे लोगों को इतनी तवज्जो क्यों देना जो देश की आबो-हवा को बाटने काम करता हो । मीडिया का प्रभाव दर्शकों में बहुत ज्यादा है इसका मतलब यह नहीं कि जो भी मन आये गलत-सही दिखाते रहें । मीडिया को अपने दायित्वों को समाझना होगा और दिखाये जाने वाली सामग्री को संशोधित और सुनिश्चित करना होगा कि वो दर्शकों के लिये सही है या नहीं ।

7/26/2015

चलो न बुद्धिजीवी बने !( व्यंग्य लेख)

थोड़ा विशेष सम्प्रदाय का विरोध ,थोड़ा विशेष समुदाय को सर आँखों पर नवाज़ना ,बस यूँ ही तो आधुनिक बुद्धजीवी बनते हैं । आज सही को सही,गलत को गलत कहना......वही तक सही है जहाँ से बुद्धिजीवी होने के मायने बनते और बिगड़ते हैं । अब देखिये न तीस्ता शीतडवाड को कुछ चिन्तक या कुछ समाज विचारक सही ठहराते हैं ।चले हम भी मान लेते हैं तीस्ता जी जो दर्द विदारक सच्चाईयाँ निकाल कर ,खंगाल कर बाहर लाई वह निश्चित ही बड़े जिगरा का काम था।सच ही कहा है किसी ने ......"असफल लेखक ,आलोचक बन जाता है "  ठीक कुछ ऐसे ही बहुत सी संस्थाये सरकार के पक्ष मे काम करती हैं या विपक्ष में...हमसफर न बन पाओ तो संगेराह बनने में गुरेज़ कैसा !!!!!!। शायद यही काम तीस्ता या तीस्ता जैसे लोग करते आये हैं और आने वाले समय में करते रहेंगे । जितनी शिद्धत से गुजरात नरसंहार उठाये गये हैरानी होती है ...कश्मीर नरसंहार,गोधरा कांड ,भागलपुर नरसंहार आदि के लिए कोई क्यूँ नहीं जल उठा क्या इनमें मारे गये लोग इन्सान नहीं थे ???????  बुद्धजीवियो ने वहां जाकर सच जानने की जरूरत क्यों नहीं समझी ,मैं पूछती हूँ क्या ये हादसे ,बौद्धिकता सीमाओं के दायरे से बाहर आता है । गुजरात नरसंहार के बाद ही क्यों मानवाधिकार दिखा......  जलती हुई ट्रेन की  लपटों में खुद को बचाने के लिये चीखती आवाजें और बचाने के बजाय बाहर से उन पर पत्थर और न जाने क्या -क्या .....उनके परिवारों की वेदना के लिए  मानवाधिकार का दरवाजा क्यों किसी ने नहीं खटखटाया ।गुलबर्ग सोसायटी,नरोदा पाटिया,बेस्ट बेकरी,सरदारपुरा जनसंहार के आंसू पोछने वालों ....थोड़े नैपकीन बचे हो तो कश्मीर विस्थापितो के सूख चुके आँसुओं के दाग जरुर पोछना ।गोधरा ,भागलपुर,मेरठ,मुजफ्फरपुर,बम्बई धमाके ....इनमें प्रभावित पीड़ितों की पथराई आंखें इन्साफ को तडप कर विचार शून्य हो चुकी हैं ।अगर सच में सिर्फ इन्सान हो तो इन्सानियत दिखाओ न कि प्रोपेगैन्डा ।विशेष समुदाय से विशेष प्रेम दिखाकर आधुनिक बुद्धजीवी फैशन मे शामिल हो, खुद को विशेष मत कहलाओ..सही को सही,गलत को गलत कहने आदत और हिम्मत रखो। इसपे छोटी सोच का तमगा लगता है तो लगता रहे । न्याय सभी के लिये एक सा हो फुटपाथ पर बेघर लोगों को कुचलकर मार डालने वाला शख्स बेइज्जत बरी कर दिया जाता है ,आखिर क्यूँ ??????? क्या ये सब को पता नहीं है। संजय दत्त समय-समय पर पिकनिक मनाने जेल से बाहर आ जाते हैं ।वाह रे मेरे देश का कानून ,और कानून के भक्षको ,पैसे वालों का न्याय अलग । विशेष समुदाय के समर्थन के लिये खड़ा आधुनिक फैशनिया बुद्धिजीविया समुदाय !!!!थोड़ा विशेष सम्प्रदाय का विरोध ,थोड़ा विशेष समुदाय को सर आँखों पर नवाज़ना ,बस यूँ ही तो आधुनिक बुद्धजीवी बनते हैं । आज सही को सही,गलत को गलत कहना......वही तक सही है जहाँ से बुद्धिजीवी होने के मायने बनते और बिगड़ते हैं । अब देखिये न तीस्ता शीतडवाड को कुछ चिन्तक या कुछ समाज विचारक सही ठहराते हैं ।चले हम भी मान लेते हैं तीस्ता जी जो दर्द विदारक सच्चाईयाँ निकाल कर ,खंगाल कर बाहर लाई वह निश्चित ही बड़े जिगरा का काम था।सच ही कहा है किसी ने ......"असफल लेखक ,आलोचक बन जाता है "  ठीक कुछ ऐसे ही बहुत सी संस्थाये सरकार के पक्ष मे काम करती हैं या विपक्ष में...हमसफर न बन पाओ तो संगेराह बनने में गुरेज़ कैसा !!!!!!। शायद यही काम तीस्ता या तीस्ता जैसे लोग करते आये हैं और आने वाले समय में करते रहेंगे । जितनी शिद्धत से गुजरात नरसंहार उठाये गये हैरानी होती है ...कश्मीर नरसंहार,गोधरा कांड ,भागलपुर नरसंहार आदि के लिए कोई क्यूँ नहीं जल उठा क्या इनमें मारे गये लोग इन्सान नहीं थे ???????  बुद्धजीवियो ने वहां जाकर सच जानने की जरूरत क्यों नहीं समझी ,मैं पूछती हूँ क्या ये हादसे ,बौद्धिकता सीमाओं के दायरे से बाहर आता है । गुजरात नरसंहार के बाद ही क्यों मानवाधिकार दिखा......  जलती हुई ट्रेन की  लपटों में खुद को बचाने के लिये चीखती आवाजें और बचाने के बजाय बाहर से उन पर पत्थर और न जाने क्या -क्या .....उनके परिवारों की वेदना के लिए  मानवाधिकार का दरवाजा क्यों किसी ने नहीं खटखटाया ।गुलबर्ग सोसायटी,नरोदा पाटिया,बेस्ट बेकरी,सरदारपुरा जनसंहार के आंसू पोछने वालों ....थोड़े नैपकीन बचे हो तो कश्मीर विस्थापितो के सूख चुके आँसुओं के दाग जरुर पोछना ।गोधरा ,भागलपुर,मेरठ,मुजफ्फरपुर,बम्बई धमाके ....इनमें प्रभावित पीड़ितों की पथराई आंखें इन्साफ को तडप कर विचार शून्य हो चुकी हैं ।अगर सच में सिर्फ इन्सान हो तो इन्सानियत दिखाओ न कि प्रोपेगैन्डा ।विशेष समुदाय से विशेष प्रेम दिखाकर आधुनिक बुद्धजीवी फैशन मे शामिल हो, खुद को विशेष मत कहलाओ..सही को सही,गलत को गलत कहने आदत और हिम्मत रखो। इसपे छोटी सोच का तमगा लगता है तो लगता रहे । न्याय सभी के लिये एक सा हो फुटपाथ पर बेघर लोगों को कुचलकर मार डालने वाला शख्स बेइज्जत बरी कर दिया जाता है ,आखिर क्यूँ ??????? क्या ये सब को पता नहीं है। संजय दत्त समय-समय पर पिकनिक मनाने जेल से बाहर आ जाते हैं ।वाह रे मेरे देश का कानून ,और कानून के भक्षको ,पैसे वालों का न्याय अलग । विशेष समुदाय के समर्थन के लिये खड़ा आधुनिक फैशनिया बुद्धिजीविया समुदाय !!!!

