5/18/2016

सफर मॆ प्रकृति (कविता )

दूर -दूर तक जाती नज़रें 
कहती हवा से 
आओ बाते करें 
बिखरी जमीं पर बिखरा 
आसमान 
हर पल मिलते से
आते  नज़र
पास और दूर खड़े पेड़ 
कोई गोलाकार ,
कोई लम्बा 
यूं लगता है जैसे 
किसी ने हाँथो से 
हो इन्हे  तराशा
उस पर इन पेड़ों 
पर मचलती हवा 
सर -सर इनसे 
बहती ,सरकती हवा 
ये है प्रकृति पर मेरी खबरें 
दूर -दूर तक जाती नज़रें ॥ शशि पाण्डेय ।

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