ओ दाता तू है क्या कहीं
तू है या , है भी नहीं !
हैं बेटियाँ जो धरती पर अभी बची
बुला ले सभी को अभी के अभी
तेरे संसार में रहती हैं डरी-डरी
जाती हैं पल -पल ,छली -छली
ओ दाता तू है क्या कहीं
तू है या , है भी नहीं !
थक हार मै ही ज़हर क्यों पीती
बचा ले आस्था अभी बची-कुची
आस्तिक से नास्तिक बनने की
राहें बची हैं अब मजबूरी से भरी
ओ दाता तू है क्या कहीं
तू है या ,है भी नहीं !
नहीं आज़ादी मुझे अब भी पूरी
वासना की घूमती मुझ पर है धुरी
जब तेरा आसमां तेरी है जमीं
होता कहाँ जब अस्मत है लुटती
ओ दाता तू है क्या कहीं
तू है या ,है भी नहीं !
फटती क्यों नहीं है माँ ये धरती
तेरी आत्मा क्यों नहीं दुखती
अपने हाँथो ही मेट दे मुझे
रह जाये ये दुनिया थमी के थमी
ओ दाता तू है क्या कहीं
तू है या , है भी नहीं !
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