7/23/2015

विचित्र महापुरुष ( व्यंग्य लेख ) 4

सच यह भारत है यहाँ कुछ भी हो सकता है
हाल ही में एक ऐसा महापुरुष अवतरित किया गया छोटे बच्चों के पाठ्यक्रम में जिनका नाम सुन आप सब भी आश्चर्य चकित हो उठेंगे अगर बेहोश भी हो जाये तो आपकी अपनी जिम्मेदारी।तो चलिये उस महापुरुष का नाम आप लोगो को बताते हैं श्री "मुशर्रफ" क्या हुआ चौके तो नहीं ....अजी इतना तो चलता है जहां करोड़ों की आबादी हो,जहाँ लोगों को पेट भरने के लाले हो,जहाँ राजनेता अपना घर भरने में लगा हो,जहाँ अमीर और अमीर बनने में और माध्यम वर्ग जीविका चलाने की जद्दोजहद में फसा पडा हो वहाँ ,ऐसी छोटी -छोटी गल्तियाँ माफ होती हैं।बस दिक्कत थोड़ी जे आ रही है कि आगे की पीढ़ी के महापुरुष बदल जायेंगे ।पर कोई नहीं जी कानून और व्यवस्था तो जस के तस हैं फिर दिवार पे तस्वीर किसी की टंगी हो क्या फर्क पडता है।बड़े होकर बच्चों को भ्रष्टाचार के दलदल का हिस्सा बनना ही है तो वो "गाँधी" पढ़े या "मुशर्रफ " ऐसे देश मे लुटिया डूबनी तो तय है।बाकी आप जाने आपको क्या करना है,हम तो चले महापुरुष मुशर्रफ को पढने ।

 

कहानी-बदलती राहें ।


अनु माँ जी से लिपट कर रोती हुई अपने हर उस पल को करती जब वो सपनो का संसार लिए कभी इस घर की दहलीज़ पर आई थी...कैसे जिंदगी जरुरतो के साथ बदलती है अभी -अभी तो रचित और अनु परिणय सूत्र में बंधे थे उन दोनों का प्यार देखते ही बनता था अनु ,रचित, माँ जी सभी कितने खुश थे शादी के बाद जल्दी ही अनु और रचित को मम्मी -पापा बनने का सौभाग्य भी मिला उस बच्चे बच्चे का नाम बड़े ही प्यार से अंकुर रखा है जब से अंकुर आया है मानो घर का कोना -कोना खिल सा गया हो और माँ जी उनके तो जैसे सारे अरमान पूरे हो गए हो।
अनु याद करते हुए...रचित- अनु!! मेरा लंच जल्दी लाओ मै लेट हो रहा हूँ ऑफिस के लिए अनु रसोई से हाँथ में लंच बॉक्स लाती हुई रचित, अनु को रोज़ाना की तरह छेड़ता है और लंच बॉक्स लेता है और ऑफिस निकल जाता है।
दिन यूँ ही गुज़र रहे थे कि एक दिन शाम का वक्त था रचित के ऑफिस से आने का समय हो रहा था अनु बार -बार घडी निहारती हुई चाय -नाश्ता तैयार कर रही है इस बीच फोन की घंटी बजी माँ जी ने आवाज़ लगाई बहू देखो तो ज़रा किसका फोन है मै अंकुर को सुला रही हूँ अनु भाग कर फोन उठाती  है हेलो उधर से आवाज़ आती है आप मिसेज़ रचित बोल रही हैं ...जी -जी कहिये देखिये रचित का एक्सिडेंट हो गया है आप तुरन्त सिटी हॉस्पिटल आ जाइये इतना सुनते ही मानो अनु के पैरो तले ज़मीन खिसक गयी हो वो खुद को सम्भालते हुए किसी तरीके से ये बात माँ जी को बताती है और अंकुर को गोद में उठाकर माँ जी के साथ हॉस्पिटल के लिए निकल पड़ती है.
बदहवास सी अनु हॉस्पिटल पहुचते ही रिशेप्सन में पता करती है तो पता चलता है रचित की हालत बहुत गंभीर है वह आईo सीo यूo में है अनु डॉक्टर से पूछती है रचित ठीक तो हो जायेंगे न क्या हुआ है उन्हें......  जाने कितने सवाल एक ही बार में पूँछती है डॉक्टर बड़े अफ़सोस के साथ बताते हैं रचित का नर्वस सिस्टम ख़राब हो चुका है वह सिर्फ देख सकता है और वह कुछ नहीं कर सकताI अनु सुनते हुए माँ जी को और माँ जी अनु को हिम्मत देती हैंI रचित अब खतरे से बाहर आ चुका है माँ जी और अनु उसको घर ले जाती हैं रचित अब जीती जागती हुई लाश बन कर रह गया है।
थोडा वक्त बीता अनु ने घर चलाने के लिए नौकरी कर ली है माँ जी रचित , अंकुर और घर सम्भालती हैं तो अनु बाहर के काम, अनु के ऑफ़िस सहकर्मी अनुभव जो की अनु की परिस्थिति से वाकिफ़ है अनु के सामने शादी का प्रस्ताव रखा है अनु ने अनुभव डांटकर मना कर दिया। अनुभव कुछ दिनों बाद वह अनु के घर माँ जी से मिलने गया और उनसे शादी की बात करता है ये सुनकर माँ जी परेशान हैं पर अनुभव उनको समझाता है कि क्या आप नहीं चाहती गुमसुम रहने वाली अनु के चेहरे पर भी मुस्कान हो, वह अपनी ज़िन्दगी नए सिरे से शुरू करे माँ जीI बहुत सोचने के बाद अनुभव को हाँ कहती हैं और अनु को भी शादी के लिए राज़ी करती हैंI शादी के लिए राज़ी अनु ये सोच -सोच कर परेशान कि उसके बाद रचित, माँ जी और इस घर का क्या होगाI माँ जी अनु को समझाते हुए पेंशन और किरायेदारों से जो किराया मिलता है उससे घर आराम से चल जायेगा फिर उन्हें इससे ज्यादा की जरूरत भी तो नहीं हैI
शादी का दिन निश्चित हुआ घर में ही अनु के मायके से माँ -बाबू और माँ जी की उपस्थिति में शादी के फेरे लेती अनु किसी क्षण अपने को रचित से अलग नहीं सोच पाती है वही घर के दूसरे कमरे में रचित विस्तर पर लेटा हुआ छत की तरफ निहारता मानो वह सब सुन रहा हो और महसूस भी....
अंकुर को माँ जी की गोद में लिए हुए हैं शादी हो चुकी है अनु -अनुभव अब पति-पत्नी बन गए हैंI रचित को तो जिंदगी भर विस्तर ऐसे ही रहने हैI पर पता नहीं माँ जी का यह सही निर्णय था या नहीं पर माँ जी  अनु और अंकुर के उज्जवल भविष्य लिए आंसुओ और सिसकियो को दिल में दबाकर अनु को ख़ुशी-ख़ुशी बिदा कर देती हैं।

7/22/2015

साक्षात्कार डॉ गीता शर्मा

केन्द्रीय हिंदी संस्थान ,मानव संसाधन विकास मंत्रालय,भारत सरकार का एक अंग है जो हिन्दी के सतत विकास के लिये तत्पर है। प्रस्तुत है दिल्ली केन्द्र की क्षेत्रीय निदेशिका प्रो० डॅा० गीता शर्मा से बात चीत के कुछ अंश। ••••

प्र०- आप वर्तमान समय में हिन्दी भाषा को कितना महत्व देती हैं ?
उ०- मेरा मानना है हिन्दी भाषा के महत्व की बात नही है मातृभाषा और अपनी भाषा के महत्व की बात है । क्योंकि भारत ऐसा देश है जहाँ बहुत सारी भाषाएँ बोली जाती हैं। यहाँ हम सहज और स्वाभाविक रुप से हिन्दी की बात करते हैं।अगर हम भारत मे हिन्दी के महत्व की बात करें तो ही होगा जैसे हमारे लिए रोटी,पानी,हवा । भाषा के बिना इन्सान का विकास नहीं हो सकता इसलिए भाषा के महत्व को हम अस्वीकार नहीं कर सकते।

प्र०- अंग्रेजी से हिंदी को कितनी क्षति पहुंच रही है?

उ०-देखिए नुकसान तो दोनों भाषाओं को हो रहा है ।क्योंकि हमें न तो अच्छे से अंग्रेजी आती है और न अच्छे से हिन्दी ।हां मैं मानती हूं हिन्दी का नुकसान हो रहा है जिससे हमारा जो सम्बन्ध हिन्दी भाषा से होना चाहिए नहीं हो पा रहा है । जैसे कोई बच्चा अंग्रेजी वर्ड रट तो लेता है मगर अर्थ अपनी भाषा मे ही समझ पाता है। तो भाषा का जो सम्बन्ध संस्कृति से है वो बेहद ही सम्वेदन शील है ।हमे अपने स्तर पर भाषा की समस्या का समाधान करना होगा पर अपनी ही भाषा मे । दुनिया मे मात्र भारत ही ऐसा देश जहाँ इतनी सारी भाषाएँ और बोलियाँ हैं । दूसरी बात हम हिन्दी को अंग्रेजी की तरह बोलने लगे हैं जबकि हर भाषा का अपना स्वभाव होता है और मूल भावना तभी निकल पाती है जब हम भाषा को उसके स्वभाव के अनुसार उच्चरित करते हैं।

प्र०-संस्थान में किन-किन देशों के छात्र पढ़ते हैं उनके बारे में बताइये•••
उ०-केन्द्रीय हिन्दी संस्थान मे लगभग 20देशो के छात्र पढ़ते हैं ।इसमें से चीन, कोरिया,जापान के बच्चों की संख्या ज्यादा है । मैंने भारतीय और विदेशी छात्रों दोनों को पढाया पर जो भाषा के प्रति प्यार विदेशी छात्रों का दिखता है भारतीय छात्रों मे नही दिखता । हमारे यहां भाषायी संस्कार लगभग खत्म हो चुका है । विदेशी छात्र किसी भाषा को छोटा बड़ा नहीं मानते उनके लिए भाषा की उपयोगिता है । भारत मे हिन्दी के प्रति क्या नजरिया है उन्हें नहीं पता ।

प्र०- हमारे प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी का प्रयोग करते हैं ।विश्व परिदृश्य में इसका क्या प्रभाव होगा?

