9/10/2016

रेल के हवाई मज़े (व्यंग्य लेख )

रेल के हवाई मज़े 
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जी हाँ ! अब हवाई किराये के मज़े  रेल किराये मे लीजिये । आप जो मजे हवाई सफ़र मे नहीं ले सकते ,वह सब रेल मे मिलता  है । हवाई के नाम पर सब कुछ हवा करने को मतलब लुटाने को ग़लत नहीं मानते तो बढे रेल किराये पर मुँह क्यों पिचकाये । आसमान मे बीस हज़ार फीट पर जब खाने का कुछ परोसा जाता है तो उसका किराया भी बीस गुना ही ज़्यादा ऊसूला जाता है पर बेचारी रेल ज़मीन से जुड़ी ज़मीनी ही रहती है और उसके भाव भी ज़मीन पर । आपको इसके भाव आसमानी लगे तो ,बेवजह ! वैसे कोई माने या न माने ज़मीन से जुड़े लोग ही तरक्की करते हैं । उसमें से रेलतंत्र का नाम बेशुमार है ।

सत्ता जब चाहती है किसी के भी भाव बढ़ा देती है । बैठे ठाले कुछ नही हुआ तो छुक छुक गाड़ी के ही  भाव बढ़ा दिए और इतने कि उड़नखटोला भी लजाने लगा । टी वी पर ख़बर चल रही थी रेल मे हवाई सफ़र...मेरे अबोध बच्चे बड़े खुश हो ख़बर मुझे बताने लगे...उन्हे क्या मालुम ये ख़बर वाले भी अपना कुछ बढ़ा रहे हैं वो थी ख़बर और  ख़बर की टी आर पी ।

अब उड़ो कितना उड़ोगे ? हमने पटरी भी नही छोड़ी और आसमान भी शर्मिंदा हो गया ,बड़ी सरकार की अनुकम्पा से । अब रहा किराया बढ़ने का तो जब भाव बढ़ा है तो ड्योढ़े दूने की क्या बात है। यह क्या कम सुख है कि रेलगाड़ी के सफर में भी अब हवाई जहाज जैसा सुख मिलेगा ।

हवाई जहाज की यात्रा की सबसे बड़ी खराबी है कि बेल्ट बांधी नही कि अनाउंसमेंट होने लगा -दिल्ली या फलाना -ढ्माका आ गया । न चाय,न मूंगफली,न खोंचे वालों की आवाजें ! यात्रा वह होती है जिसमे देर तक सफर करने का सुख मिले । बैठे बैठे सरकार को भी कोस सके राजनीतिक गुत्थम गुत्था हो हवाई जहाज के यात्री की तरह मुंह बांध के न बैठना पड़े।

क्या आपने कभी रेल के फ़ायदे भी गिने हैं....चल दिये किराये पे मुँह बिदकाने । ट्रेन सरीखे आप कभी हवाई जहाज को  दौड़ कर पकड़ सकते हैं क्या , नहीँ न ! हवाई जहाज  तक आपको पहुँचने के लिये बस का सहारा लेना ही पड़ता है जबकि रेल प्लेटफार्म यात्रियों का अपना मिनी घर होता है । जहाँ मन आये पसर जाईये । वैसे गन्दगी करने का भी  अपना अलग सुख है ,। बर्थ नही मिली तो अख़बार निकाला दो सीटों के बीच बिछाया और लंबे हो लिए । टीटी को पटा लिया और रेल अपने बाप की हो गयी । है हवाई जहाज में इतनी छूट?

अभी तो फ्लेक्सी शैली सिर्फ शताब्दी, दुरंतो,राजधानी को ही उपकृत करने जा रही है । अभी प्रयोग का पहला कदम है चादर बड़ी  होवेगी तो पैसेंजर तक जायेगी । हवाई जहाज के मे अगर दुर्घटना हुई तो आप आर -पार हो जाते हैं पर रेल दुर्घटनाओं मे ज्यादातर लोग टूट - फूट के साथ जीवित बचते हैं वो बात अलग है वह जीने लायक नहीं बचते हैं ।

वैसे हमारी उम्र के जैसे सरकारे जब भी आती हैं चीज़े घटती नहीं बढ़ती ही रहती हैं...चाहे दाम हो , भ्रष्टचार हो ,या घोटाले हो या उनके अपने वेतन हो । अब जब बढ़ना नैसर्गिक है तो किसी को दोषी क्यों ठहराना । पर हाँ जो बढ़ती हैं चीज़े वो चुकती भी हैं ,लेकिन रेल का भगवान जाने ! वैसे चीज़ों का बढ़ना  हमेशा से अच्छा ही लगता लेकिन ये दाम बेदर्दी बढ़ते ही हृदयआघात देने लगता है । सोचती हूँ हृदयआघात का जीवनबीमा करा लिया जाय । जब  हर एक के दाम बढ़ रहे हैं तो बीमा के भी दाम बढेगे ही हृदयआघात मे फ़ायदा काम आयेगा ।

खैर आगे बढ़ते हैं.......हवाई जहाज की इमरजेंसी पर सिर्फ़ पायलट ही कुछ कर सकता है जबकि रेल की आँत खींच मतलब चैन पूल कर कभी भी मन बहला सकते हैं । अरे भई ! तबेल्वा इतना बड़ा है किराया बढ़ना लाजिमी है । कइसे नहीं भारियेगा किराया  !अब सरकार ज़मीन पर ही आपको हवा मे घुमा रही है खुश हो लीजिये । माना हमारी रेल व्यस्था थोड़ी दुर्बल है । पर अंग -प्रत्यंग व आकृति मे सामर्थ्य से भरपूर है । इसको नकारा  कह  घोर चिंतक न बनिये । हमारे मुखिया  साहिब  हैं न , साहिब से सब होत है ।

©®शशि पाण्डेय 
Poonam109@gmail.com 
Shashiipandey.blogspot.com

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