दूर -दूर तक जाती नज़रें
कहती हवा से
आओ बाते करें
बिखरी जमीं पर बिखरा
आसमान
हर पल मिलते से
आते नज़र
पास और दूर खड़े पेड़
कोई गोलाकार ,
कोई लम्बा
यूं लगता है जैसे
किसी ने हाँथो से
हो इन्हे तराशा
उस पर इन पेड़ों
पर मचलती हवा
सर -सर इनसे
बहती ,सरकती हवा
ये है प्रकृति पर मेरी खबरें
दूर -दूर तक जाती नज़रें ॥ शशि पाण्डेय ।
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