उ०-यह हमारे लिए गर्व की बात है । यह देश की भाषा का भी गर्व है कि हिन्दी का प्रयोग अन्तराष्ट्रीय स्तर पर किया जा रहा है । इसके पहले वाजपेयी जी ऐसा कर चुके हैं और उन्होंने कहा था कि यूनाइटेड नेशन में हिन्दी मे बोलना आसान है पर भारत मे नही क्योंकि वहाँ लोग इसका राजनीति करण करते हैं ।जबकि विदेश में भाषा को लेकर राजनीति नहीं की जाती है।

प्र०-हिन्दी की तुलना मे लोग अंग्रेजी को ज्यादा महत्व दे रहे हैं,क्या कहेंगी ?

उ०-देखिए आज भाषा व्यवसाय का उद्देश्य भी है ,आज अनपढ़ व्यक्ति भी यह जानता है कि किस भाषा से उसको फायदा होगा ।इसलिए भाषा को व्यवसाय से जोड़ना पडेगा,क्योंकि अभी हिन्दी को वो स्तर नहीं मिल पाया जो मिलना चाहिए ।भारत सरकार के दफ्तरों,अदालतों मे या सभी जगह हिन्दी का कितना प्रयोग किया जा रहा है।

प्र०- क्या अंग्रेजी एक ग्लोबल माध्यम बन चुकी है ?

उ०- देखिए हर विदेशी को इंग्लिश नहीं आती है ,पर हाँ एक बड़े स्तर पर प्रयोग की जा रही है।

प्र०-क्या हिन्दी भाषा को संरक्षण की जरूरत है ?

उ०-मैं नहीं मानती की संरक्षण की जरूरत है क्योंकि संरक्षण तो हर तरह से है ही । देखिये भाषा एक आदत होती है अगर हमारी शिक्षा नीति और भाषा नीति सही है तो संरक्षण अपने आप मिल रहा है।

प्र०-हमारी संस्कृति को पश्चिमी करण से नुकसान है या होगा ?

उ०-हमारी भारतीय संस्कृति को किसी से खतरा नहीं क्योंकि हमारी संस्कृति कभी सीमाओं से नही बंधी रही उसने लिया भी और दिया भी, हाँ शिक्षा के विकास की जरूरत है क्योंकि शिक्षा के विकास से ही हमारा मानसिक विकास होता है और मानसिक विकास सही होगा तो हम निर्धारित कर पायेगे कि क्या गलत है और क्या सही है। हमारी भारतीय संस्कृति पुरातन काल से जीवित है उसका यही कारण है कि वह बंधी नहीं रही ।आज ये जरूरी है कि समाज ,विश्व जिस तरह से आगे बढ़ रहे हैं अगर हम उनके साथ तारतम्य न बना पाये तो पीछे रह जायेंगे।

प्र०-टीवी,रेडियो ,समाचार पत्रों में जो भाषा प्रयोग की जा रही है ,इसको कितना सही मानती हैं?

उ०-यह निर्भर करता है कन्टेन्ट क्या है ।अगर दूर दर्शन की बात करें तो उसकी भाषा हमेशा से मानक स्तर की रही है ।हाँ जो प्राइवेट चैनल हैं उनकी भाषा स्तरीय नहीं रही मानती हूं ।मैं सही गलत तो नहीं कहु्ँगी पर कहीं न कहीं आज वो परोसा जा रहा है जो लोग चाहते हैं।अगर सही शिक्षा होगी तो लोग अपने आप चुनाव कर सकेंगे क्या गलत क्या सही है।

प्र०-संस्थान के माध्यम से और क्या सुधार करना चाहती हैं?

उ०-ज्यादा तो नहीं बस मेरा सतत प्रयास है कि भाषा का स्तर सुधार पाउं ,और विदेशी छात्रों के साथ हिन्दी भाषा को ज्यादा से ज्यादा विकसित करने में प्रयासरत हूँ ।

प्र०-संस्थान की नई योजनाएँ ?

उ०-योजनाएँ तो सब प्रशासनिक होती हैं ,पर हाँ अभी बहुत कुछ करना बाकी है ,जो किया जा रहा है ।हिन्दी भाषा को कम्प्यूटर के साथ पूरी तरह विकसित किया जा रहा है।

प्र०-आप एक महिला हैं,महिलाओं के लिये क्या संदेश देना चाहेंगी ?

उ०-मेरा आज की माँओ को संदेश कि छोटे बच्चों को हिन्दी भाषा व मातृभाषा सिखाने पर जोर दे नाकि अंग्रेजी क्योंकि माँ बच्चे की पहली पाठशाला होती है ।माँ बच्चे में भाषायी संस्कार डाल सकती है। इसलिए मेरा यही कहना है अपने बच्चों में हिन्दी भाषा के प्रति प्रेम पैदा कराये ।

