मौन हूँ प्रखर होने तक
बेसब्र नहीं सब्र जाने तक
सिखाती बहुत है ज़िन्दगी
हमेशा खो कर पाने तक ॥
हूँ मिट्टी ढलती साँचे तक
हूँ छोटी रहती बाड़े तक
करती नहीं मै ऐतबार
हकीक़त जान पाने तक ॥
दरिया हूँ समंदर में जाने तक
लड़की हूँ औरत बन जाने तक
ममता रहेगी बसी मुझमें
पंचतत्व में मिल जाने तक ॥
दुख रहता सुख होने तक
सुख रहता दुख होने तक
जीवन का रहता यह चक्र
आगोश में मौत के जाने तक ॥
प्यार है तेरे होने न होने तक
डर नहीं मुझमें तुझे खोने तक
तू ही तो है सब कुछ मेरा
लेकिन विश्वास के होने तक ॥
©शशि पाण्डेय
Shashiipandey.blogspot.com
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