वो चाहने वाला है मेरा
वो चखता है स्वाद मेरा
और मै नमक की "डेली"
सी धीरे -धीरे घुल रही॥
मै फूल हूँ उसकी बगिया का
वो माली है बन बैठा मेरा
मै नित -नित नव खिलती
मुरझा कर झरती रहती॥
वो सब कुछ है मेरा
बन बैठा है मलिक मेरा
मै रोज़ ही ठगी जाती
रोज़ ही बाजार मॆ बिकती
कैसे बनी ये दुनिया
बतला दे तू
मै न पैदा करती
तो तुझको न मिलती ज़मी॥
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