7/21/2015

बीजू जनता दल के मिनिस्टर "डॉ प्रसन्न कुमार पाठसनी" के साथ साक्षात्कार


BJD बीजू जनता दल के मिनिस्टर "डॉ प्रसन्न कुमार पाठसनी" के साथ साक्षात्कार
...
प्रश्न-ये जो बजट पेश किया गया है लोगो का आरोप है माध्यम वर्गीय वर्ग के लिये
कुछ  खास नही है ,जबकि मोदी सरकर का कहना है की ये पांच साल इण्डिया के विज़न
को ध्यान में रखकर बनाया गया है इसमें आपकी राय..
डॉ प्रसन्न-अब बजट को लेकर इण्डिया का विज़न क्या होगा मोदी जी का विजन वो
करेंगे ,करके दिखाएंगे भी लेकिन ये बज़ट मुझे पसन्द नहीं है क्योकि ये बजट
कारपोरेट हॉउस के लिए बढ़िया है ।टैक्स फ्री कर दिया ,गरीब लोगो के क्या टैक्स
है ग़रीब के लिए तो गरीबी ही टैक्स है ।(हँसते हुए) वी आर टैक्सिंग ग़रीब बनाने
के लिए । ये जो क्लास एक्सप्लॉइट कर रहे हैं । शासित और शोषक ..शासक -शाषित और
शोसित, शासिक  जब शोषित करता है तो बुरा होता है । इस बजट में ऐसे ही हालात
हैं । शोषण करना पाप है ।ये धनी लोगो बजट है ।देश में बहुत धनी लोग हैं मेरा
इससे कोई लेना देना नहीं लेकिन गरीब लोगो का क्या होगा ? हम लो मिडिल क्लास की
बात करे तो उनके हालात ख़राब होते हैं ।सबने मिलकर मोदी जी को समर्थन किया न !!
हमारे स्टेट में अच्छा हुआ सबने मिलकर नवीन जी को समर्थन दिया । गांव में गरीब
लोगो को चावल दिया गया वो अभी भी उनके लिए ही काम करते हैं ।गरीबो को साईकिल
दी , गरीब और आदिवासियो को होस्टल दिया ,गांव -गांव में रोड दिया तो कुछ सीखना
पड़ेगा न !! क्यू मोदी जी की इतनी हवा थी लेकिन नवीन जी क्यों जीत गए ? मैंने
कहा भारत वर्ष से मोदी जी जीत गए सही बात है लेकिन उड़ीसा से हार गए वही नवीन
पटनायक क्यों जीत गए..उन्होंने माँ ममता योजना को जन्म से लेकर मरने तक की
योजना कर दिया भविष्य योजना कर दिया ।यंग लोगो के लिए ,छात्रो के लिए गांव
-गांव में आदिवासी और अनुसूचित जाति के लिए बहुत काम किया उन्होंने और उनके
पिता जी ने । नवीन पटनायक जी इतने पॉपुलर क्यों हुए अभी उन्हें यूनेस्को ने
अवार्ड से सम्मानित किया डिजास्टर मैनेजमेंट ( आपदा प्रबंधन ) के लिए ।
बाजपेयी जी ने "जय जवान जय किसान जय विज्ञानं " का नारा दिया था  विजु पटनायक
जी ने उससे पहले यह सन्देश विश्व को दिया था इसके लिए उनको बहुत से पुरस्कार
भी मिले । इसी लिए मेरा कहना है कि मोदी जी को ग़रीबो का ख्याल रखना होगा लोगों
ने मोदी जी को जिताया है अभी केजरीवाल जीते क्यों जीते क्योकि लोग मोदी से
गुस्सा थे वो वोट सारे केजरीवाल को दिए ठीक वेसे जो लोग कॉंग्रेस से गुस्सा थे
उन्होंने मोदी को वोट दिया ।इसलिए मोदी जी को सोचना पड़ेगा कि धनी लोगो को ही
सिर्फ प्रोत्साहन देनेसे देश वैसे का वैसा ही रह जायेगा । इसलिए  आगे बढ़ने के
लिए अच्छा प्रोजेक्ट बनाये जो सबको साथ लेकर चले सबका विकास करे ।मोदी सरकार
ने बनारस के लिए 100 करोड़ से ज्यादा दिया मै सराहता हूँ क्योकि मै भी
ज्योतिर्लिंग को पूजता हूँ मानता हूँ हाँथ  जोड़ता हूँ लोगो की आस्था है उसमे
लेकिन सारे विश्व के लोग जगन्नाथ पुरी आते हैं "दैट इज़ लॉर्ड ऑफ यूनिवर्स दैट
इज़ जगन्नाथ " मोदी ने वही जगपति नाथ से बीजेपी की लॉबी शुरू की थी। ये 18 वर्ष
के बाद नव कड़े वर्ष आते हैं और नव कड़े वर्ष है अतः इसमें हज़ार कोट देने ही
चाहिए इसके लिए पैसो की जरूरत तो होगी न उड़ीसा सरकार  इस कार्यक्रम की तैयारी
शुरू कर चुकी है ।मोदी जी हिंदुत्व के प्रचारक हैँ फिर हिन्दुओ के आराध्य
देवता को कैसे भूलेंगे इसका ख्याल तो रखना होगा ।मै राजनीति में  धर्म को सही
नहीं मानता इसलिए सबसे पहले है मानव धर्म जिसको कहा जाता है मानवता इंग्लिश
में कहते हैं " ह्यूमनटी" इस मानवता को अपने बजट में कुछ करके दिखाए मोदी ।
कहने का कोई फायदा नहीं ।
प्रश्न - मोदी जन-धन योजना का बहुत  ढिढोरा पीटते है क्या कहेंगे..
डॉ प्रसन्न- जन -धन योजना ग़रीब के लिए बनाया है ये सब कुछ नहीं जब तक कुछ करके
न दिखाए इसमें किसी स्टेट या कंट्री का पैसा नहीं जाता ये सब हमारा ही पैसा है
। लोग इसी लिए गुस्सा होते हैं अरे करके दिखाए ।मरने के बाद पैसे देने से क्या
होगा अरे ज़िंदा आत्माओ के लिए काम करेंगे तभी इतिहास में नाम होगा तभी देश का
कल्याण होगा तभी अमर होंगे ।
प्रश्न - डीजल पेट्रोल की सब्सिडी के लिए योजना बना रहे हैं जैसे सोनिया गांधी
ने सोचा था डायरेक्ट खाते में डालेंगे इस बारे में क्या कहेंगे ....
डॉ प्रसन्न - चुनाव पहले सभी पार्टियां ऐसा बोलती हैं और चुनाव बाद सब भूल
जाते हैं । बर्ल्ड  मार्केट भारत में कब्ज़ा कर रही है उसको सम्भाल कर दिखाए घर
-घर में चाइनीज़ आइटम्स छाया है उसको सम्भालो पहले फिर बात करना ।अपना आइटम
उतारिये ।
प्रश्न - मोदी जी ने "मेक इन इण्डिया" योजना बनाया है और FDI के लिए बाजार को
खोल दिया जायेगा ।लैंड एक्यूशन विल को ला रहे हैं आप क्या कहेंगे ?
डॉ प्रसन्न- लैंड एक्यूशन विल लाने की क्या जरूरत है ये लैंड किसकी है लैंड है
इनसानों की इसमें अधिकार भी उसी का है जिसकी ज़मीने हैं ।गरीब किसान का अधिकार
है जो हमे खाना देते हैं ।उसके परिवार के लिए क्या किया अब ये लैंड विल लाये
हैं लैंड विल बना कर क्या करेंगे पूंजीपतियो की लैंड देंगे !! ज़मीदार प्रथा जो
पहले थी क्या फिर से वही प्रथा शुरु करेंगे !! लोगो ने क्या इसी लिए इनको वोट
दिया है ।ज़मीन जिसकी है उसको ही हो किसी और को क्यू देना जो सही में मालिक है
उसको दो।
प्रश्न - मोदी के डिफेन्स प्रोजेक्ट के बारे में क्या कहेंगे ...
डॉ प्रसन्न- डिफेन्स प्रोजेक्ट के लिए समुद्र के किनारे अकूत ज़मीन है उसको
कब्ज़ा करे धनी लोगो को वहा लगाये ।जो हमको खाना दे उसकी ज़मीन हम क्यों ले । जो
अन्नदाता कहलाता है खून पसीना एक कर खाना देता है उसके भले के लिए क़दम उठाये
जाये ।पूँजी पतियो के लिए ही सारे प्रोजेक्ट क्यों बनाये जाये ।
प्रश्न- राहुल गांधी ने सबसे पहले आकर उड़ीसा में न्ययागिरि प्रॉजेक्ट रोका था
उसके बारे नवीन जी की क्या राय है कोई स्टैन्ड लिया क्या..
डॉ प्रसन्न- न्यायगिरि का मामला तो वैसे अभी कोर्ट के विचार में है ।
प्रश्न- पूना में किसानो की ज़मीन लेकर कुछ सोसाइटी बनाई गयी हैं और किसानो को
उसमे भागीदार बना दिया है ऐसे प्रोजेक्ट हो तो आपका क्या कहना है ...
डॉ प्रसन्न- ऐसा करने में गलत नहीं है किसान को अगर 50% का मालिक बना कर कोई
प्रोजेक्ट करते हैं तो (हंस कर) किसान को मदद हो तो कोई गलत नही अभी हमारे
यहाँ कुछ सोसाइटी बनाई गई हैं ज़मीन किसानो से ली और बदले में पक्के घर दिए ।
जो कहा वो करके दिखाया ।न कोई गरीब रहेगा न कोई भूख रहेगा ।
प्रश्न-मोदी जी को जो समय मिला है वो 2019 तक का मिला है पर वो 2022 की बाते
करने लगे हैं क्या कहेंगे..
डॉ प्रसन्न- ये दुःख की बात है । मेरे आज में क्या है ये मुझे पता है कल क्या
होगा किसे पता है। इतने सालो में क्या होगा कोई क्या कह सकता है ।कल को भूकंप
आ जाये तो सारे मकान गिर जाये तो ,सुनामी जेसे हालात हो जाये तो क्या होगा
।अमेरिका में ओबामा के होते हुए भी इतना शक्तिशाली देश आतंकवाद को नहीं रोक पा
रहे । इंसान को इंसान बनना चाहिये न की धनपशु  ,अर्थ का जो पीछा करेगा डूब
जायेगा धन नश्वर है (हँसते हुए)
प्रश्न-मोदी ने आदर्श ग्राम योजना की स्कीम बनायीं है उसके बारे में आपके
विचार..
डॉ प्रसन्न-मै इस बात की सराहना करता हूँ मुझे ये प्रोजेक्ट बहुत पसन्द आया
क्योकि हमारे यहाँ देश विदेश लोग आते हैं वो गंदगी को नापसन्द करते हैं तो
सफाई तो होनी ही चाहिए ।पर सफाई के बाद हालात जस के तस हो जाते हैं बस करके
दिखाए । लोगो को और जागरूक करने की जरूरत है ।लोग सफाई को मेंटेन नहीं रखते ये
रहेगा तभी सुधार होगा ।
प्रश्न - आपने हाल में कोई सामाजिक कार्य किया हो इस लोकसभा में कोई प्रोजेक्ट
उसके बारे में बताइये..
डॉ प्रसन्न- नहीं !मैने सेंट्रल गवर्मेट को क्षेत्र के लिए बोला था की राजधानी
सबके लिए है आई आई टी ,एम्स ,फ्लाईओवर  सब हुआ उसके लिए मै अपने मुख्य मंत्री
नवीन पटनायक का शुक्रगुज़ार हूँ ।उन्होंने कर दिखाया इसलिए मोदी की हवा के
बावज़ूद जीते अपने क्षेत्र में ये महत्वपूर्ण है ।
प्रश्न- अभी और क्या करना चाहते हैं ?
डॉ प्रसन्न- अभी मेट्रो चाहते हैं लगे हुए हैं उसमे भविष्य में मै संकल्प बद्ध
हूँ कि जल्दी से जल्दी करे मैंने खुद मंत्री को जा कर बोला है ।भुवनेश्वर ,
खुर्दा से कोर्णाक के लिए सोचा है ।पर्यटको को अच्छा लगेगा पूरा एक सर्किट बना
देंगे जिससे हमारे राज्य के पर्यटन के लिए अच्छा होगा

