5/27/2016

संयोग (कहानी )

मालती की खुशी का ठिकाना ना था शादी हो नयी  बहू घर जो आयी थी....मालती का सोचना था मै अपनी बहू  को...बहू नहीँ बेटी बना कर रखूगी...तो नेहा भी सास भी को सास न मान...माँ मान कर ससुराल आयी थी।

पर  किस्मत को कुछ और ही मंजूर था... कुछ दिन बीते  नेहा नवदम्पति खुश थे। फ़िर एक दिन जाने किस बात पर...माँ सरीखे मालती और बेटी सरीखे नेहा के किसी बात  को लेकर कहा सुनी हो गई ।

नेहा ने पति मनोज को शिकायती लहजे मे पूरी बात बतायी मनोज ने अनसुना कर दिया...नेहा अपने गुस्से पर काबू ना कर सकी और बीती रात ज़हर खाकर जान दे दी । घर मे सुबह कहर सा टूट पड़ा ।बात पुलिस तक पहुँची...पुलिस घर आयी तब तक घर के सभी सदस्य नेहा के शव का अंतिम संस्कार करने की तैयारी कर रहे थे । पर मनोज सदमें मे शून्य हो बैठा रहा उसको किसी ने झकझोर कर पुलिस के आने की सूचना दी वह भागा और भाग कर ट्रेन की पटरियो मे अपने प्राण नीर दिये ।

पूरा गाँव - मुहल्ला आचम्भित है...घर के बचे सदस्यों पर दहेज का केस लगा पुलिस ने जेल मे डाल दिया है । मालती सलाखों के पीछे बहू -बेटे की मौत से स्त्म्भीत सोच रही है....क्या कोई बेटी ज़रा सी बात पर जान दे सकती है....ये कैसी बेटी थी जो ऐसा संयोग लायी!!

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