9/28/2016

खो कर पाने तक (कविता )

मौन हूँ प्रखर  होने  तक 
बेसब्र नहीं सब्र जाने तक 
सिखाती बहुत है ज़िन्दगी 
हमेशा खो कर पाने तक ॥

हूँ मिट्टी ढलती साँचे तक 
हूँ  छोटी रहती बाड़े  तक 
करती  नहीं  मै  ऐतबार 
हकीक़त जान पाने तक ॥

दरिया हूँ समंदर में जाने तक 
लड़की हूँ औरत बन जाने तक 
ममता  रहेगी  बसी  मुझमें 
पंचतत्व में मिल जाने तक ॥

दुख रहता सुख होने तक 
सुख रहता दुख होने तक 
जीवन का रहता यह चक्र 
आगोश में मौत के जाने तक ॥

प्यार है तेरे होने न होने तक 
डर नहीं मुझमें तुझे खोने तक 
तू  ही तो  है  सब  कुछ मेरा 
लेकिन विश्वास के होने तक ॥

©शशि पाण्डेय 
Shashiipandey.blogspot.com 

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