साक्षात्कार- डॅा० प्रसन्न कुमार पाटशाणी ( लोकसभा सांसद, भुवनेश्वर )

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प्रo-  मोदी जी ने हिंदी से प्रेम दिखाते हैं , जैसे कभी हिंदी में भाषण दिया
 था वेसे ही मोदी भी हिंदी में भाषण देते हैं , पर भारत में राजनीति के चलते
 इसका विरोध किया जाता है ।आपका क्या कहना है ?
उत्तर- हिंदी हमारी प्रियतम राजभाषा है । यह हिंदुस्तान के मूल से आयी
 देवनागरी की भाषा राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है । हिंदी सबसे सरल भाषा है जैसे
 बोली जाती है वेसे ही लिखी जाती है । स्वतंत्रता संग्राम के समय से जिन लोगो
 ने संघर्ष का नारा दिया था वो इसी भाषा में दिया था । सुभाषचंद्र बोस बंगाली
 होते हुए भी उन्होने अपने सन्देश हिंदी में दिया । महात्मा गांधी ने भी इस
 भाषा के माध्यम से राष्ट्रिय एकता के संदेश दिया था । रबिन्द्र नाथ टैगोर ,
बंकिमचंद्र इन बड़े -बड़े विद्वानों ने हिंदी का समर्थन किया । भारत में जितने
 मनीषी जन हैँ हिंदी के लिए संग्राम किया । इतना सब होते हुए हिंदी को जो स्थान
 मिलना चाहिए वह नहीं मिला है । जब तक आंचलिक भाषा का उत्थान नहीं मिलेगा तब तक
 हिंदी को खतरा रहेगा । चाइना में चीनी एक ही भाषा  ,जापान में एक ही राष्ट्र
 भाषा है लेकिन हिंदी तो मॉरीशस में सेंकेंड लैंग्वेज़ है ।भाषा समृद्धि के लिए
 तो वहॉ जाने कितने सेंटर है वहां जाकर देखिये हिंदी के विकास के लिए कितना काम
 हो रहा है । बंगला देश में हिंदी सेकेण्ड लैंग्वेज़ है । पाकिस्तान में भी
 उर्दू के आलावा दूसरी बोली जाने वाली भाषा हिंदी है । अफगानिस्तान ,
इंडोनेशियस में भी हिंदी बोली व् समझी जाती है ,फ़िजी में में बोली जाती है
..अरब कंट्रीज़ खूब प्रयोग की जाती है ,नेपाल  काठमांडू में तो ऑफिशियली
 लैंग्वेज़ है हिंदी । मै तो कहता हूँ इसको विश्व भाषा होना चाहिए । अंग्रेज़ लोग
 दस हज़ार शब्दों को लेकर भाषा बनाया ये शब्द भी उनके अपनी भाषा के नही थे ग्रीक
 और लैटिन के शब्द ज्यादा हैं । अब देखने वाली बात है दस हज़ार शब्द लेकर
 अंग्रेज़ हम पर शासन कर रहे हैं और मानसिक स्तर पर भी हम पर राज़ कर रहे हैं ।
 ये अंग्रेजी तो हमारे गावो में मशरूम की ग्रोथ की तरह हो गयी है । लोग बच्चो
 से माँ को मम्मी कहलाते जो कि मिस्र में मरे लोगो को बोला जाता है ,पिता डैडी
 कहलाते हैं ..ये सब हमारी परम्परा और संस्कृति नही । अरे अपनी संस्कृति से
 जुड़े उसको समझे जाने वो अच्छा है । लार्ड मैकाले ने को उसकी माँ ने उसको पत्र
 लिखा जब यहाँ उनका विरोध हो रहा था भारत छोड़ कर आने को इसके जवाब में मैकाले
 ने पत्र लिखा वो आज भीसंग्रहालय में मौजूद है .जवाब लिखा था कि "आना तो मै भी
 चाहता हूँ पर यहाँ के लोगो का स्वभाव ज्वार - भांटा की तरह है जाते - जाते मै
 ऐसा करके जाऊंगा कि भारत के लोग हमेंशा -हमेशा के लिए गुलाम बन कर रह जायेंगे
 ।" और आज हमारे यहाँ है भी ऐसा लोगो का खाने ,पीने ,पहनावा -वोढावा में
 अंग्रेज़ो की नक़ल कर रहे हैं । लोग हिंदी की जगह इंग्लिश में बात करने को गौरव
 समझते हैं । कनाडा में तो पंजाबी सेकेण्ड लैंग्वेज़ है ।
               चाइना , जापान ,लन्दन , अमेरिका  वहां का जो साहित्य है हमारे
 शहरो में आराम से खरीद सकते हैं । और हमारे यहां तो हम एक दूसरे राज्यो के
 साहित्य से वाकिफ नहीं है ।इसलिए सभी राज्यो के साहित्य का अनुवाद हिंदी में
 जरूर होना चाहिए और उसको विश्व में लोगो के सामने रखना चाहिए । सारे विश्व में
139 लगभग देश हैं लेकिन पांच देशो में ही अंग्रेज़ी राष्ट्र भाषा है इसके आलावा
 अब की अलग अपनी आंचलिक भाषा है । इन सब में भारत सबसे बड़ा राष्ट्र है । जहाँ
 की भाषा हिंदी है और इसके साथ -साथ अन्य देशो में इसका विस्तार क्षेत्र है मै
 तो कहता हूँ इसको विश्व भाषा का स्थान मिलना चाहिए । मैंने तो कई जगह विदेशो
 में हिंदी में भाषण दिया ,मैंने यू एन में भाषण हिंदी में दिया ।मैंने वहां
 पूछा कि कितनी भाषा को यूनेस्को सपोर्ट करता है पता चला 6 देशो को पर ये 6
देशो की तुलना भारत से करो तो भारत हर तरीके से बड़ा है फिर भी भारत को उसमे
 शामिल नहीं किया गया । फिर वही किसी ने कहा कि जब भारत में ही हिंदी की
 उपेक्षा की जाती है तो बाहर उसको कैसे मान्यता दिलायेंगे, इसलिए सबको मिल कर
 इसके प्रयास करने चाहिये ।
 प्रश्न - हिंदी को विश्व भाषा बनाने के लिए क्या करना चाहिए । मोदी को क्या
 करना चाहिये इसके लिए ?
उत्तर- मुझे विश्वास है मोदी जी काम करेंगे इस क्षेत्र में । बाजपेयी जी ने
 हिंदी के उत्थान के लिए बहुत काम किये ,मेरे काफी अच्छे सम्बन्ध थे उनसे ।
 हिंदी भाषा के लिए मोदी जी समर्पित हैं । सब लोग हिंदी में भाषण दे जिसको न
 पता हो सीखे । मुझे देख लो हिंदी भाषी नहीं हूँ फिर भी प्रयास रहता है हिंदी
 में बात करने का । ये मेरी दिल से भावना है कि मै देश और राष्ट्र भाषा के लिए
 अच्छा कुछ करूँ । मेरा ये उद्देश्य है कि हिंदी विश्व भाषा बने । सभी राज्यो
 में हिंदी को बढ़ावा दिया जाये । विज्ञापन भी हिंदी में दिए जाये । इंग्लिश को
 हटाने के लिए आंदोलन होने चाहिए । देश तब महान होगा , जब राष्ट्र भाषा को महान
 और समृद्ध बनाएंगे । इसको विश्व भाषा बनाने का इरादा है पर इसके लिए सार्थक और
 ठोस प्रयास करने होंगे । शशि पा

7/18/2015

लेखन मे व्यंग्य जरुरी क्यों !!(लेख )


