5/09/2016

औरत के हक में(लेख )

मीर तकी मीर
"अमीरज़ादो के दिल्ली मत मिला कर मीर
 कि गरीब हुये हैं हम इन्हीं की दौलत से।।
सादिया बीत गयी पर औरत 👩 के हालात जस के तस ....हर औरत की इज्जत उधारू है । किसी की दी हुई है। पता नहीं प्रकृति की कमी है या पितृसत्ता की धौंस। हर समय दबाई जाने आवाजें  को क्यो न पहली बार ही न दबने दें । वो पहला लम्हा जब कोई आवाज पुरूष होने के नाते अपनी आवाज के नीचे आपकी उठने वाली आवाज  को पैरों तले रौंद जाता है । क्यों किसी को मौका दिया जाता है ये सवाल मेरे मन में महिला होने के नाते हर क्षण कौंधता है। समाज...समाज...समाज !! समाज  आखिर ये समाज किसका है? किसने बनाया कम से कम मैनें तो नहीं बनाया।
       
                        एक औरत की इज्जत किसी पुरुष के द्वारा क्यों बनायी जाती है।औरत की इज्जत उसके अपने हाथ में है बस थोड़ी सी हिम्मत और मनोबल की जरुरत है। पर बात यह है कि ये हिम्मत और मनोबल को किसी सम्बल की जरूरत होती है। क्यों न ससुराल में पति के द्वारा पहली बार हाथ उठाते ,मां- बाप और अपनो को लानते देते ही रोक लगाई जाये या उस स्थिति में अगर औरत घर छोड़कर जाये तो उसको सहारा दिया जाये। किसी मां- बाप को हक़ नहीं कि बेटियों को मुह बन्द कर सब चुपचाप सहने के लिए विवश किया जाये।परिवार बनाये रखने के नाम पर दुहाई देते लड़की के अपने लोग कहीं न कहीं उसको मजबूर करते हैं कि जा जो भी हो रहा है उसको नजरअंदाज कर सहती रह तडपती रह।बचपन से ही हर लड़की के दिमाग में यह बात क्यों बैठायी जाती है चुप रह, धीरे बोल,कम बोल,नीचे आवाज में बात कर .....आदि -आदि।
                     औरत शायद खुद को ही कभी नहीं जान पाती है। वह क्या उसका वजूद क्या है ,उसकी औकात क्या ?? उसको पूरी जिन्दगी अपनी हक़ीकत नहीं पता होती ,वह एक दायरे में खुद को कैद कर खुश रहती है।हर समय उसके पैरों में समाज नाम की बेडियाँ बंधी हुई हैं। ऐसा मत कर लोग क्या कहेंगे ,वैसा मत कर लोग क्या कहेंगे।अरे जो कहना है कहते रहे लोग ।लोगों के लिए जिंदगी को आग क्यों लगाना ।हर औरत को उसके खुद के लिए जीना होगा। समाज में उठती हर उस उंगली को तोड़ फेकना होगा जो उसके लिए व्याध बन गयी है।
   
                 सीधी सी बात है झुकती है दुनिया झुकाने वाला चाहिए।बेचारी बनने की जरूरत नहीं
                

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