सोचा जो था मैने, तुम वो नहीं
पानी है ,मंजिल, मेरे उसूल झुकते नही
मिले हैं पंख तो आसमां मे उडू
सोचा है जो,क्यों न मेरे मन की करूँ
रंग गुलाबी है मेरे सपनों का
इन सपनों से मै मेरा आसमां भरुं
सोचा जो था तुम वो तो नहीं
पानी है ,मंजिल मेरे उसूल कम नही
परवाह नहीं ,कुछ भी मैं क्यों सोंचूं
बना रहे आगाज, जो हुआ है शुरू
हौंसला है बुल्लंदियो को छूने का
हसरतों को कैद मुठ्ठी मे क्यू करूँ
सोचा जो था तुम वो तो नहीं
पानी है मंजिल मेरे उसूल कम नही
छूटा है जो पीछे ,छोड़ आगे चलूँ
रास्ते हैं नये -नये ,रोड़े खुद बिन लूँ
शिकायत नहीं किसी की शिकायत का
कैसा भी हो रास्ता बिना रुके बढ़ लूँ
सोचा जो था तुम वो तो नहीं
पानी है मंजिल मेरे उसूल कम नही
रात है घनी खुद सितारों से रोशन करूँ
तम है बाकी तो मातम क्यू करूँ
इंतज़ार है बस लालिमा से भरे भोर का
सूरज उगता है जहाँ रुख़ उधर कर लूँ
सोचा जो था तुम वो तो नहीं
पानी है मंजिल मेरे उसूल कम नही
सोचा जो था तुम वो तो नहीं
पानी है मंजिल मेरे उसूल कम नही॥
©®शशि पाण्डेय
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