व्यंग्य ऐसी विधा है जिसमे हल्के -फुल्के मनोरंजन के साथ सामाज़ से रुबरू कराया जाता है| व्यंग्य रचनाये हमारे मन मे गुद्गुदी पैदा करने के साथ -साथ वस्तविक्ताओ से दो चार भी कराती है| इस विधा से हर व्यक्ति आसानी से जुड जाता है और रोमंचित व आनंदित हो समस्याओ के प्रति कही न कही सज़ग होता है | चरमराती समाज़िक व राज़नैतिक व्यवस्था और बीच मे पिसता देश का सामान्य जन मानस इस विधा के माध्यम से अपने आंतरिक  विचार व भावनाओ को शब्दो के जरिये उकेर पाता है | व्यंग्य लेखन का एक ऐसा माध्यम है जिसके कंधे पर बंदूक तान पाखंड,सामाज़िक रूढी वादिता पर बिना ठेस पहुंचाये कटाक्ष किया जाता है | चलते -फिरते हर मोड पर कही न कही जीवंतता बनाये रखने के लिये व्यंग्य , कटाक्ष की कोइ न कोइ पुट या शब्द हमे खिलखिलाने के लिये मज़बूर कर देती है| ये कही सीधे तो कही घुमाकर शब्दो कि ताबडतोड बरसात है जो विविधता से ज़ादुइ असर छोडता है,इसमे लेखक या पाठक या अन्य किसी को इंकार नही होता | एक आम का पेड ,दूसरा करेले का पौधा जिस प्रकार इन दोनो का स्वभाव अलग -अलग होता है ...एक स्वास्थ्य के लिये उपयोगी दूसरा स्वाद के लिये जाना जाता है .....उसी प्रकार व्यंग्य है बल्कि साहित्य कि हर एक विधा मे ऐसा ही है | व्यंग्य की  मामूली बातें भी ज़ादुइ असर से लबरेज़  होती  हैं । देखा जाये तो एक व्यंग्यकार एक समाज सुधारक भी होता है। व्यंग्य, पाठक या श्रोता को एक चेतना के मुहाने पर ला छोडता है,जहाँ से वह धारा प्रवाह चिन्तन मे बह चलता है। इस तरह से व्यंग्य समाज प्रहरी  भी है और  विकसित दृष्टि  के आधार पर समाज  को नए मानदंड प्रदान करने मे सहायक होता है।

7/05/2015

राजनीति में आम और लीची ( व्यंग्य लेख)

विहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी और नीतीश कुमार के बीच जिस तरह की राजनीति का माहौल बना हुआ है वो किसी से छुपा नहीं । बड़ी ही हास्यपद और छोटी सोच कि नीतीश कुमार ने जीतन राम के आवास में लगे आम और लीची पर पहरेदारी लगवा दी इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है आज राजनीति का स्तर क्या हो चला है ।
                 असल में ये खेल "राजनीति बनाम आम -लीची "का है । जिसकी आड़ में राजनीति की जा रही है या कही न कही अपने विरोधी को नीचा दिखाने की कोशिश की गयी । लोक सभा चुनावो में जे डी यू के खराब प्रदर्शन के बाद 17 मई को नीतीश के इस्तीफा दे देने के बाद उनकी जगह लेने के लिए जीतनराम को बुलाया गया हालाँकि यह नीतीश कुमार की बड़ी ही राजनीतिक भूल कही जायेगी नीतीश कुमार को इसका एहसास देर से हुआ और जब होश में आये तो मांझी का रुख देख नीतीश कुमार के पैरो तले ज़मीन खिसक गई ।नीतीश अपनी चाले चलने लगे तो वही मांझी अपने पांसे विछाने लगे । मांझी बागी हो दलित राजनीती खेल ,खेलने लगे । मुख्यमंत्री के पद पर रहते मांझी ने कुछ ऐसे फैसले किये जो दलितों के समर्थन में थे जिससे वे भी विहार के दलितों के नेता बन गए ।
           अब मांझी अपनी अलग पार्टी के तौर पर विहार की राजनीति में खुद को आज़माने के लिए ज़मीन तैयार कर ली थी । परन्तु  उन्होंने साफ कर दिया है कि वो चुनाव बाद जरूरत पड़ने पर भाजपा के साथ समझौते या समर्थन के राज़ी हैं । अब ये मांझी नाम की मुसीबत सिर्फ नीतीश के लिए नहीं भाजापा के लिए भी बन गई ।
                   नीतीश के महादलित और मांझी के महादलित अलग -अलग श्रेणी में बट चुके हैं ।देखना दिलचस्प होगा विहारी महादलित किसको अपना नेता बनाते हैं । विहार में सत्ता का सुरूर जोरो पर है तो वही जनता माई -बाप बनने को । भाजापा भी मांझी के बहाने अलग तरीके की राजनीति करने की तयारी में है ।
               जितनी नीतीश और मांझी की कुश्ती का खेल खेलेंगे भाजपा को उतना ही फायदा पहुँचेगा । ये भाजपा नेता बखूबी जानते हैं ।भाजपा का पूरा प्रयास रहेगा कि आम और लीची के बंटवारे में वो बाज़ी मार ले ।
              यह राजनीतिक प्रतिस्पर्धा आम लीची के बंटवारे तक सिमट कर नही रह गई बल्कि इसमें सत्ता पर काबिज़ नीतीश की बेज़ा अभिमान की पराकाष्ठा व् मांझी का अड़ियल रुख सम्मिलित है जिसमे आम और लीची की महक गायब है, इसमें पिछड़ा वर्ग व् दलित वोटों पर अपने कब्ज़े की भीनी -भीनी दुर्गन्ध है । जो राजनीति की समाज़वादी विचारधारा में ये हमारे वोट है की ओर बंटवारे पर अपने कब्ज़े का स्पष्ट इशारा करती है कि आम हमारा लीची तुम्हारा । इसे आम लीची की राजनीति कहे तो क्या यह व्यंग्य है , नही ये राजनीति का निचला पायदान जरूर है जो गिरने के स्तर को दर्शाती है ।
                     देखना है कि अब ये आसन्न चुनावो में कहाँ तक लुढक कर जायेगी और बदले स्वरूप् में मांझी कितनी आम के मिठास का रसास्वादन भाजपा को पहुचाएंगे ।
   _________________________________
                    शशि पाण्डेय

उदासीनता का शिकार -चित्रकूट ।

"नदी पुनीत पुरान बखानी
                अत्रिप्रिया निज तप बल आनी
सुरसरि धार नाऊ मन्दाकिनी
                 जो सब पात कपोतक डाकिनी"

उत्तर -प्रदेश का चित्रकूट जिला जो आस्था का उद्गम है , जहाँ मर्यादा पुरषोत्तम राम ने लगभग 11 वर्ष का समय बिताया जहाँ हर पग पे ज़मीन स्वर्ग सी पबित्र है । देश -विदेश में धार्मिक स्थलों की श्रेणी में शुमार होने वाला "चित्रकूट" आज बदहाली के बीच आस्था को समेटे हुए है । सरकारो की उदासीनता के चलते सदियाँ गुज़र जाने के बाद  चित्रकूट पर्यटन आज भी दयनीय अवस्था में है । विंध्य पर्वत की शृंखला के नीचे बसे इस कस्बे में कल -कल ,छल-छल बहती पावक मन्दाकिनी अब प्रदूषित हो अपने अस्तित्व को बचाने को बचाने की गुहार लगाती हुई दिखती है ।
          चित्रकूट का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है 'कामदगिरि मंदिर"जो भगवान जगनन्नाथ का रूप माना जाता है ।इस मंदिर की परिक्रमा 5 किo मीo का पहाड़ है जिसको श्रध्दालु अपनी आस्थानुसार पूरी करते हैं । पर यहाँ भी भरपूर अव्यवस्था देखने को मिलती है अब तक कई बड़े हादसे परिक्रमा के दौरान हो चुके हैं पर सरकारे मुवावजा दे पीठ थपथपा कर बैठ जाती हैँ । चित्रकूट  की रमणीयता देखते ही बनती है । यह भारत के प्राचीन तीर्थस्थलों में से एक है परन्तु प्राथमिक सुविधाओ से वंचित है । समाज सेवी स्वo "नाना जी देश मुख " ने यहाँ प्रगति के लिए काफी कुछ कार्य किया पर वो भी ऊंट के मुँह में जीरा साबित हुआ ।
          चित्रकूट की महत्ता का वर्णन पुराणों के प्रणेता वेदव्यास, आदिकवि कालिदास ,संत तुलसीदास तथा कविवर रहीम ने अपनी कृतियों में अलग -अलग ढंगों से किया है । ये ऐसी जगह है जो देश -विदेश से आने वाले पर्यटको और श्रद्दालुओ अपनी और आकर्षित करती रही है ।
          चित्रकूट में हवाई पट्टी का प्रस्ताव पास हो आधा बनाया भी जा चुका है पर गतिमान नहीं किया जा सका । इतना विशिष्ट स्थान होते हुए भी यहां पर्यटको के ठहरने के लिए उत्तम होटलो का आभाव है । और आवागमन भी डग्गामार वाहनों की बजह से दुरूह है जिसको दुरुस्त किया जाना बहुत ही जरुरी है ।
      चित्रकूट के पर्यटन का हिस्सा "गणेश बाग" जो चित्रकूट से लगभग 3 किo मीo दूर दक्षिण की ओर स्थित है । यह स्थान "श्री बाजीराव पेशवा के शासन काल में निर्मित हुआ था , यहाँ स्थापत्य कला को देखकर मालूम पड़ता है पेशवा काल में स्थापत्य कला अपने चरम सीमा में जा चुकी थी

