9/28/2016

तू है या नहीं !(कविता )

ओ  दाता तू  है क्या कहीं
तू है या , है भी नहीं !

हैं बेटियाँ जो धरती पर अभी बची
बुला ले सभी को अभी के अभी
तेरे संसार में रहती हैं डरी-डरी
जाती हैं पल -पल ,छली -छली 
ओ  दाता तू है क्या कहीं 
तू है या , है भी नहीं !

थक हार मै ही ज़हर क्यों पीती  
बचा ले आस्था अभी बची-कुची 
आस्तिक से नास्तिक बनने की 
राहें बची हैं अब मजबूरी से भरी 
ओ  दाता तू है क्या कहीं 
तू है या ,है भी नहीं !

नहीं आज़ादी मुझे अब भी पूरी 
वासना की घूमती मुझ पर है धुरी
जब तेरा आसमां तेरी है जमीं 
होता कहाँ जब अस्मत है लुटती 
ओ  दाता तू है क्या कहीं 
तू है या ,है भी नहीं !

फटती क्यों नहीं है माँ ये धरती 
तेरी आत्मा क्यों नहीं दुखती 
अपने हाँथो ही मेट दे मुझे 
रह जाये ये दुनिया थमी के थमी 
ओ  दाता तू है क्या कहीं 
तू है या , है भी नहीं !

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