एक आम इंसान समाज और परिवेश मे होने वाली घटनाओं से प्रभावित हो कर ,उसके मन मे जो विचार आते हैं लिख बैठता है, और उसका लिखा लोगो को पसंद आता है या अच्छा लगता है ।
उसका मनोबल बढ़ने लगता है । अव वह समाज से प्रभावित हो या विचलित हो कर ही नहीँ बल्कि लोगो के पसन्द किये जाने के लिये भी लिखता है ।
इस बीच उसके लेख को कुछ पेपर, पत्रिका मे छापने हेतु आमंत्रण मिलता है । वह यह आमंत्रण स्वीकार कर रचनायें भेज देता है। वह ससम्मान छप जाता है । छपने के बाद उसका मनोबल और बढ़ता है । फ़िर लोगो द्वारा सराहा जाता है । अब यह क्रम चल पड़ता है ।
अब उसे लिखने से ज्यादा छपने मे और चर्चा मे रहना अच्छा लगने लगा है । वह अब लिखने के लिये नही छपने और नाम के लिये लिख रहा है ।
लिखने के पूर्व वह सिर्फ़ इतना जानता /जानती है कि उसके द्वारा जो लिखा जा रहा है वह "गद्द्य"है या "पद्द्य" है अगर वह हिन्दी साहित्य से नही जुड़ा तो। इसके बाद उसे पता चलता कि वह जो लिख रहा वह किस विधा विशेष से सम्बन्धित है ।
वह खूब लिख रहा है ,खूब छप रहा है ,खूब नाम उगाह रहा है । शायद यही "छ्पास रोग " है !! जो कि उसको नही पता । ये "दौर ए लिखावट" चलते -चलते वह गोष्ठियों और सम्मेलनों का हिस्सा बनता है । इन बैठकों मे वह खुले दिल से सराहा जाता है तो वही वह "कानाफूसियो" मे लताडा भी जाता है ( कि साला हमसे अच्छा और हमसे आगे कैसे ) ।
अब उसको किताब छ्पास नामक रोग भी लगता है। इन दौर मे इतने सम्पर्क बन जाते हैं कि उसकी किताब आसानी से छप जाती है। जोर -शोर से किताब का विमोचन होता है। अब किताब -छपास व विमोचन का सिलसिला चल पड़ता है।
इस बीच वह किसी अपने से बड़े नामी लेखक को अपना गुरु भी बना लेता है.....सांठगांठ से खूब सबकी मस्का बाजी भी करता है । कोशिश करता है दौड़ मे आगे निकलने की ।
अब वह मझा हुआ लेखक कहलाने लगा है। लोग उसके साथ खड़े हो फोटो खिंचाना चाहते हैं । इतना होते -होते अब उसको कई सम्मान भी मिलता है । अब कुछ ऐसा ऊलजलूल लिखता है जो सही न होते हुये सही कहलाता है और इस पर उसका खूब नाम और चर्चा होती है ।
पर अभी एक समस्या है उसको पुरस्कार नही मिले हैं । पुरस्कारों को लेकर वह खींच तान करता रहता है ।उसको क्यों मिला ? मुझे क्यों नही मिला ? मै तो अच्छा लिखता हूँ ज्यादा छपा हूँ...आदि -आदि..। इतने "त्राहि माम" के बाद उसको छोटे -छोटे पुरस्कार भी मिल जाते हैं ।कुछ अपनी बदौलत कुछ गुरू की बदौलत ।
खैर ज्यादा नाम होने के बाद उसे अब बडा पुरस्कार मिलने वाला है । अव वह अव्वल दर्जे का लेखक बन चुका है या यों कहे कि राष्ट्रीय व अंतर्रष्ट्रीय लेखक बन चुका है ।
अब वह गोष्ठीयों मे मेम्बर आफ़ पार्लियामेंट बन कर आता है और नये ,छोटे व कम नामी लेखकों को धौंस के साथ लिखने के सदउपदेश देता है और कइयों के लेखन को सिरे से खारिज भी कर देता है ।
अब वह टीवी डिबेट्स मे जाने लगा....राजनीतिक गतिविधियों मे उसकी पूँछ होने लगी है । अगर अब वह चाहे तो सम्मान वापसी कर सरकार की मुशकिले बढ़ा सकता है किसी भी मामले मे क्योंकि वह अब आम आदमी लेखक बन चुका है......वह भी सफल लेखक । शशि पाण्डेय
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