    चित्रकूट अतुलनीय है ,यहाँ पर्यटन को बढ़ावा देने व पर्यटको की संख्या में बढ़ोत्तरी के लिए मुलभूत सुविधाओ का होना जरुरी जिससे पर्यटक चित्रकूट की तरफ खिंचा चला आये । चित्रकूट के बारे में सच ही प्रसिद्ध पंक्तियाँ हैं..
      "जेहि विपदा परत है, सो आवत ऐहि देस
        चित्रकूट में रमि रहे रहिमन अवध नरेस"
                     ______________
                   शशि पाण्डेय
  

6/24/2015

प्यार के दो बोल (कहानी)

एक कहानी ~मेरी ज़ुबानी
              उस बुज़ुर्ग की नज़र जाने क्या मुझ में आते जाते निहारती !!बात यूँ है मेरे घर से निकलते ही कुछ ही दूरी पर मेरी सहेली का घर और हम दोनो कुछं समय पहले एक ही स्कूल में पढ़ाते थे अक्सर हमारा स्कूल आना जाना साथ होता । बातो -बातो में पता चला वो बुज़ुर्ग मेरी सहेली के जानने वाले और  पडोसी हैं ।आधुनिकता के दौर में एकल परिवार का चलन और ऊपर से मेट्रो शहर का रहन -सहन का असर था कि उस बुज़ुर्ग की जिसकी पत्नी कुछ दिनों पहले दुनिया से रुखसत हो चुकी थी ,उसकी अपनी एकलौते बहु -बेटे से नहीं बनी या बहु -बेटे की बुज़ुर्ग से नही ऐसे में क्या होना था उनको छोड़ बहू -बेटा अलग रहने लगे अब वो बुज़ुर्ग नितांत अकेले पड़ चुके थे हालाँकि आर्थिक रूप से जहा तक लगता था देखने से उनको सहायता मिल रही थी ..अब वो बुज़ुर्ग घर के बाहर अकेले बैठे आने जाने वालो लोगो को ताकते रहते थे जैसे चाहते थे कोई उनसे उनका हाल चाल पूछ ले या प्यार के दो बोल ,बोल दे । मेरा और मेरी सहेली का जब सामना होता ..सहेली उनके पैर छु उनको प्रणाम करती मै न जानते हुए भी जब वो मेरी ओर देखते तो मै हाँथ जोड़ नमस्ते कर देती फिर कई बार मेरा अकेले भी उनसे सामना हुआ एक दो बार मै उनको अनदेखा करते हुए सामने से निकल गई हालाँकि मुझे ऐसा करते बुरा लगता पर जाने क्यू शहरो में रहते -रहते हम कभी -कभी बिना वजह की बातो में भी झिझकते हैं खैर एक दिन निकलते हुए मेरे बिना नमस्ते बोले ही नज़र मिलते ही उन्होंने दूर से ही मेंरे आशीर्वाद में हाँथ हिलाया उस मुझे अपने आप पे बहुत पछतावा हुआ कि उनके लिए मेरा नमस्ते बोलना आत्मिक था ।उस दिन से वो जब मुझे मिलते हैं मै उनको नमस्ते बोलती हु वो मुझे बड़े प्यार से ढेर सारा आशीर्वाद देते हैं । मेरा सिर्फ यही कहना है बुज़ुर्गो  का सम्मान करे प्यार करे उनसे मिलने वाले आशीर्वाद में बहुत सुकून मिलता है और ताकत भी । शशि पाण्डेय

6/19/2015

हक़ का दायरा ( व्यंग्य लेख )2

कभी कोई बच्चा रोता हुआ आज भी दिखता है ज़हन में तुरंत जाने कितने सवालो की गांठे खुलने लगती हैं । बचपन में मेरे पड़ोस में रहने वाली बच्ची रश्मि  कभी -कभी रोते हुए हमारे घर आती और थोडा सा प्यार से पूछने पर घर में हुए संघर्स की कहानी को डरी और सहमी हुई  बड़ी मासूमियत से  खोल कर रख देती ..पारिवारिक कलह । जो कि वो जानती भी न थी ये क्या है ,क्यू है । बचपन बीत गया अब तो रश्मि को भी घरेलू हिंसा की समझ हो गयी है । सच तो असल में सिर्फ इतना है ये घरेलू हिंसा किसके लिए है जवाब ढूंढो तो उत्तर मिलता है "महिलाये" । पारिवारिक कलह है  तो आखिर शिकार महिलाये ही क्यू हैं । पुरुष अगर  शिकार होते भी होंगे  तो  भी प्रतिशत बहुत कम होगा । स्वतंत्रता के बाद देश की इतनी प्रगति के बाद भी महिलाओ की स्थिति में न के बराबर सुधार है । जहां तक मै समझती हूँ समाज में जो भी कमजोर है वही हिंसा और गलत व्यवहार का शिकार है । मेरी माँ जो कि शादी के बाद मुझे यही सिखाती आ रही हैं कभी घर में झगडे ही तो शांत रहना या जो भी हो सहन कर लेना । जहाँ हम भाई बहनो की परिवरिश एक सी हुई है तो फिर शादी के बाद ऐसी सीख सिर्फ मुझे क्यू सिर्फ इसलिए की मै औरत थी !!! शायद किसी अंदेशे से बचने और बचाने के लिए । क्या महिलाओ के लिए सहन शीलता के आलावा कोई और विकल्प नहीं ?? हमें कितने कानून और बनाने होंगे समाज में पुरुष की सोच बदलने के लिए । घरो के अंदर औरतो के आत्मविश्वास ..आत्मसम्मान को कैसे बचाया जाये  कोई कानून हो तो उसको भी लागू कर दिया जाये । वैसे हाँथ उठाने या महिलाओ के ऊपर बल प्रयोग की हिम्मत आती कहा से है इसके लिए कोई ट्रेनिंग तो दी नहीं जाती फिर पुरुष इतना हिंसात्मक प्राणी कैसे बन जाता है क्या उनके शरीर में दिल की जगह सिर्फ दिमाग बचता है और ऐसा दिमाग जो उनसे ये सब करवाता है । दलीलें कितनी भी दे पर किरण बेदी सिर्फ दिल्ली तक ही हैं । हकीकत तहे तो आये दिन पेपरों अखबारो खबरों में खुलती रहती हैं । औरतो को समझना होगा उनका अपना हक़ और हक़ का दायरा जितना स्वतंत्र प्राणी समाज में पुरुष है उतनी स्त्री और बात जितना सबको समझना चाहिए उस से कही ज्यादा स्त्री को समझना चाहिए । हम सब जानते हैं गुज़रे ज़माने से लेकर अब तक हमारा समाज सामंती था ऐसे में उन्ही लोगो को दबाया जाता रहा जो किसी न किसी तरह से कमजोर थे । पर कही न कही अफ़सोस ये भी है कि महिलाये भी महिलाओ को दबाने में पीछे नहीं है । समाज में बदलाव निश्चित रूप से बड़ी तेजी से हो रहा है  पर सिर्फ दिखावा है आर्टिफिशियल है असल बदलाव तब होगा जब समाज में हर इंसान को समान अधिकार होगा वो भी संविधान की किताबो में काले अक्षरो में ही नहीं बल्कि लोगो के दिल और दिमाग में भी । समाजिक तौर पर महिलाओ को त्याग , सहनशीलता एवम् शर्मीलेपन का प्रतिरूप माना जाता है । इसके भार से दबी महिलाये चाहते हुए भी अपने ऊपर होने वाले हिंसा का विरोध नही कर पाती है । कुछ मानसिक प्रताड़नाए भी हिंसा के दायरे में आती हैं ।पढ़ी लिखी महिलाये तो अपने हक़ के लिए आवाज़ उठा लेती हो मगर आंचलिक परिवेश में अनपढ़ ,कम पढ़ी लिखी और दबी कुचली महिलाओ के लिए आवाज़ उठाना सोच से भी परे है।
      देश में महिलाओ के अधिकारो के हनन की जाने कितनी तस्वीरे देखने को मिलती हैं ऐसे -ऐसे मामले जहा महिलाये गरिममय पद पर होते हुए हिंसा को रोक न पायी तो आम घरेलू महिलाओ का क्या होता होगा समझ आता है। परिवार की इज़्ज़त की दुहाई देकर यातनाओ को चुपचाप सहने वाली महिलाओ को समझना चाहिए कि डोमेस्टिक वायलेंस वायरस न सिर्फ उन की ज़िन्दगी को वरन् बच्चों की ज़िन्दगी को तबाह कर रहा है । इसलिए सबसे जरुरी यही है कि महिलाये खुद अपने अधिकारो के प्रति जागरूक हो । और अपने साथ हो रहे अत्याचारो के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएं कानून की जानकारी हासिल करे और उसका वाज़िफ इस्तेमाल करे ।

