5/27/2016

रेल टिकट (कविता )

एक दिन कै बताई बात
दिल्ली जान कै खातिर
हमने कराई टिकट
आरक्षण कै खिड़की पै
स्थिति बहुतै रही  विकट ।।

रही बहुतै गुत्थम -गुत्थ
हमहू झेल -पेल कै लै आये टिकट
दुसरे दिन कै रही
हमारी रेल
रेल मा रही बहूत झेलम-झेल ॥

हमरी सीट मा कौनो और
बइठा देख हमरा
माथा होइगा फेल ॥

हम ऊन्है देखाई,ऊँ हमै देखावै
आपन - आपन टिकट
मामला कुच्छौ समझ
कौनो कै न आवै
हमका कौनो बात
मन का न भावै॥

एतने मा देखाई
परा करिया कोट
हम सब छोड़ भागे
पीछे जैसे माँगै  वोट
हमको समझाये करिया कोट
नही भागौ माँगै जैसे वोट ॥

रेल वहै ,सीटव  वहै
चढेव गलत तरीख मा
यहै तुम्हार खोट
हम भागा उतरे उल्टे पांव
लिहेनिस रेल जहाँ ठहराव
कह रहॆ चचा
न किँहेव अब हड्बडियाय कै काम 
नहीँ तौ देने पडैनंगे हम सबको उल्टे दाम !!शशी पाण्डेय ।

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