5/09/2016

जूते की चाह(व्यंग्य लेख )

कुछ दिन हुये शादियों का सीजन आ गया।साल भर में ऐसे सीजन दो बार जरुर आते हैं।इसी सीजन के चलते मेरी भाभी के भाई की शादी भी थी अब शादी रिश्तेदारी में थी जाना भी जरूरी था। घर में पति महोदय से बात चीत हुईं और तैयारी बन गयी जाने की ।अब तो बस एक ही धुन लगी शॅापिंग की। अब दो- तीन दिन बाज़ार जाना पड़ा सारी खरीददारी हो गयी।
                     याद आया जूते चप्पल की शॅापिंग रह गयी है। हम गये जूते 👞चप्पल 👡 की दुकान में दुकानदार हमें जूते 👞चप्पल 👡 दिखा ही रहा था। एक जोड़ी पसंद आयी उसका दूसरा पैर लेने वो अन्दर गया तभी मुझे सहसा एक आवाज आयी मैं आवाज सुनकर भौचक्की सी अपने  दाये- बायें देखने लगी पर मुझे कुछ समझ न आया। फिर आवाज आयी तो कुछ समझ आया की आवाज़ मेरे ही पैरों की तरफ से आ रही थी । नीचे देखा तो आवाज जूते से आ रही थी ।
मैंने पूछा कौन- उसने कहा मैं जूता हूँ
मैंने पूछा तुम कैसे बोल रहे हो??
उसने कहा मैं अब बोलता भी हूँ और चलता भी हूँ।
मैंने पूछा वो कैसे ??
बोलते भी हो और चलते भी हो मेरे समझ से बाहर है।
जूता बोला..... जब मैं चलता हूँ मतलब चलाया जाता हूं तो दुनिया बोलने लगती है।
मेरी फिर भी समझ न आया।
फिर मैंने जूते को बोला भई अच्छे से समझाओ
तुम चलते हो तो दुनिया कैसे बोलने लगती है ??
फिर जूते ने कहा- वैसे तो मैं पैरों में ही पहना जाता हूँ पर आजकल मेरा द्वारा और भी एक पुण्य काम किया जाता है । और वो है राजनेताओं को ऊपर फेका जाना।और मैं जैसे ही फेका जाता हूँ वैसे ही दुनिया बोलने लगती है और जो फेकता है वह भी फेमस हो जाता है। ये काम मेरे जैसे ब्रांडेड और मेरे नॅानब्रांडेड भाइ लोगों द्वारा किया जाता है ।
                   मैंने पूछा मुझसे क्या चाहते हो मैं क्या कर सकती हूँ??वो गिडगिडाया और  कहा मेरी आपसे हाथ जोड़ कल विनती है आप मुझे भी कहीं ऐसी जगह चलाये जहाँ पर मै मीडिया में आऊँ।और मेरा आपसे प्रॅामिस है आप भी फेमस हो जाओगी । मैं यहाँ पड़े- पड़े बोर हो गया हूँ। अभी यहाँ से गया पिछले महीने ही मेरा दोस्त गया और वह किसी नेता पर गिर फेमस हो गया उसका  जूते का जीवन सफल हो गया अब मैं भी चाहता हूँ मेंरा जीवन सफल हो बन जाये।
                    मैंने कहा भई मैं तो तुम्हें नहीं चला पाऊंगी कोई और ग्राहक देखो जो तुम्हें चला सके....मैं वहाँ से एक चप्पल लेकर निकल गई पर पीछे कुछ स्वर मेरा पीछा करते हुए घर तक चले आए.......
         "चाह  नहीं पैरों में पहना जाऊँ
           चाह नहीं सुन्दरी के पैरों की शोभा बढाऊ
           चाह नहीं शो रुम में चमकू
           चाह नहीं खिड़ाली का विजय इतिहास बनूँ
           चाह नहीं मँहगे कारपेट्स को रौंदूँ
           चाह तो है बस किसी नेता पर फेका जाऊँ  .....फेका जाऊँ....फेका जाऊँ ।।

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