6/12/2015

खौफ़ का दौर ( व्यंग्य लेख)

सुना है पाकिस्तान के प्रधानमंत्री सोते -सोते अचानक से उठ कर बैठ जाते हैं , उनकी रातो की नींद और दिन का चैन गायब हो गया है । कही ये इश्क़ तो नहीं छोडो जी पता लगा इश्क़ नहीं ये भारतीय सेना का खौफ है जिसने शरीफ का चैन उड़ा कर रख दिया । हमारे किसी  भारतीय न्यूज़ चैनल के जैसे पाकिस्तान में सुरक्षा दृष्टि से सतर्क करने वाले रिपोर्टर जरूर होंगे और वहाँ कुछ यूँ बोलते होंगे "अमा मियां चैन से सोना है तो पहले जाग जाओ " पर पाकिस्तान में कितना जागे आखिर कभी यहाँ बम तो कभी वहाँ बम उनके यहाँ तो वेसे ही चहल -पहल लगी ही रहती है । पर अभी जो हालात शरीफ़ जी के हैं जग जाहिर है और हो भी क्यू न भारत की सैन्य बल ने जो कर दिखाया उससे पडोसी देशो की नींद उड़ना लाज़मी है उसपे भी ऐसे पडोसी जिनकी नइया ही दूसरों को डुबा कर पार होती हो । यहाँ तक की अमेरिका के पूर्व राजदूत ने भी पाकिस्तान को आगाह किया है कि जो रवैया पाकिस्तान करता आ रहा है उसे छोड़ दे वरना जवाबी कारवाही की जायेगी  ।अब मालूम नहीं अमेरिका छोड़ने के लिए बोल रहा है या नए तरीके आज़माने की सलाह दे रहा है । पाक चचा कहे कुछ भी पर डरे तो हैं । और इधर (भारत) में तमाम सरकार बिरोधी दल के लोग पानी पी -पी कर कोस रहे हैं ...आपस में भले एक दूसरे को कोसो पर चचा लोगो , कम से कम सेना का मनोबल तो बढ़ाओ वो बेचारे अपना सब छोड़ कर हमारी आपकी सेवा और सुरक्षा  में लगे रहते हैं ,आये दिन मौत से मुकबला करते हैं तो कभी जंग में  मौत से हार भी जाते हैँ । म्यांमार में उग्रवादियो के खिलाफ कार्रवाई की खबरे आई तो तो इस अप्रत्याशित अभियान से जुडी कई घटनाये सामने आई । इस खुलासे में पता लगा की सेना को दो टूक आदेश दिया गया कि उग्रवादियो के कैंपो को सीधा निशाना बनाया जाये और उन्हें नष्ट किया किया जाये । हालाँकि सेना और सरकार दोनों को ही पता था ये काम मुश्किल भरा और म्यांमार की सीमा से लगा हुआ था पर सेना को तो साहब बस जरुरत होती है तो एक आदेश की फिर उसकी सफलता उसके हौसले बताती है । हालाँकि ऐसे अभियान पहले भी होते रहे हैं पर क़सम पाकिस्तान की चचा "56 इंच के सीने वाला गर्व "  अभी ही हुआ देश को शायद ये मोदी का असर है । खैर बधाई के पात्र सरकार और सरकार से ज्यादा सेना है । चलो कम से कम उगरवादियो एक सन्देश तो गया ही कि सुरक्षा बल या आम जनता को अगर निशाना बनाया गया और उनको किसी भी तरह का नुकसान पहुचाया गया तो उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी । वेसे हमारे दुश्मनो के लिए ये बहुत अच्छा सन्देश है कि अगर कुछ किया तो जवाबी कारवाही की जायेगी और करारा जवाब दिया जायेगा । इन्ही सब हालातो से घबराये हुआ पाकिस्तान ने अपने यहाँ सीनेट में बैठक तक बुला डाली और तो और भारत की कड़े शब्दों में निंदा तक कर डाली जो की हमारे यहाँ भी राजनेता अब तक समय -समय पर करते रहते हैं । तो वही हमारे कांग्रेसी आकाओ का कहना है ये शेखी बघारना है भई ये क्या बात हुई तू -तू ,मै -मै करना ठीक है पर बात देश की सुरक्षा की हो तो ये ठीक नहीं । धर्मिक कट्टरता तो ठीक नहीं पर , देशिक कट्टरता जरुरी है । सोचने वाली बात है कि एक अभियान ने हमारे देश को दुनिया के किस पायदान पे लाकर खड़ा कर दिया...देश विदेश सोचने को मज़बूर हो चले हैं लोग चर्चा करने और बयान देने को मज़बूर हो चुके हैं । अब इसको डींगे मारने का असर कहे या शेखी बघारना । पाकिस्तान का रुख और बयानबाज़ी को देख कर तो साहब यही लगता है जी चोर की दाड़ी में तिनका । अब देखना होगा कि नापाक पाक अपने बदमाश ,बदनाम इरादों से बाज़ आएगा या दहशत गर्दी के नए आयाम ढूंढेगा । अमां शरीफ़ मियां ये सारी खाज़ खुज़ली छोडो और अमन चैन की पैरवी करो और दुसरो के घर में ताक झांक से बाज़ आओ और "वसुधैब कुटुंबकम" की भावना लाओ । शशि पाण्डेय ।

6/09/2015

बदलाव ( कहानी)

पड़ोस की रह वाली सपना की शादी बड़ी धूम -धाम  ई थी आखिर होती भी यू न घर की बड़ी टी जो थी पर शायद माँ-बाप को छोड़ कर सबको पता था वो कसी  साथ प्रेम सबध  थी खैर शादी ई ..मधुर दापय की शुआत भी हो गई कुछ ही दन  सपना की गोद भरी और यारी सी टी की उन आँगन  कलकारयाँ गूंजी सभी बत खुश  । पर इस बाद  जिंदगी  जो करवट ली उसका अंदाज़ा कसी को न था , सपना का पूव यार फर उस साम आ खड़ा आ और वो न चाह ए अपनी प्रेम कहानी फर शु कर दी दन बी यार की प बढ़ी और एक दन सपना  पत को इसकी भनक लगी उस बाद जो बा आप मन  आ रही  जी हाँ बलकुल वही नह आ सपना  पत  सपना को बच की तरह समझाया उसकी नया वो  जो वतमान  !! शायद वो समझ कर भी समझना नह चाहती थी या उस दल पर उसका जोर नह पर इस उलट सपना इस बात  अनिभ थी की उसका यार ...यार नह एक पुष का छलावा था काश क वो इस हकीकत को समझ पाती । आखिर त्रीका मन सदनाओं ..सभावनाओ..और भावनामक प  हद सदनशील होता  इस नतीजतन वो धोखा खा जाती  ।बात आ बढ़ी सपना उन दन बारा माँ बन वाली थी और पत  खुद आग लगा कर सोसाइड कर की कोशिश की और ज़िदगी की लड़ाई लड़ -लड़ हार गया और गहरी नद हशा  लिए सो गया इस बाद सपना की अली ज़िदगी और सपना  प्रेमी  अपनी नया बसा ली यू की समाज  रह सपना की सरी शादी वो भी पूव प्रेमी  ता जमीन पर ला जैसा था । अब बात क तो समाज  यार और यार कर वालो को आखिर समाज  वीकृत यू नह  ऐ रीत रवाज़ कस काम  जिस जिंदगयाँ ख़म हो जा  खोख दखा मा  या समाज की वसंगतय समात हो जागी ।भारत  तरकी  नाम जगमगा मॉल और ब मंजिला इमारत  आलावा कुछ भी तो नह बदला ...लोग मॉडन ह ल  'लुकंग कूल डूड' कहला ल  पर या इन कूल डूडो की मानसकता बदली   भी एक लड़की या महला को ठीक  ही घूर  जै एक र वाला हाँ पहनावा ओढ़ावा जर मॉडन हो गया । कोई घटना घटती  लोग कुछ दन चच कर  प्राइम टाइम  बहस ...कडल माच और हालात फर वही जस  तस । कुछ समुदाय वष तो इन प्रेम संग  रत  नपट लिए हर सीमा को लाँघ जा  । इन घटनाओ  ऊपर फ भी बनी और इन फमो को लोगो  दल खोल कर सराहा भी पर बात जब कसी बदलाव को अपना की हो तो लोग समाज  आ बढ़  बज़ाय आदकाल  पहुँच जा  ..आखिर बदलाव  बयार  लोग कब बहकर पी न जा  लिए आ आएं ।